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देखें पुराने लखनऊ के कुछ दुर्लभ सिक्के, व जानें लखनऊ मुद्रा मेले की ख़ासियत

लखनऊ

 28-03-2024 11:48 AM
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

आज के डिजिटल युग में आप चाहें बाजार से कोई वस्तु लेने के लिए बाहर जा रहे हों या कहीं घूमने जा रहे हों, आपको अपने साथ रुपए मुद्रा के रूप में या सिक्कों को ले जाने की आवश्यकता नहीं है, आप प्रत्येक वस्तु के लिए ऑनलाइन कीमत चुका सकते हैं। समय के साथ कीमत अदायगी के रूप में बहुत सारे बदलाव हुए हैं, पहले मुद्रा के रूप में सिक्के चलन में थे, फिर नोट आए और अब ऑनलाइन पेमेंट (Online Payment)। प्राचीन काल से लेकर आज तक सिक्कों और नोटों के रूप में भी कई बदलाव आए हैं। पहले सिक्के जहां सोने या चांदी जैसी महंगी धातुओं के बनते थे वहीं आज सिक्के निकेल, कॉपर या फिर जिंक के बनते हैं। हमारे शहर लखनऊ के मुगलकालीन सिक्के, विशेषकर नवाब वाजिद अली शाह के कार्यकाल के दौरान बनाए गए सोने के सिक्के भी बेहद खास थे। तो आइए, आज के अपने इस लेख में लखनऊ के कुछ प्राचीन दुर्लभ सिक्कों और लखनऊ मुद्रा मेले के विषय में जानते हैं। इसके साथ ही हमारे लखनऊ के निवासी मनीष धमेजा के बारे में भी जानते हैं जो सिक्का संग्रहकर्ता के रूप में काफी लोकप्रिय हैं, और 473 देशों से 12,155 सिक्के एकत्र करने के लिए ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ (Guinness Book of World Records) में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। नवाब वाजिद अली शाह, जो अवध के अंतिम नवाब थे, 1847 से 1856 ईसवी तक 9 वर्षों तक इस पद पर रहे। उन्होंने लखनऊ और मुहम्मदाबाद बनारस टकसाल से सोने, चांदी और तांबे के सिक्के जारी किए। ये सिक्के रुपया, अशर्फी और फ़ालुस जैसे विभिन्न मूल्यवर्गों में उपलब्ध थे। यहां ऐसे ही एक सिक्के का चित्र दर्शाया गया है: इस सिक्के के पिछले हिस्से पर फ़ारसी किंवदंती 'सिक्का ज़ाद बर सिम वा ज़ार अज़ फ़ज़ल तय इलाह, ज़िले हक़ वाजिद अली सुल्तान आलम बादशाह' के अंश अन्नो हेगिरा तिथि के साथ दर्शाए गए हैं। इस सिक्के के पिछले भाग में राज्य - चिह्न को दर्शाया गया है: इसके ऊपर छत्र के साथ मुकुट, जिसके पार्श्व में एक झंडा लिए हुए जलपरियां हैं, नीचे एक दूसरे पर क्रॉस में रखी हुई तलवारें हैं और घेरे के चारों ओर किंवदंती 'जुलूस मैनामत मानुस ज़र्ब दार-उस-सल्तनत लखनऊ मुल्क अवध सना' अंकित है।
वर्ष 2022 में हमारे शहर लखनऊ में राज्य संग्रहालय द्वारा द ‘न्यूमिस्मैटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया’ (The Numismatics Society of India) के सहयोग से ‘अंतर्राष्ट्रीय बुद्ध अनुसंधान संस्थान’ (International Buddha Research Institute) में एक तीन दिवसीय मुद्रा मेले का आयोजन किया गया था, जिसमें छत्रपति शिवाजी के शासनकाल के दौरान ढाले गए दुर्लभ सिक्के और मुद्रा, ब्रिटिश भारत के पहले मुद्रा नोट और बौद्ध युग के सिक्के प्रदर्शित किए गए थे। इस तीन दिवसीय प्रदर्शनी में देश भर के 10 मुद्राशास्त्रियों और डीलरों द्वारा भारत के इतिहास और विरासत को दर्शाने वाले 15,000 से अधिक सिक्के और 8,00 मुद्रा नोट प्रदर्शित किए गए। इस प्रदर्शनी में नागपुर के एक मुद्राशास्त्री अशोक कुमार ठाकुर ने 1674 में छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक के अवसर पर जारी किए गए दो 'होना' (सोने के सिक्के) सहित सिक्कों का एक दुर्लभ संग्रह प्रदर्शित किया। इसके अलावा उन्होंने 12 वीं शताब्दी का सोने का सिक्का भी प्रदर्शित किया जिस पर भगवान राम का अभिलेख था। यह सिक्का 1153-1163 ईसवी के बीच चाहमान राजवंश के राजा विग्रहराज चतुर्थ द्वारा जारी किया गया था, जिन्होंने शाकंभरी (आधुनिक सांभर) पर शासन किया था।
इस सिक्के का वजन 4.5 ग्राम है और इसमें धनुष और तीर के साथ श्री राम की आकृति, खड़ी हुई अवस्था में दिखाई देती है। इसमें तीन पंक्तियों में देवनागरी लिपि में 'श्री' 'रा' और 'मा' शब्द अंकित हैं। इसके अलावा इस प्रदर्शनी में मध्यकाल के दौरान मंदिरों में प्रवेश शुल्क के प्रतीक रूप में दिए जाने वाले सोने, चांदी, और कॉपर के सिक्के, औरंगज़ेब द्वारा 1658 में सत्ता में आने के बाद जारी किया गया सिक्का, मराठा साम्राज्य द्वारा जारी किया ‘अंकुश’ नामक सिक्का, ब्रिटिश शासन काल का ₹1 का नोट तथा ऐसे ही कई अन्य दुर्लभ सिक्के और नोट प्रदर्शित किए गए। इस मेले में राज्य संग्रहालय में मौजूद राजस्थानी और पहाड़ी कला में बने चित्रों की तस्वीरें और 10 मूर्तियों की प्रतिकृतियां भी प्रदर्शित की गई। क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर लखनऊ के एक 30 वर्षीय युवा मनीष धमेजा अपने ऐसे ही दुर्लभ सिक्कों और नोटों के संग्रह के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। कड़ी मेहनत और वर्षों के उद्यम के बाद धमेजा ने अपने इस संग्रह में द्वि-धातु एवं एकल धातु के दस लाख से अधिक सिक्के एकत्र करने के लिए गिनीज बुक में मान्यता प्राप्त की है। अपने इस संग्रह के लिए मीडिया द्वारा उन्हें 'सिक्कों का राजा' की उपाधि भी दी गई है। धमेजा के पास 16वीं सदी के सिक्के भी हैं।

संदर्भ

https://tinyurl.com/47u2uhvx
https://tinyurl.com/bdxrrvp6
https://tinyurl.com/ae3s3v6p

चित्र संदर्भ

1. नवाब वाजिद अली शाह के सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
2. वाजिद अली शाह को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. भारत के विभिन्न भागों के ऐतिहासिक भारतीय सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. भारतीय नोटों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. मराठा साम्राज्य द्वारा जारी किये गए ‘अंकुश’ सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)



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