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भारत के उद्योग जगत में सबसे आगे क्यों है टाटा व गोदरेज जैसे पारसी व्यापारिक घराने?

जौनपुर

 23-01-2024 09:30 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

हमारे देश भारत में टाटा समूह (Tata Group) की स्थापना वर्ष 1868 में एक प्रसिद्ध उद्यमी और परोपकारी पुरुष जमशेदजी नुसरवानजी टाटा द्वारा एक निजी व्यापारिक कंपनी के रूप में की गई थी। फिर वर्ष 1902 में टाटा समूह ने भारत के पहले विलासी होटल– ताज महल पैलेस एंड टॉवर(Taj Mahal Palace & Tower) को चालू करने हेतु, इंडियन होटल्स कंपनी (Indian Hotels Company) को अपने समूह में समाविष्ट किया। हालांकि, 1904 में जमशेदजी की मृत्यु के पश्चात, उनके बेटे सर दोराब टाटा जी ने टाटा समूह की कमान संभाली। दोराब के नेतृत्व में समूह ने तेजी से विविधीकरण किया और स्टील (1907), बिजली (1910), शिक्षा (1911), उपभोक्ता सामान (1917) और विमानन (1932) सहित नए उद्योगों की एक विशाल श्रृंखला में प्रवेश किया। 1932 में दोराब जी की मृत्यु के बाद, सर नौरोजी सकलातवाला टाटा समूह के अध्यक्ष बने। जबकि, इसके छह साल बाद जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (जे.आर.डी. टाटा) ने यह पद संभाला। इस समय के दौरान उन्होंने रसायन (1939), प्रौद्योगिकी (1945), सौंदर्य प्रसाधन (1952), विपणन, इंजीनियरिंग और विनिर्माण (1954), चाय (1962) और सॉफ्टवेयर सेवा (1968) जैसे नए क्षेत्रों में कंपनी का विस्तार जारी रखा।
परिणामस्वरूप, टाटा ग्रुप को अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त हुई। 2008 में टाटा कंपनी ने ऑटोमोटिव उद्योग(Automotive industry) में कदम रखकर दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। इसके साथ ही, अभी हाल ही में 2022 में टाटा समूह ने एयर इंडिया(Air India) का अधिग्रहण किया, जो 1932 में टाटा परिवार द्वारा स्थापित एक एयरलाइन थी।
दरअसल, इस समूह का ढांचा बनाने के लिए एक शहर की जरूरत थी। भारत के पहले नियोजित औद्योगिक शहर के रूप में प्रसिद्ध, जमशेदपुर शहर की खोज जमशेदजी नुसरवानजी टाटा ने की थी। यह शहर मूल रूप से ‘साकची’ के नाम से जाना जाता था। हालांकि, इसके संस्थापक जमशेदजी टाटा के सम्मान में, 1919 में लॉर्ड चेम्सफोर्ड(Lord Chelmsford) ने ‘साकची’ का नाम बदलकर जमशेदपुर कर दिया। पूर्वी भारत के इस प्रमुख औद्योगिक केंद्र का अधिकांश विकास टाटा स्टील, टाटा पावर, टाटा मोटर्स और टाटा समूह से संबंधित कई अन्य कंपनियों की उपस्थिति के कारण हुआ है। जबकि, जमशेदपुर शहर का विकास रतनजी दादाभाई टाटा के सपनों से हुआ था। वह थॉमस कार्लाइल(Thomas Carlyle) के विचारों से प्रभावित थे, जिन्होंने कहा था कि “जो राष्ट्र लोहे पर नियंत्रण हासिल कर लेता है, वह जल्द ही, सोने पर भी नियंत्रण हासिल कर लेता है।” इस प्रकार, उन्होंने भारत को इस्पात उत्पादन में मजबूत पकड़ बनाने की कल्पना की, क्योंकि, इससे अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर उछाल आ सकता है। बीसवीं सदी के अंत में,एक सर्वोत्तम इस्पात संयंत्र (steel plant)बनाने की अपनी खोज में, वे एक ऐसी जगह का पता लगाने की कठिन यात्रा पर निकल पड़े, जो लौह, कोयला, चूना पत्थर और पानी से समृद्ध थी। उनकी खोज तब समाप्त हुई, जब वे छोटा नागपुर पठार के घने जंगलों में स्थित साकची पहुंचे। सुवर्णरेखा और खरकई नदियों के संगम के पास स्थित, यह संयंत्र के लिए आदर्श विकल्प था। अतः इस्पात संयंत्र का निर्माण 1908 में शुरू हुआ था। बाद में, उन्होंने संयंत्र के श्रमिकों के लिए एक सुनियोजित शहर बनाने का निर्णय लिया। इस दृष्टि के परिणामस्वरुप, जमशेदपुर शहर का विकास हुआ।
टाटा समूह के अलावा, हमारे देश भारत में, गोदरेज(Godrej) यह ब्रांड भी काफ़ी विख्यात है। इस नाम के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है। यह ब्रांड भारत की आजादी से बहुत पहले शुरू किया गया था, और इसे एनी बेसेंट(Annie Besant) और रविंद्रनाथ टैगोर जैसे भारत के महान लोगों का समर्थन मिला ।
7 मई 1897 को, अर्देशिर गोदरेज (Ardeshir Godrej) ने वकालत छोड़ने के बाद, एक छोटी सी जगह पर गोदरेज समूह का काम शुरू किया। उन्होंने पाया था कि, विदेश में निर्मित तालों में एक एकीकृत स्प्रिंग(Spring) होता था जो अक्सर टूट जाता था। अतः उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में इंग्लैंड(England) से आयातित तालों की तुलना में बेहतर ताले बनाए। इससे उनके ताले अधिक किफायती हो जाते थे। इसके बाद, उनके ताले अधिक विपणन योग्य और बिक्री योग्य भी हो गए। आज, विभिन्न उद्योगों में, गोदरेज के परिचालन में लगभग 1.1 बिलियन लोग कार्यरत हैं। वर्तमान समय में भारत के अधिकतर अंतरिक्ष कार्यक्रम गोदरेज कंपनी के इंजनों द्वारा संचालित हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि, गोदरेज ब्रांड का भौगोलिक प्रभाव वास्तव में पृथ्वी से परे भी फैला हुआ है।
पारसी समुदाय का हमारे देश में उद्यमशीलता और व्यावसायिक योगदान बहुत बड़ा रहा है। भारत में कई सामाजिक और आर्थिक सुधारों में सबसे आगे रहने वाले, पारसियों का इतिहास 8वीं शताब्दी में खोजा जा सकता है। तब वे अपनी मातृभूमि– फारस(Persia) अर्थात वर्तमान ईरान(Iran) में, अरेबियन(Arabian) लोगों के उत्पीड़न से बचने के लिए, भारतीय तटों पर चले आए थे।
शुरुआती दौर में पारसी भारत में कृषक थे। लेकिन, बाद में, वे अधिक महत्वाकांक्षी हो गए। उन्होंने 18वीं शताब्दी में चीन(China) और बर्मा(Burma) के साथ व्यापार शुरू किया। पश्चिमी शिक्षा के कारण वे प्रगतिशील विचारक के साथ उद्यमी बन गए और उन्होंने सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ काम करना शुरू किया। अंग्रेजों ने पारसियों को भारत में संपर्क का केंद्र बनाया, और उन्हें भारतीय व्यापारिक माहौल में समृद्ध होने की अनुमति दी। पारसी मुंबई के इतिहास से भी गहराई से जुड़े हुए हैं। कपास के व्यापार को बड़े पैमाने पर पारसी उद्यमियों ने बढ़ावा दिया था। यहां तक कि, मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) के मिल मालिक जो कपड़ा उद्योग में सबसे अधिक सक्रिय थे, वेपेटिट्स वाडिया(कपड़ा और खाद्य-उत्पाद व्यवसायों के मालिक) और टाटा सहित अन्य पारसी थे। जैसे कि हमनें ऊपर पढ़ा है, टाटा, वाडिया और गोदरेज परिवारों के स्वामित्व वाले पारसी व्यापारिक घराने भारत के उद्योग जगत में सबसे आगे हैं।

संदर्भ
http://tinyurl.com/yeyu4az3
http://tinyurl.com/2k63ufpz
http://tinyurl.com/bdhn4ajv
http://tinyurl.com/5fzukcxc

चित्र संदर्भ

1. अर्देशिर गोदरेज और जमशेदजी नुसरवानजी टाटा को संदर्भित करता एक चित्रण ( Tata Group, facebook)
2. बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान की नींव जमशेदजी टाटा ने रखी थी! को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. टाटा समूह के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. जमशेदपुर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. आदि बुर्जोरजी गोदरेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक पारसी विवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)



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