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प्राचीन काल में सुरक्षा के लिए किलों से की जाती थी घेराबंदी, जानें इसका रोचक इतिहास

लखनऊ

 15-02-2024 09:15 PM
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक

सुरक्षा और संरक्षण की जुस्तजू हमेशा से एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता रही है। सुरक्षा के लिए मनुष्य प्रागैतिहासिक काल से ही प्रयत्नशील रहा है। आधुनिक युग में मनुष्य द्वारा अपने घर की सुरक्षा के लिए ताले लगाकर तथा देशों द्वारा अपनी सीमाओं पर सेनाओं की निगरानी से सुरक्षा की हर संभव कोशिश की जाती है। इसी तरह प्राचीन काल में राजाओं एवं शासकों द्वारा अपने राज्य की सुरक्षा के लिए किलेबंदी की जाती थी। प्राचीन काल में जब भारत कई राज्यों और साम्राज्यों में विभाजित था उस समय एक साम्राज्य द्वारा दूसरे साम्राज्य के क्षेत्र पर कब्जा करने एवं शासकों को हराने के लिए युद्ध का सहारा लिया जाता था। उस समय युद्ध में किले और घेराबंदी का महत्वपूर्ण स्थान होता था। अपनी स्थलाकृति, प्राकृतिक लाभों और मानव निर्मित घेरे बंदी के साथ किले रणनीतिक रूप से युद्ध के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते थे। किले न केवल इसके आसपास रहने वाली आबादी की सुरक्षा के लिए बल्कि पूरे राज्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक थे। किले राजा और उसकी सेनाओं को दुश्मनों के विरुद्ध आश्रय प्रदान करने के साथ साथ आक्रमणकारियों को राज्य में आगे बढ़ने से रोकते थे। प्राचीन काल में युद्ध के समय राजा या सेनापति किले के अंदर से ही बड़ी ही आसानी से और आत्मविश्वास के साथ अपने शत्रुओं पर हमला करके उन्हें खदेड़ सकते थे। वहीं दूसरी तरफ विरोधी राजा के लिए किले पर कब्जा करना अत्यंत आवश्यक होता था क्योंकि सामने वाले राजा की राजधानी आमतौर पर किलेबंद होती थी। और कोई भी आक्रमणकारी इन रणनीतिक गढ़ों को जीते बिना दूसरे साम्राज्य पर कब्जा नहीं कर सकता था।
बौद्ध निकाय ग्रंथ (500 ईसा पूर्व - 300 ईसा पूर्व) और कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में प्राचीन भारत में किलों के निर्माण, तथा हमले और रक्षा सहित घेराबंदी, किलों से युद्ध के संचालन पर बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। प्राचीन काल में निर्मित किले ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। तो आइए आज के अपने इस लेख में हम दुनिया के कुछ सबसे पुराने ज्ञात किलों के विषय में जानें, जो अपने ऐतिहासिक महत्त्व के साथ साथ वास्तु कला की दृष्टि से बेहद सुंदर भी हैं। इसके साथ ही भारत में बने एक अत्यंत प्राचीन किले पर भी एक नजर डालते हैं। हट्टुसा: कोरम (Corum) के तुर्किये अनातोलियन (Türkiye’s Anatolian) केंद्रीय प्रांत में स्थित हट्टुसा (Hattusa) निश्चित रूप से एक दर्शनीय स्थल है। इस स्थान पर प्राप्त हुए हित्ती राजधानी के अवशेष लगभग 2000 ईसा पूर्व कांस्य युग के हैं। इस स्थल को 1986 में यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था। हित्ती एक उल्लेखनीय साम्राज्य था जिसका राज्य एजियन (Aegean) सागर से लेकर अनातोलिया (Anatolia), उत्तरी सीरिया (Northern Syria) और फ़रात नदी (Euphrates river) तक फैला हुआ था। 1834 में पहली बार खोजा गया हट्टुसा सहनशीलता, रहस्य और गहन इतिहास की एक अद्भुत कहानी बयान करता है क्योंकि इससे पहले हित्ती साम्राज्य की राजधानी रहे हट्टुसा को एक मिथक माना जाता था। हालांकि इसकी खोज के बाद पुरातत्त्वविदों द्वारा आज भी हित्तियों और उनकी राजधानी के विषय में और अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए इस स्थान की खुदाई की जा रही है। अब तक की गई खुदाई में मिट्टी की पट्टियों (tablets) के व्यापक शाही अभिलेख मिले हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से बोगाज़कोय पुरालेख (Bogazkoy Archive) के रूप में जाना जाता है। अभिलेखों में उस समय के आधिकारिक पत्राचार, अनुबंध, कानूनी कोड, औपचारिक प्रक्रियाएं, भविष्यवाणियां, शांति समझौते और साहित्यिक कृतियां शामिल हैं। मिट्टी के व्यापक दस्तावेज़ीकरण के अलावा, यहाँ से विभिन्न प्रकार की बड़ी बड़ी मूर्तियां भी खोजी गई हैं। खुदाई के दौरान प्राप्त हुए विभिन्न प्रकार के निर्माण अवशेषों से इस स्थल के शहरीकरण के प्रमाण मिलते हैं। यह स्थल लायंस गेट (Lions Gate), स्फिंक्स गेट (Sphinx Gate), और रॉयल गेट (Royal Gate) जैसी सजावटी संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है, जो वास्तव में अपने समय में बहुत भव्य रहे होंगे। अवशेषों से ज्ञात होता है कि पूरा शहर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसकी लंबाई 8 किलोमीटर थी। इसके अलावा पूरे शहर में पुरानी दीवारें पाई गईं हैं जो शहर को अलग-अलग मंडलों में विभाजित करती थीं। यह शहर पूरी तरह किलेबंद था, जिसमें दोहरी दीवार, 100 से अधिक टावर और 5 प्रवेश द्वार थे। शहर की कुछ दीवारों पर हित्ती साम्राज्य के हित्ती चित्रलिपि शिलालेख भी मिले हैं। इस शहर में 13 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के एक बड़े भव्य मंदिर के अवशेष भी मिले हैं। इसके अलावा शहर में अन्य स्थानों पर भी मंदिरों के खंडहर हैं। शहर के उत्तर में यज़ीलिकाया (Yazılıkaya) का चट्टान अभयारण्य है, जिसमें दो प्राकृतिक कक्षों वाला एक अनावृत मंदिर है। इस मंदिर की दीवारों पर हित्ती राहत कला के सबसे समृद्ध और असाधारण नमूने उकेरे गए हैं, जिनमें देवी-देवताओं और महान राजा तुधलिया चतुर्थ (Tudhaliya IV) की आकृतियाँ शामिल हैं। शहर के निकट कयालि बोगाज़ (Kayalı Bogaz) नामक एक बड़ी किलेबंद बस्ती है, जिसका उल्लेख ‘फन्नी लिपि’ (cuneiform) शिलालेखों में मिलता है। राजधानी से इसकी निकटता के कारण, ऐसा माना जाता है कि शहर की सड़कों पर नजर रखने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए शहर की एक चौकी के रूप में कायाली बोगाज़ से कार्य किया जाता था। इस स्थान के मूल्यांकन से पता चलता है कि इस शहर की जनसंख्या लगभग 50,000 रही होगी।
कैडबरी कैसल: दक्षिण पश्चिम इंग्लैंड (England) में एक औपचारिक काउंटी ‘समरसेट’ (Somerset) में ‘कैडबरी कैसल’ (Cadbury Castle) नाम का सबसे बड़ा पहाड़ी किला है, जिसे ‘कैमलॉट कैसल’ (Camelot Castle) के नाम से भी जाना जाता है। इसी किले के नाम पर एक सामंती उपाधि ‘बैरोनी ऑफ़ नॉर्थ कैडबरी’ (Barony of North Cadbury) का नाम पड़ा है। इस किले के दक्षिण में सिविल पैरिश में कांस्य और लौह युग का एक पहाड़ी किला मौजूद है। यह प्राचीन स्थल पौराणिक राजा आर्थर (King Arthur) से संबंधित माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह पहाड़ी राजा आर्थर के मुख्य दरबार का स्थल थी। यह भी कहा जाता है कि यहाँ राजा आर्थर की गोलमेज बैठकें आयोजित की जाती है। इस किले के विषय में अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए सन् 1913 में किले के दक्षिण पश्चिम में एक परीक्षण उत्खनन किया गया, जिसमें रोमानो-ब्रिटिश युग के मिट्टी के बर्तनों के कई टुकड़े, दीवारें और प्राचीर और एक छोटे बच्चे के कंकाल के साक्ष्य मिले। खुदाई के दौरान यहां पांचवीं और छठी शताब्दी के आसपास राजा आर्थर के अनुमानित समय की बड़ी संख्या में असामान्य वस्तुएं मिलीं।
जलदुर्ग: हमारे देश भारत के कर्नाटक राज्य के रायचूर जिले के लिंगसुगुर शहर से लगभग 20 किलोमीटर उत्तर पूर्व में एक किलेबंद गांव जलदुर्ग है। यहाँ बीजापुर के आदिल शाही राजाओं द्वारा एक पहाड़ी पर एक अनोखे द्वीप किले का निर्माण कराया गया था। किले की पहाड़ी के चारों ओर कृष्णा नदी बहती है जिसके कारण इस किले के आसपास पहुंचना अत्यंत कठिन है। दुर्भाग्यवश वर्तमान में यह किला खंडहर स्थिति में है। लेकिन पूर्व समय में किले के शीर्ष पर एक महल और एक तहखाना था। यहां राजाओं की कुछ कब्रें भी हैं, हालांकि इनकी पहचान नहीं हो पाई है। इसके अलावा यहाँ संगमेश्वर मठ, और येलम्मा का मंदिर है। जलदुर्ग में उर्दू और देवनागरी लिपि में लिखा एक छोटा शिलालेख भी है। इसके एक तरफ क्विला है, जिसका इस्तेमाल दुश्मनों पर नजर रखने के लिए किया जाता था। यहाँ अपराधियों को सजा देने के लिए एक बुर्ज भी था जो अब खंडहर हो चुका है।

संदर्भ
https://shorturl.at/ceqW2
https://shorturl.at/axCT6
https://shorturl.at/dhxHT
https://shorturl.at/rwCTU

चित्र संदर्भ

1. 1903 के दिल्ली दरबार में हाथी जुलूस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. आनंदपुर किले के बाहर मुगल सैनिकों की टुकड़ी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. हट्टुसा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. लायंस गेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कैडबरी कैसल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. जलदुर्ग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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