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1947 में स्वतंत्रता के समय, भारत में कुल 17 राज्य थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 8 केंद्र शासित प्रदेशों के साथ 28 हो गई है। इन 17 राज्यों को कई बार क्षेत्रीय, भाषाई एवं धार्मिक आधारों पर पुनर्गठित किया गया तथा इनसे विभिन्न अलग नए राज्य बनाए गए। वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश को पुनर्गठित करके छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड और बिहार से झारखंड राज्य बनाए गए। इन सभी राज्यों के गठन के पीछे एक अलग इतिहास एवं कहानी है। तो आइए आज के अपने इस लेख में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य के गठन के इतिहास और इसके कारण के विषय में जानते हैं। साथ ही आइए यह भी जानें कि विभाजन का लोगों, समाज और अंततः राज्य पर क्या प्रभाव पड़ता है।
बिहार राज्य का इतिहास अत्यंत प्राचीन एवं समृद्ध है। इस राज्य के क्षेत्रों में स्थित राज्यों का उल्लेख प्राचीन महाकाव्यों रामायण एवं महाभारत में भी मिलता है। लगभग 1500 ईसा पूर्व प्रारंभिक वैदिक काल में, बिहार के मैदानी इलाकों में गंगा के उत्तर में विदेह राज्य स्थित था, जिसके शासक राजा जनक भारत के जनमानस के हृदय में बसने वाले प्रभु श्रीराम की पत्नी माता सीता के पिता थे। उसी अवधि के दौरान, मगध के प्राचीन साम्राज्य की राजधानी राजगृह (अब राजगीर) थी, जो पटना से लगभग 45 मील दक्षिण-पूर्व में थी। इसके पूर्व में अंग राज्य था, जिसकी राजधानी भागलपुर के निकट कैम्पा थी। बाद में दक्षिणी विदेह में एक नए राज्य का उदय हुआ, जिसकी राजधानी वैशाली थी।
लगभग 700 ईसा पूर्व तक, वैशाली और विदेह राज्यों पर वज्जी संघ द्वारा अपना शासन स्थापित कर लिया गया था, जिसे इतिहास में ज्ञात पहला गणतंत्र राज्य कहा जाता है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, मगध में भगवान बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म का और महावीर द्वारा, जिनका जन्म वैशाली में हुआ था, जैन धर्म का प्रचार और प्रसार शुरू किया गया। लगभग 475 ईसा पूर्व तक अशोक और गुप्त सम्राटों के अधीन मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र, जो अब आधुनिक पटना है, में स्थित थी। 6ठी-7वीं शताब्दी में सोन नदी में बाढ़ के कारण शहर तबाह हो गया था। इसके बारे में चीनी तीर्थयात्री जुआनज़ैंग ( Xuanzang) ने अपने लेख में उल्लेखित किया है। यह भी माना जाता है कि यह क्षेत्र लगभग 775 से 1200 के बीच पाल साम्राज्य की राजधानी भी रहा। इसके बाद लगभग 1200 से 1765 के मुस्लिम काल के दौरान, बिहार का स्वतंत्र इतिहास बहुत कम था। यह 1765 तक एक प्रांतीय इकाई बना रहा, जिसके बाद यह ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया और दक्षिण में छोटा नागपुर के साथ-साथ बंगाल राज्य में इसका विलय कर दिया गया। हालाँकि 18वीं सदी के उत्तरार्ध और 19वीं सदी की शुरुआत के दौरान उत्तर के मैदानी इलाकों में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के बाद छोटा नागपुर में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह हुए, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण 1820 से 1827 का विद्रोह और 1831 से 1832 तक मुंडा विद्रोह था।1857-58 के भारतीय विद्रोह में भी बिहार राज्य ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1912 तक बिहार अंग्रेजों के अधीन बंगाल प्रेसीडेंसी का एक हिस्सा था। 1936 में बिहार और उड़ीसा प्रांत के गठन के साथ ये दोनों प्रान्त ब्रिटिश शासित भारत के अलग-अलग प्रांत बन गए। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, बिहार भारत का एक हिस्सा बन गया और 1950 में इसे एक राज्य का दर्जा दिया गया। 1948 में सरायकेला और खरसावां में राजधानियों वाले छोटे राज्यों का इसमें विलय कर दिया गया। 1956 में, जब भारतीय राज्यों को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया, तो लगभग 3,140 वर्ग मील का क्षेत्र बिहार से पश्चिम बंगाल में स्थानांतरित कर दिया गया। 2000 में बिहार के दक्षिणी क्षेत्र में छोटा नागपुर पठार के अधिकांश भाग से एक नए राज्य झारखंड का गठन किया गया।
अब प्रश्न उठता है कि इस विभाजन का कारण क्या था? झारखंड के गठन का मुद्दा कोई नया नहीं था, बल्कि आज़ादी से पहले 1912 में ही हज़ारीबाग़ के सेंट कोलंबा कॉलेज के एक छात्र द्वारा झारखंड के गठन का विचार प्रस्तुत कर दिया गया था। इस कहानी में जयपाल सिंह मुंडा एक अहम नाम है। वह आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग उठाने वाले पहले व्यक्ति थे, जिसे साइमन कमीशन ने ख़ारिज कर दिया था। 10 साल बाद 1939 में उन्होंने आदिवासी महासभा की स्थापना की। जिसके 10 साल बाद, भारत को आज़ादी मिलने के बाद, जयपाल सिंह बिहार से अलग होने की मांग करने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास गए। हालांकि जवाहर लाल नेहरू ने काफी खूबसूरत जवाब देते हुए कहा कि भूमि को बांटा नहीं जा सकता और उनके इस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया।
मुंडा ने सभी बैठकों में झारखंड राज्य के गठन के लिए दो प्रमुख कारण बताए। पहला, बिहार से भाषाई और सांस्कृतिक भिन्नता। बिहार के क्षेत्रों में अंगिका, भोजपुरी, बज्जिका, मगही और मैथिली जैसी भाषाएँ बोली जाती हैं जबकि झारखंड में संथाली, मुंडारी और कुरुख जैसी आदिवासी भाषाएँ प्रचलित हैं। दूसरा कारण इन दोनों क्षेत्रों में आदिवासी जनसंख्या का अंतर था। बिहार में केवल 1% आदिवासी आबादी थी जबकि झारखंड में लगभग 24% आदिवासी आबादी थी। इसके अलावा बिहार एवं झारखंड की भौगोलिक स्थिति को भी विभाजन का कारण बताया गया। झारखंड में पहाड़ी इलाका है जो खनन परियोजनाओं और उद्योगों की स्थापना के लिए संभावनाओं से भरा है, जबकि बिहार में मैदानी इलाका है जहां नदियां बहती हैं और कृषि के लिए अधिक उपयुक्त है। भौगोलिक भूभाग में बड़ा अंतर होने के कारण इन क्षेत्रों को विकसित करने के लिए अलग-अलग नीतियों और सरकारों की आवश्यकता थी। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर जयपाल मुंडा द्वारा अपनी सलाहकारी महासभा को झारखंड पार्टी का रूप दे दिया गया।
अब यह एक सामाजिक संगठन से राजनीतिक एजेंडे वाली पार्टी बन गयी। जयपाल का महत्व तब बढ़ गया जब उनकी पार्टी ने दक्षिण बिहार (अब झारखंड) की सभी 32 सीटें जीत लीं। वर्ष 1963 में के.बी. सहाय बिहार के मुख्यमंत्री बने। के.बी. सहाय ने झारखंड अलगाव आंदोलन को दबाने के लिए जयपाल को कांग्रेस पार्टी में जगह देने की पेशकश की, जिस पर वह सहमत हो गये और इस तरह आंदोलन धीमा पड़ गया। बाद में जपैल सिंह के छात्र शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन करके इस आंदोलन को पुर्नगठित किया। और तब से कई राजनीतिक खेलों के बीच वर्ष 2000 के बिहार चुनाव के बाद गठबंधन की सरकार ने बिहार से अलग एक नए राज्य झारखंड बनाने की मांग को मंज़ूर कर लिया। और 15 नवंबर 2000 को झारखंड भारत का नया राज्य बना।
1947 और 1980 के दशक के बीच बिहार अधिकांश भारतीय राज्यों से पीछे रहा। 1981 में जहाँ यहाँ की राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय 60% थी वहीं 1999 तक यह गिरकर 35% हो गयी। हालांकि आज़ादी के बाद, बिहार जमींदारी व्यवस्था को ख़त्म करने वाले पहले राज्यों में से एक था, लेकिन जमींदारी और नौकरशाही प्रणालियों के चलते पहले दशक में इसे कभी भी पूरे उत्साह के साथ लागू नहीं किया गया। इसके अलावा राज्य के प्रति केंद्र सरकार की उदासीनता एवं राज्य में सरकार की अस्थिरता के कारण राज्य कभी भी उस गति से प्रगति नहीं कर पाया जितनी देश के अन्य राज्यों ने की। 1947 में राज्यों के गठन के समय बिहार पहले से ही पीछे था और आज भी इसकी स्थिति यही है।
विभाजन से पूर्व बिहार राज्य द्वारा राज्य के दक्षिणी हिस्सों में भारी निवेश किया गया और इसका औद्योगीकरण किया गया, लेकिन दक्षिण बिहार के आदिवासी क्षेत्रों को अलग करने के लिए नवंबर 2000 में झारखंड के निर्माण के साथ बिहार के अधिकांश खनिज आधार झारखंड में चले गये और यह राज्य फिर से खाली हाथ रह गया। विभाजन के बाद राज्य की कर आय भी घटकर लगभग आधी रह गई।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव में विभाजन ही किसी भी समस्या का हल है या इसे उचित प्रबंधन से भी सुलझाया जा सकता है। हालांकि विभाजन से प्रशासनिक समस्याएं कम हो जाती हैं और छोटे क्षेत्र में उचित रूप से नीतियों का निर्माण एवं शासन कार्य किया जा सकता है। लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव भी होते हैं, जिन्हें बिहार के उदाहरण से समझा जा सकता है।
संदर्भ
https://shorturl.at/hntGO
https://shorturl.at/jpsAD
https://shorturl.at/txMZ2
चित्र संदर्भ
1. बिहार और झारखंड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia,flickr)
2. नालंदा बिहार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. 1947 में बिहार में गांधीजी को दर्शाता एक चित्रण (garystockbridge617)
4. झारखण्ड में एक उत्सव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जयपाल सिंह मुंडा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक बिहारी किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. बिहार और झारखंड के विभाजन को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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