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पूरी दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों में एक चीज समान है, और वह है, हमारी “बैंकिंग प्रणाली।” दुनियां का छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा देश भी बैंकिग प्रणाली के अभाव में नहीं चल सकता है। आज हम बैंकिंग प्रणाली की शुरुआत से लेकर आधुनिक डिजिटल बैंकिग (Digital Banking) तक रोमांचक सफ़र के बारे में जानेंगे।
मानव सभ्यता के इतिहास में बैंकिंग सुविधा का अस्तिव तब से है, जब इंसानों द्वारा पहली बार मुद्राओं को ढाला गया था। मुद्राओं की ढलाई के बाद ही धनी लोगों को अपना पैसा रखने के लिए एक सुरक्षित स्थान की आवश्यकता पड़ने लगी। इसी मांग ने बैंकिंग प्रणाली की नीवं रखी। प्राचीन साम्राज्यों को व्यापार को सुविधाजनक बनाने, धन वितरित करने और कर एकत्र करने के लिए एक वित्तीय प्रणाली (Financial System)की भी आवश्यकता थी। बैंकों ने इस संदर्भ में भी एक प्रमुख भूमिका निभाई। आज बैंक हमारी अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं। शुरुआती दिनों में लोग सीध-सीधे वस्तुओं के बदले वस्तुओं या सेवाओं का व्यापार करते थे, जिसे वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) के नाम से जाना जाता है। हालांकि यह सुविधा छोटे समुदायों के लिए लाभदायक थी, लेकिन जब लोगों ने नए बाज़ारों और उत्पादों को खोजने के लिए विभिन्न शहरों की यात्रा करनी शुरू की तो "वस्तु विनिमय प्रणाली" नाकाफी साबित होने लगी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, विभिन्न धातुओं और आकारों से बने सिक्के पेश किये गये। इन सिक्कों का उपयोग व्यापार के लिए किया जाता था और इन्हें सामान की तुलना में इधर-उधर ले जाना आसान होता था।
हालाँकि, इन सिक्कों को सुरक्षित रूप से संग्रहीत करने की आवश्यकता थी। उस समय, घरों में आज की तरह तिजोरियाँ नहीं होती थीं। इसलिए, रोम में धनी लोग अपने सिक्के और गहने धार्मिक स्थलों के तहखानों में रखते थे। इन धार्मिक स्थलों को सुरक्षित माना जाता था क्योंकि इनकी सुरक्षा पुजारियों, कार्यकर्ताओं और यहां तक कि सशस्त्र सुरक्षा कर्मियों द्वारा की जाती थी।
ग्रीस,(Greece,) रोम(Rome), मिस्र(Egypt) और बेबीलोन (Babylon) जैसे स्थानों के ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि ये धार्मिक स्थल न केवल पैसा जमा करते थे, बल्कि उसे उधार भी देते थे। यह भी एक कारण है कि युद्धों के दौरान धार्मिक स्थलों को अक्सर निशाना बनाया जाता था। जिस तरह से आज के समय में बैंक उधार देते हैं, उसी तरह पहले के समय में धार्मिक स्थलों द्वारा ब्याज पर पैसा उधार दिया जाता था। 18वीं सदी तक कई सरकारों ने अर्थशास्त्री एडम स्मिथ (Adam Smith) के विचारों का अनुसरण करते हुए बैंकों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति दे दी।
भारत की बैंकिंग प्रणाली विभिन्न प्रकार के बैंकों से बनी है, जिनमें सार्वजनिक अनुसूचित और गैर-अनुसूचित बैंक, निजी बैंक, क्षेत्रीय बैंक, ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंक शामिल हैं। ये सभी बैंक बैंकिंग कंपनी अधिनियम 1949 के दिशानिर्देशों के तहत काम करते हैं।
भारत को आज़ादी मिलने से पहले, देश में लगभग 600 बैंक थे। 1770 में कोलकाता में स्थापित बैंक ऑफ हिंदुस्तान (Bank Of Hindustan) अपनी तरह का पहला बैंक था। बैंक ऑफ हिंदोस्तान की स्थापना एक एजेंसी हाउस अलेक्जेंडर एंड कंपनी (Agency House Alexander & Company) द्वारा की गई थी। यह एक सफल उद्यम था, जो तीन प्रमुख वित्तीय संकटों से बचने में कामयाब रहा। हालांकि, यह 1832 में ध्वस्त हो गया जब इसकी मूल कंपनी, मैसर्स अलेक्जेंडर एंड कंपनी,(M/S Alexander & Company) एक वाणिज्यिक संकट के कारण विफल हो गई। अवध कमर्शियल बैंक (Avadh Commercial Bank) को भारत का पहला वाणिज्यिक बैंक होने का खिताब प्राप्त है।
इलाहाबाद बैंक (1865 में स्थापित) और पंजाब नेशनल बैंक (1894 में स्थापित) जैसे कई बैंक आज भी अस्तित्व में हैं। इसके अलावा बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ मद्रास और बैंक ऑफ बॉम्बे (Bank Of Bombay) जैसे 1800 के दशक के प्रारंभ में स्थापित किए बैंकों का इंपीरियल बैंक (Imperial Bank) बनाने के लिए विलय कर दिया गया। इसी बैंक को आज हम भारतीय स्टेट बैंक (State Bank Of India) के नाम से जानते हैं।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, बैंकिंग प्रणाली पहले की तरह ही विकसित होती रही। 1969 में, भारत सरकार ने 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम (Banking Regulation Act Of 1949) के तहत बैंकों का नियंत्रण लेने का निर्णय लिया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय रिजर्व बैंक (Rbi) सहित 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ।
1975 में, सरकार ने देखा कि कई समूह वित्तीय सेवाओं तक पहुँचने में सक्षम नहीं थे। इसलिए, 1982 और 1990 के बीच, सरकार ने इन समूहों की जरूरतों को पूरा करने के लिए विशिष्ट कार्यों के साथ बैंकिंग संस्थानों की स्थापना की। इनमें कृषि गतिविधियों का समर्थन करने के लिए नाबार्ड (NABARD), निर्यात और आयात को बढ़ावा देने के लिए एक्जिम (EXIM), आवास परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए राष्ट्रीय आवास बोर्ड और लघु उद्योगों के वित्तपोषण के लिए सिडबी (SIDBI) शामिल हैं।
1991 की शुरुआत से भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया। सरकार ने निजी निवेशकों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित करना शुरू किया। आरबीआई ने दस निजी बैंकों को मंजूरी दी, जिनमें से एचडीएफसी (HDFC), एक्सिस बैंक (Axis Bank), आईसीआईसीआई (Icici), डीसीबी (Dcb) और इंडसइंड (Indusind) जैसे बैंक आज भारत के प्रमुख बैंक बन चुके हैं।
2000 के दशक के आरंभ से मध्य तक, दो और बैंकों, कोटक महिंद्रा बैंक (Kotak Mahindra Bank (2001) और यस बैंक (Yes Bank (2004) को अपने लाइसेंस प्राप्त हुए। 2013-14 में आईडीएफसी और बंधन बैंक (Idfc And Bandhan Bank) को भी लाइसेंस (Licensed) दिया गया था। सिटीबैंक (Citibank), एचएसबीसी (HSBC) और बैंक ऑफ अमेरिका (Bank Of America) जैसे विदेशी बैंकों ने भारत में शाखाएँ स्थापित कीं।
भारत में बैंकिंग व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए सरकार द्वारा:
- बैंकों का राष्ट्रीयकरण रोक दिया गया।
- आरबीआई और सरकार ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के साथ समान व्यवहार करना शुरू कर दिया।
- भुगतान बैंक शुरू किए गए।
- लघु वित्त बैंकों को पूरे भारत में शाखाएँ स्थापित करने की अनुमति दी गई।
- बैंकों ने लेनदेन और विभिन्न अन्य बैंकिंग कार्यों को डिजिटल बनाना शुरू कर दिया।
आधुनिक समय में प्रौद्योगिकी विस्तार के साथ ही हमारे बैंकिंग करने के तरीके में भी बदलाव आ गया है। पिछले एक दशक में, डिजिटलीकरण (Digitalization) के कारण बैंकिंग क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव आये हैं। इस डिजिटल क्रांति ने ग्राहक और बैंकों के बीच लेनदेन और संचालन के तरीकों को बदल कर रख दिया है।
पहले के समय में बैंकिंग के लिए पारंपरिक बैंक ही एकमात्र विश्वसनीय विकल्प थे। हालाँकि, आज हमारे पास गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां एनबीएफसी (Nbfc), एमएफआई (Mfi) और नियो (Neo) जैसे डिजिटल बैंक (Digital Bank) हैं, जो बहुत ही सुविधाजनक रूप से वित्तीय सेवाएं प्रदान करते है।
आज हम वेतन और भुगतान के लिए भौतिक चेक के बजाय ऑनलाइन वेतन भुगतान प्रणाली पर अधिक निर्भर रहने लगे हैं। बैंकिंग क्षेत्र में आये इस बदलाव में कोरोना महामारी ने आग में घी डालने का काम किया है। लॉकडाउन लागू होने के साथ, लोगों ने अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए डिजिटल बैंकिंग पर अधिक भरोसा करना शुरू कर दिया। डिजिटल तकनीक ने बैंकों को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (Online Platform) मोबाइल ऐप (Mobile App) और अन्य डिजिटल चैनलों के माध्यम से ग्राहकों को वित्तीय सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला की पेशकश करने में सशक्त बनाया है।
डिजिटल प्रगति ने बैंकिंग क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जिससे यह अधिक सुविधाजनक और कुशल बन गई है। बड़े-बड़े लेनदेन कुछ क्षणों में हो जाते हैं, और ग्राहक कहीं से भी अपने वित्त का प्रबंधन कर सकते हैं। आज के समय में बैंक भी अपने ग्राहकों से प्राप्त डेटा के आधार पर वैयक्तिकृत सेवाएं प्रदान करने के लिए डेटा एनालिटिक्स (Data Analytics) और एआई (Ai) का उपयोग करते हैं। इससे न केवल ग्राहक अनुभव बेहतर हो रहा है बल्कि ग्राहकों का भरोसा जीतने में भी मदद मिलती है।
फिनटेक कंपनियों (Fintech Companies) के उदय ने नवीन, ग्राहक-केंद्रित सेवाओं को जन्म दिया है। ये कंपनियां, पारंपरिक बैंकों की तुलना में अधिक लागत प्रभावी साबित हो रही हैं, और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हुए, ग्रामीण क्षेत्रों तक भी अपनी पहुँच बढ़ा रही हैं।
हाइपर ऑटोमेशन (Hyper Automation) के जरिये बैंक, व्यक्तिगत अनुभव, बेहतर निर्णय लेने और धोखाधड़ी का पता लगाने के लिए ग्राहक डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने में सक्षम हो गए हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/c7k43s5a
http://tinyurl.com/2p86zn4m
http://tinyurl.com/y4y2w85n
http://tinyurl.com/82ma9ekk
चित्र संदर्भ
1. बैंकों में बदलाव को संदर्भित करता एक चित्रण (look and learn, wikimedia)
2. वस्तु विनिमय प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. विभिन्न बैंकों को संदर्भित करता एक चित्रण (linkedin)
4. भारतीय स्टेट बैंक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. डिजिटल बैंक को संदर्भित करता एक चित्रण (PxHere)
6. बैंकिंग लेनदेन को संदर्भित करता एक चित्रण (WannaPik)
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