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प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा जो ‘नवाबों का शहर’ अधिनाम से जाना जाता है वह ‘लखनऊ’ शहर कला, संस्कृति और तहजीब का एक बेहतरीन नमूना माना जाता है। यह बहुसांस्कृतिक शहर अपने इतिहास और उसके साक्ष्य देती खूबसूरत इमारतों के अलावा नृत्य, हिंदी-उर्दू गद्य पद्य के तथा संगीत के लिए भी जाना जाता है।
सन 1926 में पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने लखनऊ के संगीत प्रेमी और पारखियों, जैसे राय उमानाथ बली, राय राजेश्वर बली और राजा नवाब अली की मदद से मारिस संगीत विद्यालय की स्थापना की। इसका उद्घाटन अवध राज्यपाल सर विलियम मारिस के हाथों किया गया था तथा इस विद्यालय का नाम उन्हीं पर रखा गया। 26 मार्च 1966 को उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत यह विद्यालय आया और सरकार द्वारा इसका नाम इसके संस्थापक पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की याद में भातखंडे कॉलेज ऑफ़ हिन्दुस्तानी म्यूजिक (Bhatkande College of Hindustani Music) और आगे भातखंडे म्यूजिक इंस्टिट्यूट (Bhatkande Music Institute) रखा गया। सन 2000 में भारत सरकार ने इस विद्यालय को मानित विश्वविद्यालय घोषित किया।
भारत में शास्त्रीय संगीत के पुनर्जागरण के अग्रदूत तथा भातखंडे संगीत-शास्त्र के रचनाकार पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के नाम के इस महाविद्यालय में यूरोप, नेपाल, भूटान, श्रीलंका आदि पूरे जग भर से विद्यार्थी शास्त्रीय संगीत सीखने आते हैं। अनूप जलोटा, दिलराज कौर आदि यहाँ के भूतपूर्व विद्यार्थी हैं।
1. http://bhatkhandemusic.edu.in/history/