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लकड़ी के हस्तशिल्प को जीवित रखने में हमारे लखनऊ शहर की भूमिका

लखनऊ

 05-03-2024 09:26 AM
घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ

लखनऊ की कुछ पुरानी गलियों से होकर गुजरने पर आपको भी कई ऐसी पुरानी इमारतें दिख जायेगी, जो आज भले ही जर्जर हो गई हो, लेकिन इन इमारतों में काबिज़ लकड़ी के दरवाजे और खिड़कियों पर की गई उम्दा नक्काशी तथा कारीगरी देखने के लिए पाँव ठहर से जाते हैं। हालांकि आज मशीनों के आगमन के बाद लकड़ी का पारंपरिक हस्तशिल्प भले ही काफी हद तक विलुप्त हो चुका है, लेकिन इसके समृद्ध इतिहास और वर्तमान स्थिति के बारे में जानना हमारे लिए वाकई में जरूरी और दिलचस्प भी है। लकड़ी के हस्तशिल्प (Wooden Handicrafts) में भारत की प्राचीन समृद्ध विरासत और इसकी जीवंतता परिलक्षित होती है। इन हस्तशिल्पों में खिलौनों और गहनों से लेकर मूर्तियाँ और बक्से तक शामिल हैं, और इनमें से प्रत्येक वस्तु देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक प्रमाण है। इन वस्तुओं का डिज़ाइन और शैली केवल सौंदर्य पर केंद्रित नहीं है, बल्कि यह भारत की मान्यताओं, जीवन शैली और पर्यावरण का भी प्रतिनिधित्व करती है। भारत में विभिन्न जातियों, नस्लों, संस्कृतियों और मान्यताओं का मिश्रण उपस्थित है, और इस मिश्रण को हमारी लकड़ी के हस्तशिल्प में खूबसूरती से तराशा गया हैं। इन प्राचीन वस्तुओं का अध्ययन करके, कोई भी हमारे देश के इतिहास, मूल्यों और बहुत कुछ के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। भारत में लकड़ी के हस्तशिल्प का इतिहास आकर्षक रहा है। भारत में हस्तशिल्प की उत्पत्ति वैदिक काल में हुई थी, जिसके प्रमाण के तौर पर वेदों में धातु, लकड़ी और मिट्टी के बर्तनों जैसी सामग्रियों का उल्लेख मिलता है।
हालांकि, उस समय के इन शिल्पों का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
भारतीय नक्काशी धातु, मिट्टी और लकड़ी के शिल्प का पहला साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा काल में मिलता है। ये शिल्प बहुत परिष्कृत और विविध थे। मौर्य युग में, नाजुक आभूषणों और नक्काशीदार स्तंभों या स्तूपों के साथ हमारी शिल्प शैली अधिक परिष्कृत और सुरुचिपूर्ण हो गई। गुप्त युग में, शिल्प का विस्तार शैलचित्र, पत्थर पर नक्काशी और मूर्तिकला तक हो गया। भारत में आज हम जो प्राचीन हस्तशिल्प देखते हैं उनमें से अधिकांश मध्यकालीन युग के हैं।
प्राचीन काल में लकड़ी के हस्तशिल्प को आज की भांति विलासिता की वस्तु नहीं माना जाता था। इसके बजाय, इन्हें मुख्य रूप से उपयोगितावादी उद्देश्यों के लिए डिज़ाइन किया जाता था। शिल्पकारों ने अपने लकड़ी के कौशल का उपयोग करके भंडारण बक्से, बर्तन और उपकरण जैसी कार्यात्मक वस्तुएं तैयार कीं। समय के साथ, जैसे-जैसे कारीगरों ने अपनी कला को निखारा, वैसे-वैसे उन्होंने इन व्यावहारिक वस्तुओं में सजावटी तत्व डालना शुरू कर दिया। इस प्रकार जो चीज़ सरल, उपयोगितावादी उद्देश्यों के रूप में शुरू हुई वह धीरे-धीरे कला के सुंदर नमूनों में बदल गई। समय के साथ अमीर और शासक वर्ग के बीच भी इन हस्तनिर्मित वस्तुओं की मांग काफी बढ़ गई जिस कारण इनका मूल्य भी बढ़ गया।
भारत में कच्चे माल की प्रचुरता के कारण लकड़ी के हस्तशिल्प सदियों से फल-फूल रहे हैं। भारत में विविध प्रकार की वृक्ष प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें सदाबहार, पर्णपाती वृक्ष और शुष्क क्षेत्रों के साथ अल्पाइन वनों में पाए जाने वाले वृक्ष शामिल हैं।
कारीगर इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके उत्कृष्ट लकड़ी के हस्तशिल्प बनाते हैं जो दुनिया भर में कला प्रेमियों को मोहित करते रहते हैं। हस्तशिल्प क्षेत्र पूरी तरह से प्राकृतिक सामग्रियों और उनके डेरिवेटिव (Derivatives) पर निर्भर करता है। हानिकारक पदार्थों और गैर-बायोडिग्रेडेबल (non-Biodegradable) कचरे की कमी की विशेषता वाली इसकी पर्यावरण-अनुकूल प्रकृति इसे एक स्थायी विकल्प बनाती है जो हमारे पर्यावरण की सुरक्षा करती है। हस्तनिर्मित या हाथ से पेंट किए गए उत्पाद खरीदने से आपको सिंथेटिक एडिटिव्स (Synthetic Additives) या कृत्रिम रंग से मुक्त और शुद्धता का आश्वासन मिलता है।
हालांकि इन सभी अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद आज भारत के कई शानदार और उत्कृष्ट लकड़ी के शिल्प विलुप्त हो चुके या होने की कगार पर हैं, जिनमें से कुछ की सूची निम्नवत दी गई है: 1. सांखेडा फर्नीचर, गुजरात: यह रंगीन, लाह-उपचारित लकड़ी का फर्नीचर होता है, जिसे गुजरात के सांखेडा गांव में बनाया जाता है। इसे परंपरागत रूप से मैरून और स्वर्णिम यानी गोल्डन (Golden) रंगों से रंगा जाता था लेकिन अब यह विभिन्न रंगों में आता है। इस श्रेणी में पारंपरिक फर्नीचर (Traditional Furniture), वॉल-हैंगिंग (Wall-Hanging), पेडस्टल लैंप (Pedestal Lamps ) और फूलदान बनाए जाते हैं।
2. पिंजरा कारी, कश्मीर: कश्मीर से शुरु हुए, पिंजरा कारी शिल्प में जटिल ज्यामितीय पैटर्न में इंटरवॉवन लकड़ी (Involves Weaving Wood) के लट्ठों के पटल को तैयार किया जाता है। इस शिल्प का प्रयोग खिड़कियों, विभाजनों और बालकनियों में किया जाता है, जिसके लिए ज्यामिति और निर्माण विधियों की अच्छी समझ की आवश्यकता होती है। उच्च मूल्य और समय की खपत के कारण आई गिरावट के बावजूद, कुछ कारीगर इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। 3.ब्लॉक नक्काशी (Block Carving): ब्लॉक नक्काशी में शीशम और सागौन की लकड़ी का उपयोग करते हुए, लकड़ी के लंबवत ऊर्ध्वाधर सतह पर नक्काशी की जाती है। इसके साथ में वनस्पतियों, जीवों, जानवरों, पक्षियों आदि से प्रेरित रूपांकनों को 30 छेनी, एक हाथ धनुष ड्रिल (Hand Bow Drill) और लकड़ी के हथौड़े का उपयोग करके उकेरा जाता है। 4. लकड़ी जड़ना (Wood Inlay): 18वीं शताब्दी में फारस से भारत लाए गए इस शिल्प के तहत लकड़ी की सतहों को हड्डी, हाथी दांत, सीप या अलग-अलग रंग की लकड़ी के टुकड़ों से सजाया जाता है। इस शिल्प से बनाए जाने वाले उत्पादों में दरवाजे और आभूषण बक्से से लेकर प्लेट, कटोरे और कोस्टर (Coasters ) भी शामिल हैं। मैसूर लकड़ी की नक्काशी और जड़ाई के काम से सजी संरचनाओं के लिए जाना जाता है। 5. लकड़ी पर नक्काशी (Wood Carving): राजस्थान के पाली जिले के छोटे शहरों पीपाड़ और साजनपुर में, क्षेत्रीय त्योहारों के लिए विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। चित्तौड़गढ़ के पास बस्सी, राजस्थानी कठपुतलियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध है, जो आमतौर पर लकड़ी के सिर, लंबी नाक और बड़ी आँखों वाली 2 फीट ऊँची होती हैं।
6. निर्मल वर्क, हैदराबाद: निर्मल कला और शिल्प का विकास कई सदियों पहले काकतीय राजवंश के दौरान हुआ था। यह शिल्प लाख की लकड़ी के काम का एक रूप है जिसे निर्मल शहर में खोजा गया था और तब से यह निर्मल और हैदराबाद दोनों शहरों में एक आकर्षण रहा है। इस शिल्प के रूपांकनों में अजंता और एलोरा की वनस्पतियां, जीव-जंतु और भित्तिचित्र शामिल हैं। 7. लकड़ी के चित्रित खिलौने (Wooden Painted Toys): कोंडापल्ली: कोंडापल्ली खिलौनों के रूप में जाने जाने वाले, ये लकड़ी के चित्रित खिलौने, उस विशेष लकड़ी के लिए प्रसिद्ध हैं जिससे वे बने होते हैं। इस शिल्प के तहत कारीगर हल्की नरम लकड़ी से पात्र बनाते हैं, जिन्हें बाद में पानी और तेल के रंगों से रंगा जाता है। 8.नगीना में लकड़ी का शिल्प: उत्तर प्रदेश में लकड़ी पर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध केन्द्रों में अलीगढ, आज़मगढ़, नगीना, लखनऊ और सहारनपुर शामिल हैं। यहां पर नक्काशी के लिए शीशम और साल की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। यहां के शिल्पकार जटिल नक्काशी बनाने के लिए मुख्य रूप से शीशम और साल की लकड़ी का उपयोग करते हैं। नगीना विभिन्न वस्तुओं जैसे टेबल, कुर्सियाँ, बक्से और बिस्तरों पर अपनी सुंदर आबनूस नक्काशी के लिए जाना जाता है, जिसमें रूपांकन अक्सर पुष्प या ज्यामितीय होते हैं। परिवहन चुनौतियों के कारण, कारीगरों ने छोटे सजावटी टुकड़े बनाना शुरू कर दिया जिन्हें परिवहन करना आसान था। मुगल काल से चली आ रही यह कला समय के साथ विकसित हुई है। उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं के साथ, कारीगरों ने खिड़कियां, दरवाजे, बक्से और पेन स्टैंड (Pen Stands) जैसी समकालीन वस्तुएं बनाना शुरू कर दिया है।

संदर्भ
http://tinyurl.com/5bff7mbe
http://tinyurl.com/2rjrky6m
http://tinyurl.com/yuhy4x63

चित्र संदर्भ
1. एक लकड़ी के शिल्पकार को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. लकड़ी पर नक्काशी करते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
3. बांस के हस्तशिल्प को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पारंपरिक फर्नीचर को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. ब्लॉक नक्काशी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. जड़ी हुई लकड़ी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. लकड़ी पर नक्काशी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. लकड़ी के खिलौने को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
9. लकड़ी के कारीगरों को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)



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