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जब बापू के साथ मिलकर जौनपुर वासियों ने अंग्रेजी हुकूमत को घुटनों पर ला दिया

जौनपुर

 30-01-2024 08:48 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

क्या आप जानते हैं कि देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने की मंशा के साथ, गांधीजी ने हमारे जौनपुर का भी दौरा किया था। बापू को हमारे जौनपुर सहित जिले के निकट स्थित प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) शहर से विशेष लगाव था। इन क्षेत्रों में आकर उन्होंने यहां के जनमानस को बढ़-चढ़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। प्रयागराज के राष्ट्रीय संग्रहालय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी कई स्मृतियाँ भी संरक्षित की गई हैं। चलिए आज उनकी पुण्य तिथि के अवसर पर उनसे जुड़े ऐसे ही दिलचस्प किस्सों और ऐतिहासिक भ्रमणों पर एक नजर डालते हैं।
प्रयागराज को उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े शहरों में से एक माना जाता है। यह नगर तीन नदियों - गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थित है। इन नदियों के मिलन स्थल को “त्रिवेणी” के नाम से जाना जाता है। हिंदू मुस्लिम एकता के संदर्भ में भी इस शहर का एक समृद्ध इतिहास रहा है, जहां विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ सद्भाव से रहते हैं। प्रयागराज की पवित्रता का पुराणों, रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। प्रयाग राज को सोम, वरुण और प्रजापति की जन्मस्थली माना जाता है। हालांकि इस शहर ने स्वतंत्रता आन्दोलन की कई क्रांतियों को भी जन्मा या उन्हें हवा दी है। प्रयागराज या खासतौर पर यहां का आनंद भवन, ब्रिटिश शासन के खिलाफ, स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र हुआ करता था। आपको जानकर हैरानी होगी कि गांधी जी ने भारत को आज़ाद कराने के लिए अहिंसक आंदोलन से जुड़े अपने कार्यक्रम का प्रस्ताव प्रयागराज में ही रखा था। इस शहर ने स्वतंत्रता के बाद भारत को सबसे अधिक संख्या में प्रधान मंत्री दिए हैं, जिनमें पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और वी.पी. सिंह जैसे दिग्गज राजनेता शामिल हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ही छात्र थे। प्रयागराज के सिविल लाइन्स (Civil Lines) क्षेत्र में इलाहाबाद संग्रहालय भी है। संग्रहालय को अपनी अद्वितीय कला कृतियों के समृद्ध संग्रह के लिए जाना जाता है। इसका वित्त पोषण संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया जाता है। इस संग्रहालय को 1931 में स्थापित किया गया था। आज इसे पुरातत्वविदों, इतिहासकारों और शिक्षाविदों के लिए एक प्रमुख अनुसंधान केंद्र माना जाता है। इलाहाबाद संग्रहालय में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को समर्पित दो दीर्घाएँ भी हैं। गांधी जी को समर्पित दीर्घा में बापू के बचपन से लेकर उनकी मृत्यु तक की दुर्लभ तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं। संग्रहालय की एक और मूल्यवान संपत्ति में गांधी स्मृति वाहन एक 47-मॉडल वी-8 फोर्ड ट्रक (47-Model V-8 Ford Truck) भी शामिल है। 12 फरवरी 1948 के दिन इसी ट्रक पर गांधी जी की अस्थियां रखकर उन्हें त्रिवेणी संगम में विसर्जित किया गया था। क्या आप जानते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी‚ दो बार हमारे जौनपुर में भी आए थे। गांधीजी जब देश को आजाद कराने के लिए दौरा कर रहे थे‚ उस दौरान नागपुर में अधिवेशन चल रहा था‚ जिसमें स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह की अगुवाई में जिले के तमाम स्वतंत्रता सेनानी वहां आए हुए थे। इसी दौरान लोगों ने गांधीजी से जौनपुर आने का भी निवेदन किया था। इसके बाद 10 फरवरी 1920 के दिन गांधीजी का जौनपुर आगमन सुनिश्चित हुआ। उनके आने की सूचना पाकर प्रशासन ने विद्यालयों को बंद कर दिया‚ फिर भी लगभग बीस हजार जनता राष्ट्रपिता का भाषण सुनने के लिए टूट पड़ी। भंडारी स्टेशन के प्लेटफॉर्म (platform) पर बने मंच से ही उन्होंने जनता को संबोधित किया। जिसमें बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की बात के साथ‚ “पलो‚ बढ़ो और पढ़ो” का नारा भी दिया था। गांधीजी दूसरी बार 2 अक्टूबर 1929 के दिन जौनपुर आए और तब वह मानिक चौक पर राधा मोहन मल्होत्रा के घर पर रुके थे। अगले दिन सुबह महिला अधिवेशन में‚ उन्होंने महिलाओं को चरखा चलाने और आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दी। इसके बाद उन्होंने रामलीला मैदान में लोगों को संबोधित करते हुए उन्हें एकता की शिक्षा दी। इसी दौरान गांधीजी एक गांव में भ्रमण पर निकले। यहां उन्होंने देखा कि महिलाओं ने फटे और मैले कपड़े पहने हुए थे। इस दृश्य ने गांधीजी को भीतर तक दुखी कर दिया, जिसके बाद उन्होंने लोगों से चरखा चलाने और सूत कातने की पहल भी की। गांधीजी ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ, सविनय अवज्ञा आंदोलन भी शुरू किया जो कि एक अहिंसक विरोध था। यह आंदोलन 1930 में गांधी के प्रसिद्ध दांडी मार्च के साथ शुरू हुआ था। जौनपुर के निवासियों ने ब्रिटिश वस्तुओं और सरकारी स्कूलों का बहिष्कार करके, शराब बेचने वाली दुकानों पर प्रदर्शन करके और सार्वजनिक समारोहों में विदेशी कपड़े जलाकर आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। लोगों ने विदेशी कपड़ों के बजाय खादी पहनने का विकल्प चुना। जब नमक अधिनियम तोड़ने के लिए महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की गई, तो इसके विरोध में हमारे जौनपुर के लोगों ने भी नमक अधिनियम खिलाफत कर दी और प्रतिबंधित नमक का उत्पादन किया। इस भड़कती हुई चिंगारी को देखकर ब्रिटिश सरकार अत्यधिक चिंतित हो गई और उसने आंदोलन को रोकने के लिए कदम उठाए। पुलिस द्वारा कई बैठकें बाधित की गईं और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को लाठी चार्ज द्वारा बलपूर्वक रोका गया। न केवल कांग्रेस सदस्यों को बल्कि किसी भी प्रकार के विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि अंग्रेजों की इन दमनकारी कार्रवाइयों के बावजूद लोगों ने अधिनियम का विरोध करना जारी रखा। आखिरकार लोगों की मेहनत रंग लाई और 1934 में इस आंदोलन को वापस ले लिया गया।

संदर्भ
http://tinyurl.com/2p8wy8mt
http://tinyurl.com/34rbz8jj
http://tinyurl.com/3eh7rr9x

चित्र संदर्भ
1. गांधीजी के शांति आन्दोलन को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. 2001 में प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान तीर्थयात्रियों का एक जुलूस गंगा पार कर रहा था! को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जनवरी 1940 में इलाहाबाद के आनंद भवन में वल्लभभाई पटेल और विजया लक्ष्मी पंडित के साथ कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में महात्मा गांधी, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इलाहाबाद संग्रहालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. 1929 में अपनी यात्रा के दौरान लिए गए गांधीजी के चित्र को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
6. सत्याग्रह के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
7. कलकत्ता की दमदम जेल में राजनीतिक कैदियों से मुलाकात कर रहे गांधी जी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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