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अहिक्षेत्र प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक पंचाल की राजधानी थी। यह संभवतः प्राचीन भारत के सबसे बड़े और विकसित शहरों में से एक था। यहाँ से प्राप्त अवशेष यहाँ की अद्भुत वास्तुकला व मूर्तिकला को प्रदर्शित करते हैं। नई दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी गयी गंगा और यमुना की मिटटी की मूर्तियाँ यहीं की खुदाई में प्राप्त हुयी थी। अहिक्षेत्र एक किलाबंद शहर था जिसके किले की दीवारे मिटटी के पके इंटों से बनायीं गयी है तथा यहाँ की दीवारे काफी मोटी हैं जो इस किले को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती हैं। यह किला आज भी अपने जीर्ण शीर्ण हालत में खड़ा हुआ अपने वैभव के काल को प्रदर्शित कर रहा है। यहाँ की किलेबंदी कुल लगभग तीन मील की है जो की त्रिकोणात्मक घेरे में है। इस किले के अन्दर कई ऊँचे टीले व जल के तालाब स्थित हैं जो की विभिन्न महलों व जल की उपलब्धता की तरफ संकेत करते हैं।
यहाँ का सबसे ऊँचा टीला कुल 75 फुट ऊँचा है। अहिक्षेत्र में सबसे पहले खुदाई का जिम्मा अलेक्जेंडर कर्निघम ने उठाया था और उन्होंने वहां पर खुदाई करवाई और कालांतर में फ्यूरर ने खुदाई को आगे बढाया। खुदाई में प्रयुक्त सामान आज भी अहिक्षेत्र में दिखाई दे जाते हैं और यह भी साफ़ होता है की किस पैमाने पर वहां पर खुदाई कराइ गई थी। बाद में सन 1940-44 में यहाँ पर कुछ चुने हुए स्थानों की खुदाई हुई जिसमें भूरी मिट्टी के ठीकरे मिले। जैसा की इस स्थान का नाम महाभारत में कई स्थानों पर दिखाई देता है, जिससे यह साफ़ हो जाता है की यह अवश्य ही महाभारत काल में एक विशाल शहर होगा। यहाँ से शुंग, कुषाण और गुप्तकाल की अनेक मुद्राएँ, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियाँ मिलीं। बाद के काल के रहने के स्थान, सड़कें और मंदिरों के अवशेष भी मिले हैं। जो इस स्थान के लम्बे समय तक के प्रयोग को प्रदर्शित करती हैं तथा साथ ही साथ इस स्थान के महत्व की तरफ भी ध्यान आकर्षित करती हैं। अहिक्षेत्र अपनी परम पराकाष्ठा पर गुप्त काल में पंहुचा था जब यहाँ पर कई त्रिकोण आकार के मंदिर बने थे। चीनी चात्री युवान च्वांग ने यहाँ पर 10 बौद्ध विहार और नौ मंदिर देखे थे। अहिक्षेत्र का पतन 11 विं शताब्दी में हो गया था।
1.आर्केयोलाजिकल सर्वे ऑव इंडिया, भाग 1, कनिंघम
2.राइज एंड फाल ऑफ़ द इम्पीरियल गुप्ताज, अश्विनी अग्रवाल
3.इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इंडियन जियोग्राफी, वॉल्यूम 1, सुबोध कपूर