City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1020 | 166 | 1186 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
देश के स्वतंत्रता संग्राम में हमारा शहर जौनपुर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का गवाह रहा है। 1857 की क्रांति में भाग लेने के निशान और भारत को आजादी दिलाने की उत्कृष्ट इच्छा ब्रिटिश कालीन जौनपुर के हर कोने में देखी जा सकती थी। ऐसा माना जाता है कि 1857 के उपद्रव में जौनपुर के लगभग दस हजार लोग शहीद हुए थे। आइए ऐसे ही कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथाओं के विषय में पढ़ते हैं:
1857 की क्रांति के लिए 31 मई को जौनपुर में जगह-जगह पोस्टर लगाए गए थे जिसके तहत देशी सैनिकों को अपने हथियार जमा कराने के निर्देश जारी किये गये थे। 5 जून, 1857 को बनारस से विद्रोह की खबर और 8 सितम्बर को गोरखा सेनाएँ आज़मगढ़ से जौनपुर पहुंचने के बाद जौनपुर का उत्तर-पश्चिमी भाग विद्रोह की आग में जल रहा था। माता बादल चौहान के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों का अंग्रेजी सेनाओं से टकराव हुआ लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। अंग्रेजों ने माता बादल चौहान और उनके 13 साथियों को फाँसी दे दी। इसी संघर्ष में इन बहादुरों ने एक एक कानूनी अधिकारी की हत्या कर दी। इधर नेवढ़िया गांव के ठाकुर संग्राम सिंह ने भी अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया। बदलापुर के जमींदार बाबू सल्तनत बहादुर सिंह नेवी अंग्रेजों से बगावत कर दी। सल्तनत बहादुर सिंह के पुत्र संग्राम सिंह ने कई मौकों पर अंग्रेजों से लोहा लिया। बाद में दुर्भाग्यवश अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया और पेड़ से बांधकर गोली मार दी। इसके अलावा हरिपाल सिंह, भीखा सिंह, राम सुन्दर पाठक और जगत सिंह आदि भी स्वतंत्रता सेनानियों में अपनी वीरता के लिए जाने जाते थे। मछलीशहर के इटहा गांव में पं. शिव वर्ण शर्मा के बड़े भाई प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे।
1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के एक दशक बाद शहर में कांग्रेस की पहली बैठक उर्दू मोहल्ले में हुई। वाराणसी में कांग्रेस के 1909 के वार्षिक सम्मेलन में जौनपुर से भी कई लोग शामिल हुए। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जौनपुर के एक क्रांतिकारी 'मुजतबा हुसैन' बम बनाने की तकनीक सीखने के लिए अमेरिका गये, जिन्हें बाद में अंग्रेजों ने धोखे से गिरफ्तार कर लिया था । 1916 में होमरूल लीग की स्थापना के बाद यह संस्था जौनपुर में कार्य करने लगी। 1920 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में जौनपुर ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस अवधि के दौरान मोतीलाल नेहरू, श्रीमती सरोजिनी नायडू, जवाहर लाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, शौकत अली ने भी जिले का दौरा किया और बैठकें कीं। अक्टूबर 1929 में महात्मा गांधी ने भी जौनपुर का दौरा किया। 1932 में जौनपुर में म्यूनिसिपल बोर्ड और जिला परिषद भवनों पर कांग्रेस का झंडा फहराने के मामले में 72 लोगों पर मुकदमा चलाया गया और सजा सुनाई गई।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में जौनपुर ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, जिसके तहत 11 अक्टूबर, 1942 को कांग्रेस के कई नेताओं, छात्रों, युवाओं और दुकानदारों ने जौनपुर शहर में एक रैली निकाली और दोपहर के समय एक विशाल भीड़ ने कलक्ट्रेट परिसर में प्रवेश कर लिया और तिरंगा फहराने की कोशिश की। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने फायरिंग कर दी। जिसके कारण जिले के विभिन्न भागों में क्रांतिकारियों ने विभिन्न माध्यमों से अपना आक्रोश व्यक्त किया और सुजानगंज का थाना जला दिया।
इसी उपद्रव के दौरान शाहगंज, सराय ख्वाजा, जलालगंज की टेलीफोन लाइनें काट दी गईं। मड़ियाहूं, बिलावाई, बादशाहपुर और डोभी रेलवे स्टेशन क्षतिग्रस्त हो गए। कई स्थानों पर सड़कें कट गईं। 16 अगस्त, 1942 को धनियामऊ पुल को ध्वस्त करते समय पुलिस और क्रांतिकारियों के बीच संघर्ष हो गया, जिसमें सिंगरामऊ के छात्र जमींदार सिंह और राम अधार सिंह सहित राम पदारथ चौहान और राम निहोर कहार पुलिस की गोलियों के शिकार हो गये। उनकी याद में हर साल 16 अगस्त को धनियामऊ में शहीद स्मारक पर मेला लगता है। हरगोविंद सिंह, दीप नारायण वर्मा, मुजतबा हुसैन और अन्य महत्वपूर्ण नेताओं के साथ, 196 लोगों को गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। अंग्रेजों ने सारी हदें पार करते हुए रामानंद और रघुराई को बर्बरतापूर्वक पीटा। 23 अगस्त, 1942 को अगरौरा गाँव में उन्हें पेड़ों से फाँसी पर लटका दिया गया और गोली मार दी गई। उनकी लाशें तीन दिन तक पेड़ों से लटकती रहीं।
वास्तव में जौनपुर जिले में अंग्रेजों के खिलाफ संग्राम की नींव 1857 के विद्रोह के फैलने से सिख सिपाहियों के विद्रोह के रूप में रखी जा चुकी थी। जौनपुर में सिख सिपाहियों का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक महत्वपूर्ण विकास था। जौनपुर जिले में नील बागान मालिकों के रूप में बस गए अंग्रेजों के राजकोष की सुरक्षा का काम लेफ्टिनेंट मारा (Mara) के अधीन एक सिख रेजिमेंट को सौंपा गया था। राष्ट्रवादी आंदोलन के उभार की अफवाहें जौनपुर तक पहुँचने पर कई नील बागान मालिक अपनी फैक्टरियाँ छोड़कर जिला मुख्यालय की ओर भाग गए थे। लेकिन 5 जून 1857 को, वाराणसी में एक सिख छावनी में अंग्रेजों द्वारा आग लगाने की खबर फैल गई, जिसके कारण सिख रेजिमेंट ने जौनपुर में ब्रिटिश टुकड़ी के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह के दौरान सिखों ने अपने अफसर मारा और जौनपुर जिले के क्यूपेज (Cuppage) नामक संयुक्त मजिस्ट्रेट की हत्या कर दी। उन्होंने उस खजाने को लूट लिया जिसकी वे रक्षा कर रहे थे और अंग्रेजों को तुरंत पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। सिख सिपाहियों का यह विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की एक ज्वलंत घटना है।
हमारे जौनपुर जिले की मिट्टी से कई स्वतंत्रता सेनानियों ने जन्म लिया, जिन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान लोगों को संगठित किया और उनमें आत्मसम्मान एवं देशप्रेम की भावना को जाग्रत करके उनका नेतृत्व किया। हमारे जौनपुर के दीप नारायण वर्मा भी एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया, विशेषकर 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) के दौरान। दीप नारायण वर्मा नमक आंदोलन के दौरान जौनपुर के पहले नेता और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। द्वारिका प्रसाद मौर्य, गजराज सिंह और आद्या प्रसाद सिंह जैसे अन्य नेताओं के साथ, उन्होंने नमक कानून तोड़ा और इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
उन्हें छह महीने की कैद हुई और 24 नवंबर 1930 को रिहा कर दिया गया। 25 जनवरी 1931 को दीप नारायण वर्मा को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस ने उनके घर की तलाशी ली। उनके घर से राष्ट्रीय ध्वज, स्वयंसेवकों की वर्दी और दस्तावेज़ समेत कई वस्तुएं बरामद की गई। 15 फरवरी 1931 को 'मोतीलाल नेहरू दिवस' मनाने के लिए वर्मा की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक बैठक का आयोजन किया गया था। उन्होंने 5 अक्टूबर 1931 को गांधी सप्ताह मनाने के लिए आयोजित सार्वजनिक बैठक की अध्यक्षता भी की। लेकिन इस दौरान पुलिस ने आंदोलन को रोकने के लिए कड़े दमनकारी कदम उठाते हुए कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। नमक सत्याग्रह के दौरान दीप नारायण वर्मा की उत्साही भागीदारी उनकी देशभक्ति की भावना और भारत की स्वतंत्रता के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
संदर्भ
https://t.ly/NwdJJ
https://t.ly/bTQlY
https://t.ly/EzEDj
https://shorturl.at/CI248
चित्र संदर्भ
1. ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों के समूह को संदर्भित करता एक चित्रण (garystockbridge617)
2. 1857 की क्रांति के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
3. गांधीजी के आंदोलन के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
4. सिखों के आन्कोदोलनकारी दस्ते संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
5. आंदोलन के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.