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वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary) एक ऐसा स्थान होता है, जो उपेक्षित और प्रताड़ित बंदी जानवरों को संरक्षण प्रदान करता है। यह उन जानवरों के लिए एक सुरक्षित आश्रय साबित होता है, जो विभिन्न कारणों से अवांछित अथवा अनाथ हो गए हैं, या जिन्हें उनके संरक्षकों द्वारा ठुकरा दिया गया है। क्या आप जानते हैं कि अकेले हमारे उत्तर प्रदेश में ही 25 वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary) मौजूद हैं। वन्यजीव अभ्यारण्य में आने वाले जानवर तब तक वहीँ रहते हैं, जब तक कि वे प्राकृतिक कारणों से मर नहीं जाते हैं। वन्यजीव अभयारण्य मुख्य रूप से इसलिए महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे उन प्रताड़ित जानवरों को एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं, जिन्हें अन्यथा उनके मालिकों द्वारा त्याग दिए जाने पर इच्छा मृत्यु दे दी जाती। यदि ये अभयारण्य न हो तो हमें कई सुंदर और स्वस्थ विदेशी जानवरों (Exotic Animals) को इच्छा मृत्यु देनी होगी।
हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि जानवरों को कैद यहां तक कि वन्यजीव अभयारण्य में भी रखने की तुलना में इच्छामृत्यु देना ही अधिक मानवीय विकल्प होता है। कई पशु प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने के कारण विलुप्त होने का खतरा है। ऐसे में वन्यजीव अभयारण्य ही इन आवासों की सुरक्षा करने और वन्य जीवों को प्रजनन तथा जीवित रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन्यजीव अभयारण्यों के बिना, कुछ पशु प्रजातियों के विलुप्त होने का अधिक खतरा होगा। पशु अभयारण्य एक विशिष्ट स्थान प्रदान करते हैं जहाँ प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए कैद में रखा जाता है।
वन्यजीव अभयारण्य न केवल जानवरों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि पहाड़ों, वर्षावनों, घाटियों और टीलों जैसी भू-आकृतियों के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होते हैं। मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक पर्यावरणीय परिवर्तनों (environmental changes) के कारण इन भू-आकृतियों के लुप्त होने का खतरा बना रहता है। वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान इन भू-आकृतियों को प्रदूषण, विकास, विनाश और अन्य हानिकारक गतिविधियों से बचाने में मदद करते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के अलावा, राष्ट्रीय उद्यान ऐतिहासिक संरचनाओं को भी संरक्षित करते हैं जो हमें इस बात की बेहतर समझ देते हैं कि अतीत में लोग कैसे रहते थे और उनकी संस्कृतियाँ कैसे काम करती थीं। ये संरचनाएं हमें अतीत से सीखने और उस सीख को भविष्य में लागू करने की अनुमति देती हैं। उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में स्थित लाख बहोसी पक्षी अभयारण्य (Lakh Bahosi Bird Sanctuary) भारत के प्रमुख पक्षी अभयारण्यों में से एक है। इसकी स्थापना 1988 में आर्द्रभूमि (wetland) की सुरक्षा और संरक्षण के उद्देश्य से की गई थी, जिसमें स्थानीय और प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ जलीय पौधों और जानवरों सहित उनके प्राकृतिक आवास पर विशेष जोर दिया गया था।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society) ने भी इस अभयारण्य को 'महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र' स्थलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है। इस अभयारण्य में दो मुख्य झीलें, लाख और बहोसी शामिल हैं, जिनका नाम संबंधित गांवों के नाम पर रखा गया है। इस अभयारण्य में हर साल नवंबर और मार्च के महीनों के बीच लगभग 50,000 जलपक्षी आते हैं। नवंबर से मार्च तक यह अभयारण्य विभिन्न प्रवासी पक्षियों की मेजबानी करता है। यह आर्द्रभूमि कुछ पक्षियों के घोंसले बनाने के साथ-साथ प्रजनन के लिए उनके निवास स्थान के रूप में कार्य करती है। इस प्रकार, यह अभयारण्य कई वर्षों से पक्षी प्रेमियों और पर्यटकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य (Destination) बन गया है। सियार, नीला बैल, नेवला, मछली पकड़ने वाली बिल्ली और बंदर भी यहां देखे जा सकते हैं। लाख बहोसी पक्षी अभयारण्य के साथ-साथ बखिरा वन्यजीव अभयारण्य भी उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण पक्षी अभयारण्यों से एक है। यह अभयारण्य संत कबीर नगर जिले में स्थित है। यह गोरखपुर से 44 किमी पूर्व में स्थित है और उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े प्राकृतिक बाढ़ मैदान आर्द्रभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। इस अभयारण्य की स्थापना 1990 में वन और वन्यजीव विभाग और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई थी और तब से यह पक्षियों के लिए स्वर्ग बन गया है। 2 फरवरी 2022 के दिन विश्व वेटलैंड दिवस (World Wetland Day) के उपलक्ष्य में इस अभयारण्य को भारत के रामसर स्थलों में से एक के रूप में मान्यता दी गई थी। यह अभयारण्य 29 वर्ग किमी के क्षेत्र में एक विशाल जल निकाय में फैला हुआ है।
इस अभयारण्य में विविध प्रकार की वनस्पतियाँ भी पाई जाती हैं जिनमें पेड़, झाड़ियाँ और हाइड्रोफाइट्स (Hydrophytes) आदि शामिल हैं। सर्दियों के महीनों के दौरान, अभयारण्य में लगभग 30 प्रजातियों के लगभग 40,000 पक्षियों को देखना एक शानदार अनुभव बन जाता है। अभयारण्य 29 वर्ग किमी के क्षेत्र में एक विशाल जल निकाय में फैला हुआ है। इस अभयारण्य का नाम पास के गांव बखिरा के नाम पर पड़ा है। हालांकि वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अपनी मजबूत स्थिति के बावजूद, इसे कई मानव-प्रेरित दबावों का सामना करना पड़ रहा है। यहां पर मछली पकड़ना और प्रवासी पक्षियों का अवैध शिकार महत्वपूर्ण चिंताएँ हैं। अभयारण्य सारस और शीतकालीन प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास प्रदान करता है, इसलिए इसका संरक्षण और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इस आर्द्रभूमि के नष्ट होने से प्रवासी पक्षियों और घोंसले बनाने वाली प्रजातियों के लिए रुकने वाले स्थानों की संख्या में कमी आ सकती है। अतः हमें और सरकार को मिलकर इस पक्षियों के इस स्वर्ग को संरक्षित रखना ही होगा।
संदर्भ
http://tinyurl.com/2p8a5r6n
http://tinyurl.com/4myh5hdm
http://tinyurl.com/43ekapth
http://tinyurl.com/543ffrtw
चित्र संदर्भ
1.वन्यजीव अभयारण्य में दो गेंडों को संदर्भित करता एक चित्रण (
World Animal Foundation)
2. अपने शिकार पर नजरें रखे हुए दो बाघों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. वायनाड वन्यजीव अभयारण्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक वन्यजीव अभयारण्य में फ्लेमिंगो पक्षियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. पोचारम वन्यजीव अभयारण्य के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. शिकार की तलाश में बैठे जल पक्षियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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