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नीम एवं हरड़ जैसे भारतीय पेड़-पौधों के प्रत्येक भाग में छिपा है सभी रोगों का उपचार

लखनऊ

 08-05-2024 09:38 AM
शारीरिक

हमारे देश भारत के देसी पेड़-पौधे देश की समृद्ध जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण हैं। लंबे समय से पेड़ पौधों को अपने विविध औषधीय लाभों के कारण पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की आधारशिला माना जाता है। इनका उपयोग अति प्राचीन काल से ही सिद्ध आयुर्वेद और यूनानी प्रणालियों में किया जाता रहा है। चाहे प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करना हो, पाचन में सहायता करना हो, दर्द से राहत पाना हो, या पुरानी बीमारियों का प्रबंधन करना हो, भारतीय पौधों में सभी का समग्र उपचार छिपा है। भारतीय वृक्षों की समृद्ध जैव विविधता के कारण प्राकृतिक उपचारों की विभिन्न पद्धतियां उपलब्ध हैं, जो मानव जीवन के कल्याण और जीवन शक्ति को बढ़ावा देने में योगदान करती है। भारत में सदियों से अर्जित पारंपरिक ज्ञान के साथ, ये पौधे आधुनिक समय में भी अपनी औषधीय क्षमता के लिए पूजनीय बने हुए हैं। भारतीय वृक्षों की जड़ों से लेकर पत्तियों तक, प्रत्येक भाग में विभिन्न बीमारियों का उपचार निहित है। ये पेड़ पौधे सूजनरोधी, रोगाणुरोधी, एंटीऑक्सीडेंट, पीड़ाहारी और रोग प्रतिरोधी जैसे चिकित्सीय गुणों का भंडार हैं। इन वृक्षों की पत्तियों, जड़ों, छाल, फल, बीज, फूल सहित कई अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग औषधीय गुण भी हो सकते हैं। पौधों के विभिन्न भागों में एक ही पौधे के भीतर विभिन्न सक्रिय तत्व हो सकते हैं। इसका अर्थ है कि पौधे के एक भाग में किसी एक बीमारी के लिए उपचार हो सकता है जबकि उसी पौधे के दूसरे भाग में किसी अन्य बीमारी का।
आइए अब देखते हैं कि वृक्षों के किन-किन भागों का उपयोग औषधीय गुण प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है:
छाल: वृक्षों की छाल में सक्रिय तत्व अक्सर उच्च सांद्रता में पाए जाते हैं। कुनैन की छाल, ओक की छाल, काली मिर्च की छाल और विलो की छाल औषधीय गुणों के लिए उपयोग की जाने वाली छाल के उदाहरण हैं।
बल्ब: एक पौधे के बल्ब में पत्ती के आधार की कई परतें होती हैं। अक्सर प्याज और लहसुन के बल्ब का उपयोग औषधीय उपचार के लिए किया जाता है।
आवश्यक तेल (Essential Oil): आम तौर पर भाप आसवन प्रक्रिया का उपयोग करके पौधों से आवश्यक तेल निकाले जाते हैं। इसके सबसे आम उदाहरण कपूर और पुदीना के तेल हैं।
वसायुक्त तेल: वसायुक्त तेल पौधों के बीज या फलों से निकाले जाते हैं और पानी में अघुलनशील होते हैं। चिकित्सा में उपयोग किए जाने वाले वसायुक्त तेलों के उदाहरण अरंडी का तेल, जैतून का तेल और कुसुम का तेल हैं।
कुछ वसायुक्त तेलों में प्रत्यक्ष औषधीय गुण होते हैं जबकि अन्य का उपयोग तरल संरचनाओं और मलहम में वाहक के रूप में किया जाता है।

फूल: फूल हमेशा पारंपरिक चिकित्सा में लोकप्रिय रहे हैं। लौंग और कैमोमाइल के फूल औषधीय फूलों का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं। इसके अलावा फूलों के विभिन्न भागों, जैसे केसर पुंकेसर, मक्के के स्टिग्मा और पराग का भी उपयोग अलग-अलग रोगों के उपचार के लिए किया जाता है ।
फल: औषधीय प्रयोजनों के लिए फलों का उपयोग प्रचुरता से किया जाता है। इसके लिए सूखे साबुत फलों या फलों के कुछ हिस्सों का उपयोग किया जा सकता है।
गोंद: वृक्षों से प्राप्त गोंद ठोस होता है जिसमें शर्करा का मिश्रण होता है। यह पानी में घुलनशील होता है और आंशिक रूप से मनुष्यों द्वारा पचने योग्य होता है।
पत्ती: औषधीय गुणों के लिए पौधों, झाड़ियों और पेड़ों की पत्तियों का उपयोग किया जाता है। पत्तियों को अकेले इस्तेमाल किया जा सकता है या टहनियों, तनों और कलियों के साथ मिलाया जा सकता है। नीम, पुदीना, मेडेनहेयर आदि का नाम उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है।
जड़ें: जड़ों का भी उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। जड़ें ठोस, रेशेदार, या मांसल हो सकती हैं। जिनसेंग, बिच्छू बुटी, डेविल्स क्लॉ, औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग की जाने वाली जड़ों के उदाहरण हैं।
प्रकंद: प्रकंद आमतौर पर ज़मीन के नीचे क्षैतिज रूप से बढ़ता है। कई औषधीय पौधों का उपयोग मुख्य रूप से उनके प्रकंदों के लिए किया जाता है जिनमें अदरक, जंगली कोलम्बाइन और ब्लडरूट शामिल हैं।
बीज: कई पौधों के बीजों का उपयोग उनके औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए जामुन के बीज का उपयोग मधुमेह के उपचार के लिए किया जाता है।
कंद: जमीन के नीचे मांसल संरचना को कंद के रूप में परिभाषित किया गया है। कंद आमतौर पर तने के मूल के होते हैं लेकिन यह जड़ भी हो सकते हैं। बोरिविलियानम (सफेद मूसली) का उपयोग औषधि के रूप में प्रचुरता के साथ किया जाता है।
लकड़ी: चंदन और क्वासिया (quassia) जैसे वृक्षों की लकड़ी का प्राकृतिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है। एक ऐसा ही भारतीय वृक्ष, जिसके लगभग सभी भागों का उपयोग औषधीय गुणों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है, नीम है। नीम को एक दिव्य एवं चमत्कारी वृक्ष के रूप में भी जाना जाता है। नीम का संस्कृत नाम 'अरिष्ट' है जिसका अर्थ है बीमारी से छुटकारा दिलाने वाला। नीम के लगभग सभी भागों जैसे कि-छाल, पत्तियां, फूल, बीज, तेल- में जीवाणुरोधी, कवकरोधी, मधुमेह रोधी, विषाणु रोधी, एलर्जी रोधी जैसे औषधीय गुण होते हैं। इसके विविध गुणों को देखते हुए दिन प्रतिदिन बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए कई देशों द्वारा लगातार नीम के पेड़ को लगाए जा रहे हैं। यह पर्यावरण अनुकूल जैव कीटनाशकों का भी एक स्रोत है। भारत में अत्यंत प्राचीन काल से ही परंपरागत रूप से, नीम की टहनियों को दांतों को साफ करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके निरंतर उपयोग से मसूड़ों से खून आना, दांतों की सड़न और मुंह की दुर्गंध जैसी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। इसके अलावा नीम का तेल मच्छर भगाने के रूप में बहुत प्रभावी है। इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों जैसे साबुन, बाम, क्रीम, शैम्पू, टूथपेस्ट आदि में भी किया जाता है। नीम की छाल में टैनिन होता है जिसके कारण इसका उपयोग चर्म शोधन और रंजक उत्पादों में भी में किया जाता है। नीम की पत्तियों से बने काढ़े का उपयोग शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने, रक्त को शुद्ध करने और त्वचा रोगों जैसे खुजली, मुंहासे, दर्द, एलर्जी, चकत्ते आदि में प्रभावी होता है। घाव, अल्सर, दर्द के इलाज के लिए नीम की पत्तियों का पेस्ट त्वचा पर लगाया जाता है। नीम की छाल कड़वी, ठंडी, कसैली तासीर वाली होती है। यह घावों को ठीक करने में सहायक है। नीम की छाल दर्दनिवारक के रूप में काम करती है। इसका काढ़ा मलेरिया जैसे तेज बुखार में भी असरदार होता है। यह बालों को पोषण देने के लिए भी अच्छा माना जाता है। आयुर्वेदिक औषधियों में नीम का एक प्रमुख घटक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा एक अन्य वृक्ष हरड़ है जो एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। इसे आमतौर पर आयुर्वेद में हरीतकी के नाम से जाना जाता है। हरड़ का उपयोग कई स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है। यह विटामिन सी, मैंगनीज, आयरन, सेलेनियम और तांबे से भरपूर होता है और इसलिए इसका उपयोग शरीर की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी किया जाता है। आयुर्वेद में हरड़ को औषधीय पौधों का राजा माना जाता है क्योंकि यह शरीर में तीनों दोषों - वात, पित्त और कफ- को संतुलित करता है।
निम्नलिखित स्वास्थ्य समस्याओं के लिए हरड़ का उपयोग रामबाण उपचार सिद्ध होता है:
पाचन- हरड़ पाचन समस्याओं के उपचार में अत्यंत उपयोगी होता है क्योंकि इसमें दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और पचन (पाचन) गुण होते हैं जो स्वच्छ और स्वस्थ आंत सुनिश्चित करने और भोजन से पोषक तत्व अवशोषित करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, हरड़ में रेचक गुण होता है, जो कब्ज को रोकने में उपयोगी है। इसके अलावा, हरड़ के बीज में मौजूद तेल का उपयोग सभी प्रकार के पाचन विकारों के इलाज के लिए किया जा सकता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता- यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है क्योंकि यह अपने एंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरक्षा गतिविधियों के कारण कोशिका क्षति को कम करता है।
त्वचा- हरड़ में मौजूद रसायन (कायाकल्प) गुण शरीर में मृत त्वचा कोशिकाओं को कम करते हैं और मुँहासे या त्वचा रोगों से छुटकारा पाने के लिए नई कोशिकाओं को विकसित करने में मदद करते हैं।
वात रोग- वात को संतुलित करने की हरड़ की क्षमता के कारण, हरड़ का सेवन गठिया और जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि यह गठिया का कारण बनने वाले ऊतकों, हड्डियों और मांसपेशियों को ठीक करता है। हरड़ को घी के साथ लेने से वात को संतुलित करने में बहुत मदद मिलती है।
बालों का झड़ना - हरड़ को बालों का झड़ना कम करने के लिए सबसे अच्छी जड़ी बूटी माना जाता है। इसमें विटामिन सी, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम और सेलेनियम जैसे विभिन्न गुण होते हैं जो बालों का झड़ना कम करने के लिए उपयोगी होते हैं।
घाव- कटने या चोट लगने पर हरड़ के उपयोग से उपचार प्रक्रिया तेज़ हो जाती है क्योंकि इसमें कषाय और रोपन गुण होते हैं जो संक्रमण या बीमारियों की संभावना को कम करते हैं।
खाँसी- हरड़ में कफ संतुलन गुण होते हैं जो खांसी को रोकते हैं और साथ ही खांसी उत्पन्न करने वाले वायरस से भी बचाते हैं।
वजन घटाना- हरड़ मे मौजूद गुण वजन घटाने के लिए उपयोगी होते हैं। यह शरीर में विषाक्त पदार्थों को कम करता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है। साथ ही यह मेटाबॉलिज्म भी बढ़ाता है। हालांकि हरड़ का उपयोग करने के लिए कुछ सावधानियां भी बरती जानी चाहिए। गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही हृदय रोग एवं रक्तचाप से पीड़ित लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए। शल्य चिकित्सा के तुरंत बाद एवं अन्य दवाओं के साथ इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

संदर्भ
https://shorturl.at/aimrL
https://shorturl.at/bhK35
https://shorturl.at/fhuY4

चित्र संदर्भ
1. नीम एवं हरड़ के पेड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, flickr)
2. स्वर्ण मंदिर के निकट पूजनीय वृक्ष को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नीम के वृक्ष को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. हरड़ के तनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. हरड़ के बीज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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