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भारत में फिल्मों की लोकप्रियता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं, कि यहां पर शाहरुख़ खान और अमिताभ बच्चन जैसे नामी कलाकारों की उनके चाहनेवालों द्वारा पूजा भी की जाती है। कोलकाता में तो अमिताभ बच्चन जी का एक मंदिर ही बना दिया गया है। ऐसे कई दिलचस्प तथ्य, भारत में सिनेमा के इतिहास को ओर भी रोमांचक बना देते हैं, और आज हम इसी ऐतिहासिक रोमांच का अनुभव करने वाले हैं।
साल 1913 में रिलीज हुई "राजा हरिश्चंद्र" को भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म (Feature Film) माना जाता है।
स्वर्गीय दादा साहब फाल्के (Dada Saheb Phalke) द्वारा निर्देशित और निर्मित, इस फिल्म को 3 मई, 1913 के दिन मुंबई के कोरोनेशन सिनेमा (Coronation Cinema) में दिखाया गया। इस फिल्म में राजा हरिश्चंद्र की कहानी बताई गई है, जिन्हें उनकी अटूट ईमानदारी और सदाचार के लिए जाना जाता है। फिल्म में उनके सिद्धांतों के प्रति सच्चे बने रहने की यात्रा और चुनौतियों को दर्शाया गया है, जो मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी ईमानदार बने रहने का सबक देती है।
"राजा हरिश्चंद्र" भारतीय सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। यह फिल्म हिट रही, जिससे यह साबित हो गया कि भारत के लोग भारत में बनी फिल्में देखने के लिए उत्साहित थे, और उन पर पैसा खर्च करने के लिए भी तैयार थे।
फिल्म के निर्देशक दादा साहब फाल्के ने डबल एक्सपोज़र और स्पेशल इफेक्ट्स (Double Exposure And Special Effects) जैसी नई तथा बेहतरीन तरकीबें भी पेश कीं। यहां तक कि उन्होंने भारतीय फिल्मों में संगीत का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया।
भारतीय इतिहास की इस पहली फिल्म की सफलता के कारण, बहुत से लोगों की फिल्में बनाने में रुचि बढ़ी, जिससे अभिनेताओं, क्रू सदस्यों (Crew Members) और फिल्म निर्माताओं के लिए नए करियर का मार्ग प्रशस्त हुआ।
1931 में रिलीज़ हुई "आलम आरा (Alam Ara)" को भारत की पहली ध्वनि फिल्म (Sound Film) होने का गौरव प्राप्त है। इस फिल्म का निर्देशन अर्देशिर ईरानी (Ardeshir Irani) ने किया था। इसका प्रीमियर (Premiered) 14 मार्च, 1931 को बॉम्बे के मैजेस्टिक सिनेमा (Majestic Cinema) में किया गया। देखते ही देखते यह फिल्म हिट हो गई, और इसे देखने के लिए इतनी बड़ी भीड़ उमड़ी कि इस भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को भी हस्तक्षेप करना पड़ गया था । आपको जानकर हैरानी होगी कि यह फिल्म, रिलीज के बाद लगातार आठ हफ्तों तक हाउसफुल (Housefull) रही।
इस फिल्म में एक राजकुमार और एक लड़की के बीच की रोमांटिक कहानी (Romantic Story) दिखाई गई है। इसकी कहानी जोसेफ डेविड (Joseph David) नाम के एक पारसी नाटक से प्रेरित है। इस फ़िल्म में सात गाने थे। यह सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि इसमें पहली बार 78 अभिनेताओं की आवाज़ें रिकॉर्ड की गई थी । दिलचस्प बात यह है कि फिल्म के सेट के पास की रेल पटरियों के शोर से बचने के लिए इस फिल्म का फिल्मांकन रात 1 बजे से सुबह 4 बजे के शांत घंटों के दौरान किया गया। चूंकि आलम आरा पहली भारतीय ध्वनि फिल्म थी, इसलिए निर्माताओं को ऐसे अभिनेताओं की आवश्यकता थी जो भाषा जानते हों। हालांकि ऐतिहासिक रूप से इतनी महत्वपूर्ण होने के बावजूद, आज "आलम आरा" की कोई भी प्रति मौजूद नहीं है।
1937 में रिलीज हुई "किसान कन्या (Kisan Kanya) " नामक एक ऐतिहासिक फिल्म को देश में बनी भारत की पहली रंगीन फिल्म (Color Film) माना जाता है। मोती गिडवानी (Moti Gidwani) द्वारा निर्देशित और इंपीरियल पिक्चर्स (Imperial Pictures) के अर्देशिर ईरानी द्वारा ही निर्मित, यह फिल्म भारतीय दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती है।
"किसान कन्या" से पहले, वी. शांताराम (V. Shantaram )ने 1933 में “सैरंध्री"( Sairandhri) का निर्माण किया था, जिसमें भी रंगीन दृश्य थे, लेकिन इसे जर्मनी में संसाधित किया गया था। इस आधार पर "किसान कन्या" को भारत में संसाधित पहली रंगीन फिल्म माना जाता है। सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) के उपन्यास पर आधारित यह फिल्म, भारत के किसानों की कठिनाइयों पर प्रकाश डालती है और उनके संघर्षों को सिनेमा में सबसे आगे लाती है।
इस फिल्म में:
- बंसरी का किरदार पद्मा देवी ने निभाया है।
- रामदई का किरदार जिल्लू ने निभाया है।
- रणधीर का अभिनय गुलाम मोहम्मद ने किया है।
- मुनीम का चित्रण सैयद अहमद द्वारा किया गया है।
दूरदर्शी फिल्म निर्माता अर्देशिर ईरानी को पहले से ही 1920 में भारत की पहली अंतर्राष्ट्रीय सह-उत्पादन, नाला दमयंती और 1931 में देश की पहली ध्वनि फिल्म, आलम आरा बनाने के श्रेय के लिए भी जाना जाता था। ‘किसान कन्या’ के साथ, उन्होंने सिने कलर प्रक्रिया (Cine Color Process) का उपयोग करके रंगीन सिनेमा में कदम रखा, जिसके लिए उन्होंने अधिकार हासिल किए। हालांकि बॉक्स ऑफिस (Box Office) पर इसका प्रदर्शन मध्यम रहा, लेकिन किसान कन्या भारतीय सिनेमा में अपने तकनीकी और कथात्मक योगदान के लिए आज भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdkfw4t9
https://tinyurl.com/yckr8wkz
https://tinyurl.com/47yerr5j
चित्र संदर्भ
1. आलम आरा" और "किसान कन्या फिल्मों के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr, wikimedia)
2. 1971 के भारत के टिकट पर स्वर्गीय दादा साहब फाल्के जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. राजा हरिश्चन्द्र के एक दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. आलम आरा के एक दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. किसान कन्या के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. अर्देशिर ईरानी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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