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हिंदू धर्म दर्शन के अनुसार मानव जीवन का उद्देश्य चार पुरुषार्थों को प्राप्त करना हैं, जिनमें से तीसरा पुरुषार्थ ‘काम’, है। पहले तीन पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ और मोक्ष है। काम को इच्छा, लालसा और आनंद के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें मनुष्य की भलाई के लिए यौन सुख को भी आवश्यक माना गया है। जबकि, पौराणिक कथाओं में, ‘काम’ को कामदेव या मन्मथ देव के रूप में दर्शाया गया है। और, कुछ पुराणों में उन्हें ब्रह्मा के एक पुत्र के रूप में चित्रित किया गया है, जिनके, पांच बाण, मनुष्य की इच्छा के पांच प्रभावों - आकर्षण, अशांति, जलन, शुष्कता और विनाश - पर चलाए जाते हैं, जिससे इन पांच प्रभावों का नाश होता है।
हमारा देश भारत संभवतः काम, अर्थात इच्छा और आनंद को जीवन के लक्ष्य का दर्जा प्रदान करने वाली एकमात्र सभ्यता है। काम में, ब्रह्मांडीय और मानवीय दोनों ऊर्जाएं समाहित हैं, जो हमारे जीवन को जीवंत बनाती है, और उसे अपनी जगह पर बनाए रखती है। एक प्रख्यात लेखक - गुरुचरण दास अपनी किताब “काम: द रिडल ऑफ डिज़ायर” (Kama: The Riddle of Desire) में, जांच करते हैं कि, एक समृद्ध व समाधानी जीवन जीने के लिए इच्छा को कैसे संजोया जाए। वह यह तर्क देते है कि, यदि धर्म दूसरों के प्रति हमारा एक कर्तव्य है, तो, काम स्वयं के लिए एक कर्तव्य है।
हालांकि, काम का अर्थ सामान्यतः काम-वासना के संदर्भ में लिया जाता हैं। दरअसल, वासना को न केवल यौन संबंध, बल्कि भोजन, पेय, पैसा, प्रसिद्धि, शक्ति और ज्ञान जैसी कुछ वस्तुओं के लिए प्रबल व भावुक लालसा या इच्छा के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। लेकिन, ईसाई धर्म ग्रंथ ‘बाईबल’ (Bible) के मैथ्यू 5:27-28 (Matthew 5:27-28) उपदेश की शब्द लहर के कारण, वासना को विशेष रूप से यौन इच्छा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘भगवद गीता’ में, भगवान श्री कृष्ण घोषणा करते हैं कि, ‘क्रोध और लालच के साथ बढ़ने वाली वासना’ नर्क के तीन द्वारों में से एक है। जब अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि, “एक व्यक्ति इच्छा न होते हुए भी किस कारण पाप कर्मों के लिए प्रेरित होता है?”, तो श्री कृष्ण ने यह उत्तर दिया कि, ‘अर्जुन, यह केवल वासना होती है, जो रजोगुण के भौतिक स्वरूप के संपर्क से पैदा होती है। इसलिए, हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन, शुरुआत में ही इंद्रियों को नियंत्रित करते हुए, पाप के इस महान प्रतीक पर अंकुश लगाना चाहिए, और ज्ञान तथा आत्म-बोध के इस विध्वंसक को मार डालना चाहिए।’ इस संदर्भ का पूर्ण उद्धरण, भगवद गीता के 3.36-43 श्लोकों में दिया गया है।
दूसरी ओर, बौद्ध धर्म के प्रसारक भगवान गौतम बुद्ध के अनुसार, लोभ या लालसा के व्यापक अर्थ में, वासना चार आर्य सत्यों के केंद्र में है। वे चार आर्य सत्य निम्नलिखित हैं–
1. दुःख संपूर्ण जीवन में अंतर्निहित है;
2. सभी दुखों का कारण वासना है;
3. मनुष्य के जीवन से सभी कष्टों को दूर करने का कोई न कोई प्राकृतिक तरीका होता है; और
4. आर्य अष्टांगिक मार्ग इसी पर आधारित है।
भगवान गौतम बुद्ध के अनुसार, उच्च चेतना प्राप्त करके वासना को नियंत्रित या समाप्त किया जाता है। यही विचार ‘पश्चिमी कैनन’ (Western canon) में भी पाया जा सकता है। यहां पश्चिमी कैनन से संदर्भ, उच्च-संस्कृति साहित्य, संगीत, दर्शन और कला के कार्यों से है, जिन्हें पश्चिम में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। फ्रांसीसी कवि ‘बौडेलेयर’ (Baudelaire) तो यहां तक सुझाव देते हैं कि, एक कलाकार, जो चेतना का प्रतीक है, को भी यौन संबंधों से दूर रहना चाहिए।
प्रसिद्ध इतालवी कवि (Italian poet) ‘दांते’ (Dante Alighieri) ने वासना को, व्यक्तियों के प्रति अव्यवस्थित प्रेम के रूप में परिभाषित किया था। दांते की एक रचना ‘पुर्गाटोरियो’ (Purgatorio) में, पश्चाताप करने वाला एक व्यक्ति वासनापूर्ण विचारों और भावनाओं से खुद को शुद्ध करने के लिए, आग की लपटों के बीच चलता है। साथ ही, दांते की एक अन्य रचना ‘इन्फर्नो’ (Inferno) में दिखाया गया है कि, वासना की दोषी एवं क्षमा न की गई बेचैन आत्माएं,तूफान के समान सदैव हवाओं में उड़ती रहती हैं, जो सांसारिक जीवन में उनके वासनापूर्ण जुनून पर आत्म-नियंत्रण की कमी का प्रतीक है।
यह सत्य है कि, यदि काम को ठीक से समझा या प्रबंधित नहीं किया जाता है तो इसका परिणाम नकारात्मक अर्थात वासना हो सकता है। जबकि, मानव जीवन में काम का सकारात्मक पहलू आनंद की खोज है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/4sjxzvvy
http://tinyurl.com/3smfyn6m
http://tinyurl.com/38tvckcw
चित्र संदर्भ
1. चाणक्य और चार पुरुषार्थों को संदर्भित करता एक चित्रण (DeviantArt, प्रारंग चित्र संग्रह)
2. हिंदू धर्म के अनुसार मानव जीवन चक्र को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. किताब “काम: द रिडल ऑफ डिज़ायर” को संदर्भित करता एक चित्रण (Amazon)
4. अर्जुन को उपदेश देते भगवान श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
5. ध्यान में बैठे गौतम बुद्ध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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