जानें, कौन सी बातों पर ध्यान देकर, कुपोषण की भयावह समस्या से लड़ा जा सकता हैं?

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जानें, कौन सी बातों पर ध्यान देकर, कुपोषण की भयावह समस्या से लड़ा जा सकता हैं?

हमारे देश भारत और हमारे राज्य उत्तर प्रदेश की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक, कुपोषण भी है। आजभारत में दुनिया में सबसे ज्यादा अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि, इतने बड़े देश में करोड़ों बच्चे आज भी कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं? अतः आइए आज समझते हैं कि, आजादी के 75 साल बाद भी हम अपने बच्चों के लिए पोषण की उचित व्यवस्था कैसे और क्यों नहीं कर पाए हैं? इसके साथ इसके समाधानों पर भी चर्चा करते हैं, और जानते हैं कि, इस समस्या पर सबसे कम ध्यान क्यों दिया गया है। कुपोषण एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है। यह तब होती है जब, किसी इंसान के शरीर को अपने सामान्य प्रक्रियाओं व कार्य के लिए आवश्यक पोषक तत्व या तो बहुत कम (अल्पपोषण), या बहुत अधिक (अति पोषण) मात्रा में मिलते हैं। दूसरे शब्दों में, यह उचित पोषण का अभाव है। कुपोषण का शरीर के विकास या रूप पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और इससे बौनापन, कमज़ोरी और अल्पपोषण होता है। और यह बच्चों में कम वजन या मोटापे का कारण बनता है।
भारत की लगभग 14.37% आबादी को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है। भारत में बाल कुपोषण की दर भी दुनिया में सबसे खराब है। विश्व के कुल कुपोषित बच्चों में से एक तिहाई बच्चें भारतीय हैं। भारत सरकार के ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5’ के अनुसार, ‘पांच साल से कम उम्र के 36% बच्चे अविकसित हैं; 19% वेस्टेड(Wasted)– [बच्चे की लंबाई के अनुपात में शरीर का वजन कम होना] हैं; 32% बच्चों का वजन कम है; और 3% बच्चें अधिक वजन वाले हैं। जबकि, बिना स्कूली शिक्षा वाली माताओं से पैदा होने वाले बच्चों और कम आयु वाले बच्चों की कुपोषित होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
एनीमिया(Anemia)– हीमोग्लोबिन(Hemoglobin) के अभाव से उत्पन्न स्वास्थ्य स्थिति, पीड़ित व्यक्ति या बच्चे को थका हुआ और कमजोर महसूस करा सकती है। यह 5 साल से कम उम्र के 67% बच्चों को प्रभावित करती है। दूसरी ओर, 57% भारतीय महिलाएं इससे पीड़ित हैं। जबकि, 25% पुरुष (50 वर्ष से कम) भी इससे पीड़ित हैं। प्रारंभिक बचपन में कुपोषण के प्रभाव विनाशकारी और स्थायी हो सकते हैं। जन्मपूर्व अवधि और जीवन के पहले वर्षों के दौरान बच्चों को अच्छी तरह से पोषित किया जाता है या नहीं, इसका उनके स्वास्थ्य की स्थिति, साथ ही, सीखने, संवाद करने, सामाजिककरण, तर्क करने और अपने पर्यावरण के अनुकूल होने की क्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
भारत में, कई सामाजिक-आर्थिक कारक कुपोषण के स्तर में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। सामान्य तौर पर, जो लोग गरीब हैं, उन्हें अल्प-पोषण का खतरा होता है। जबकि, जिनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति ऊंची है, उनके अति-पोषित होने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अल्पपोषण आम है, जिसका मुख्य कारण निवासियों की निम्न सामाजिक और आर्थिक स्थिति है। इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में, अधिक वजन की स्थिति और मोटापा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तीन गुना अधिक है। अपनी कम क्रय शक्ति के कारण, गरीब परिवारों के लिए वांछित मात्रा और गुणवत्ता का भोजन खरीद पाना कठीन हो जाता हैं। भोजन के पोषण संबंधी गुणों के बारे में जागरूकता की कमी, भोजन के बारे में तर्कहीन धारणाएं, बच्चों का अनुचित पालन-पोषण और खान-पान की गलत आदतें परिवार में पोषण की कमी का कारण बनती हैं। एक तरफ, मलेरिया और चेचक जैसे संक्रमण, या बार-बार दस्त के संक्रमण से भी तीव्र कुपोषण हो सकता है, और मौजूदा पोषण संबंधी कमी बढ़ सकती है। दूसरी ओर, अधिकांश गरीब घरों में, महिलाओं और पूर्व स्कूली बच्चों, विशेषकर लड़कियों को आर्थिक रूप से सक्रिय पुरुष सदस्यों की तुलना में कम भोजन मिलता है।
बड़े परिवारों में जल्दी–जल्दी होने वाले गर्भधारण तथा अपर्याप्त मातृ एवं शिशु देखभाल का भी मां की पोषण स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चूंकि, वह बड़े परिवार को संभालने की कोशिश करती है, इसलिए अपनी गर्भावस्था के दौरान, अपने स्वास्थ्य और प्रसवपूर्व जांच की उपेक्षा कर सकती है। आवास, स्वच्छता और जल आपूर्ति की खराब गुणवत्ता कुछ अन्य कारण हैं, जिससे कुपोषण में योगदान मिलता हैं। ऐसी स्थिती में, निम्नलिखित बातों पर ध्यान देकर, खाद्य सुरक्षा संकट से निपटा जा सकता हैं।
१.विभिन्न मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना;
.बौनेपन और मोटापे पर डेटा संग्रह में सुधार करना;
३.सामाजिक कल्याण कार्यक्रम में अधिक निवेश करना;
४.वितरण तंत्र को अधिक जवाबदेह बनाना;
५.कल्याणकारी योजनाओं को चलाने में पंचायतों को बड़ी भूमिका निभाने की अनुमति देना;
.सार्वजनिक वितरण प्रणाली में विविधता लाना;
७.किशोरियों के लिए पोषण योजनाओं को मजबूत करना और उनका विस्तार करना;
८.बेहतर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा को मजबूत करना;
९.भोजन के स्थायी स्रोतों के रूप में वनों को पुनर्जीवित और सुरक्षित रखना;
१०.गरीब समुदायों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सुधार करना, आदि।

संदर्भ

https://tinyurl.com/2583hwtu
https://tinyurl.com/4vj3nv6s
https://tinyurl.com/pbu47d4r

चित्र संदर्भ
1. अस्पताल में भर्ती बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (rawpixel)
2. कुपोषण के शिकार बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
3. झुग्गी में रहने वाले बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (pickpik)
4. सामुदायिक रूप से भोजन करते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (getarchive)