लखनऊ - नवाबों का शहर












गर्भावस्था के दौरान, परिवहन के विभिन्न साधनों से यात्रा करते समय रखें, इन बातों का ध्यान
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
11-04-2025 09:29 AM
Lucknow-Hindi

आज हमारा यह लेख, विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए है जो गर्भवती हैं या शीघ्र ही गर्भावस्था के लिए योजना बना रही हैं। गर्भावस्था के दौरान सलाह दी जाती है कि अधिक यात्रा न करें। हालांकि, कई डॉक्टरों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के अनुसार, पहली तिमाही (First Trimester) के दौरान, किसी भी माध्यम से यात्रा करना सुरक्षित है। हालांकि, अगली तिमाही के दौरान यात्रा करना काफ़ी मुश्किल हो जाता है और आम तौर पर 32 सप्ताह के बाद, गर्भवती महिलाओं को जितना संभव हो, उतना यात्रा कम करने की सलाह दी जाती है। तो आइए, आज हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि क्या गर्भावस्था के दौरान यात्रा करना सुरक्षित है। इसके साथ ही, हम गर्भवती महिलाओं के लिए, यात्रा करने के सर्वोत्तम समय के बारे में जानेंगे और परिवहन के विभिन्न साधनों से यात्रा करते समय गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ सुरक्षा युक्तियों पर प्रकाश डालेंगे।
क्या गर्भावस्था के दौरान यात्रा करना सुरक्षित है:
गर्भावस्था के दौरान 37वें सप्ताह तक ट्रेन से यात्रा करना सुरक्षित माना जाता है। चूंकि, गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने के बाद किसी भी दिन बच्चे का जन्म हो सकता है, इसलिए उसके बाद परिवहन के किसी भी साधन से घर से दूर यात्रा न करने की सलाह दी जाती है। यदि किसी गर्भवती महिला को अपनी डिलीवरी के लिए अपने पैतृक घर जाने की आवश्यकता है, तो पूर्ण अवधि से कुछ सप्ताह पहले पहुंचना सबसे अच्छा होता है। इससे यात्रा के समय होने वाली असुविधा से बचने के साथ-साथ, दूसरे स्थान पर एक अच्छा डॉक्टर और प्रसूति अस्पताल ढूंढने का समय मिल सकता है। यदि गर्भवती महिला को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गर्भनाल संबंधी समस्याएं या कोई गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं हैं, तो यात्रा की योजना बनाने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान यात्रा करने का सबसे सुरक्षित समय कब है:
गर्भावस्था के दौरान, यात्रा करने का सबसे सुरक्षित समय निर्धारित करना व्यक्तिगत परिस्थितियों और चिकित्सीय सलाह के आधार पर भिन्न हो सकता है। आमतौर पर, दूसरी तिमाही, 14 से 28 सप्ताह के बीच, अधिकांश गर्भवती माताओं के लिए यात्रा करने का सबसे सुरक्षित समय माना जाता है। इस समय महिलाओं में मॉर्निंग सिकनेस अक्सर कम हो जाती है, और गर्भपात का जोखिम पहली तिमाही की तुलना में कम हो जाता है। इसके अलावा, गर्भावस्था से जुड़ी असुविधाएं, जैसे पीठ दर्द और बार-बार पेशाब आना, इस समय तक ज़्यादा नहीं बढ़ती हैं। हालांकि, यात्रा की योजना बनाने से पहले अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श अवश्य करें, क्योंकि वे आपके चिकित्सा इतिहास और वर्तमान गर्भावस्था की स्थिति के आधार पर व्यक्तिगत सलाह दे सकते हैं।
विभिन्न माध्यमों से यात्रा करते समय गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षा युक्तियाँ:
ट्रेन से यात्रा:
गर्भावस्था के दौरान ट्रेन से यात्रा करना एक आदर्श तरीका माना जाता है, जो इसे आरामदायक और सुविधाजनक बनाती है; विशेषकर दूसरी तिमाही के दौरान। गर्भावस्था के दौरान ट्रेन यात्रा में कारों या हवाई जहाज़ की तुलना में घूमने के लिए अधिक जगह मिलती है, जिससे अक्सर रक्त के थक्के जमने का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा सड़क से यात्रा करने के समय लगने वाले झटकों से भी बचा जा सकता है।
ट्रेन से यात्रा करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें:
- गर्भावस्था के दौरान, लंबी यात्रा के लिए ऐसी सीट बुक करें, जिसमें अधिक आराम के लिए अतिरिक्त लेगरूम या स्लीपर केबिन हो।
- रास्ते में हाइड्रेटेड (Hydrated) और अच्छी तरह से पोषित रहने के लिए नाश्ता और पानी ले जाना महत्वपूर्ण है।
- यदि गर्भवती महिला मॉर्निंग सिकनेस या यात्रा के दौरान उल्टियां होने जैसी समस्याओं से पीड़ित है, तो सुरक्षित उपचार के लिए अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लें।
- बार-बार टॉयलेट ब्रेक की योजना बनाएं, क्योंकि ट्रेन की सुविधाएं सीमित हो सकती हैं और आपको एक निश्चित दूरी तक पैदल चलना पड़ सकता है।
उचित तैयारी और सुरक्षा उपायों के साथ, गर्भावस्था के दौरान ट्रेन यात्रा गर्भावस्था के दौरान एक सहज़ और सुखद अनुभव हो सकती है।
पानी के जहाज़ से यात्रा:
गर्भावस्था के दौरान, बड़े क्रूज़ जहाज़ से यात्रा करने पर पहली दो तिमाही में अक्सर कोई विशेष समस्या नहीं होती। सहायता की आवश्यकता होने पर अधिकांश क्रूज़ जहाजों में चिकित्साकर्मी होते हैं। फिर भी, यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:
- यदि आप गति के प्रति संवेदनशील हैं, तो आप इसके लिए अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लेकर गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित दवा ले सकती हैं।
- क्रूज़ को बुक करने से पहले, विशिष्ट क्रूज़ लाइन की गर्भावस्था नीति की जांच करें, क्योंकि कई क्रूज़ लाइन में 24 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भवती महिलाओं के लिए प्रतिबंध हैं।
- जहाज़ पर खाद्य सुरक्षा पर ध्यान दें, ताज़ा तैयार भोजन लें और सुनिश्चित करें कि आप हाइड्रेटेड रहें।
हवाई जहाज़ से यात्रा:
- हवाई जहाज़ से यात्रा करने से पहले डॉक्टर से जांच करवाना आवश्यक है। गर्भावस्था के दौरान, हवाई यात्रा आमतौर पर कम जोखिम गर्भधारण वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन कुछ स्थितियों के कारण उड़ान से बचने की आवश्यकता हो सकती है। प्रीक्लेम्पसिया (preeclampsia), समय से पहले प्रसव, या प्रसव पूर्व झिल्लियों का टूटना जैसी जटिलताओं की स्थिति में उड़ान से यात्रा असुरक्षित हो सकती है। पहली और तीसरी तिमाही के दौरान, यात्रा से जुड़े जोखिम अधिक हो सकते हैं। यात्रा की योजना बनाने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर की मंजूरी लें।
- यात्रा से पहले सुनिश्चित करें कि आपके टीकाकरण अद्यतित हैं। इसमें फ़्लू वैक्सीन और कोविड-19 वैक्सीन शामिल हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों के लिए अतिरिक्त टीकाकरण की आवश्यकता हो सकती है, इसलिए अपने यात्रा गंतव्य के लिए आवश्यक किसी विशिष्ट टीके के बारे में अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से सलाह लें।
- गर्भावस्था के दौरान, अंतरराष्ट्रीय यात्रा करते समय मलेरिया या ज़ीका जैसी संक्रामक बीमारियों के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों से बचें। जिन देशों में ये बीमारियाँ प्रचलित हैं, उन देशों की नवीनतम जानकारी के लिए रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र की वेबसाइट देखें। यदि इन क्षेत्रों की यात्रा अपरिहार्य है, तो लंबे समय तक काम करने वाले कीट निरोधकों का उपयोग करें, जो गर्भावस्था के लिए सुरक्षित हैं और मच्छरों के काटने के जोखिम को कम करने के लिए सुरक्षात्मक कपड़े पहनें।
- गर्भावस्था में डीप वेन थ्रोम्बोसिस (deep vein thrombosis (DVT)) का खतरा बढ़ जाता है, जिसमें आमतौर पर पैरों में नसों में रक्त का थक्का जम जाता है। इस जोखिम को कम करने के लिए लंबे समय तक बैठने से बचें। हवाई जहाज़ पर, हर घंटे उठने और चलने का प्रयास करें। यदि उठना मुश्किल हो तो पैरों को उठाकर या घूम कर भी रक्त परिसंचरण को बनाए रखा जा सकता है।
- एक बार जब आप अपने गंतव्य पर पहुंच जाएं, तो उन गतिविधियों से बचें, जो आपके या आपके बच्चे के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। ऐसी गतिविधियों से बचें जिनमें अचानक झटकेदार हरकतें, गिरने की संभावना या उच्च प्रभाव शामिल हो।
संदर्भ:
मुख्य चित्र स्रोत : Pexels
आइए अवगत होते हैं, लखनऊ में रहकर अयोध्या और दुनिया के कुछ लोकप्रिय जैन मंदिरों से
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
10-04-2025 09:22 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ के लोगों, क्या आप जानते हैं कि जैन धर्म में तीर्थंकर (Tirthankar) वे 24 महान गुरु या संत होते हैं, जिन्होंने जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त कर ली होती है ? यही वजह है कि जैन धर्म में तीर्थंकरों का बहुत महत्व है। अब जब हमने यह जाना, तो आपको बता दें कि लखनऊ से करीब 135 किलोमीटर दूर अयोध्या में कुछ प्राचीन जैन मंदिर हैं। ये मंदिर खास इसलिए भी माने जाते हैं क्योंकि अयोध्या को पाँच तीर्थंकरों की जन्मभूमि माना जाता है। यही कारण है कि यह स्थान जैन धर्म के भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन जाता है।
तो, आज महावीर जयंती के इस खास अवसर पर आइए, अयोध्या के कुछ प्रसिद्ध जैन मंदिरों के बारे में जानते हैं। इनमें श्री ऋषभ देव मंदिर (स्वर्गद्वार) और अजितनाथ जैन मंदिर (बेगमपुरा) जैसे कई महत्वपूर्ण मंदिर शामिल हैं।
इसके बाद, हम दुनिया के कुछ प्रमुख जैन मंदिरों के बारे में जानेंगे। सबसे पहले, हम बेल्जियम (Belgium) में स्थित शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर के इतिहास और महत्व पर नज़र डालेंगे। फिर, हम जापान के कोबे शहर में बने महावीर स्वामी जैन मंदिर के बारे में जानेंगे। अंत में, कनाडा के कुछ प्रसिद्ध जैन मंदिरों जैसे आदिनाथ स्वामी जैन मंदिर और श्री देरासर जैन मंदिर की चर्चा करेंगे।

अयोध्या के कुछ प्रमुख जैन मंदिर:
- स्वर्गद्वार: अयोध्या के स्वर्गद्वार इलाके में स्थित श्री ऋषभ देव (जिन्हें श्री आदिनाथ, पुरुदेव और आदि ब्रह्मा के नाम से भी जाना जाता है) का यह मंदिर नया होने के बावजूद, आपको उस समय की अनुभूति कराता है जब भगवान ऋषभ देव अयोध्या में रहते और उपदेश देते थे। यह मंदिर, सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है।
- बक्सरिया टोला: अयोध्या के बेगमपुरा इलाके में स्थित अजितनाथ की टोक मंदिर, दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ के जीवन की स्मृति में बनाया गया है।
- रामकोट मोहल्ला: रामकोट मोहल्ले में श्री अभिनंदननाथ, जो जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर थे, का एक पवित्र मंदिर स्थित है।
- मोहल्ला मौंधियाना राजघाट: इस स्थान पर दो तीर्थंकरों का जन्मस्थान माना जाता है— श्री सुमतिनाथ (5वें तीर्थंकर) और श्री अनंतनाथ (14वें तीर्थंकर)। यहां एक भव्य मंदिर इनकी जन्मस्थली के रूप में स्थापित किया गया है।
- रायगंज: रायगंज में स्थित दिगंबर जैन मंदिर अपनी 21 फ़ीट ऊँची भगवान ऋषभ देव की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है।
- रत्नापुरी: रत्नापुरी, जो कि अयोध्या से 24 किलोमीटर पहले लखनऊ-अयोध्या राष्ट्रीय राजमार्ग पर रोनई के पास स्थित है, 15वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ की जन्मस्थली है।
शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर:
शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर बेल्जियम के एंटवर्प प्रांत के विलरिक नगर में स्थित एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है। यह मंदिर 1,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और 2010 से उपयोग में है। इसकी निर्माण प्रक्रिया 1990 में भारत में शुरू हुई थी। 2000 में निर्माण पूरा होने के बाद, इसे टुकड़ों में अलग किया गया, फिर बेल्जियम भेजकर वहां दोबारा स्थापित किया गया। सफ़ेद संगमरमर से बना यह मंदिर पारंपरिक जैन मंदिरों से प्रेरित है और भारत के बाहर का सबसे बड़ा जैन मंदिर माना जाता है। मंदिर में जैन धर्म से जुड़ी जानकारी देने के लिए एक सूचना केंद्र भी मौजूद है।
महावीर स्वामी जैन मंदिर, कोबे:
महावीर स्वामी जैन मंदिर जापान (Japan) के कोबे (Kobe) शहर में स्थित एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है। यह मंदिर वहां रहने वाले जैन समुदाय के लिए पूजा और सांस्कृतिक गतिविधियों का स्थान प्रदान करता है। 1 जून 1985 को इस मंदिर का औपचारिक उद्घाटन हुआ था। यह न केवल एक उपासना स्थल है बल्कि एक ऐसा केंद्र भी है जहाँ जैन धर्म के सिद्धांतों—अहिंसा, करुणा और सत्य—को बढ़ावा देने के लिए शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह मंदिर, स्थानीय जैन समाज को एकजुट करने और उन्हें ध्यान, प्रार्थना और सामुदायिक आयोजनों के लिए एक शांतिपूर्ण स्थान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कनाडा के कुछ प्रमुख जैन मंदिर
1. जैन सोसाइटी ऑफ़ अल्बर्टा:
जैन सोसाइटी ऑफ़ अल्बर्टा (Jain Society of Alberta (JSOA)), कनाडा (Canada) के प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से एक है। यह संगठन एडमोंटन और पूरे अल्बर्टा में जैन समुदाय को एक साथ जोड़ने का काम करता है। 1974 में, पाँच से भी कम जैन परिवारों ने मिलकर “एडमोंटन जैन संघ” की स्थापना की थी। समय के साथ, यह समुदाय बढ़ता गया क्योंकि दुनिया भर से लोग यहाँ बसने लगे। जैन सोसाइटी ऑफ़ अल्बर्टा का उद्देश्य अपने सदस्यों को जैन धर्म को समझने और उसके सिद्धांतों का पालन करने में सहायता करना है।
2. आदिनाथ स्वामी जैन मंदिर:
ब्रैम्पटन (Brampton), कनाडा में स्थित आदिनाथ स्वामी जैन मंदिर उत्तर अमेरिका का पहला पारंपरिक जैन मंदिर है। इसे “भगवान 1008 आदिनाथ स्वामी जैन मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। 7875 मेफ़ील्ड रोड (Mayfield Road) पर स्थित यह मंदिर भारतीय पारंपरिक वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है। इसमें भगवान आदिनाथ और अन्य तीर्थंकरों की सुंदर संगमरमर की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो जयपुर, भारत में बनाई गई थीं। मंदिर में 52 फ़ीट ऊँचा संगमरमर का स्तंभ “माना स्तंभ” भी स्थित है। यह तीन मंज़िला मंदिर, कनाडा के जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है।
3. श्री देरासर जैन मंदिर:
श्री देरासर जैन मंदिर रिचमंड (Richmond)), ब्रिटिश कोलंबिया (British Columbia) में स्थित है। यह मंदिर ध्यान, प्रार्थना और उपासना के लिए एक शांतिपूर्ण स्थान है। यहाँ महावीर जयंती, पर्युषण और दिवाली जैसे प्रमुख जैन त्योहारों को भव्य रूप से मनाया जाता है। इसके अलावा, मंदिर जैन सिद्धांतों जैसे सत्य अहिंसा और करुणा (दया) को बढ़ावा देने के लिए शैक्षिक और सामाजिक गतिविधियों का आयोजन भी करता है। यहाँ समय-समय पर होने वाले धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम जैन समुदाय को एकजुट करने और उनकी समृद्ध परंपरा के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य करते हैं।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/mr4xjndw
मुख्य चित्र: कोलकाता में स्थित पार्श्वनाथ जैन मंदिर (Wikimedia)
लखनऊ की सांस्कृतिक विरासत रहे 'चिनहट मृदभांड' को आज संरक्षण की ज़रुरत क्यों पड़ रही है ?
म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
Pottery to Glass to Jewellery
09-04-2025 09:25 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ के पूर्वी छोर पर स्थित चिनहट (Chinhat) इलाका, अपनी अनूठी मिट्टी कला के लिए मशहूर है। खासकर, यहाँ की चमकदार टेराकोटा कला ने इसे एक अलग पहचान दी है। एक समय ऐसा भी था जब इस जगह पर 11 से भी ज़्यादा कुम्हार इकाइयाँ मौजूद हुआ करती थीं, जहाँ मिट्टी के बर्तन, सजावटी सामान, तश्तरियाँ, कटोरे और ख़ूबसूरत फूलदान बनाए जाते थे। खासतौर पर, फलों और फूलों के आकार की प्लेटें और कटोरे लोगों के बीच काफ़ी पसंद किए जाते थे। चिनहट, सिर्फ़ एक बाज़ार या कारीगरी का केंद्र नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। यहाँ के कुशल कारीगर पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस कला को संजोते आए हैं। उनकी बनाई गई चीज़ें न केवल स्थानीय ख़रीदारों को लुभाती हैं, बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को भी आकर्षित करती हैं। इसलिए आज के इस लेख में हम आपको चिनहट की इस अनमोल कला के सांस्कृतिक महत्व, इसकी बारीक तकनीकों और यहाँ बनने वाले खास उत्पादों के बारे में बताएंगे। साथ ही, हम उन कारीगरों की ज़िंदगी पर भी नज़र डालेंगे, जिनकी आजीविका इसी उद्योग पर निर्भर करती है! हम उनकी चिंताजनक स्थिति पर भी विचार करेंगे।
यूं तो लखनऊ शहर अपनी नवाबी शान और मुग़लकालीन विरासत के लिए मशहूर है! लेकिन नवाबों का यह शहर लंबे समय से कला और शिल्प का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। चिनहट की मिट्टी कला इसी समृद्ध परंपरा का हिस्सा है, जो यहाँ के कारीगरों के लिए रोज़गार का एक बड़ा साधन भी है। हालाँकि, आज बाज़ार में मशीन से बनी चीज़ों की भरमार है, फिर भी हाथ से बनी चिनहट की कारीगरी उन लोगों को आकर्षित करती है जो असली हुनर की क़द्र करना जानते हैं।
चिनहट की पॉटरी क्या है?
चिनहट की पॉटरी, ग्लेज़्ड टेराकोटा पॉटरी (Glazed Terracotta Pottery) और सिरेमिक्स (Ceramics) की श्रेणी में आती है। इस इस कला को अपने देसी और मिट्टी जैसे लुक के लिए जाना जाता है। इसकी चमकदार परत (ग्लेज़) आमतौर पर हरे और भूरे रंग की होती है, जबकि डिज़ाइन अक्सर सफ़ेद या क्रीम रंग की सतह पर बनाए जाते हैं। इन बर्तनों को 1180 से 1200 डिग्री सेल्सियस पर पकाया जाता है, जिससे यह मज़बूत और टिकाऊ बनती है। चिनहट में बनने वाले उत्पादों में मग, कटोरे, फूलदान, कप और सॉसर (Saucer) शामिल हैं। खासतौर पर नीले और सफ़ेद रंग में बने खिलौना टी-सेट (Tea Set) काफ़ी लोकप्रिय हैं। इसके अलावा, फूलदान, मग और पत्ते के आकार की प्लेटें भी लोगों को बहुत पसंद आती हैं। कुछ डिज़ाइन ज्यामितीय आकार (Geometric Patterns) में बनाए जाते हैं, जिससे ये कोई साधारण बर्तन नहीं, बल्कि रचनात्मकता, कौशल और कड़ी मेहनत के बेहतरीन नमूने बन जाते हैं।
आइए, अब आपको चिनहट मिट्टी कला की बारीकियों और तकनीक से रूबरू कराते हैं:
चिनहट की मिट्टी के बर्तनों की कला, अपनी खास रंगत और डिज़ाइन के लिए पहचानी जाती है। यहाँ बनने वाले बर्तनों और सजावटी सामानों पर हरे और भूरे रंग का खास चमकीला ग्लेज़ (Glaze) चढ़ाया जाता है। यह ख़ूबसूरत डिज़ाइन सफ़ेद या हल्के क्रीम रंग की मिट्टी पर उकेरी जाती हैं। इन बर्तनों को 1180 से 1200 डिग्री सेल्सियस तक की उच्च तापमान भट्टियों में पकाया जाता है, जिससे वे मज़बूत और टिकाऊ बनते हैं। चिनहट के कारीगर मग, कटोरी, फूलदान, कप, तश्तरी, और खिलौनों के छोटे टी-सेट (Tea Set) जैसे कई उपयोगी और सजावटी सामान बनाते हैं। इनके डिज़ाइनों में अक्सर ज्यामितीय आकृतियाँ (Geometric Patterns) देखने को मिलती हैं, जो यहाँ के कारीगरों की निपुणता और मेहनत का प्रमाण हैं।
मज़े की बात यह है कि चिनहट के कुम्हारों को कभी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला। उन्होंने मौजूदा डिज़ाइनों को देखकर, आकृतियों और पैटर्न में सुधार करके और ग्राहकों की प्रतिक्रिया को शामिल करके सीखा। महिलाओं ने पेंटिंग में सहायता करके और नए डिज़ाइन बनाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चिनहट की यह पारंपरिक मिट्टी कला, न केवल लखनऊ की पहचान है, बल्कि यह भारतीय हस्तकला की समृद्ध धरोहर को भी दर्शाती है।
चिनहट पॉटरी को बचाने के लिए तत्काल मदद क्यों ज़रूरी है?
लखनऊ के चिनहट में एक समय, मिटटी के बर्तनों का बड़ा केंद्र हुआ करता था। यहाँ बनने वाले चमकीले टेराकोटा फूलदान (Terracotta Vase) , डिनर सेट (Dinner Set) और प्लांटर्स (Planters) दूर-दूर तक मशहूर थे। 1957 में स्थापित इस फ़ैक्ट्री (Factory) ने कई कारीगरों को रोज़गार दिया, लेकिन लगातार घाटे की मार झेलने के बाद 1994 में इसे बंद कर दिया गया। आज, यह जगह सिर्फ़ कुछ निजी मालिकों को किराए पर दी जाती है, जो बुनियादी मिट्टी के बर्तन बनाकर किसी तरह अपना गुज़र-बसर कर रहे हैं।
चिनहट के कुम्हारों की कमाई कितनी होती है ?
एक समय में यह जगह कला प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी, लेकिन अब यहाँ काम करने वाले कारीगर बेहद मुश्किल हालात में जी रहे हैं। पहले जो कलाकार अपने हुनर से शानदार मिट्टी के बर्तन बनाते थे, वे अब बिना किसी छुट्टी के, महज़ 5000 रुपये महीने की मामूली कमाई पर काम करने को मजबूर हैं। इसके अलावा, यहाँ पर फ़ैक्ट्रियों (Factories) के आस-पास कूड़े के ढेर और गंदगी ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है। स्थानीय दुकानदारों और कारीगरों का कहना है कि इस कला को बचाने के लिए, सरकार की ओर से कोई ठोस मदद नहीं मिली है । उत्पादों पर भारी करों के साथ-साथ कच्चे माल और कोयले की कमी के कारण कई कारीगरों ने इस पेशे को छोड़ दिया। इन चुनौतियों के कारण कई परिवारों का पारंपरिक व्यवसाय अब लगभग ख़त्म होने की कगार पर है।

क्या चिनहट पॉटरी को नया जीवन मिल सकता है ?
अगर सरकार और स्थानीय प्रशासन, इस ऐतिहासिक कला को बचाने के लिए क़दम उठाएं—जैसे करों में छूट, कारीगरों को अनुदान और बेहतर कामकाजी माहौल—तो यह उद्योग फिर से अपनी पहचान बना सकता है। चिनहट की यह कला, सिर्फ़ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत भी है, जिसे बचाना हम सभी की ज़िम्मेदारी है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/26vdhhsc
https://tinyurl.com/2b68wjuz
https://tinyurl.com/2ylmom9p
https://tinyurl.com/2dccb273
https://tinyurl.com/27srvv6q
https://tinyurl.com/276hehdz
मुख्य चित्र स्रोत: Pickpik
बड़ा इमामबाड़ा और छत्तर मंज़िल की मदद से समझते हैं लखनऊ में ऐतिहासिक सुरंगों का महत्त्व
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
Colonization And World Wars : 1780 CE to 1947 CE
08-04-2025 09:28 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत का वास्तुशिल्पीय गौरव मानी जाती हैं। इन्हीं में से एक है, लखनऊ का विश्व प्रसिद्ध बड़ा इमामबाड़ा! यह एक अनूठी और रहस्यमयी संरचना है, जिसकी भूलभुलैया और गुप्त सुरंगें, सदियों से इतिहास और किंवदंतियों का हिस्सा रही हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सुरंगें महज़ स्थापत्य कला का नमूना भर नहीं! वास्तव में इन्हें रक्षा, आपातकालीन निकास और रणनीतिक उद्देश्यों से बनाया गया था? इतिहास के पन्नों को पलटें, तो 2015 में छतर मंज़िल के जीर्णोद्धार के दौरान, यहाँ पर गोमती नदी से जुड़े भूमिगत जलमार्ग और कई गुप्त संरचनाएं खोजी गई! यह खोज साबित करती है कि लखनऊ का अतीत केवल शाही वैभव तक सीमित नहीं था, बल्कि उसके गर्भ में कई अनदेखे रहस्य भी छिपे थे। इसलिए आज के इस रोमांचक लेख में, हम इन रहस्यमयी सुरंगों और भूमिगत मार्गों की गहराइयों में उतरेंगे। इसके तहत हम जानेंगे कि बड़ा इमामबाड़ा की सुरंगों का निर्माण क्यों किया गया था! आगे हम जानेंगे कि इसकी वास्तुकला में ऐसी क्या विशेषताएँ हैं, जो इसे आज भी अद्भुत बनाती हैं। साथ ही, हम छतर मंज़िल के हाल ही में खोजे गए जलमार्गों की कहानी को समझेंगे! अंत में हम ला मार्टिनियर कॉलेज (La Martiniere College) की एक सुरंग के का रहस्य भी उजागर करेंगे!
क्या आपने कभी ऐसी इमारत के बारे में सुना है, जिसकी छत बिना किसी खंभे या बीम के टिकी हो? या फिर ऐसी भूलभुलैया, जिसमें कोई भी आसानी से रास्ता भटक सकता है? लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा सिर्फ़ एक इमारत नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक चमत्कार है, जिसे हर किसी को एक बार ज़रूर देखना चाहिए!
आइए आपको इसकी कुछ दिलचस्प ख़ूबियों से रूबरू कराते हैं:
गुरुत्वाकर्षण को चुनौती देने रही वास्तुकला: बड़ा इमामबाड़ा की सबसे खास बात यह है कि इसकी विशाल छत बिना किसी सहायता से टिकी है! यह दुनिया की सबसे बड़ी मेहराबदार संरचनाओं में से एक है। इसका केंद्रीय हॉल, जिसे असफ़ी मस्जिद भी कहते हैं, इसी अद्भुत वास्तुकला का जीता-जागता उदाहरण है।
भारत की सबसे बड़ी भूलभुलैया: इस इमामबाड़ा की दूसरी सबसे रोमांचक विशेषता इसकी मशहूऱ भूलभुलैया है। यह संकरी और अंधेरी गलियों का ऐसा रहस्यमयी जाल है, जिसमें कोई भी आसानी से रास्ता भटक सकता है। इसलिए इसे 'भूल भुलैया' कहा जाता है।
रहस्यमयी 489 दरवाज़े!: भूलभुलैया में कुल 489 दरवाज़े हैं, जो सभी देखने में एक जैसे लगते हैं। यही कारण है कि बिना गाइड के अंदर जाना थोड़ा जोखिम भरा हो सकता है! कई लोग इसमें रास्ता भूल जाते हैं, इसलिए हमेशा एक अनुभवी गाइड के साथ जाएं।
एक अनोखी सुरक्षा रणनीति: इस भूलभुलैया को इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि अगर कोई दुश्मन अंदर आ जाए, तो वह इसमें फंस जाए और राजा का खज़ाना सुरक्षित रहे। मज़ेदार बात यह है कि इन जटिल गलियारों की बनावट से इमारत के अंदर का तापमान हमेशा ठंडा बना रहता है, फिर चाहे बाहर कितनी भी गर्मी क्यों न हो!
मुहर्रम का ऐतिहासिक महत्व: बड़ा इमामबाड़ा सिर्फ़ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि शिया मुस्लिम समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। हर साल मुहर्रम के दौरान यहाँ भव्य जुलूस और समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिन्हें देखने के लिए हज़ारों लोग जुटते हैं।
कहा जाता है कि बड़ा इमामबाड़ा के परिसर में बनी जटिल भूलभुलैया की सुरंगें कभी दिल्ली, इलाहाबाद, गोमती नदी और फैज़ाबाद तक जाती थीं। माना जाता है कि नवाब और उनके दरबारी इनका इस्तेमाल गुप्त यात्राओं और आपातकालीन समय में बच निकलने के लिए करते थे।
हालांकि, अब सुरक्षा कारणों से इन सभी रास्तों को बंद कर दिया गया है, लेकिन इन सुरंगों की कहानियां आज भी लोगों को रोमांचित करती हैं।
साल 2015 में, गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्किटेक्चर (Government College of Architecture) की एक संरक्षण टीम ने छत्तर मंज़िल पैलेस में एक 350 फ़ीट लंबी भूमिगत सुरंग और जलमार्ग की खोज की। यह सुरंग महल की शानदार फ़्रांसीसी वास्तुकला का हिस्सा थी और इसे गोमती नदी से जोड़ा गया था। इससे यह साफ़ होता है कि उस दौर में महल में जलमार्ग का इस्तेमाल आम था।
आखिर इस सुरंग का उपयोग क्या था ?
संरक्षण टीम को सुरंग के अंदर ऐसी सीढ़ियाँ मिलीं, जो सीधे महल से पानी तक जाती थीं। इससे यह साबित होता है कि नवाब इस जलमार्ग के ज़रिए यात्रा करते थे। ऐसा माना जाता है कि वे इन सीढ़ियों से उतरकर छोटी नावों में सवार होते थे, जो उन्हें अलग-अलग स्थानों तक ले जाती थीं।
गर्मियों में जलमार्ग कैसे रखता था महल को ठंडा?
पहले, महल का मुख्य प्रवेश द्वार नदी के किनारे पर था और वहीं से एक जलमार्ग महल के तैखाने तक फैला था। यह तैखाना महल को गर्मियों में ठंडा रखने का काम करता था। लेकिन समय के साथ नदी का बहाव बदल गया और उसमें गाद जमने लगी, जिससे यह जलमार्ग बंद हो गया। इसके बाद, महल का मुख्य प्रवेश द्वार जमीनी स्तर पर बना दिया गया। छत्तर मंज़िल का यह जलमार्ग न सिर्फ़ यात्रा के लिए उपयोगी था, बल्कि यह गर्मियों में महल को ठंडा और सर्दियों में गर्म बनाए रखने में भी मदद करता था। इस खोज ने साबित कर दिया कि लखनऊ के नवाबी दौर की वास्तुकला कितनी उन्नत थी।
ला मार्टिनियर कॉलेज लखनऊ में ‘ लाट’ का रहस्य क्या है?
ला मार्टिनियर कॉलेज (La Martiniere College) भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित एक शिक्षा संस्थान है। ‘लाट’ (LAT) को ला मार्टिनियर एस्टेट की सबसे दिलचस्प और रहस्यमयी संरचनाओं में से एक माना जाता है। यह एक स्मारक टॉवर है, जो कॉन्स्टेंटिया पैलेस के पूर्वी प्रवेश द्वार को सुशोभित करता है। इसे लेकर कई रहस्यमयी कहानियाँ प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इसे क्लाउड मार्टिन के घोड़े की याद में बनाया गया था, तो कुछ इसे कॉन्स्टेंटिया से जुड़ी एक भूमिगत सुरंग का हिस्सा मानते हैं। वहीं, एक और रोचक धारणा यह है कि यही वह स्थान है जहाँ क्लॉड मार्टिन (Claude Martin) का दिल दफ़न किया गया था!
इसका रहस्य और गहरा क्यों हो गया ?
तकनीकी प्रगति के साथ, इस रहस्य ने और भी जटिल रूप ले लिया है। फ़ोटोग्राफ़ी (Photography) के माध्यम से पता चला है कि स्तंभ के शीर्ष पर संकरी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। अंदर एक पुली और मोटी चेन से जुड़ा एक तंत्र भी मौजूद है, जो कई सवाल खड़े करता है।
इसके अलावा, टॉवर की दीवारों में एक विशाल हुक लगा हुआ है, जिसका उद्देश्य अब तक स्पष्ट नहीं है। साथ ही, एक अतिरिक्त पुली प्रणाली भी देखी गई है, जिसे शायद मूल डिज़ाइन में नहीं रखा गया था, बल्कि बाद में जोड़ा गया।
हाल ही में, इस संरचना की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए इसे फिर से सक्रिय किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान कुछ नए रहस्य सामने आ सकते हैं। आने वाले समय में, ‘लाट’ के निर्माण, उद्देश्य और इससे जुड़ी अनसुलझी कहानियों के बारे में और भी रोचक जानकारियाँ मिलने की उम्मीद है! बड़ा इमामबाड़ा का विशाल परिसर, इसे और भी खास बनाता है। भूलभुलैया और मुख्य इमारत के अलावा यहाँ एक खूबसूरत मस्जिद, एक बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) और कई अन्य ऐतिहासिक संरचनाएँ भी मौजूद हैं। यह पूरा क्षेत्र, लगभग 50,000 वर्ग फ़ीट में फैला हुआ है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ा देता है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/2ye6j4dj
https://tinyurl.com/26vqb7om
https://tinyurl.com/24ruczfl
https://tinyurl.com/2clj5sjz
मुख्य चित्र: बड़ा इमामबाड़ा का प्रवेश द्वार (प्रारंग चित्र संग्रह)
आज हम समझेंगे लखनऊ की नदियों के जल स्रोत – ग्लेशियरों के बारे में
जलवायु व ऋतु
Climate and Weather
07-04-2025 09:28 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ के कई निवासियों को इस तथ्य के बारे में पता होगा कि, हमारे शहर में बहने वाली गोमती नदी, गंगा नदी की एक सहायक नदी (Tributary) है। गंगा के बारे में बात करते हुए, इसका उद्गम उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में गंगोत्री ग्लेशियर से होता है। क्या आप जानते हैं कि, कोई ग्लेशियर (Glacier) या हिमनद, हिम, बर्फ़, चट्टानों और तलछट का एक बड़ा, धीमी गति से चलने वाला द्रव्यमान होता है। हिमनद अत्यंत ठंडे क्षेत्रों या पहाड़ों में पाए जाते हैं, और बर्फ़ विस्तार भी बना सकते हैं। जानकारी की इस कड़ी में, आज हम हिमनदों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं। हम दुनिया भर में हिमनदों के प्रतिशत वितरण के बारे में पता लगाएंगे। इसके बाद, हम दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के हिमनदों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम हिमनदों के पारिस्थितिक और व्यावसायिक महत्व का पता लगाएंगे।
ग्लेशियर या हिमनद क्या होते है, और वे कहां मौजूद हैं?
कोई हिमनद, क्रिस्टलीय हिम, बर्फ़, चट्टानों, तलछट, और अक्सर तरल पानी का एक बड़ा व बारहमासी संचय होता है, जो भूमि पर उत्पन्न होता है। यह अपने स्वयं के वज़न तथा द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में, आगे या ढलान से नीचे गतिशील होता है। आमतौर पर, ग्लेशियर उन क्षेत्रों में मौजूद हैं (और ऐसे क्षेत्रों में बन सकते हैं), जहां:
1.औसत वार्षिक तापमान, ठंड बिंदु के करीब हो;
2.सर्दियों की वर्षा, बर्फ़ के महत्वपूर्ण संचय पैदा करती हो; और
3.वर्ष के बाकी समय के तापमान के कारण भी, पिछले सर्दियों के बर्फ़ संचय का पूर्ण नुकसान नहीं होता हो।
दुनिया भर में हिमनदों का वितरण:
हिमनद, ऑस्ट्रेलिया (Australia) को छोड़कर, पृथ्वी के सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं। दुनिया के विभिन्न महाद्वीपों और क्षेत्रों में, उनके वितरण का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से है:
•अंटार्कटिका (Antarctica) – 91%
•ग्रीनलैंड (Greenland) – 8%
•उत्तरी अमेरिका (North America) – 0.5 %
•एशिया (Asia) – 0.2%
•दक्षिण अमेरिका (South America), अफ़्रीका (Africa), यूरोप (Europe) और अन्य क्षेत्र– 0.1%
पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के हिमनदों की खोज:
•बर्फ़ विस्तार (Ice sheets): बर्फ़ के चादर जैसे विस्तार, इसके महाद्वीपीय पैमाने के द्रव्यमान होते हैं। उत्तरी उत्तर अमेरिका के अधिकांश भाग, 20,000 साल पुराने हिम युग से बर्फ़ से ढके हुए है।
•हिम कवच (Ice shield) और हिम छादन (Ice caps): हिम कवच और हिम छादन, हिम विस्तार से छोटे (50,000 वर्ग किलोमीटर या 19,305 वर्ग मील से कम क्षेत्रफ़ल) होते हैं। वे बर्फ़ के बड़े द्रव्यमान भी हैं, जो उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में एकत्रित होते हैं।
•सर्क (Cirque) और अल्पाइन हिमनद (Alpine Glaciers): अल्पाइन हिमनद, पहाड़ों में उच्च ऊंचाई पर मौजूद होते हैं। जब वे छोटे कटोरे जैसे आकार में, खड़ी ढलानों पर बनते हैं, तो उन्हें सर्क हिमनदों के रूप में जाना जाता है।
•घाटी हिमनद (Valley glaciers) और पीडमोंट हिमनद (Piedmont Glaciers): घाटी और पीडमोंट हिमनद, उच्च अल्पाइन क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं, और समतल भूमि पर समाप्त होते हैं। अक्सर ही, वे गहरे पथरीले घाटियों के माध्यम से बहते हैं, जो इसके दोनों तरफ़ बर्फ़ को सीमित करते हैं। समय के साथ, वे इन घाटियों को आकार देते हैं।
•टाइडवाटर (Tidewater) और मीठे पानी के हिमनद (Freshwater Glaciers): टाइडवाटर और मीठे पानी के हिमनद, भूमि पर बनते हैं लेकिन, पानी के स्रोत में समाप्त होते हैं। वे अक्सर हिमनद बर्फ़ के तैरते हुए टुकड़ों का उत्पादन करते हैं, जिसे हिमशैल के रूप में जाना जाता है।
हिमनदों का पारिस्थितिक और वाणिज्यिक महत्व:
1.) वन्यजीवों का समर्थन:
हिमनदों का पिघला हुआ पानी, झीलों, नदियों और महासागरों में पोषक तत्वों को वितरित करता है। ये पोषक तत्व, फ़ाइटोप्लैंकटन (Phytoplankton) या पादप प्लवक को खिलने में मदद कर सकते हैं, जो जलीय और समुद्री भोजन श्रृंखलाओं का आधार है। साथ ही, हिमनदों का धीरे–धीरे पिघलना, पौधों और जानवरों के जल धारा आवासों का समर्थन करता है। इसलिए, इनका अक्सर वन्यजीवों और मत्स्य पालन पर एक महत्वपूणरण प्रभाव होता है।
2.) जल स्रोत के रूप में कार्य:
कुछ क्षेत्रों में, हिमनद पिघलकर हमारे एवं अन्य प्राणियों के लिए, जीवन-निर्वाह पानी प्रदान करते हैं।
3.) समुद्र स्तर पर प्रभाव:
समुद्र स्तर को, हिमनद भी प्रभावित करते हैं। हालांकि हिमनद और हिम छादन, कुल भूमि बर्फ़ का केवल 0.5 प्रतिशत हैं, लेकिन पिछली शताब्दी के दौरान, समुद्र स्तर की वृद्धि में उनका योगदान, बर्फ़ विस्तार के योगदान से अधिक था।
4.) फ़सलों की सिंचाई:
स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) की रोन घाटी (Rhone Valley) में, किसानों ने सैकड़ों वर्षों तक हिमनदों के पिघले हुए पानी को अपने खेतों में योजित करके, फ़सलों की सिंचाई की है। एक तरफ़, एक स्थानीय किंवदंती, उत्तरी पाकिस्तान में ग्रामीणों की कहानी बताती है। वे चंगेज़ खान के आक्रमण को विफ़ल करने के लिए, हिमनदों को बढ़ाते थे। तो दूसरी तरफ़, हिंदू कुश, हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रृंखलाओं में, वसंत ऋतु के दौरान, धीमी गति से पानी छोड़ने के लिए, सर्दियों में पानी को संग्रहीत करने हेतु, हिमनदों को ग्राफ़्टिंग (Grafting) करने का इतिहास है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: गोमुख, गंगोत्री ग्लेशियर का दृश्य (Wikimedia)
चलिए, इस राम नवमी पर सुनते हैं भारत के कुछ लोकप्रिय राम भजनों को
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि
Sound I - Vibration to Music
06-04-2025 09:22 AM
Lucknow-Hindi

हमारे प्रिय शहर वासियों, क्या आप जानते हैं कि ‘रघुपति राघव राजा राम’ (जिसे राम धुन भी कहा जाता है) एक प्रकार का भजन है जिसे राग मिश्र गारा में विष्णु दिगंबर पलुस्कर (Vishnu Digambar Paluskar) द्वारा संगीतबद्ध किया गया है। यह सरल, दिल को छू लेने वाला भजन, भारत में लाखों लोगों का पसंदीदा भजन है। यहाँ तक कि महात्मा गांधी को भी यह भजन बहुत अधिक पसंद था। यह भजन उनके जीवन और समय के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा बन गया। ‘रघुपति राघव राजा राम’ ने विश्वस्तर पर भी बहुत लोकप्रियता पाई है। इस गीत के कुछ बोलों या पंक्तियों को फ़िल्म ‘भरत मिलाप’ (1942) के गीत "उठो उठो हे भारत", श्री राम भक्त हनुमान (1948) के गीत, जागृति (1954) के गीत ‘दे दी हमें आजादी’, पूरब और पश्चिम (1970) और फ़िल्म कुछ कुछ होता है (1998) के के गानों, कन्नड़ फ़िल्म गांधीनगर (1968), ब्रिटिश-भारतीय फ़िल्म ‘गांधी’ (1982), फ़िल्म गांधी, माई फ़ादर (My Father - 2007), सत्याग्रह (2013) और कृष 3 (2013) के एक गीत में भी शामिल किया गया था। इस भजन के भाव को 2006 की बॉलीवुड फ़िल्म, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ में महत्वपूर्ण रूप से दर्शाया गया है। पीट सीगर (Pete Seeger) ने अपनी एल्बम "स्ट्रेंजर्स एंड कजिन्स" (Strangers and Cousins) में "रघुपति राघव राजा राम" को शामिल किया और अपनी टेलीविज़न सीरीज़ रेनबो क्वेस्ट (Rainbow Quest) के एपिसोड 10 में इसका प्रदर्शन किया। तो आइए, आज हम, भारत के कुछ लोकप्रिय राम भजन सुनें। हम सबसे पहले अनूप जलोटा (Anup Jalota) द्वारा गाए गए रघुपति राघव राजा राम के लाइव प्रदर्शन को देखेंगे। फिर हम, सुलोचना बृहस्पति (Sulochana Brahaspati) के मधुर स्वरों में ‘रघुनंदन’ गीत का आनंद लेंगे। उसके बाद, हम एम एस सुब्बुलक्ष्मी (M. S. Subbulakshmi) द्वारा प्रस्तुत ‘श्री रामचंद्र कृपालु भजमा’ से रूबरू होंग। फिर हम, हम आशा भोसले (Asha Bhosle) द्वारा गाए गए ‘रोम रोम में बसने वाले राम’ नामक एक भजन को भी सुनेंगे। अंत में हम, दीप्ति सुरेश (Deepthi Suresh) द्वारा प्रस्तुत राम भक्ति साम्राज्य नामक एक कर्नाटक राम भजन पर नज़र डालेंगे।
संदर्भ:
अयोध्या के साथ-साथ, हमारे पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है राम नवमी का त्योहार
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
05-04-2025 09:29 AM
Lucknow-Hindi

भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का जन्मोत्सव, 'राम नवमी' के रूप में मनाया जाता है, जो पंचांग अर्थात हिंदू कैलेंडर में चैत्र माह के नौवें दिन पर पड़ता है। राम नवमी का यह त्योहार आमतौर पर मार्च या अप्रैल में होने वाली चैत्र नवरात्रि के अंत का प्रतीक भी है। यह धर्म, सदाचार और बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है, जो नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के महत्व की याद दिलाता है। हमारे अपने शहर लखनऊ में, राम नवमी अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, और भक्त मंदिरों में जाकर प्रार्थनाएं, भजन व कीर्तन और सत्संग आदि में भाग लेते हैं। तो आइए, आज राम नवमी के त्योहार की शुरुआत और इतिहास को समझते हुए जानते हैं कि श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में यह त्योहार कैसे मनाया जाता है। इसके साथ ही, हम राम नवमी के दौरान पर्यटन के लिए, भारत में कुछ ऐसे बेहतरीन स्थानों के बारे में जानेंगे, जो अपने राम नवमी के उत्सव के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा, हम राम नवमी के दौरान किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठानों और प्रथाओं एवं इस त्योहार के दौरान बनने वाले कुछ लोकप्रिय व्यंजनों के बारे में जानेंगे।
राम नवमी की शुरुआत और इतिहास:
राम नवमी के इस त्योहार को मनाने की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। वाल्मीकिकृत रामायण एवं अन्य पौराणिक ग्रंथों में भगवान राम के जन्म का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार राजा दशरथ को कोई संतान न होने पर, ऋषि वशिष्ठ के परामर्श पर उन्होंने वे पुत्र कामेष्टि यज्ञ करते हैं। अंततः, उन्हें पुत्र प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त होता है। उनकी बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से श्रीराम का जन्म होता है, जबकि अन्य दो रानियों कैकेयी से भरत तथा सुमित्रा से शत्रुघ्न और लक्ष्मण का जन्म होता है। और तभी से बड़ी ही धूमधाम से राम नवमी का त्योहार मनाया जाता है।
अयोध्या में राम नवमी के त्योहार का उत्सव:
प्रभु श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या को भारत के सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है। भगवान राम की जन्मस्थली होने के कारण, अयोध्या में राम नवमी को अत्यंत हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। राम नवमी के दौरान, यहां मंदिर, घर, दुकानें दीयों और मोमबत्तियों की भव्य कतारों से जगमगाते हैं। इसके साथ ही यहां पंडाल लगाए जाते हैं, एक भव्य जुलूस निकाला जाता है, जहाँ लोग झंडा लेकर जय श्री राम के नारे लगाते हैं। इस दिन लोग ढोल के साथ भजन और कीर्तन करते हैं। राम नवमी के दौरान, भक्तिमय संगीत और ढोल की निरंतर धारा बहती रहती है।
राम नवमी के दौरान भारत में दर्शनीय स्थल:
सीतामढ़ी, बिहार (Sitamarhi, Bihar): देवी सीता की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध, सीतामढ़ी में भी राम नवमी का आनंद बड़े उत्साह के साथ लिया जा सकता है। राम नवमी के दौरान, विशेष रूप से जानकी मंदिर की सुंदरता को देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त सीतामढ़ी आते हैं। सीतामढ़ी में, घरों को दीपों से रोशन किया जाता है, और पवित्र गीतों का जाप पूरे सीतामढ़ी में गुंजायमन होता है। यहां विभिन्न राज्यों से लोग अनुष्ठानों में भाग लेने और पूरी भक्ति के साथ राम नवमी का आनंद लेने के लिए आते हैं। त्योहार के दौरान लगने वाले छोटे मेले इस खूबसूरत जगह का आकर्षण और भी बढ़ा देते हैं।
भद्राचलम, तेलंगाना (Bhadrachalam, Telangana) : गोदावरी नदी के तट पर स्थित, अपने 17वीं सदी पुराने सीता रामचन्द्रस्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध भद्राचलम, तेलंगाना का एक छोटा सा शहर है, और भारत में राम नवमी देखने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है। इसे दक्षिण अयोध्या भी कहा जाता है। भद्राचलम में इस दिन को भगवान राम और देवी सीता के विवाह की वर्षगांठ 'सीताराम कल्याणम' के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि, यह उत्सव यहाँ नौ दिनों तक चलता है, नवमी आखिरी दिन राम और सीता के विवाह के साथ मनाई जाती है।

रामेश्वरम, तमिलनाडु (Rameswaram, Tamil Nadu) : भारत के पवित्र शहरों में से एक और विशेष रूप से रामायण से जुड़े होने के लिए प्रसिद्ध रामेश्वरम में राम नवमी का उत्सव अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है।हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि रामेश्वरम वही स्थान है, जहां वानरसेना ने "राम सेतु" बनाया था और जहां राम ने रावण को मारने का पाप धोने के लिए भगवान शिव की पूजा की थी।

राम नवमी की पूर्वसंध्या के दौरान, रामेश्वरम में श्री कोठंडारामस्वामी मंदिर की सुंदरता देखने लायक होती है। इस मंदिर को रोशनी और फूलों से अच्छी तरह सजाया जाता है, और यहां राम और सीता के विवाह समारोह को प्रस्तुत किया गया है। भक्त विवाह समारोह में शामिल होकर, भगवान राम के नाम का जाप करते हुए आध्यात्मिकता से सराबोर हो जाते हैं।
वोंटिमिट्टा, आंध्र प्रदेश (Vontimitta, Andhra Pradesh): वोंटिमिट्टा आंध्र प्रदेश का एक छोटा सा शहर है, जहां राम नवमी का उत्सव बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। यह शहर अपने 450 साल पुराने श्री कोडंडाराम स्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण दो लुटेरों वोंटुडु और मित्तुडु ने किया था, जो, माना जाता है कि, मंदिर के निर्माण के बाद पत्थर में बदल गए थे। वे बाद में भगवान राम के अनुयायी बन गए। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम द्वारा आयोजित, यहां राम नवमी उत्सव 9 दिनों के वार्षिक ब्रम्होत्सवम के हिस्से के रूप में मनाया जाता है।
शिरडी, महाराष्ट्र (Shirdi, Maharashtra): राम नवमी की पूर्व संध्या पर, घरों से लेकर बाज़ारों तक, शिरडी में सभी स्थानों को चमचमाती रोशनी और रंगीन झंडों से सजाया जाता है। शिरडी में राम नवमी का उत्सव विभिन्न समारोहों के साथ जारी रहता है, जिसमें द्वारकामाई में झंडा बदलना, गेहूं की नई बोरी बदलना और भी बहुत कुछ शामिल है! यहां यह उत्सव 3 दिनों तक चलता है।
राम नवमी के दौरान किए जाने वाले महत्वपूर्ण अनुष्ठान:
प्रार्थना और रामायण पाठ: राम नवमी के दिन भक्त जल्दी उठकर, स्नान आदि से निवृत होकर भगवान राम की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन रामायण के छंदों का पाठ किया जाता है।
उपवास: कई भक्त भक्ति और शुद्धि के प्रतीक के रूप में राम नवमी पर उपवास रखते हैं। इस दौरान, जहां कुछ लोग पूरे दिन का उपवास करते हैं, वहीं कुछ अन्य केवल फलाहार भी करते हैं।
भगवान राम की मूर्ति का अभिषेकम: इस दिन घरों और मंदिरों में दूध, शहद और घी से भगवान राम की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु श्री राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कीर्तन और भजन: भगवान राम के प्रति प्रेम और भक्ति व्यक्त करने के लिए भक्ति गीत और भजन गाए जाते हैं, जिससे एक जीवंत और आध्यात्मिक वातावरण बन जाता है।
प्रसादम: पूजा के बाद, भक्त प्रसाद साझा करते हैं। यह सामुदायिक जुड़ाव और साझाकरण को बढ़ावा देता है।
शोभा यात्राएँ: कई शहरों में भव्य जुलूस निकाले जाते हैं, जिनमें रामायण के दृश्यों को प्रदर्शित किया जाता है।
सुंदरकांड का पाठ: राम नवमी पर भगवान राम के प्रति हनुमानजी की अटूट भक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जगह-जगह सुंदरकांड का पाठ किया जाता है।
राम नवमी पर बनने वाले कुछ लोकप्रिय व्यंजन:
आलू-पूरी: राम नवमी के उत्सव को मनाने के लिए, लोग अपने घरों में आलू-पूरी बनाते हैं। आलू की चटपटी सब्ज़ी के साथ पूरी का स्वाद लोगों के जश्न को दर्शाता है।
सिंघारा-पूरी: सिंघारा पूरी आलू और सिंघाड़े के आटे से बनाई जाती है। विशेष रूप से व्रत के दौरान, आलू की सब्ज़ी या दही के साथ इसका आनंद लिया जाता है।
सूजी का हलवा: सूजी का हलवा, शुद्ध घी और सूखे मेवों की प्रचुर मात्रा के साथ बनाया जाता है, जो उत्तर भारत में अधिकांश घरों में भोजन का मुख्य व्यंजन होता है।
काले चने: सूखे मसालों के साथ पकाए गए काले चने, इस त्योहार की विशेषता हैं।
चावल की खीर: एक अन्य व्यंजन जो विशेष रूप से नवमी के त्योहार के दौरान बनाया जाता है वो चावल की खीर है, जिसका पूरी के साथ आनंद लिया जाता है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: प्रभु श्री राम के जन्म का दृश्य और राम नवमी का उत्सव (Wikimedia, flickr)
लखनऊ की शानदार फ़ोटोग्राफ़ी के लिए फ़ोटोग्राफ़रों को सीखनी होगी पैटर्न और फ़्रेमिंग !
द्रिश्य 1 लेंस/तस्वीर उतारना
Sight I - Lenses/ Photography
04-04-2025 09:37 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ में फ़ोटोग्राफ़रों और फ़ोटोग्राफ़ी प्रेमियों के लिए, यह जानना कि अपने सब्जेक्ट(विषय) को कैसे फ़्रेम और व्यवस्थित किया जाए , तस्वीरों में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। चाहे आप बड़ा इमामबाड़ा, रूमी दरवाज़ा या शांतिपूर्ण गोमती नदी की सुंदरता अपने कैमरे में क़ैद कर रहे हों, आपके विषय की स्थिति यह तय करती है कि वह फ़ोटो कैसे दिखेगा और महसूस होगा । तिहाई का नियम (Rule of Thirds), अग्रणी लाइनों (Leading Lines) और समरूपता (Symmetry) जैसी सरल तकनीकों का उपयोग करने से, दर्शक की आंखों को सही दिशा में निर्देशित करने में मदद मिलती है और आपकी तस्वीरों को अधिक संतुलित तथा दिलचस्प और आकर्षक बनती है।
आज, हम फ़ोटोग्राफ़ी की रचना पर चर्चा करेंगे, तथा आकर्षक छवियों को बनाने में इसकी भूमिका को समझेंगे। हम संतुलित फ़्रेमिंग के लिए एक मौलिक दिशानिर्देश – ‘तिहाई के नियम’ का भी पता लगाएंगे। इसके बाद, हम फ़ोटोग्राफ़ी में अग्रणी लाइनों को देखेंगे, जो दर्शकों की आंखों को निर्देशित करने में मदद करती हैं। हम दृश्य रुचि को बढ़ाने में समरूपता और पैटर्न के महत्व पर भी चर्चा करेंगे। अंत में, हम फ़ोटोग्राफ़ी में नकारात्मक स्थान की जांच करेंगे, और देखेंगे कि, यह किसी रचना में गहराई और प्रभाव कैसे जोड़ता है।
फ़ोटोग्राफ़ी में रचना(Composition) क्या है?
रचना का मुख्य उद्देश्य, दर्शक द्वारा फ़ोटो को देखने के व्यवहार को प्रभावित करना है। फ़ोटोग्राफ़ी की रचना उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी मानव शरीर में कंकाल । यह फ़ोटो की सभी विशेषताओं को एक साथ रखती है; विभिन्न दृश्य तत्वों के वज़न का समर्थन करती है; और फ़्रेम लुक (frame look) को विविध बनती है। रचना एक तस्वीर की कथा के लिए भी ज़िम्मेदार होती है। यह तय करती है कि, विभिन्न तत्व कहां रहने चाहिए; तत्वों के बीच की दूरी क्या होगी; और क्या बड़ा, अधिक रंगीन या उज्जवल होगा। इसका उद्देश्य एक सौंदर्यपूर्ण रूप से सुखद छवि बनाना है।
तिहाई का नियम (Rule of Thirds)-
तिहाई का नियम, इष्टतम रचना के लिए फ़्रेम को विभाजित करने का एक तरीका है। इसमें समान रूप से, दो समान क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर ग्रिडलाइन (Gridlines) के बीच, फ़्रेम को नौ बराबर भागों में विभाजित करना शामिल है, जो तीन-तीन-तीन का ग्रिड बनाता है। छवि के भीतर संतुलन और प्रवाह बनाने के लिए, संरचनात्मक तत्वों को रखा जाना चाहिए, जहां ग्रिड की ये पंक्तियां आपकी छवि को प्रतिच्छेद या खंडित करती हैं।
इसके पीछे विचार, दृश्य के महत्वपूर्ण तत्वों को एक या अधिक लाइनों के साथ, या जहां लाइनें प्रतिच्छेद करती हैं(वहां), रखना है। हम सामान्यतः मुख्य विषय को बीच में रखना चाहते हैं। तिहाई के नियम का उपयोग करके, विषय को केंद्र से परे रखने से, अधिक आकर्षक रचना का नेतृत्व नहीं किया जाएगा।
फ़ोटोग्राफ़ी में अग्रणी लाइनें(Leading Lines) क्या होती हैं?
अग्रणी लाइनें ऐसी रेखाएं हैं, जो छवि के माध्यम से, विषय की ओर दर्शक की दृष्टि को खींचती हैं। वे सीधे या घुमावदार, क्षैतिज, ऊर्ध्वाधर या विकर्ण और केंद्रीय भी हो सकती हैं।
दृश्य के भीतर किसी भी तत्व द्वारा अग्रणी लाइनें बनाई जा सकती हैं, जैसे कि – सड़कें, नदियां, पुल, इमारतें या यहां तक कि लोग भी। महत्वपूर्ण बात यह है कि, वे दर्शक के लिए एक दृश्य पथ बनाते हैं, जो उन्हें तस्वीर के विषय की ओर ले जाते हैं, और छवि के भीतर गहराई और गति की भावना पैदा करती हैं।
फ़ोटोग्राफ़ी में समरूपता(Symmetry) और पैटर्न(Patterns) क्यों महत्वपूर्ण हैं?
समरूपता, एक सामंजस्यपूर्ण संतुलन बनाना है, जिससे एक छवि के दोनों पक्ष(बाएं–दाएं, ऊपरी–निचला या तिरछे) एक दूसरे के साथ समानता में आ जाते हैं। इससे सब कुछ साफ़–सुथरा और व्यवस्थित दिखता है। जब चीज़ें पूरी तरह से समान बनती या दिखती हैं, तो यह स्थिरता, शांति और यहां तक कि विस्मय की भावनाओं को बढ़ावा दे सकती है।
जबकि, फ़ोटोग्राफ़ी में पैटर्न, एक तस्वीर के भीतर आकृतियों, रंगों या रंगत की सुंदरता को बार–बार पकड़ने और कैद करने के बारे में हैं। इसे एक विज़ुअल बीट(Visual beat) के रूप में सोचें, जो चित्र के माध्यम से दर्शक की दृष्टि को निर्देशित करता है, तथा गति और सद्भाव की भावना पैदा करता है। ये आवर्ती तत्व होते है, जो तस्वीरों में महत्व और गहराई की एक अतिरिक्त परत जोड़ते हैं। पैटर्न के कारण, तस्वीरें हमारी दृष्टि में अधिक आकर्षक और मनभावन बनती हैं।
फ़ोटोग्राफ़ी में नकारात्मक स्थान(Negative Space)-
नकारात्मक स्थान, किसी फ़ोटो के भाव और कहानी को गहराई से प्रभावित कर सकता है। कई मामलों में, नकारात्मक स्थान, मनोदशा या भावना को दर्शाने का एक प्रभावी माध्यम होती है। यह एक संदर्भ प्रदान करने के रूप में कार्य कर सकता है, व हल्कापन पैदा कर सकता है। यह एक तस्वीर में सकारात्मक भावनाओं को भी मज़बूत कर सकता है; विषय की भावनाओं पर ज़ोर दे सकता है। हालांकि, यह अकेलेपन या निराशा की भावना भी जोड़ सकता है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: लखनऊ में स्थित हार्डिंग पुल (प्रारंग चित्र संग्रह)
प्रयागराज और लखनऊ के रिवरफ़्रंट बयां करते हैं आस्था, इतिहास और आधुनिक विकास की कहानी
नदियाँ
Rivers and Canals
03-04-2025 09:22 AM
Lucknow-Hindi

प्रयागराज में लंबे समय तक चला भव्य महाकुंभ आखिरकार संपन्न हो गया! लेकिन क्या आपको पता है कि यहां का रिवरफ़्रंट प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध रहा है? यह इलाका, संगम क्षेत्र के आसपास स्थित है, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। वैदिक काल, यानी करीब 1000 ईसा पूर्व से ही इस जगह का गहरा ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व रहा है।
अगर आप प्रयागराज के इस इलाके को ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि इसकी आबादी मुख्य रूप से एक ओर केंद्रित है। यहाँ बसावट पारंपरिक नियमों का पालन करते हुए पूर्व दिशा में फैली हुई है, जो भारत में रहने और शहर बसाने की पुरानी परंपराओं को दर्शाता है। दूसरी ओर, लखनऊ का गोमती रिवरफ़्रंट एक आधुनिक विकास परियोजना का हिस्सा है। हालाँकि गोमती नदी प्राचीन काल से लखनऊ के इतिहास से जुड़ी हुई है, लेकिन इसका व्यवस्थित सौंदर्यीकरण और शहरीकरण हाल ही में शुरू हुआ। वर्ष 2015 में इस परियोजना की नींव रखी गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य नदी के किनारों को सुंदर और विकसित बनाना था, ताकि लोग यहाँ सैर कर सकें और शहर को एक नया आकर्षण मिल सके।
इस लेख में हम इन दोनों रिवरफ़्रंट को विस्तार से समझेंगे। सबसे पहले, हम प्रयागराज के त्रिवेणी संगम के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को जानेंगे, जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। इसके बाद, हम लखनऊ के गोमती रिवरफ़्रंट के विकास और इसकी विशेषताओं पर चर्चा करेंगे, जो आधुनिकता और शहर नियोजन का एक अनोखा उदाहरण है।
भारत के सबसे पवित्र और ऐतिहासिक घाटों में से एक त्रिवेणी संगम, प्रयागराज में स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी मिलती हैं। धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से यह संगम बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहाँ आते हैं, क्योंकि इसे मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति का स्थान माना जाता है।
हिंदू धर्मशास्त्रों में वर्णन मिलता है कि त्रिवेणी संगम में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही आस्था इस स्थान को दिव्यता से भर देती है। कई साधु-संत और श्रद्धालु यहाँ स्नान करके अपने जीवन को पवित्र बनाने की मान्यता रखते हैं।
त्रिवेणी संगम सिर्फ़ एक नदी का संगम नहीं, बल्कि कई पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ स्थान भी है। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के बाद पहला यज्ञ यहीं पर किया था। यही कारण है कि इस स्थान को अत्यंत शुभ और शक्तिशाली माना जाता है।
भगवान राम से भी यह स्थान जुड़ा हुआ है। रामायण के अनुसार, जब भगवान राम वनवास में थे, तब उन्होंने त्रिवेणी संगम पर आकर प्रार्थना की थी। यही नहीं, संगम का संबंध समुद्र मंथन की कथा से भी है। मान्यता है कि, जब भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ रहे थे, तब कुछ अमृत की बूँदें त्रिवेणी संगम में गिर गईं। यही कारण है कि यह स्थान हिंदू धर्म में इतना पवित्र माना जाता है।
त्रिवेणी संगम सिर्फ़ एक धार्मिक स्थान नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आस्था का प्रतीक भी है। हर साल कुंभ और माघ मेले के दौरान यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। ऐसा माना जाता है कि इन विशेष अवसरों पर संगम में स्नान करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और आत्मा शुद्ध हो जाती है।
आइए अब आपको लखनऊ के गोमती रिवरफ़्रंट की सैर पर ले चलते हैं:
गोमती रिवरफ़्रंट लखनऊ की सबसे खूबसूरत और आकर्षक जगहों में से एक है। यह गोमती नदी के किनारे फैला एक शानदार स्थल है, जहाँ लोग सैर-सपाटे और सुकून भरे पलों का आनंद ले सकते हैं।
यहाँ हरियाली से भरे बगीचे, खूबसूरत मंडप, आरामदायक बैठने की जगहें और साफ-सुथरे रास्ते मौजूद हैं। खाने-पीने के कई स्टॉल भी हैं, जहाँ घूमते-फिरते स्वादिष्ट व्यंजनों का मज़ा लिया जा सकता है। लगभग, 2 किलोमीटर तक फैला यह रिवरफ़्रंट लखनऊ के बीचों-बीच स्थित है, जो इसे शहरवासियों और पर्यटकों के लिए आसानी से पहुंचने योग्य बनाता है।
जो लोग सुबह-शाम टहलना पसंद करते हैं, उनके लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं। चारों ओर हरियाली, खूबसूरत मूर्तियाँ, रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ और संगीतमय फ़व्वारे इस स्थान की सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं। साथ ही, गोमती नदी की बहती लहरें इस जगह को और भी शांतिपूर्ण और सुकून भरा बना देती हैं।
अगर आप गोमती रिवरफ़्रंट घूमने जा रहे हैं, तो इसके आसपास मौजूद इन ऐतिहासिक और दिलचस्प जगहों की सैर भी ज़रूर करें:
- नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान
- बड़ा इमामबाड़ा
- ब्रिटिश रेजीडेंसी कॉम्प्लेक्स
अगर आप गोमती रिवरफ़्रंट जाना चाहते हैं, तो यहाँ पहुँचने के कई आसान रास्ते हैं:
हवाई मार्ग – लखनऊ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा यहाँ से करीब 26 किमी दूर है।
रेल मार्ग – लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन 7 किमी की दूरी पर है।
मेट्रो मार्ग – सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन लेखराज मार्केट है, जो यहाँ से लगभग 2 किमी दूर स्थित है।
आइए, अब जानते हैं कि गोमती रिवरफ़्रंट विकास की ज़रूरत क्यों थी?
1. बाढ़ से बचाव के लिए तटबंधों का निर्माण: 1970 के दशक में लखनऊ में भीषण बाढ़ आई थी, जिससे शहर को भारी नुकसान हुआ। इस खतरे से निपटने के लिए गोमती नदी के दोनों किनारों पर ऊँचे तटबंध बना दिए गए। इससे शहर को बाढ़ से तो सुरक्षा मिली, लेकिन नदी के प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्र में बड़ा बदलाव आ गया।
2. प्रदूषण की बढ़ती समस्या: गोमती में कुल 40 प्राकृतिक नाले गिरते थे, जिनमें से 23 प्रमुख थे। पहले ये नाले बारिश के पानी को नदी तक पहुँचाने और भूजल स्तर बनाए रखने में मदद करते थे। लेकिन समय के साथ ये नाले गंदगी और कचरे के अड्डे बन गए। आवासीय और औद्योगिक कचरे के कारण नदी का पानी गंभीर रूप से प्रदूषित हो गया।
3. शहरीकरण और नदी का सिकुड़ता दायरा: समय के साथ गोमती का बाढ़ क्षेत्र और आसपास की उपजाऊ ज़मीन पर शहर फैलने लगा। गोमती नगर और त्रिवेणी नगर जैसे बड़े आवासीय क्षेत्र बसाए गए। 1970 के दशक के बाद से नदी का जलस्तर लगातार गिरता गया, और 2016 तक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी।
गोमती रिवरफ़्रंट: नदी और लखनऊ के लिए नुकसानदायक कैसे बना?
1. प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा: पहले गोमती नदी, अपने बाढ़ के मैदानों में उपजाऊ गाद (silt) जमा करती थी, जिससे खेतों को पोषण मिलता था। लेकिन तटबंधों और निर्माण कार्यों के कारण यह प्रक्रिया रुक गई। नतीजा यह हुआ कि, इस नदी के तल में गाद जमा होती रही और इसकी गहराई, 1960 की तुलना में 1.5 मीटर तक कम हो गई।
2. शहर में जलभराव की समस्या बढ़ी: पहले बारिश का पानी आसानी से नदी में चला जाता था। लेकिन तटबंधों ने जल निकासी प्रणाली बिगाड़ दी। अब बारिश का पानी शहर में ही जमा हो जाता है, जिससे कई इलाकों में भारी जलभराव होने लगा।
3. नदी का भूजल से संपर्क टूट गया: रिवरफ़्रंट प्रोजेक्ट के तहत नदी के किनारों पर 16 मीटर गहरी मज़बूत दीवार ( डायफ़्राम वॉल (Diaphragm wall)) बनाई गई। इससे गोमती नदी अपने प्राकृतिक जलग्रहण क्षेत्र से कट गई। पहले नदी भूजल पर निर्भर थी, लेकिन अब उसका पानी धीरे-धीरे सूखने लगा है।
4. नदी का पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) तबाह हो गया: रिवरफ़्रंट प्रोजेक्ट के दौरान नदी को कंक्रीट से पाट दिया गया, जिससे आर्द्रभूमि (wetlands) और प्राकृतिक खाइयाँ खत्म हो गईं। ये क्षेत्र पहले कई तरह के पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं का घर थे।
2013-14 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि रिवरफ़्रंट साइट के निचले हिस्से में पहले 8 तरह की मछलियाँ पाई जाती थीं। लेकिन प्रोजेक्ट के बाद वहाँ सिर्फ़ 1 मछली प्रजाति बची।
इसके अलावा, नदी के डाउनस्ट्रीम इलाके में मछलियों की कुल संख्या और उनका बायोमास (शारीरिक भार) 85% तक घट चुका है।
कुल मिलाकर गोमती रिवरफ़्रंट विकास से शहर को एक सुंदर पर्यटन स्थल तो मिला, लेकिन इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस परियोजना ने न सिर्फ़ गोमती नदी के इकोसिस्टम को तबाह कर दिया, बल्कि शहर के जलप्रबंधन को भी खराब कर दिया।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/2a2jazk5
https://tinyurl.com/28hsyt3z
https://tinyurl.com/2dfczbvo
https://tinyurl.com/23pbr8oq
मुख्य चित्र: 2019 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में यमुना तट पर लोगों की भीड़ (WIkimedia)
लखनऊ में ट्रैफ़िक जाम के असली कारण – बढ़ती आबादी या खराब सड़कें ?
नगरीकरण- शहर व शक्ति
Urbanization - Towns/Energy
02-04-2025 09:22 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ में ट्रैफ़िक जाम एक बढ़ती हुई समस्या बन गई है, जो लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को कई तरह से प्रभावित कर रही है। शहर में गाड़ियों की बढ़ती संख्याऔर आबादी बढ़ने के कारण से सड़कों पर भीड़भाड़ लगातार बढ़ रही है, विशेष रूप से व्यस्त इलाकों में। लंबे ट्रैफ़िक जाम के कारण लोगों को यात्रा में देरी का सामना करना पड़ता है, पेट्रोल-डीज़ल ज़्यादा खर्च होता है और हवा में भी प्रदूषण बढ़ता है। इससे यात्रियों के लिए सफ़र करना मुश्किल हो जाता है। लोग ज़्यादा समय सड़कों पर फंसे रहने से, उनके काम करने का समय कम हो जाता है और उनकी ज़िंदगी पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं, ट्रैफ़िक से होने वाला धुआं और प्रदूषण सेहत के लिए भी हानिकारक होता है, जिससे सांस संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।
इस समस्या को हल करने के लिए बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट (Public Transport), सही ट्रैफ़िक मैनेजमेंट (Traffic Management) और अच्छी सड़क योजना की ज़रूरत है, ताकि शहर में लोगों की ज़िंदगी आसान हो सके।
आज हम ट्रैफ़िक जाम के बारे में समझेंगे कि यह क्या होता है और कैसे इसकी वजह से सड़कें धीमी या पूरी तरह से बंद हो जाती हैं। फिर, हम जानेंगे कि ट्रैफ़िक जाम के मुख्य कारण पर चर्चा करेंगे, जैसे ज़रूरत से ज़्यादा आबादी और खराब सड़कें। इसके बाद, हम देखेंगे कि ट्रैफ़िक जाम का लोगों पर क्या असर पड़ता है, जैसे ज़्यादा वायु प्रदूषण और सफ़र में देरी। आखिर में, हम उन तरीकों पर चर्चा करेंगे जिनसे ट्रैफ़िक की समस्या को कम किया जा सकता है, जैसे बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और स्मार्ट ट्रैफ़िक मैनेजमेंट।
ट्रैफ़िक जाम क्या है?
ट्रैफ़िक जाम तब होता है जब सड़कों पर अत्यधिक गाड़ियाँ होती हैं और या तो वे धीरे-धीरे चलती हैं या रुक जाती हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे खराब सड़कें, अव्यवस्थित ड्राइविंग, और शहर की योजना। भारत के बड़े शहरों में ट्रैफ़िक जाम आम समस्या बन गई है, जहाँ लोग अक्सर लंबा समय सड़कों पर बर्बाद करते हैं और तनाव महसूस करते हैं।
ट्रैफ़िक जाम के कारणों को समझना बेहद ज़रूरी है क्योंकि इससे हम जान सकते हैं कि समस्या कहां है और इसका हल कैसे निकाला जा सकता है। जब सरकार और यातायात के योजनाकार इन कारणों को समझते हैं, तो वे ट्रैफ़िक कम करने और यात्रा को आसान बनाने के लिए अच्छे कदम उठा सकते हैं।
ट्रैफ़िक जाम के कारण
ट्रैफ़िक जाम कई कारणों से हो सकता है, जैसे:
- आबादी का बढ़ना और तेज़ी से शहरीकरण ट्रैफ़िक जाम का एक बड़ा कारण है। जैसे-जैसे लोग शहरी इलाकों में आकर बसते हैं, सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ जाती है, जो मौजूदा सड़क क्षमता से अधिक हो जाती है और ट्रैफ़िक जाम बढ़ने लगता है।
- सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर भी ट्रैफ़िक जाम के बढ़ने का एक मुख्य कारण हैं। अगर सड़कें सही तरीके से नहीं बनाई जातीं या उनकी उचित देखभाल नहीं की जाती, तो ट्रैफ़िक जाम की समस्या और भी बढ़ जाती है। जिन सड़कों पर ज़्यादा गाड़ियों का दबाव होता है, वहां अक्सर जाम लगने लगते हैं, और ये गाड़ियाँ रुक जाती हैं या बहुत धीमी गति से चलने लगती हैं।
- गलत मार्ग प्रबंधन भी ट्रैफ़िक जाम का कारण हो सकता है। अगर ट्रैफ़िक सिग्नल (Traffic Signal) ठीक से काम नहीं करते, सिग्नल का तालमेल नहीं होता, या आधुनिक तकनीक का उचित उपयोग नहीं होता, तो ट्रैफ़िक सुचारू रूप से नहीं चल पाता और जाम बढ़ने लगता है।
- बाहरी कारण भी ट्रैफ़िक जाम का कारण बन सकते हैं, जैसे खराब मौसम और सड़क पर दुर्घटनाएँ। दुर्घटनाएँ के कारण सड़कें बंद हो जाती हैं और ट्रैफ़िक में रुकावटें आ जाती हैं। इसके अलावा, खराब मौसम भी सड़क की क्षमता को कम कर देता है और दृश्यता को घटा देता है, जिससे ट्रैफ़िक धीमा हो जाता है।
इसलिए, ट्रैफ़िक जाम को हल करने के लिए इन सभी कारणों को समझना ज़रूरी है।
ट्रैफ़िक जाम के प्रभाव
ट्रैफ़िक जाम का समाज और पर्यावरण पर गहरा असर पड़ता है:
- आर्थिक प्रभाव: ट्रैफ़िक जाम का असर लोगों और व्यापारों पर पड़ता है। समय की बर्बादी साथ-साथ ईंधन भी खर्च होता है और लोगों की उत्पादकता प्रभावित होती हैं। साथ ही, ट्रैफ़िक की वजह से सामान की आवाजाही में भी रुकावट आती है, जिससे व्यापार प्रभावित होता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: ट्रैफ़िक जाम से वायु प्रदूषण बढ़ता है। जाम में फ़सी गाड़ियाँ हवा में हानिकारक गैसें छोड़ती हैं, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब होती है और लोगों की सेहत पर असर पड़ता है। इससे ईंधन का भी ज़्यादा इस्तेमाल होता है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है और मौसम में बदलाव का कारण बनता है।
- स्वास्थ्य और कल्याण पर असर: ट्रैफ़िक जाम से लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। गाड़ियों से निकलने वाले धुएं और प्रदूषित हवा के कारण साँस की बीमारियाँ, एलर्जी, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है क्योंकि लोग जाम में फंसे रहते हैं, जिससे तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।
- सामाजिक प्रभाव: ट्रैफ़िक जाम लोगों की दिनचर्या को भी बिगाड़ देता है। लोग परिवार के साथ समय नहीं बिता पाते और अपनी व्यक्तिगत गतिविधियाँ भी नहीं कर पाते। साथ ही, ट्रैफ़िक जाम गरीब और ज़रूरतमंद लोगों के लिए और भी बड़ी समस्या बन जाता है, क्योंकि उन्हें आवश्यक सेवाओं, जैसे अस्पतालों और सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाई होती है।।
इसलिए, ट्रैफ़िक जाम के असर को समझना ज़रूरी है ताकि हम बेहतर सड़कें, योजना और पर्यावरण के अनुकूल ट्रांसपोर्ट (Transport) व्यवस्था बना सकें और जाम को कम कर सकें।
ट्रैफ़िक जाम से निपटने के कुछ प्रभावी तरीके
ट्रैफ़िक जाम से बचने और इसे कम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर हम अपनी रोज़ की ज़िंदगी को आसान बना सकते हैं:
1. अपनी यात्रा की योजना बनाएं और समय का सही उपयोग करें
- ट्रैफ़िक से बचने के लिए अपना कार्य समय बदलें और यदि संभव हो तो घर से काम करें। इससे आप पीक आवर (जब ट्रैफ़िक सबसे ज़्यादा होता है) से बच सकते हैं।
- इसके अलावा, ट्रैफ़िक ऐप्स (Traffic Apps) और नेविगेशन टूल्स (Navigation Tools) का इस्तेमाल करें, जैसे गूगल मैप्स (Google Maps), जो आपको जाम से बचने के लिए वैकल्पिक रास्ते दिखा सकते हैं। ये ऐप्स आपको ट्रैफ़िक की स्थिति और रोड के बारे में वास्तविक जानकारी भी देते हैं।
2. परिवहन के तरीके को चुस्त बनाएं
- छोटी दूरी के लिए पैदल चलना या साइकिल चलाना न केवल सेहत के लिए फ़ायदेमंद हैसिर्फ़, बल्कि यह प्रदूषण को भी कम करता है।
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे बस, मेट्रो, और ट्रेनें का अधिक उपयोग करें। ये निजी गाड़ियों तुलना में अधिक किफायती और पर्यावरण के लिए बेहतर होती हैं। इससे सड़क पर गाड़ियों की संख्या घटेगी और ट्रैफ़िक कम होगा।
कारपूलिंग और राइड-शेयरिंग का अभ्यास करें
- अगर आप किसी को जानते हैं जो आपके रास्ते पर जाता हो, तो उनके साथ सफ़र साझा करें। इससे न सिर्फ़ ट्रैफ़िक कम होगा, बल्कि पेट्रोल का खर्च भी बच सकता है।
- राइड-शेयरिंग प्लेटफॉर्म्स (Ride sharing platforms) जैसे ओला(Ola), उबर(Uber) और कारपूलिंग डॉट कॉम (Carpooling.com) का इस्तेमाल करें, जो आपको उन लोगों से जोड़ते हैं, जो समान दिशा में यात्रा कर रहे होते हैं। इससे आप एक साथ सफ़र कर सकते हैं और रास्ते में होने वाली परेशानियों को कम कर सकते हैं।
3. धैर्य रखें और जानकारी प्राप्त करें
- ट्रैफ़िक जाम अक्सर अनिवार्य होता है, लेकिन अगर आप पहले से ही तैयार हों तो इसे आसानी से झेल सकते हैं। अपनी यात्रा के दौरान धैर्य रखें और समझें कि यह अस्थायी समस्या है।
- साथ ही, ट्रैफ़िक ऐप्स और स्थानीय अधिकारियों से अपडेट्स लेते रहें, ताकि आप ट्रैफ़िक की स्थिति, सड़क बंद होने की जानकारी और वैकल्पिक रास्ते जान सकें। इससे आप समय बचा सकते हैं और जल्दी अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं।
4. सतत परिवहन नीति और सुधारों का समर्थन करें
- सार्वजनिक परिवहन और पैदल चलने के लिए सुविधाओं का विस्तार करने के लिए सतत परिवहन नीतियों का समर्थन करें। यदि अधिक लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करेंगे, तो ट्रैफ़िक कम होगा।
- साइकिल ट्रैक्स, कारपूलिंग सुविधाओं और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दें, ताकि प्रदूषण कम हो और ट्रैफ़िक जाम की समस्या भी घटे।
इन उपायों को अपनाकर हम ट्रैफ़िक जाम की समस्या को कम कर सकते हैं, और साथ ही पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं।
संदर्भ :
मुख्य चित्र: बड़ा इमामबाड़ा के सामने ट्रैफ़िक जाम (Wikimedia)
अगर आप उगाना चाहते हैं खूबसूरत गुलाब, तो इन ज़रूरी बातों का रखें ध्यान !
बागवानी के पौधे (बागान)
Flowering Plants(Garden)
01-04-2025 09:41 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ के नागरिकों, यह एक तथ्य है कि हममें से हर कोई गुलाब देखते ही आकर्षित हो जाता है, क्योंकि गुलाब केवल एक खूबसूरत फूल ही नहीं हैं, बल्कि इनका सांस्कृतिक, सजावटी और यहां तक कि औषधीय महत्व भी है। भारत में गुलाब की कई किस्में पाई जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक को अपनी अनूठी खुशबू और जीवंत रंगों के लिए जाना जाता है। गुलाब का उपयोग इत्र, गुलाब जल, यहां तक कि पारंपरिक मिठाइयां बनाने में भी किया जाता है। तो आइए, आज भारत में गुलाब के उत्पादन के बारे में समझते हुए शीर्ष गुलाब उत्पादक राज्यों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम वैश्विक फूलों के बाज़ार में भारत से गुलाब के निर्यात के आंकड़ों को समझेंगे। हम भारत में पाए जाने वाली देशी और संकर गुलाब की विविध प्रजातियों पर भी प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम भारत में गुलाब उगाने के बारे में आवश्यक सुझाव साझा करेंगे।
भारत में गुलाब उत्पादन:
2020-21 में, भारत में गुलाब का अनुमानित उत्पादन लगभग 465.98 हज़ार टन था। भारत में कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु गुलाब उत्पादन के शीर्ष पांच राज्य हैं। 'राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड' द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में शीर्ष पांच राज्यों में कुल उत्पादन नीचे दी गई तालिका में सूचीबद्ध है:
राज्य | उत्पादन (हज़ार टन) |
कर्नाटक | 171.88 |
पश्चिम बंगाल | 65.92 |
उत्तर प्रदेश | 63.23 |
गुजरात | 38.76 |
तमिलनाडु | 33.89 |
भारत से गुलाब का निर्यात:
नवंबर 2023 में, भारत से लगभग 22 करोड़ रुपए मूल्य के गुलाब का निर्यात किया गया, और 2024 में इसके 65 करोड़ रुपए से अधिक होने की उम्मीद है। हालांकि, भारत से ऑस्ट्रेलिया और जापान में गुलाब के फूलों के निर्यात में गिरावट आई है, लेकिन सिंगापुर, न्यूजीलैंड और मलेशिया में इनके निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज़ की गई हैं।
भारत में पाए जाने वाली गुलाब की प्रजातियां:
- हाइब्रिड टी गुलाब (Hybrid Tea rose): यह गुलाब की सबसे लोकप्रिय किस्मों में से एक है। इसके फूलों में 30-50 पंखुड़ियाँ होती हैं। इसे सुंदर एवं शानदार कटे फूल और गुलदस्ते बनाने में उपयोग किया जाता है।। यह गहरी सुगंध और सूक्ष्म आकर्षण वाली दोहरे फूलों वाली किस्म है। डबल डिलाइट, इवनिंग स्टार, दिल-की-रानी, हैप्पीनेस, गोल्डन जॉइंट, लव, डिस्को, किस ऑफ फायर, सी पर्ल और पैराडाइज हाइब्रिड टी गुलाब की किस्मों में से कुछ नाम हैं।
- पोलिएंथस गुलाब (Polyanthas Rose): इस गुलाब को कम रखरखाव की आवश्यकता होती है और यह रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखता है। जब आप इसे बाड़ों के किनारे या गमलों की कतार में उगाते हैं, तो यह एक आकर्षक दृश्य प्रदान करता है। इसके लाल, गुलाबी और सफ़ेद रंग के फूल आपके बगीचे में एक परी-कथा जैसा दृश्य बनाते हैं। स्नीज़ी, रश्मि, पिंक स्प्रे, और फ़ेयरी रोज़ इसकी किस्मों के कुछ नाम हैं।
- फ्लोरिबंडा गुलाब Floribunda Rose): यह गुलाब पोलिएंथस और हाइब्रिड टी गुलाब का मिश्रण है। इसके पौधे पर पीले, सफ़ेद, गुलाबी, बैंगनी और नारंगी रंग के सुंदर बड़े फूलों के घने गुच्छे होते हैं। महक, कुसुम, प्रेमा, राजमणि, सिंदूर, चंद्रमा, गोल्डन, किरणें, समर स्नो, फ्लोरिबुंडा गुलाब की प्रसिद्ध किस्में हैं।
- ग्रैंडिफ़्लोरा गुलाब (Grandiflora Rose): यह गुलाब फ्लोरिबुंडा और हाइब्रिड टी गुलाब का मिश्रण है। इसके पौधे पर एक ही तने पर फूलों का एक गुच्छा आता है। इस गुलाब की खासियत इसकी पीली, नारंगी, लाल, गुलाबी और बैंगनी रंग की मनमोहक छटा है। अर्थ सॉन्ग और पिंक परफ़ेट ग्रैंडिफ़्लोरा गुलाब के दो उदाहरण हैं।
- लैंडस्केप गुलाब (Landscape Rose): यह गुलाब साल भर बढ़ता है और इनमें फैलने की प्रवृत्ति होती है, जिससेयह किसी भी बगीचे में खाली स्थान भरने के लिए एक बेहतरीन विकल्प हैं। गुलाब की इस किस्म को कम रखरखाव की आवश्यकता होती है। फ़्लावर कार्पेट कोरल और फ़्लावर कार्पेट स्कारलेट इस गुलाब के दो उदाहरण हैं।
- झाड़ीदार गुलाब (Shrub Rose): यह गुलाब पारंपरिक और आधुनिक गुलाब की विशेषताएं प्रदर्शित करता है। इसके फूलों में दोहरी पंखुड़ियाँ होती हैं, जो एक-दूसरे से सटी होती हैं। हरे और नीले रंग को छोड़कर, ये गुलाब इंद्रधनुष के अन्य सभी में पाए जाते हैं। आइसबर्ग और बीच झाड़ीदार गुलाब के दो उदाहरण हैं।
- बॉरबॉन रोज़ (Bourbon Rose): यह गुलाब पुराने ब्लश चाइना गुलाब और डैमस्क गुलाब का मिश्रण है। भारत में यह गुलाब हल्दीघाटी और पुस्कर क्षेत्र में उगाया जाता है। इस किस्म का उपयोग इसकी सुखद सुगंध के कारण गुलाब के तेल का उत्पादन करने के लिए किया जाता है। इसके फूल बर्फ़ के समान सफ़ेद या गहरे गुलाबी रंग के हो सकते हैं। गुलकंद बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। ज़ेफिरिन ड्रोहिन बोरबॉन गुलाब का एक उदाहरण है।
- दमिश्क गुलाब (Damask Rose): यह गुलाब रोज़ा मोस्काटा और रोज़ा गैलिका का मिश्रण है। इस किस्म में गहरे गुलाबी से लेकर हल्के गुलाबी रंग तक के फूल होते हैं। भारत में, इसका उपयोग इत्र बनाने के लिए किया जाता है। इसकी पंखुड़ियाँ खाने योग्य होती हैं और इनका उपयोग हर्बल चाय बनाने, व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने या गुलकंद तैयार करने में किया जाता है। नूरजहाँ, हिम ज्वाला, और हिम हिमरोज़ दमिश्क गुलाब के उदाहरण हैं।
- कश्मीरी गुलाब (Kashmiri Rose): इस गुलाब में हल्की खुशबू और आकर्षक चमकीले लाल फूल होते हैं। यह किस्म हाइब्रिड टी से मिलती जुलती है। इसके फूलों की पंखुड़ियाँ छूने में मखमली मुलायम होती हैं।
गुलाब उगाने के लिए आवश्यक सुझाव:
गुलाब उगाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- गुलाब के लिए खुली धूप वाली जगह की आवश्यकता होती है। हालाँकि, गर्मियों में, आंशिक छाया उपयुक्त हो सकती है।
- यदि गुलाब को गमलों में उगाया जाता है, तो उसे 12-16 इंच चौड़े गमले की आवश्यकता होगी। गुलाब के पौधे से हर साल पुरानी और मृत जड़ों को हटाने के बाद दोबारा गमले में लगाना अच्छा होता है।
- गुलाब को अच्छी, उपजाऊ, नमी बनाए रखने की क्षमता वाली और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लगाया जाना चाहिए। मिट्टी के मिश्रण में 1 भाग फ़ार्म यार्ड खाद (Farmyard Manure) और 1 भाग जैव-खाद भी मिलाना चाहिए।
- भारत में गुलाब की विभिन्न किस्मों को तने या बीज बोने के बजाय ग्राफ्टिंग (grafting) और बडिंग विधि से उगाया जाता है। आई बडिंग (टी-आकार की बडिंग) (Eye budding (T-shaped budding)) विभिन्न गुलाब संकरों को उगाने के लिए सबसे आम विधि है।
- गुलाब अन्य रंगों या पौधों के साथ स्वतंत्र रूप से मिश्रित नहीं होता है। इसलिए, गुलाब को अन्य फूलों वाले पौधों से दूर एक विशेष क्षेत्र में अलग से उगाया जाता है।
- गमले में लगे गुलाबों को गर्मियों में एक दिन छोड़कर या हर दिन भी पानी दिया जा सकता है।
- गुलाब जलभराव के प्रति संवेदनशील होते हैं। यदि गमलों में उचित जल निकासी नहीं है, तो गमले में लगे गुलाब की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं।
- गुलाब के पौधों की छंटाई साल में दो बार जून के अंत और दिसंबर की शुरुआत में की जानी चाहिए। कमज़ोर और मृत शाखाओं एवं पत्तियों को हटाने के अलावा, पुराने पौधों की प्रत्येक शाखा की लगभग आधी वृद्धि तक काट-छाँट करें।
- रासायनिक खादों की अपेक्षा जैविक खादों को प्राथमिकता दें। प्रत्येक छंटाई के बाद पौधे को साल में दो बार बायो-कम्पोस्ट (Bio Compost), वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) या गोबर की खाद दें।
- गुलाब को रेड स्केल्स (Red Scales) और डाईबैक फंगस (Dieback Fungus) नाम की दो प्राथमिक बीमारियाँ होती हैं। इसलिए अपने बगीचे में कीटों के प्रकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
संदर्भ
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लखनऊ, चलिए इस ईद को मनाते हैं, हम अपने देश के अलग अलग राज्यों की विभिन्न प्रथाओं के साथ !
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
31-03-2025 09:00 AM
Lucknow-Hindi

हमारे शहर लखनऊ में, ईद को एक विशेष तरीके से मनाया जाता है। स्थानीय लोग इस दिन ऐशबाग ईदगाह और लोकप्रिय आसिफ़ी मस्जिद में प्रार्थना करते हैं। यह त्योहार, रमज़ान माह के हर्षित अंत के उत्सव का संकेत है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि, यह त्योहार कैसे शुरू हुआ? इसलिए आज, यह समझने की कोशिश करते हैं कि, पहली बार ईद-अल-फ़ितर कब मनाया गया था। इसके अलावा, हम इस्लाम में इस त्योहार के महत्व के बारे में पता लगाएंगे। फिर हम इस बात पर कुछ प्रकाश डालेंगे कि, लखनऊ में ईद को कैसे मनाया जाता है। अंत में, हम यह पता लगाएंगे कि केरल, बिहार, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर व तमिलनाडु जैसे विभिन्न राज्यों में ईद के दिन क्या कियाजाता है।
पहली बार ईद–अल–फ़ित्र का त्योहार कब मनाया गया था?
ईद-अल-फ़ित्र का पहला उत्सव 624 ईस्वी में हुआ था, जो मोहम्मद पैगंबर द्वारा किए गए मक्का (Mecca) से मदीना (Medina) के प्रवास के दूसरे वर्ष में था। यह विशेष रूप से, ‘बदर की लड़ाई’ से भी संबंधित है, जहां मुसलमानों ने उसी वर्ष रमज़ान के दौरान, कुरैश जनजाति की सेना को हराया।
पैगंबर मोहम्मद के साथियों में से एक – हज़रत अनास इब्न मलिक द्वारा सुनाई गई एक हदीस, ईद की उत्पत्ति का वर्णन करती है। इस हदीस के अनुसार: “जब अल्लाह के दूत मदीना आए, तो लोगों के पास दो दिन थे, जब वे खेल खेलने में लगे हुए थे। उन्होंने पूछा: ये दो दिन क्या हैं ( इनका क्या महत्व है)? तब उन्होंने कहा: हम पूर्व-इस्लामिक काल में ये खेल खेलते थे। तब अल्लाह के दूत ने कहा: अल्लाह ने उनके लिए उनसे बेहतर, ‘बलिदान का दिन’ और ‘उपवास छोड़ने का दिन’ प्रतिस्थापित किया है। यहां संदर्भित ‘बलिदान का दिन’ और ‘उपवास छोड़ने का दिन’ वे दिन हैं, जो आज ईद-अल-आज़हा और ईद-अल-फ़ित्र के रूप में मनाए जाते हैं।
इस्लाम में ईद-अल-फ़ित्र का महत्व:
ईद-अल-फ़ित्र रमज़ान के पवित्र महीने के अंत को चिह्नित करता है। वैसे तो, यह रमज़ान के अंत का जश्न नहीं मनाता है, क्योंकि, यह इस्लाम में एक महत्वपूर्ण दायित्व की उपलब्धि का जश्न मनाता है। उपवास इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। इसलिए, उपवास का निरीक्षण करना और इस धन्य महीने को इसी तरह पूरा करना, मुसलमानों का एक कर्तव्य है। यह इस पवित्र महीने को पूरा करने में सक्षम होने के लिए ताकत और अवसर प्रदान करने हेतु, अल्लाह को धन्यवाद देने का भी दिन है।
ईद-अल-फ़ितर आमतौर पर लगातार तीन दिनों में मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान लोग, मण्डली (जमात) में एकजुट होते हैं और साथ में नमाज़ पढ़ते हैं। प्रार्थनाओं के सभी महत्वपूर्ण पाठ के बाद, वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ उत्सव मनाते हैं। परंपरागत रूप से, एक दावत तैयार की जाती है, और इसका एक साथ आनंद लिया जाता है।
ईद-अल-फ़ितर, दान देने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, और उन लोगों को याद करता है, जो हमारी तुलना में बहुत कम भाग्यशाली हैं।
इस दिन, ज़कात-अल-फ़ितर भी दान किया जाता है, जो बच्चों के लिए भी अनिवार्य है। यह घर के मुखिया की ज़िम्मेदारी होती है कि, इसका तदनुसार भुगतान किया जाए। यह आमतौर पर ईद की नमाज़ से पहले दिया जाता है। इसका महत्व, यह सुनिश्चित करना है कि, यह मदद की आवश्यकता वाले लोगों को प्रदान किया जाए, और उन्हें भी ईद को मनाने का अवसर दिया जाए।
लखनऊ में ईद कैसे मनाया जाता है?
•लखनऊ चौक
लखनऊ चौक, इसकी छोटी गलियों, पुरानी दुनिया की लालित्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए मान्यता प्राप्त है। यह चौक ईद में कई गतिविधियों के एक जीवंत केंद्र में विकसित होता है। इसकी सड़कों को रंगीन रोशनी से सजाया जाता है, और यहां की हवा, मनोरम भोजन और मिठाइयों की सुगंध से भरी होती है। ईद के दौरान, खरीदारी का अनुभव, इस चौक के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक है। यहां के बाज़ार में पारंपरिक कपड़े, आभूषण, जूते और अन्य सामान बेचने वाले स्टालों और दुकानों में काफ़ी भीड़ होती है। लोग नए कपड़े, विशेष रूप से पारंपरिक लखनवी आइटम जैसे कि – चिकनकरी कपड़े, कशीदाकारी कुर्ते, और नाज़ुक दुपट्टे खरीदने के लिए, यहां आते है। यह बाज़ार, अपनी उत्कृष्ट ज़रदोज़ी कलात्मकता और पारंपरिक इत्र के लिए भी, ग्राहकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है।
•अमीनाबाद
अमीनाबाद, अपने जीवंत वातावरण और पारंपरिक खरीदारी के अनुभव के लिए जाना जाता है। यह कपड़ों और अन्य सामान से लेकर, घर की वस्तुओं एवं प्रौद्योगिकी तक, विभिन्न प्रकार के उत्पादों की पेशकश करता है। यह बाज़ार, विशेष रूप से, अपने चिकन कशीदाकारी काम के लिए प्रसिद्ध है, और पर्यटक विभिन्न प्रकार की दुकानों और बुटीक के माध्यम से इन्हें देख सकते हैं।
घरों और मस्ज़िदों में होने वाले समारोहों के साथ, लखनऊ में ईद को सांप्रदायिक सद्भाव और एकता की भावना द्वारा भी चिह्नित किया गया है। कई धर्मों के लोग, हमारे शहर की बहुसांस्कृतिक पृष्ठभूमि को उजागर करते हुए, इस त्योहार का आनंद लेने के लिए यहाँ इकट्ठा होते हैं। गैर-मुस्लिम मित्र और पड़ोसी भी, अक्सर अपने मुस्लिम सहयोगियों को अभिवादन करके और हर्षित दावतों को साझा करके यह त्योहार मनाते हैं। पूरे शहर में, कई कव्वालियां, सांस्कृतिक और कविता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
भारत के विभिन्न राज्यों में ईद कैसे मनाई जाती है?
1.) केरल:
केरल में, ईद–अल-फ़ितर को स्थानीय रूप से ‘रमज़ान पेरुनल’ (Ramadan Perunnal) के रूप में जाना जाता है। यह त्योहार, मस्जिदों में विशेष प्रार्थनाओं के साथ मनाया जाता है, एवं इसके बाद एक भव्य दावत – जिसे ‘साध्यत’ के रूप में जाना जाता है – खाई जाती है। पारंपरिक मलयाली व्यंजन, जैसे कि – बिरयानी, समोसा और मिठाई भी इस अवसर पर तैयार की जाती हैं।
2.) उत्तर प्रदेश और बिहार:
हमारे उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में, ईद का उत्सव, चंद्रमा को देखने के साथ शुरू होता है। मस्जिदों में विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं, इसके बाद अभिवादन और मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है। नए कपड़ों में पोशाक और सेवइयां जैसे स्वादिष्ट व्यंजन भी उत्सव के भोजन के लिए तैयार किए जाते हैं।
3.) पश्चिम बंगाल:
पश्चिम बंगाल में, ईद–अल-फ़ितर या ‘चांद रात’ को उत्साह के साथ मनाया जाता है। मुसलमान विशेष प्रार्थनाओं के लिए मस्जिद का दौरा करते हैं, और बाज़ार कपड़े, आभूषण और पारंपरिक वस्तुओं के साथ जीवित हो जाते हैं। ‘संदेश’ और ‘रसगुल्ला’ जैसी बंगाली मिठाईयां, त्योहारी दावत के लिए तैयार की जाती हैं।
4.) जम्मू और कश्मीर:
जम्मू और कश्मीर में, ईद–अल–फ़ितर, जिसे स्थानीय रूप से ‘मीठी ईद’ के रूप में जाना जाता है, को पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोग मस्ज़िदों में प्रार्थना के लिए इकट्ठा होते हैं, और इसके बाद ‘रोगन जोश’, ‘वज़वान,’ और ‘खीर’ जैसी कश्मीरी व्यंजनों की पेशकश होती है।
5.) आंध्र प्रदेश और तेलंगाना:
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में, इस ईद को मस्ज़िदों में प्रार्थना के साथ मनाया जाता है, इसके बाद पारिवारिक समारोह और दावत होती है। पारंपरिक हैदराबादी व्यंजन जैसे ‘बिरयानी’, ‘हलीम’ और ‘शीर खुरमा’ तैयार किए जाते हैं, और परिवार अक्सर मनोरंजन के लिए लोकप्रिय स्थलों और पार्कों का दौरा करते हैं।
6.) तमिल नाडु:
तमिल नाडु में, मुख्य प्रार्थना के अलावा, पारंपरिक तमिल व्यंजन – ‘बिरयानी’ और ‘सांभर’ तैयार किए जाते हैं। साथ ही, विशेष मिठाइयां जैसे कि, ‘पेसम’ और ‘हलवा’ भी बनाया जाता है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: ताज महल के सामने पढ़ी जा रही ईद की नमाज़ (प्रारंग चित्र संग्रह)
संस्कृति 2011
प्रकृति 689