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हम जानते ही हैं कि, हमारे शहर रामपुर के शासकों का इस क्षेत्र की वास्तुकला पर एक विशिष्ट प्रभाव रहा है। शहर की इमारतें और स्मारक मुगल शैली की वास्तुकला की उपस्थिति का संकेत देते हैं। रामपुर का किला और जामा मस्जिद रामपुर में पाए जाने वाले वास्तुकला के बेहतरीन नमूनों में से एक हैं। लेकिन हमारे देश में एक अलग तरह की वास्तुकला है, जिसके बारे में हमें जानना चाहिए। आइए, आज हम दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण और सबसे पुराने स्थानों में से एक, मद्रास शहर (वर्तमान चेन्नई) की वास्तुकला शैली को जानते हैं, जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है। और, मद्रास की कुछ महत्वपूर्ण और अनोखी इमारतें भी देखें, जो अपनी डिज़ाइन और संरचना के लिए प्रसिद्ध हैं।
मद्रास की मुख्य इमारतों की इंडो-सारसेनिक वास्तुकला उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत में ब्रिटिश वास्तुकारों द्वारा विकसित, मुस्लिम डिजाइनों और भारतीय शैलियों के संश्लेषण का प्रतिनिधित्व करती है। इस शैली ने गॉथिक(Gothic – एक वास्तुकला शैली) घुमावदार मेहराबों, शिखर, सजावट, मीनारें, रंगीन कांच,गुंबदों के साथ हिंदू और मुगलों के विविध वास्तुशिल्प तत्वों को अद्भुत तरीके से जोड़ा हैं। रॉबर्ट फ़ेलो चिशोल्म(Robert Fellowes Chisholm), हेनरी इरविन(Henry Irwin) उस समय के कुछ प्रमुख वास्तुकार थे। इंडो-सारसेनिक वास्तुकला ने रेलवे स्टेशनों, बैंकों, बीमा भवन, शैक्षणिक संस्थान, क्लब और संग्रहालय जैसी सभी प्रकार की सार्वजनिक इमारतों में अपना रास्ता बना लिया। पॉल बेनफील्ड(Paul Benfield) द्वारा डिज़ाइन किया गया, चेन्नई का चेपॉक महल भारत की पहली इंडो-सारसेनिक इमारत है।
जबकि, इसी शैली के कुछ असाधारण उदाहरण पूरे देश में फैले हुए हैं – इलाहाबाद में मुइर कॉलेज; तिरुवनंतपुरम में नेपियर संग्रहालय, डाकघर, प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय, विश्वविद्यालय हॉल और पुस्तकालय; मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया, एम.एस. विश्वविद्यालय; बड़ौदा में लक्ष्मी विलास पैलेस, सेंट्रल रेलवे स्टेशन, कानून अदालतें; चेन्नई में विक्टोरिया पब्लिक हॉल, संग्रहालय और विश्वविद्यालय सीनेट हाउस; तथा मैसूर और बैंगलोर में महल आदि।
इंडो-सारसेनिक वास्तुकला को अक्सर “स्टाइलिस्टिक हाइब्रिड(Stylistic hybrid)” वास्तुकला कहा जाता है। यह पारंपरिक भारतीय वास्तुशिल्प तत्वों, जैसे स्कैलप्ड(Scalloped) मेहराब और प्याज के आकार वाले गुंबद आदि को पारंपरिक ब्रिटिश वास्तुकला के साथ जोड़ता है। नव-शास्त्रीय और गॉथिक शैलियों के साथ भारतीय तत्वों का मिश्रण, एक इंडो-सारसेनिक इमारत का प्रतीक है।
इस वास्तुकला शैली की कुछ अन्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
१.बल्बनुमा(प्याज के आकार वाले) गुंबद,
२.लटकते हुए कंगनी,
३.नुकीले मेहराब या स्कैलप्ड मेहराब,
४.गुंबददार छतें,
५.खिड़की वाले गुंबददार कमरे,
६.छोटे गुंबद या गुंबददार छतरियां,
७.मीनारें,
८.हरम खिड़कियां, आदि।
दूसरी ओर, इंडो-सारसेनिक वास्तुकला में निर्मित कई ऐतिहासिक इमारतें आज भी पूरी तरह से कार्यात्मक हैं, और सरकारी, व्यावसायिक या शैक्षणिक प्रतिष्ठानों की मेजबानी करती हैं। कोलकाता के बाद आज चेन्नई शहर, देश में ऐसी विरासत इमारतों का मेजबान है।
सैन्थोम चर्च:
यह चर्च 1523 में पुर्तगाली खोजकर्ताओं द्वारा ‘सेंट थॉमस द एपोस्टल(Saint Thomas the Apostle )’ की कब्र पर निर्मित है। 1896 में ब्रिटिशों द्वारा गॉथिक पुनरुद्धार वास्तुकला की शैली में बड़े मीनार के साथ इसका पुनर्निर्माण किया गया। चर्च का दूसरा मीनार एपोस्टल की कब्र का प्रतीक है।
फोर्ट सेंट जॉर्ज:
1639 में निर्मित, फोर्ट सेंट जॉर्ज में तमिलनाडु विधान सभा और सचिवालय हुआ करते थे। टीपू सुल्तान की तोपें किले के संग्रहालय की प्राचीर को सुशोभित करती हैं। यह किला तमिलनाडु राज्य के 163 अधिसूचित क्षेत्रों में से एक है।
मद्रास उच्च न्यायालय:
मद्रास उच्च न्यायालय लंदन(London) की अदालतों के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा न्यायिक भवन है। यह इंडो-सारसेनिक शैली का एक अच्छा उदाहरण है, और 1892 में बनकर तैयार हुआ था।
वल्लुवर कोट्टम:
वल्लुवर कोट्टम, 1976 में निर्मित, कवि-संत तिरुवल्लुवर की स्मृति में एक सभागार है। कवि के महाकाव्य, तिरुक्कुरल के सभी 1,330 छंद, सभागार के चारों ओर लगे ग्रेनाइट स्तंभों पर अंकित हैं। इसमें 101 फीट ऊंचे मंदिर रथ की संरचना है, जिसमें तिरुवल्लुवर की आदमकद छवि भी है।
रेलवे स्टेशन, चेन्नई:
चेन्नई में रुचि के कई रेलवे स्टेशन हैं, जो मुख्य रूप से औपनिवेशिक काल के दौरान बनाए गए थे। इनमें एग्मोर स्टेशन, 1856 का रोयापुरम स्टेशन, 1873 का चेन्नई सेंट्रल स्टेशन और 1922 में बना दक्षिणी रेलवे मुख्यालय शामिल हैं।
परंतु, इस सुंदर धरोहर के बावजूद भी, आज मद्रास शहर की 18वीं और 19वीं शताब्दी की निर्मित विरासत असुरक्षित है।इसका कारण यह है कि,कई हितधारकों के बीच एक बहुत ही आम धारणा है कि, ये अंग्रेजों द्वारा बनाई गई इमारतें हैं, और इसलिए भारतीयों को उनकी सुरक्षा या मरम्मत करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
परंतु, सीनेट हाउस में महाकक्ष के जीर्णोद्धार प्रयासों ने एक बिल्कुल ही अलग बात का खुलासा किया है, जिस कारण उन लोगों को गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है, जो ऐसी इमारतों को विदेशी मानते हैं। हालांकि, इस इमारत का डिज़ाइन आर. एफ. चिशोल्म का हो सकता है, और इसलिए इसे अंग्रेजी इमारत के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन, यह इमारत वास्तव में भारतीय, बीजान्टिन (Byzantine) और सारासेन शैलियों का मिश्रण है। इसलिए,यह स्पष्ट है कि, उस डिज़ाइन का निष्पादन बहुत हद तक भारतीय था। इस इमारत में हमें “मद्रास प्लास्टर” का उदाहरण मिलता हैं। यह तकनीक, दुनिया के इस हिस्से के लिए पूरी तरह से अनोखी और बाहर पूरी तरह से अज्ञात थी। जबकि, सीनेट हाउस में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। इसी इमारत में इस्तेमाल की गई कई अन्य स्वदेशी विधियों का भी हवाला दिया जा सकता है।
इमारत में एक मजबूत और संपन्न देशी इंजीनियरिंग के साथ ब्रिटिश डिजाइन की सहभागिता शामिल थी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yx4vk2kk
https://tinyurl.com/4zbdpybr
https://tinyurl.com/6jre2evf
चित्र संदर्भ
1. मद्रास उच्च न्यायालय की वास्तुकला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. डॉ. एम.जी. रामचन्द्रन सेंट्रल रेलवे स्टेशन, चेन्नई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. इलाहाबाद में मुइर कॉलेज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. सैन्थोम चर्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. फोर्ट सेंट जॉर्ज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. मद्रास उच्च न्यायालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. वल्लुवर कोट्टम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
9. रेलवे स्टेशन, चेन्नई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
10. पारंपरिक मद्रास छत तकनीक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)