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अमेरिकी कवि राल्फ वाल्डो इमर्सन (Ralph Waldo Emerson) ने एक बार लिखा था, "पृथ्वी फूलों में हंसती है।" और यदि आप ध्यान देंगे, तो आप जानेंगे कि पृथ्वी फूलों के माध्यम से भी ठीक होती है। फूल अपनी सुगंध के लिए सबके बीच प्रिय होते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि फूलों में औषधीय गुण भी होते हैं। दरअसल, आयुर्वेद और होम्योपैथी में इन्हें बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बालों के झड़ने से लेकर पाचन संबंधी समस्याओं और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं तक, फूलों से अनेकों स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इसके अलावा फूल थेरेपी स्मृति हानि, हकलाना और अपपठन (dyslexia) जैसी संज्ञानात्मक समस्याओं में भी उपयोगी साबित होती है। फूलों के द्वारा भय, तनाव और क्रोध जैसी भावनाओं को संतुलित किया जा सकता है। तो आइए आज कुछ ऐसे ही जंगली फूलों के विषय में जानते हैं जिनका उपयोग आयुर्वेद और होम्योपैथी दवा बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही हम यह भी समझने का प्रयास करते हैं कि ये जंगली फूल हमारी प्राकृतिक धरती से कैसे लुप्त होते जा रहे हैं। और इसे रोकने के लिए क्या कदम आवश्यक हैं?
कैलेंडुला ऑफिसिनैलिस’ (Calendula officinalis):
प्राचीन भारत में सदियों से प्रचलित चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में कटने और खरोंच, आंखों की सूजन, जठर व्रण और एसिड रिफ्लक्स, शुष्क त्वचा और एक्जिमा, के साथ फटे होंठ, बच्चे के दाने और सनबर्न के इलाज के लिए टिंचर, चाय और मलहम में खाने योग्य ‘कैलेंडुला ऑफिसिनैलिस’ (Calendula officinalis) के उपयोग का सुझाव दिया गया है, जिसे आमतौर पर ‘पॉट मैरीगोल्ड’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि इसे चिकित्सकीय रूप से सुरक्षित माना जाता है, लेकिन गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाएं या डेज़ी परिवार के फूलों के प्रति संवेदनशील लोगों को कैलेंडुला खाने या लगाने से पहले चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।
गुड़हल (Hibiscus):
आयुर्वेद में जप पुष्प के रूप में संदर्भित, इस उज्ज्वल, आकर्षक फूल की पत्तियों और फूलों में प्राकृतिक श्लेष्मा होने के कारण इसे 'प्रकृति का बोटोक्स' (Nature’s botox) उपनाम दिया गया है। गुड़हल के फूल में आयुर्वृद्धि विरोधक गुण होते हैं। गुड़हल युक्त क्रीम और लोशन जैसे चेहरे के उपचार त्वचा को फिर से हाइड्रेट, चमकदार बनाने और महीन रेखाओं को दूर करने के लिए जाने जाते हैं। गुड़हल के फूल एवं पत्तियों का उपयोग गर्म नारियल तेल के साथ मिश्रित करके समय से पहले सफ़ेद, पतले, सपाट और ढीले बालों के लिए एक उत्कृष्ट उपचार के रूप में किया जाता हैं। विटामिन-सी से भरपूर गुड़हल से बनी चाय इम्यूनिटी को बढ़ाने और रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल तथा वजन को कम करने एवं चयापचय को पुनः व्यवस्थित करने के लिए भी एक बेहतरीन आयुर्वेदिक उपाय है।
मोरिंगा (Moringa):
आयुर्वेद में कहा गया है कि सहजन मोरिंगा से लगभग 300 बीमारियों का उपचार किया जा सकता है। विटामिन ए, बी-कॉम्प्लेक्स, सी, डी, ई और के से भरपूर, इस चमत्कारी पौधे को 'जीवन वृक्ष' के नाम से भी जाना जाता है। इसमें ऊतक कंडीशनिंग और कोशिकीय पुनर्योजी गुण होने के कारण इसे एक सुपर फूड के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। इसका उपयोग झुर्रियाँ, ऐंठन, खराब दंत स्वास्थ्य, कान और सिरदर्द, एनीमिया, छाती में जमाव, रक्त शुद्धि और रक्तचाप, जोड़ों के दर्द और ग्रंथियों की सूजन के उपचार में भी किया जाता है।
गोटू कोला (GOTU KOLA):
मस्तिष्क में स्वस्थ तंत्रिका गतिविधि और मज़बूत अंतर्ग्रथन अंतःयोजनीयता को बढ़ाने की अपनी क्षमता के लिए, गोटू कोला को आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा में एक दीर्घायु जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। यह स्मृति हानि की समस्याओं में भी मदद करता है। और इससे मस्तिष्क की एकाग्रता भी बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा गोटू कोला को अपने घर के बगीचे में लगाने से पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव को भी कम किया जा सकता है।
ब्रायोफिलम (BRYOPHYLLUM PINNATUM)
आयुर्वेदिक में बताया गया है कि ब्रायोफिलम का उपयोग पेट दर्द और कब्ज, रक्त दस्त, पेचिश, मूत्र संबंधी समस्याओं, गुर्दे की पथरी, बवासीर, कान में दर्द, त्वचा के फोड़ों के लिए जूस के रूप में तथा खांसी और सर्दी के इलाज़ के लिए मिश्री के साथ किया जा सकता है।
आयुर्वेद के साथ-साथ होम्योपैथी में भी लंबे समयx से कई प्रकार की बीमारियों के उपचार के लिए फूलों के सक्रिय अवयवों का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर होम्योपैथिक में उपचार के रूप में उपयोग किए जाने वाले पांच वसंत फूल निम्नलिखित हैं:
क्रोकस सैटिवस (Crocus sativus):
क्रोकस सैटिवस, जिसे आमतौर पर केसर क्रोकस के नाम से जाना जाता है, का उपयोग आमतौर पर एक महंगे मसाले के रूप में किया जाता है जो फूल के अंदर उगने वाले फिलामेंट्स से प्राप्त होता है। इस फूल का उपचार के रूप में होम्योपैथी में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसके उपयोग के विषय में कम से कम 143 बार प्राचीन चिकित्सा पुस्तक मटेरिया मेडिका (Materia Medica) में व्यापक रूप से वर्णन किया गया है। मटेरिया मेडिका व्यक्तिगत संवेदनशीलता और उसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए समग्र रूप से स्वस्थ मनुष्य पर दवाओं की प्रतिक्रिया के अध्ययन के विषय में पुस्तक है।
हायसिंथ (Hyacinth):
जंगली जलकुंभी या ब्लूबेल के नाम से जाने जाने वाले इस पौधे में होम्योपैथों की विशेष रुचि है। हायसिंथस ओरिएंटलिस (Hyacinthus orientalis) का उपयोग हर्बल दवा और अरोमाथेरेपी में किया जाता है। हालांकि किसी भी मुख्य मटेरिया मेडिका में इसका वर्णन नहीं मिलता है। इस पौधे का उपयोग नजला, बहरापन और दस्त जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए किया जाता है।
नार्सिसस (Narcissus):
नार्सिसस स्यूडो नार्सिसस (Narcissus pseudonarcissus (Daffodil) का औषधीय रूप से उपयोग किए जाने का एक लंबा इतिहास रहा है। पारंपरिक जापानी चिकित्सा में घावों के इलाज के लिए इसकी जड़ का उपयोग किया जाता है। डैफोडिल बल्ब में एक एल्कलॉइड (alkaloid) होता है जिसकी क्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि एल्कलॉइड को फूल वाले बल्ब से निकाला गया है या फूल आने के बाद बल्ब से। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि होम्योपैथिक उपचार के लिए पौधे के उचित भागों का उपयोग किया जाए। मटेरिया मेडिक में वर्णित है कि डैफोडिल खांसी और फेफड़े की सूजन, लगातार खांसी, सर्दी और सिरदर्द के लिए एक कारगर उपाय है।
स्नोड्रॉप (Snowdrop):
गैलेंथस निवालिस, (Galanthus nivalis, (Snowdrop) का उपयोग सिरदर्द के साथ गले में खराश, एवं हृदय संबंधी लक्षण के लिए किया जाता है। इस उपाय का संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) के होम्योपैथिक फार्माकोपिया में एक मोनोग्राफ है।
ट्यूलिप (Tulip):
ट्यूलिपा गेसनेरियाना (Tulipa gesneriana (Tulip) और ट्यूलिपा सिल्वेस्ट्रिस (Tulipa sylvestris) के सक्रिय अवयवों का उपयोग होम्योपैथी में केवल अत्यधिक तनूकृत रूप में किया जाता है। ट्यूलिपा एडुलिस (Tulipa edulis) का उपयोग चीनी चिकित्सा में गले में खराश, अल्सर और रक्ताधिक्य के इलाज़ के लिए किया जाता है।
हमारे देश भारत में अधिकांश औषधीय पौधे एवं फूल हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं। लेकिन इन औषधीय पौधों एवं फूलों की अंतरराष्ट्रीय मांग अत्यधिक बढ़ने के कारण कई जंगली हिमालयी किस्मों को अस्थिर दरों पर चुना जा रहा है। आयुर्वेद विशेषज्ञों का मानना है कि जंगली पौधों एवं फूलों की अत्यधिक कटाई से आयुर्वेदिक चिकित्सा का पूरा भविष्य ख़तरे में पड़ गया है। कुछ औषधीय पौधे लुप्त होने की कगार पर हैं और इन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है। अन्यथा पीढ़ी दर पीढ़ी पौधों की गुणवत्ता में परिवर्तन आने का ख़तरा है। भारत में ‘एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय’ (HNB Garhwal University) के वैज्ञानिकों के अनुसार ,अत्यधिक कटाई और आवास क्षरण के कारण पहले ही 150 हिमालयी जंगली पौधे विलुप्त हो चुके हैं। उन्होंने पाया कि इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत औषधीय पौधों का विनाशकारी रूप से अति-दोहन किया गया था। इसके अतिरिक्त भारत में जंगली फूलों की अत्यधिक कटाई विशेष रूप से एक बड़ी समस्या है, क्योंकि वाणिज्यिक फसलों के विपरीत, अधिकांश जंगली फूलों को विकसित होने में वर्षों लग जाते हैं। पड़ोसी देश नेपाल में भी यह समस्या मौजूद है। वहां, दुनिया का सबसे महंगा औषधीय कवक, यार्सागुम्बा, जिसे 'हिमालयी वियाग्रा' भी कहा जाता है, चीनी खरीदारों की उच्च मांग के कारण गंभीर रूप से खतरे में है।
पूरी दुनिया में हर्बल उत्पादों में लोगों की रुचि बढ़ने के कारण यह बाज़ार दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। भारतीय फार्मेसी कंपनियां नेपाल से कच्चे पौधों की सामग्री का आयात करके इसे चीन को निर्यात करती हैं। हिमालय के निचले क्षेत्रों में अत्यधिक कटाई के कारण अब भारतीय कंपनियों के पास कोई कच्चा माल शेष नहीं बचा है, इसीलिए अधिक ऊंचाई वाले पौधों की मांग बढ़ गई है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में औषधीय पौधों की रक्षा के लिए कानून पारित किया गया था। जिसके तहत कुछ पौधों की खेती पर प्रतिबंध लगाया गया था, जबकि कुछ पौधों की बगीचों में ही खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। लेकिन, भले ही भारत सरकार द्वारा कानूनी रूप से औषधीय पौधों की खेती के लिए अधिक प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है, फिर भी चीन और नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में जंगली पौधों के लिए एक बाज़ार बन गया है। हालांकि अब उत्तराखंड के कुछ किसान आंशिक रूप से जंगली पौधों की मांग की पूर्ती करने में मदद करने के लिए स्थानीय स्तर पर व्यावसायिक रूप से खेती कर रहे हैं। इसके साथ ही इस क्षेत्र में एक किसान को प्रति किलोग्राम औषधीय पौधों को चुनने पर कम से कम 500 रुपये प्राप्त होते हैं। यह उन किसानों के लिए बहुत अच्छी कीमत है जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं। जंगली पौधों के संरक्षण के विषय में सुझाव देते हुए ऋषिकेश में आयुर्वेद क्लिनिक के डीके श्रीवास्तव कहते हैं, "यदि औषधीय प्रयोजनों के लिए पौधे का 50 प्रतिशत उपयोग किया जाता है और 50 प्रतिशत शेष छोड़ दिया जाता है, तो पौधा इसके बावजूद और बढ़ेगा।" हालांकि इन सभी उपायों के बावजूद जंगली पौधों एवं फूलों की मांग इतनी अधिक है कि इसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही है।
संदर्भ
https://shorturl.at/sIPQY
https://shorturl.at/jksIX
https://shorturl.at/grsV8
चित्र संदर्भ
1. होम्योपैथी वाले फूलों को संदर्भित करता एक चित्रण (PickPik)
2. कैलेंडुला ऑफिसिनैलिस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. गुड़हल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मोरिंगा के फूल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. गोटू कोला के फूल को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
6. ब्रायोफिलम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. क्रोकस सैटिवस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. हायसिंथ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. नार्सिसस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
10. स्नोड्रॉप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
11. ट्यूलिप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
12. उत्तराखंड के जंगली फूलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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