दुनिया में बर्तनों का अपना एक अद्भुत संसार होता है तथा ये अपनी एक अलग ही कहानी प्रस्तुत करते हैं। विश्व भर में इन्ही बर्तनों के आधार पर विभिन्न सभ्यताओं के कालखंड का ज्ञान हमें प्राप्त होता है तथा पुरातत्त्व जैसे महत्वपूर्ण विषय में मिट्टी के बर्तन किसी मील के पत्थर से कम नहीं हैं। यही कारण है कि विभिन्न सभ्यताओं का नाम भी इन्ही मिट्टी के बर्तनों के आधार पर रखा गया है जैसे कि चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति, उत्तरी कृष्ण लेपित मृदभांड संस्कृति आदि। मध्यकाल में भारत में पोर्सलीन या चीनी मिट्टी के बर्तन बड़ी मात्रा में पाए जाने लगे। ये बर्तन भारत में अन्य देशों से आयात किये जाते थे।
पोर्सलीन मृदभांड को चीनी मिट्टी का इसलिए कहा जाता है क्यूंकि सर्वप्रथम इसका निर्माण चीन में होना ही शुरू हुआ था जो कि बाद में विश्व के अनेक देशों में खरीदा व बेचा जाने लगा। इस बर्तन ने यूरोपीय समाज में अत्यंत दुर्लभ व उच्च कोटि का दर्जा प्राप्त कर लिया था तथा विदेशियों के भारत आगमन के बाद से इसका आयात और भी तेज़ हो गया। भारत के विभिन्न राजघराने भी इस बर्तन को तवज्जो देने लगे। यही कारण है कि विभिन्न राजघरानों में चीनी मिट्टी के पात्र बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। लखनऊ में चीनी मिट्टी के बर्तन मध्यकाल में बड़े पैमाने पर मंगाए गए थे जिन्हें वर्तमान काल में यहाँ के संग्रहालयों में रखा गया है। ये बर्तन मुख्य रूप से नीले व सफ़ेद रंग के होते हैं। ये बर्तन अत्यंत चिकने होते हैं तथा गर्म होने पर चटकते नहीं हैं। चीनी मिटटी एक विशिष्ट प्रकार की मिटटी होती है जिसे केओलिनाइट कहते हैं।
1. http://hindi.cri.cn/chinaabc/chapter20/chapter200313.htm
2. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/93999/1/01_title.pdf
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