City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1773 | 176 | 1949 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
पुस्तकों और अखबारों से लेकर पहनने के कपड़ों एवं चिप्स के पैकेट तक आपके द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी वस्तुओं में एक चीज़ सबसे अधिक सामान्य है, वह है मुद्रण। दैनिक जीवन की वस्तुओं की पैकेजिंग से लेकर मुद्रित इलेक्ट्रॉनिक्स और वस्त्रों तक मुद्रण का उपयोग किया जाता है। मुद्रण एक ऐसा उद्योग है जो एक ओर विज्ञान और प्रौद्योगिकी और दूसरी ओर कला और डिज़ाइन के बीच की दूरी को कम करता है और मानवीय जीवन के प्रत्येक पहलू पर अप्रत्यक्ष रूप से विशेष प्रभाव डालता है। 15वीं शताब्दी में प्रिंटिंग प्रेस के आगमन से मुद्रण उत्पादन की शुरुआत हुई। हमारे देश भारत में पहली मुद्रित की गई पुस्तक का नाम 'कॉम्पेंडियो स्पिरिचुअल दा वाइड क्रिस्टा' (Compendio Spiritual da Vide Christa) है, जिसे गैस्पर जॉर्ज डी लेओ परेरा (Gaspar Jorge de Leão Pereira) द्वारा तमिलनाडु में लिखा गया था। भारत में मुद्रण उद्योग के गौरवशाली युग की शुरुआत में सेरामपुर मिशन प्रेस (1800-1855) और सेरामपुर का विशेष योगदान माना जाता है। आइए आज के इस लेख में भारत में प्रिंटिंग प्रेस की उत्पत्ति और हमारे शहर लखनऊ की पहली प्रिंटिंग प्रेस के विषय में जानते हैं।
मुद्रण की शुरुआत चीन (China) से मानी जाती है। चीनी कागज और छपाई का इतिहास 2,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। असंख्य प्राचीन चीनी मुद्रित कलाकृतियाँ आज भी अस्तित्व में हैं। एशिया में छपाई का इतिहास बहुत पुराना है। 14वीं शताब्दी तक, चीन से, मुद्रण जापान (Japan) और कोरिया (Korea) में स्थानांतरित हुआ, जहां मुद्रण की एक लंबी और शानदार परंपरा विकसित हुई। इन देशों में मुद्रण के लिए लकड़ी, मिट्टी और धातु से निर्मित ब्लॉकों का उपयोग किया जाता था। 1450 के दशक में जोहान्स गुटेनबर्ग नाम के एक सुनार ने जर्मनी के मेनज़ (Mainz, Germany) में 42-पंक्ति वाला बाइबिल का एक संस्करण मुद्रित किया, जिसे आधुनिक मुद्रण का आविष्कार माना जाता है। गुटेनबर्ग (Gutenberg) और उनके समकालीनों द्वारा इस तकनीक को 'मैकेनिकल लेटरप्रेस प्रिंटिंग' (mechanical letterpress printing) के रूप में और भी अधिक परिष्कृत और परिपूर्ण किया गया। अगली सदी में मुद्रण तेजी से पूरे यूरोप में फैल गया और जल्द ही यह जीवन का हिस्सा बन गया।
हमारे देश भारत में मुद्रण की शुरुआत 1556 में मानी जाती है जब इथियोपिया (Ethiopia) में जेसुइट मिशनरियों (Jesuit missionaries) के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस को संभावित रूप से गोवा लाया गया। अगली दो शताब्दियों तक भारत में मुद्रण का अस्तित्व अनिश्चित रहा। शुरुआती दिनों में ईसाई मिशन मुद्रण के प्रमुख केंद्र थे और उन्होंने मुद्रण की कला को भारत के कई क्षेत्रों में पेश किया। थारंगमबाड़ी में डेनिश मिशन में, 1712 में बार्थोलोम्यू ज़िगेनबाल्ग (Bartholomew Ziegenbalg) द्वारा हाले, जर्मनी (Halle, Germany) से प्राप्त एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई थी, जिससे तमिल और पुर्तगाली छपाई की जाती थी। 1799 में कलकत्ता के पास सेरामपुर में मिशनरी विलियम कैरी (William Carey) द्वारा बैपटिस्ट मिशन प्रेस की स्थापना की गई। इसके बाद 1780 के दशक से ही भारत में मुद्रण ने अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी। बम्बई, कलकत्ता और मद्रास जैसे औपनिवेशिक शहर धीरे-धीरे मुद्रण राजधानी के रूप में उभर कर सामने आने लगे। मुंबई में अमेरिकन मिशन प्रेस (1817), कटक मिशन प्रेस (1837) और मैंगलोर में बेसल मिशन प्रेस (1841) की स्थापना की गई। हालांकि मुद्रण को पूरे देश में फैलने में 50 वर्ष और लग गये।1850 के दशक तक, पुणे, दिल्ली, लखनऊ और अहमदाबाद जैसे अन्य शहरों में भी मुद्रण का कार्य बड़े पैमाने पर शुरू हो गया। उन्नीसवीं सदी के अंत में, भारत दुनिया के सबसे बड़े मुद्रण बाजारों में से एक बन गया और 21वीं सदी में भारत की यह स्थिति और भी अधिक सुदृढ़ हो गई है। पिछले 200 वर्षों और उससे भी अधिक समय से, मुद्रण ने भारत में जीवन के हर पहलू को छुआ है जिसके कारण यह निश्चित रूप से भारत में जीवन, समाज एवं उद्योग का एक अभिन्न अंग बन गया है।
भारत में मुद्रण उद्योग के गौरवशाली युग की शुरुआत में सेरामपुर मिशन प्रेस (1800-1855) और सेरामपुर का विशेष योगदान माना जाता है। सेरामपुर में इस प्रेस की स्थापना इंग्लैंड की बैपटिस्ट मिशनरी सोसाइटी के प्रतिनिधि के रूप में भारत आए विलियम कैरी द्वारा की गई थी। कैरी ईसाई धर्म का प्रचार करने और बाइबिल का बांग्ला में अनुवाद करने के लिए बंगाल आए थे। 1793 में उनके आगमन के बाद के पहले कुछ महीने संघर्ष के दौर थे। बाद में वह उत्तरी बंगाल के मदनाबती में बस गये। बांग्ला मे बाइबिल को मुद्रित करने के लिए उन्होंने एक प्रेस की व्यवस्था की, और कागज, स्याही और छपाई से अक्षर खरीदे। लेकिन प्रिंटर न होने के कारण वह प्रिंटिंग का काम शुरू नहीं कर सके।1799 में कुछ और मिशनरी कैरी के साथ जुड़ गए, जिनमें विलियम वार्ड (William Ward) नामक मुद्रण विशेषज्ञ भी शामिल थे। मिशनरियों को अंग्रेजों द्वारा निष्कासन से बचने के लिए सेरामपुर में डेनिश कॉलोनी में शरण लेनी पड़ी। 10 जनवरी 1800 को कैरी और अन्य मिशनरियों द्वारा सेरामपुर मिशन की स्थापना की गई। वार्ड के नेतृत्व में मार्च में सेरामपुर की प्रिंटिंग प्रेस ने काम करना शुरू कर दिया। आरंभिक चरण में वार्ड ने इसमें स्वयं अक्षर संयोजन का कार्य किया। उसी वर्ष अगस्त तक न्यू टेस्टामेंट (New Testament) के संभाग 'मैथ्यू' (Matthew) की छपाई समाप्त हो गई थी। इसे 'मंगल समाचार' नाम से प्रकाशित किया गया। यह बांग्ला शैली में छपी पहली पुस्तक है। जल्द ही मिशन प्रेस का कार्यभार बढ़ गया और कुशल देशी कारीगरों की भर्ती की जाने लगी।
कुछ ही समय में सेरामपुर में मुद्रण की अप्रत्याशित प्रगति हुई। जिससे कैरी और वार्ड ने इस उद्योग के विस्तार की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया। इसके बाद टाइप-कटर विशेषज्ञ पंचानन कर्माकर सेरामपुर प्रेस में शामिल हो गए और उन्होंने एक टाइप-कार्यशाला की स्थापना की। पंचानन ने अपने दामाद, मनोहर और पोते कृष्णचंद्र के सहयोग से, सेरामपुर में एक विशाल टाइप-कटिंग उद्योग स्थापित किया, जहाँ से तीस वर्षों के अंदर ही 45 अलग-अलग भाषाओं में 18 अलग-अलग टाइपअक्षरों में किताबें छपने लगी। वे उस युग के महानतम टाइप-निर्माताओं में से एक थे। पंचानन ने सेरामपुर में एक टाइप-मेकिंग प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किया। पूर्व में यह यांत्रिक अनुशासन का पहला प्रशिक्षण केन्द्र है। सेरामपुर मुद्रण उद्योग अपने अपने श्रमिकों के अथक परिश्रम, कम लागत, गुणवत्ता मुद्रण आदि के कारण कुछ ही समय में दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया, लेकिन अंग्रेजी कंपनी को अपने नियंत्रण के बाहर ऐसे उन्नत मुद्रण उद्योग का अस्तित्व पसंद नहीं आया। उन्होंने इसे बंद करने के लगातार प्रयास किये। लेकिन डेनिश सरकार द्वारा दी गई सुरक्षा के कारण वे सफल नहीं हो सके।कागज मुद्रण की प्रमुख सामग्री होने के कारण मिशनरियों द्वारा स्वदेशी पद्धति से कागज बनाने का प्रयास किया गया। लेकिन बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन बहुत कम था। इसलिए 1809 में एक ट्रेडमिल की स्थापना की गई। मिशनरियों ने मिल को संचालित करने के लिए भाप इंजन का उपयोग भी किया। इससे पूर्व में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। किंतु आंतरिक संघर्षों के कारण सेरामपुर मिशन बैपटिस्ट मिशन से अलग हो गया, और जब कलकत्ता बैंक दिवालिया हो गया (1830) तो इसकी माली हालत बिगड़ गई। सेरामपुर मिशन प्रेस ने 1800 और 1832 के बीच 45 भाषाओं में 212,000 किताबें प्रकाशित की थीं। उस समय दुनिया में बहुत कम प्रेस थे जो इस तरह की उपलब्धि का दावा कर सकते थे।
क्या आप जानते हैं कि हमारे लखनऊ शहर में पहली प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना किसने की? मुंशी नवल किशोर एक ऐसा नाम है जिससे अधिकांश लखनऊवासी परिचित हैं। मुंशी नवल किशोर, जिन्होंने लखनऊ को अपनी पहली प्रिंटिंग प्रेस दी, उनके नाम पर एक सड़क भी है। उन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम-1857 के ठीक बाद 1858 में नवल किशोर प्रेस की स्थापना की। मुंशी नवल किशोर द्वारा स्थापित प्रेस में पत्थर के ब्लॉक से अखबार और किताबों की छपाई होती थी। इस प्रेस द्वारा उर्दू में 'अवध अखबार', अंग्रेजी में 'टाइम्स' (Times) और उर्दू में 'अवध रिव्यू' (Oudh Review) जैसे महत्वपूर्ण समाचार पत्र प्रकाशित किए गए। इसी वर्ष 25 फरवरी को अमीर-उद-दौला लाइब्रेरी में 'नवल किशोर कक्ष' का उद्घाटन किया गया है जो स्वर्गीय मुंशी नवल किशोर को समर्पित है। इस कक्ष में नवल किशोर के कुछ कपड़े, किताबें और पुराने कागजात प्रदर्शित किये गए हैं। इसके साथ ही यहाँ 1932 में प्रकाशित समाचार पत्र भी प्रदर्शित हैं। इसके साथ ही 1880 की ट्रेडिल मशीन, मुद्रण ब्लॉक, चित्र ब्लॉक और कांस्य और स्टील प्लेट और कैमरा भी प्रदर्शित किया गया है जिनका प्रेस द्वारा 19वीं शताब्दी की शुरुआत में इस्तेमाल किया जाता था। कमरे में लगभग ग्यारह किताबों की अलमारियाँ हैं जिनमें नवल किशोर की किताबें हैं। किताबें उर्दू, फ़ारसी, हिंदी, संस्कृत और अरबी जैसी विभिन्न भाषाओं में हैं।
वास्तव में इस संग्रहालय को देखकर कोई भी हमारे लखनऊ शहर में मुद्रण के इतिहास का साक्षात्कार कर सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/37bjtuv9
https://tinyurl.com/5bbabkwm
https://tinyurl.com/y3dh5mur
चित्र संदर्भ
1. मुंशी नवल किशोर और फ़ारसी रामायण के कुछ संग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia,प्रारंग चित्र संग्रह)
2. चीन के शुरुआती मुद्रण को संदर्भित करता एक चित्रण (worldhistory)
3. गोवा राज्य संग्रहालय में रखी गई प्रिंटिंग मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. विलियम कैरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक प्रिंटिंग प्रेस कलाकृति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पर्शियन रामायण को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
7. नवल किशोर प्रेस, लखनऊ में मुद्रित हुई फ़ारसी रामायण को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.