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भारत में लिथोग्राफी सबसे पहले लखनऊ से ही हुई थी शुरू!

लखनऊ

 03-04-2024 09:39 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

तस्वीरें हमारे जीवन की सुनहरी यादों को अमर कर देती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 18वीं शताब्दी से पूर्व जब कैमरा का आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय लोग अपनी यादों को संजोने या किसी सुंदर दृश्य का चित्रण करने के लिए कौन-कौन से उपाय करते थे? आधुनिक कैमरा आधारित फोटोग्राफी के प्रचलन से पहले यदि कोई चित्रकार किसी भी याद को भविष्य के लिए संजोना चाहता, तो इसके लिए वह “अश्ममुद्रण यानी लिथोग्राफी (Lithography)” जिसे लिथो छपाई के नाम से भी जाना जाता है जैसी बेहद जटिल किंतु बेहतरीन मुद्रण तकनीक का उपयोग करता था। दरअसल लिथोग्राफी एक प्रकार की मुद्रण तकनीक है, जिसके तहत ग्रीज़ और पानी के आपस में मिश्रित नहीं होने के गुण का फायदा उठाकर चित्र बनाया जाता है। लिथोग्राफी से प्रिंट करने की प्रक्रिया में सबसे पहले, एक सपाट सतह (आमतौर पर एक पत्थर या धातु की प्लेट) पर ग्रीज़ जैसे किसी विशेष चिकने पदार्थ से एक छवि बनाई जाती है। इसके बाद सतह पर अम्ल यानी एसिड (Acid) और अरबी गोंद (Gum Arabic) के मिश्रण को डाला जाता है। ये पदार्थ चित्र की सतह की चिकनाहट के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, और पत्थर की सतह के उन हिस्सों को अधिक जलस्नेही यानी हाइड्रोफिलिक (Hydrophilic) बना देते हैं, जहां पर ग्रीज़ नहीं चिपका हुआ होता है।
इसके बाद सतह पर काग़ज़ की एक शीट रखी जाती है, तथा उसके ऊपर किसी रोलर से दबाव डाला जाता है। इस प्रक्रिया के बाद केवल स्याही वाला डिज़ाइन ही आपके कागज पर छप जाता है, और आपको आपका अपना लिथो छपाई मिल जाता है। आख़िर में मूल डिज़ाइन को हटा दिया जाता है। हालांकि रासायनिक प्रतिक्रिया के कारण हमारी मूल छवि सतह पर बनी रहती है।
इस तैयार सतह से प्रिंट करने के दो मुख्य तरीके होते हैं:
1. ललित कला प्रिंटमेकिंग: इसके तहत स्याही वाले पत्थर को एक विशेष प्रेस का उपयोग करके सीधे कागज पर दबाया जाता है।
2. वाणिज्यिक मुद्रण: इसके तहत स्याही वाले पत्थर को एक रबर सिलेंडर (Rubber Cylinder) पर स्थानांतरित किया जाता और वहां से डिज़ाइन को काग़ज़ पर छाप दिया जाता है।
आज भी, कई कलाकार हाथ से छपाई के लिए लिथोग्राफिक पद्धति को ही पसंद करते हैं। आधुनिक व्यावसायिक मुद्रण में, रोटरी ऑफ़सेट प्रेस (Rotary Offset Press) में उच्च गति से उच्च-गुणवत्ता, विस्तृत प्रिंट बनाने के लिए लिथोग्राफी का ही उपयोग किया जाता है।
लिथोग्राफी प्रक्रिया की खोज 1798 में म्यूनिख (Munich) के एलोइस सेनेफेल्डर (Alois Senefelder) नामक व्यक्ति द्वारा की गई थी। उन्होंने अपनी प्रिंटिंग प्लेट (Printing Plate) के लिए बवेरिया के एक विशेष प्रकार के झरझरे चूना पत्थर (Porous Limestone) का उपयोग किया। हम इसे "लिथोग्राफी" इसीलिए कहते है, क्यों कि इसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द "लिथोस (Lithos)" से हुई थी, जिसका अर्थ "पत्थर" होता है। सेनेफेल्डर ने इस नई मुद्रण पद्धति को साल 1818 तक गुप्त रखा। लेकिन इसके बाद उन्होंने "ए कम्प्लीट कोर्स ऑफ लिथोग्राफी (A Complete Course Of Lithography)" नामक एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें इस पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया। 1800 के दशक के मध्य तक लिथोग्राफी, फ्रांस में कलाकारों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गई थी। इस पद्धति का उपयोग करने वाले पहले लोगों में से कुछ फ्रांसिस्को डी गोया “” (जो उस समय फ्रांस में रह रहे थे), थियोडोर गेरीकॉल्ट (Théodore Géricault) और यूजीन डेलाक्रोइक्स (Eugène Delacroix) थे। वे सभी अपनी कला के लिए लिथोग्राफी का उपयोग करना पसंद करते थे। 1800 के दशक से 1900 के प्रारंभ तक, भारत में भी लिथोग्राफिक प्रिंटिंग के प्रयोग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। यह मुद्रण तकनीक इसलिए लोकप्रिय हुई क्योंकि इसका उपयोग सभी भाषाओं के लिए किया जा सकता था। परिणाम स्वरूप भारत में अनेक लिथोग्राफिक प्रिंटिंग हाउस (Lithographic Printing House) खूब फले-फूले। प्रारंभ में अधिकांश लिथोग्राफ हमारे अपने शहर लखनऊ में ही मुद्रित किए जाते थे। बाद में इन्हें बॉम्बे, कानपुर, लाहौर और दिल्ली में भी मुद्रित किया जाने लगा। 1840 के दशक के मध्य तक, लिथोग्राफी अपने प्रायोगिक चरण में ही थी। हालाँकि, 19वीं सदी के 1840 के दशक के मध्य से, फ़ारसी लिथोग्राफ वाली किताबें बॉम्बे (मुंबई), लखनऊ, कानपुर, कलकत्ता और मद्रास में और 1840 के दशक के अंत से आगरा, लाहौर और दिल्ली में नियमित रूप से प्रकाशित होने लगीं। 19वीं सदी के मध्य में भारत में चुनौतीपूर्ण राजनीतिक माहौल के कारण मुद्रण के क्षेत्र में मंदी देखी गई। हालाँकि, 1860 के दशक के बाद से लखनऊ और कानपुर में लिथोग्राफिक गतिविधियों का पुनरुत्थान शुरू हुआ था। 1870 के दशक में लखनऊ में, फ़ारसी लिथोग्राफिक पुस्तक मुद्रण का चरम पहुँच गया था। उस समय, शहर में कुल तैंतालीस प्रेसों में से, पच्चीस लिथोग्राफिक प्रिंटिंग हाउस थे। 20वीं सदी की शुरुआत में अन्य सात लिथोग्राफिक प्रिंटिंग हाउस स्थापित किए गए थे। यदि हम भारत में लिथोग्राफ के इतिहास पर और अधिक गहराई से नजर डालें यह “राजा रवि वर्मा” के योगदान के बिना अधूरा सा प्रतीत होता है, जिन्हें 'आधुनिक भारतीय कला का जनक' कहा जाता है। राजा रवि वर्मा 19वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध भारतीय कलाकार थे। महाभारत और रामायण जैसे भारतीय महाकाव्यों के दृश्यों के जीवंत चित्रण के लिए उनकी बहुत अधिक सराहना की जाती है।
प्रकाश और छाया के खेल में वर्मा की महारत वाकई में उल्लेखनीय थी। उन्हें अपने चित्रों की सस्ती लिथोग्राफ बनाकर अपनी कला को जनता के लिए सुलभ बनाने के लिए भी जाना जाता है। इस क़दम के बाद एक कलाकार और एक सामाजिक व्यक्ति के रूप में उनका प्रभाव काफ़ी व्यापक हो गया। राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को किलिमनूर, त्रावणकोर में हुआ था। 2 अक्टूबर, 1906 के दिन 58 वर्ष की आयु में अटिंगल, त्रावणकोर में उनका निधन हो गया।
चलिए अब उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्यों पर भी एक नजर डाल लेते हैं:
1. राजा रवि वर्मा को महज 7 साल की उम्र में ही पेंटिंग के प्रति अपने जुनून का पता चल गया था। वह किलिमनूर महल की दीवारों पर रेखाचित्र बनाने के लिए कोयले का उपयोग करते थे।
2. आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय उनके चित्रों की मांग इतनी अधिक थी कि केरल के किलिमनूर पैलेस को देशभर से प्रतिदिन आने वाली पेंटिंग अनुरोधों की भारी संख्या के कारण एक डाकघर स्थापित करना पड़ा।
3. वर्मा की कलाकृति ने भारतीय सौंदर्यशास्त्र के साथ यूरोपीय तकनीकों का खूबसूरती से मिश्रण किया।
4. उन्होंने अपने चित्रों के किफ़ायती लिथोग्राफ बनाए, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं और महाकाव्यों और पुराणों के दृश्यों को जनता के लिए उपलब्ध कराया गया।
5. 1873 में, उन्होंने पश्चिम में वियना कला प्रदर्शनी (Vienna Art Exhibition) भी जीती। उनके जीवन और कार्य से जुड़ी चार फ़िल्में भी बन चुकी हैं।
6. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness World Records) के अनुसार, दुनिया की सबसे महंगी साड़ी, जिसका वजन 8 किलो है और कीमत 40 लाख रुपये है, वह भी उनकी पेंटिंग से ही प्रेरित है। 'विवाह पातु' नाम की इस साड़ी में राजा रवि वर्मा की 11 पेंटिंग छापी गई हैं और इसे चेन्नई सिल्क्स (Chennai Silks) के निदेशक, शिवलिंगम द्वारा डिजाइन किया गया था।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yc242z5v
https://tinyurl.com/5726y7tx
https://tinyurl.com/mr2snkab
https://tinyurl.com/yze2x3px

चित्र संदर्भ
1. लिथोग्राफी प्रेस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. व्यायामशाला लिथोग्राफ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. म्यूनिख के मानचित्र के लिथोग्राफी पत्थर और दर्पण छवि प्रिंट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. म्यूनिख में मानचित्र मुद्रित करने के लिए लिथोग्राफी प्रेस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. लिथोग्राफिक प्रिंटिंग हाउस को संदर्भित करता एक चित्रण ( Look and Learn)
6. म्यूनिख में लिथोग्राफिक पत्थरों के पुरालेख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित एक कलाकृति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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