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हिंदू धर्म में विवाह को सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र समारोहों में से एक माना जाता है। यह दो आत्माओं का पवित्र मिलन है जिसके बारे में माना जाता है कि यह बंधन स्वर्ग में ही बन जाता है। और केवल इसे मूर्तरूप इस धरती पर दिया जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदू विवाह की रस्में और रीति-रिवाज अलग-अलग हैं और इस भिन्नता के साथ, विवाह समारोह का समय भी अलग-अलग होता है। हमारे देश के कुछ हिस्सों में विवाह समारोह सूरज डूबने के बाद और तो कुछ हिस्सों में सूरज डूबने से पहले होता है।
उत्तर भारत में, जहाँ विवाह समारोह रात या शाम को सम्पन्न होते हैं, वहीं दक्षिण भारत में, विवाह उत्सव आम तौर पर दिन के दौरान होते हैं। तो आइए आज हम इस अवधारणा और अलग अलग स्थानों पर विवाह से संबंधित समय के महत्व को समझते हैं। इसके साथ ही अलग-अलग समय पर होने वाले पंजाबी और बंगाली विवाह समारोहों के विषय में भी जानते हैं।
उत्तर और दक्षिण भारत में हिंदू विवाह समारोहों के समय में अंतर का प्रमुख कारण यह है कि ऐतिहासिक रूप से, उत्तर भारतीय क्षेत्र पर मुस्लिम सम्राटों का शासन था जिन्होंने स्थानीय आबादी पर अपनी संस्कृति को प्रभावित किया। मुसलमानों द्वारा अपने साथ लाई गई सांस्कृतिक प्रथाओं में से एक रात में विवाह समारोह आयोजित करने की परंपरा थी, क्योंकि यह इस्लामी संस्कृति में एक आम प्रथा थी। दूसरी ओर, दक्षिणी भारत में हिंदू राज्यों और राजवंशों का एक लंबा इतिहास रहा है। और यहाँ तक मुस्लिम शासकों की पहुंच न हो सकने के कारण मुस्लिम संस्कृति मूल हिंदू रीति रिवाजों को प्रभावित नहीं कर सकी। दक्षिण भारत में विवाह समारोह हमेशा से दिन के समय आयोजित किए जाते रहे हैं और ये प्राचीन हिंदू परंपराओं और रीति-रिवाजों में निहित हैं। दक्षिण में गर्म जलवायु और तेज़ धूप के कारण भी दिन के दौरान विवाह समारोह आयोजित करना अधिक सुविधाजनक हो जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, विवाह समारोह को एक पवित्र गतिविधि माना जाता है जिसके लिए देवताओं के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है। ऐसा माना जाता है कि दिन के दौरान देवता अधिक सक्रिय होते हैं और इस दौरान उनका आशीर्वाद प्राप्त करना शुभ माना जाता है। इसलिए, दिन के दौरान विवाह समारोह को अधिक शुभ माना जाता है और माना जाता है कि दिन के दौरान विवाह करने से नवविवाहित जोड़े को सौभाग्य और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। वहीं दूसरी ओर, कुछ लोगों का मानना है कि रात के समय विवाह संपन्न करना अधिक उपयुक्त होता है क्योंकि इस समय तारे और ग्रह एक विशेष तरीके से संरेखित होते हैं जो विवाह के लिए शुभ माना जाता है। इसके अलावा, ऐसा माना जाता है कि रात का अंधेरा विवाह समारोह के लिए अधिक रोमांचक और अंतरंग माहौल प्रदान करता है।
सांस्कृतिक और धार्मिक कारणों के अलावा, व्यावहारिक विचार भी विवाह समारोह का समय तय करने में भूमिका निभाते हैं। उत्तर भारत में, लोगों में लंबे विवाह समारोह आयोजित करने की परंपरा है जो कई दिनों तक चल सकते हैं। रात में विवाह आयोजित करने से मेहमानों को दिन में अपना काम खत्म करने के बाद समारोह में शामिल होने का मौका मिलता है। इसके विपरीत, दक्षिण भारत में, विवाह समारोह आमतौर पर छोटे होते हैं, और मेहमानों को समारोह में शामिल होने के लिए लंबी दूरी की यात्रा नहीं करनी पड़ती है। इसके अलावा, दिन के समय होने वाले विवाह समारोहों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इससे मेहमानों को प्राकृतिक रोशनी में उत्सव का आनंद लेने और शादी के दौरान परोसे जाने वाले पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेने का अवसर प्राप्त होता है।
आइए अब बात करते हैं पंजाबी शादी की। पंजाबी विवाह के बारे में सोचते ही सबसे पहले हमारे मस्तिष्क में खाना, मौज, मस्ती और ढोल पर भांगड़ा करते चमकदार रंगीन पोशाकों में लोगों की छवी सामने आती है। हालांकि पंजाबी शादी में केवल मौज मस्ती ही सब कुछ नहीं है। इसमें इनकी कुछ निश्चित रीतिरिवाजों एवं परंपराओं की एक लंबी श्रृंखला होती है। विवाह की शुरुआत ‘रोका’ नामक एक अनुष्ठान के साथ होती है जिसमें दो परिवारों के बीच रिश्ते को मज़बूत किया जाता है। इसमें दुल्हन के परिवार वाले दूल्हे के घर जाकर दूल्हे को फल, मिठाई, कपड़े, पैसे और अन्य कीमती सामान जैसे उपहार के साथ आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद ‘चुन्नी समारोह’ में दूल्हे की मां और अन्य महिला रिश्तेदारों द्वारा दुल्हन का परिवार में स्वागत करने के प्रतीक के रूप में दुल्हन को मिठाइयां, उपहार, गहने, सगाई की पोशाक और अन्य उपहार देकर उसके सिर पर लाल चुन्नी उड़ाई जाती है और आशीर्वाद दिया जाता है। अक्सर चुन्नी समारोह के दिन ही सगाई समारोह में दूल्हा और दुल्हन के बीच अंगूठी का आदान-प्रदान होता है। फिर परिवार के सदस्य एक छोटी सी पूजा के साथ जोड़े को आशीर्वाद देते हैं। सगाई के बाद विवाह तक महिला संगीत, मेहंदी, जग्गो, कंगना बंधना, चूडा और कलीरें, हल्दी, घरा घरोली, सेहरा बंदी, घोड़ी चढ़ना, मिलनी, वर माला आदि रस्में निभाई जाती है।
वरमाला के बाद, जोड़ा मंडप में जाता है, जहां दूल्हे को पीने के लिए पानी का एक कटोरा दिया जाता है, जिसके बाद उसे दही, शहद, दूध, घी और अन्य पवित्र तत्वों का एक विशेष पेय दिया जाता है। इस अनुष्ठान को मधुपर्क कहा जाता है। इसके बाद कन्यादान की रस्म निभाई जाती है जो दुनिया की हर संस्कृति और धर्म में किसी न किसी रूप में मौजूद है। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ, कन्या का पिता दूल्हे से अपनी बेटी की देखभाल करने का अनुरोध करता है, जिसके बाद दूल्हा दुल्हन का हाथ स्वीकार करता है और उसे प्रेम करने और उसकी रक्षा करने की कसम खाता है। इसके बाद सात फेरों की रस्म निभाई जाती है। और सिंदूरदान के बाद विदाई के साथ एक पंजाबी शादी संपन्न होती है।
वहीं यदि बात करें बंगाली विवाह की तो इस विवाह का दृश्य इतना आनंददायक लगता है कि यह आपके दिल की गहराइयों से सारा प्रेम और भावनाएं बाहर निकाल कर सामने ले आता है। बंगाली विवाह की शुरुआत ‘आदान प्रदान’ की रस्म के साथ होती है। इसमें दोनों परिवारों की सहमति से विवाह की तारीख को निश्चित करने की रस्म निभाई जाती है।
एक बार तिथि निश्चित हो जाने पर दोनों परिवारों को द्वारा एक दूसरे को उपहार दिए जाते हैं। इसके बाद दूल्हे के परिवार में दुल्हन के शामिल होने के प्रतीक के रूप में ‘आशीर्वाद’ की रस्म निभाई जाती है। इसके लिए दूल्हा और दुल्हन को एक विशेष प्रकार के दुब्यो पत्ते से धन का आशीर्वाद दिया जाता है। एक और असामान्य बंगाली परंपरा, जिसे ऐबुरो-भात के नाम से जाना जाता है, में शादी से पहले दूल्हा और दुल्हन को उनका पसंदीदा भोजन परोसा जाता है। यह परंपरा मुख्यतः वास्तविक विवाह से पहले दिन के समय होती है। दूल्हे के दुल्हन के घर पहुंचने को ‘बोर बोरोन’ के नाम से जाना जाता है। दुल्हन की मां दूल्हे का स्वागत करती है। कार्यक्रम स्थल पर दूल्हे के परिवार का फूलों की मालाओं से स्वागत किया जाता है। उसके बाद, मेहमानों को आरामदायक महसूस कराने के लिए प्यार और स्नेह के प्रतीक के रूप में मिठाई परोसी जाती है। जबकि ‘बोर’ का उपयोग दूल्हे के लिए किया जाता है, वही दुल्हन के लिए ‘कोन’ का उपयोग किया जाता है। 'निटबोर और निटकोन' नामक रस्म में छोटे लड़के और लड़कियाँ शादी के अंत तक दूल्हा और दुल्हन के साथ रहते हैं।
उपरोक्त सभी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अलावा, बंगाली शादी की सबसे प्रतीक्षित परंपरा को सात पाक के नाम से जाना जाता है। यह रस्म दुल्हन के पहली बार विवाह स्थल, जिसे चाडनताला कहते हैं, में पहुंचने से संबंधित है। अन्य परंपराओं की शादियों के विपरीत, बंगाली दुल्हन को उसे उसके भाई या चाचा चाडनताला में ले जाते हैं। इसके बाद शुभो दृष्टि और माला बोडोल की रस्म होती है जिसमे युगल एक-दूसरे के सामने खड़े होते हैं। दुल्हन अपना चेहरा पान के पत्तों के पीछे छिपाए रखती है। इस परंपरा या अनुष्ठान के दौरान, दूल्हा और दुल्हन दोनों पूरी शादी में पहली बार एक-दूसरे को देखते हैं। फिर ‘सम्प्रदान’ की रस्म के द्वारा पिता अपनी कन्या को मंत्रोच्चारण के साथ दूल्हे को सौंप देता है।
अन्य हिंदू विवाह के समान ही बंगाली विवाह में भी सिन्दूर दान की रस्म निभाई जाती है। जिसमें दूल्हा दुल्हन की मांग में लाल सिंदूर भरता है। सिन्दूर दान के बाद अगली रस्म को बशोर घोर के नाम से जाना जाता है। इस नाम का तात्पर्य उस कमरे से है जो जोड़े के लिए सजाया गया है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3attvky3
https://tinyurl.com/rra9mwmy
https://tinyurl.com/mcaw6zbw
चित्र संदर्भ
1. पंजाब और बंगाल के विवाह समारोह को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
2. एक मुस्लिम विवाह को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. पारंपरिक दक्षिण भारतीय विवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
4. फूलों से दूल्हे के स्वागत को दर्शाता एक चित्रण (pexels)
5. सात फेरों को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
6. बंगाली विवाहित जोड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
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