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भारत त्योहारों और अनुष्ठानों का देश है, यहां दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में सबसे अधिक त्यौहार मनाए जाते हैं। यहां मनाया जाने वाला प्रत्येक त्यौहार अलग-अलग अवसरों से संबंधित है। भारत में ऋतुओं के आगमन को भी बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। वसंत पंचमी इसका उदाहरण है, वसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के रूप में जाना जाता है, जो देवी सरस्वती को प्रसन्न करने का दिन है। प्राचीन काल में वसंत पंचमी सरस्वती नदी को समर्पित त्योहार था। लेकिन इस विशाल नदी का क्या हुआ? यह नज़रों से कैसे ओझल हो गयी? आइए इस मौके पर जानें और समझें कि इसे हर साल अलग-अलग दिन क्यों मनाया जाता है?
सरस्वती नदी भारतीय पौराणिक कथाओं में एक विशेष स्थान रखती है क्योंकि इसे ज्ञान और बुद्धिमत्ता की पवित्र नदी माना जाता है। यह देवी सरस्वती से जुड़ी है, जो शिक्षा, कला और संगीत के अवतार के रूप में प्रतिष्ठित है। जैसे उसकी दिव्य उपस्थिति हमारी आत्मा को रचनात्मकता और बुद्धि से समृद्ध करती है, वैसे ही यह पौराणिक नदी समय के माध्यम से बहने वाले ज्ञान का प्रतीक है।
नदी का पौराणिक महत्व:
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, नदी को ज्ञान, संगीत, और कला की देवी सरस्वती का साक्षात स्वरूप माना जाता है। उन्हें अक्सर हाथों में वीणा (संगीत वाद्ययंत्र) लिए और कमल के फूल पर विराजित चित्रित किया जाता है। पौराणिक कथाओं में, माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने खुद को तीन भागों - विष्णु (रक्षक), शिव (विनाशक), और सरस्वती (ज्ञान) में विभाजित करके ब्रह्मांड का निर्माण किया था।
एक पौराणिक कथा के अनुसार वसंत पंचमी के दिन से ही पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हुयी थी। कथा के अनुसार एक बार, भगवान ब्रह्मा जी अपनी बनाई सुंदर दुनिया से बहुत प्रसन्न हुए। परिणामस्वरूप, वह विश्व भ्रमण के लिए निकल गए। पूरी दुनिया का भ्रमण करने के बाद उन्होंने देखा कि इसमें कितनी उदासीनता छायी है। पृथ्वी पर प्रत्येक जीव बहुत अकेला दिखाई दे रहा था। भगवान ब्रह्मा ने अपनी रचना पर बहुत विचार किया, फिर उन्हें एक विचार आया। उन्होंने तुरंत अपने कमंडल से थोड़ा सा जल छिड़का ही था कि पास के एक पेड़ से एक देवदूत प्रकट हुईं । देवदूत के हाथ में वीणा (तार वाद्ययंत्र) थी। भगवान ब्रह्मा ने उनसे पृथ्वी पर हर चीज़ को एक संगीत देने का अनुरोध किया। परिणामस्वरूप, देवदूत ने कुछ संगीत बजाना शुरू कर दिया और पृथ्वी के लोगों को संगीत, आवाज, प्रेम, खुशी और उत्साह के नए स्पंदनों से भरने का आशीर्वाद दिया। तब से, वह देवदूत देवी सरस्वती के साथ-साथ वीणा वादिनी (वीणावादक) के नाम से भी जानी जाने लगी। वसंत पंचमी के इस शुभ दिन को भक्त देवी सरस्वती के जन्मदिन के रूप में मनाने लगे।
एक किंवदंती है कि जब देवताओं के राजा इंद्र, राक्षसों से हार गए, तो उन्होंने देवी सरस्वती से मदद मांगी। देवी के आर्शीवाद एवं सरस्वती नदी की उपस्थिति के कारण दुनिया में शांति और सद्भाव फैलाने में सहायता मिली। इस पौराणिक नदी की पवित्रता इसके भौतिक अस्तित्व से परे तक फैली हुई है। यह अपने मूल में पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। भक्तों का मानना है कि कुछ स्थानों पर डुबकी लगाने या प्रार्थना करने से पाप धुल जाते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है।
ऋग्वेद में , सर्वप्रथम सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है इसे एक शक्तिशाली नदी के रूप में वर्णित किया गया है जो पृथ्वी और उसके आस पास के लोगों का पोषण करती है। इसकी स्तुति एक दिव्य देवी के रूप में की गयी है जो अपने भक्तों को बुद्धि और ज्ञान प्रदान करती है। ये विवरण इस प्राचीन नदी से जुड़े सांस्कृतिक महत्व को उजागर करते हैं।
हालाँकि इस बात पर बहस चल रही है कि क्या सरस्वती नदी कभी भौतिक रूप से अस्तित्व में थी। या यह महज़ ज्ञान का एक रूपक प्रतिनिधित्व था। भारतीय संस्कृति में इसका पौराणिक महत्व आज भी है। देवी सरस्वती के प्रति श्रद्धा त्योहारों के माध्यम से देखी जा सकती है। वसंत पंचमी की तरह जहां लोग ज्ञान के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में पुस्तकों और संगीत वाद्ययंत्रों की पूजा करते हैं। हालांकि इस रहस्यमयी नदी के सटीक स्थान या रास्ते के बारे में हमारे पास शायद कोई ठोस सबूत नहीं है। समय के साथ हुए भूवैज्ञानिक परिवर्तनों के कारण आज इसका महत्व हमारे दिलो-दिमाग पर मजबूती से छाया हुआ है। सरस्वती नदी की कहानी हम सभी के लिए एक प्रतीकात्मक अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है। जीवन के हर पहलू में रचनात्मकता को अपनाते हुए निरंतर ज्ञान की तलाश करना, आज सरस्वती नदी की प्रासंगिकता महज पौराणिक कथाओं या इतिहास से कहीं अधिक है। यह एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि हमारे प्राकृतिक संसाधन अनमोल हैं और भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षा की आवश्यकता है। अपने अतीत को समझकर और उसका मूल्यांकन करके, हम अपनी मूल संस्कृति को आगे बढ़ा सकते हैं जो मानव और प्रकृति दोनों को लाभान्वित करती हैं। मां सरस्वती का साक्षात रूप सरस्वती नदी को समर्पित वसंत पंचमी पर्व आज भी बड़े हर्षोल्लाष से मनाया जा रहा है।
वसंत पंचमी एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो वसंत ऋतु की शुरुआत के साथ-साथ कई अन्य शुभ घटनाओं की शुरुआत का भी प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इस दिन का विशेष महत्व है। एक सदियों पुरानी परंपरा के रूप में, बच्चे इस पवित्र दिन से खादी-चुआन/विद्या-आरंभ (शिक्षा की शुरुआत) नामक एक अनोखे समारोह में अपना लिखना या पढ़ना शुरू करते हैं। वसंत पंचमी में पीले रंग का विशेष महत्व है। इस पवित्र दिन पर, भक्त पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और मां सरस्वती की पूजा करने के लिए पीले फूल चढ़ाते हैं। वसंत पंचमी हर साल हिंदू चंद्र कैलेंडर माह माघ के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर जनवरी के अंत या फरवरी में आती है। वसंत को "सभी ऋतुओं का राजा" कहा जाता है। जब फूलों पर बहार आ जाऐ, खेतों में सरसों के फूल मानो सोना चमकने लगे, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगे, आमों के पेड़ों पर मंजरी (बौर) आ जाए और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगे। भर-भर भंवरे भंवराने लगे समझो ऋतुओं का राजा आ गया है।
संदर्भ
https://shortur.।at/GQSXY
https://shortur.।at/prE25
https://rb.gy/p.qi9s
चित्र संदर्भ
1. माँ सरस्वती और सरस्वती नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare, devine art)
2. सरस्वती नदी के मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. माँ सरस्वती को संदर्भित करता एक चित्रण (getarchive)
4. सरस्वती नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बसंत पंचमी की पूजा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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