समय - सीमा 268
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1036
मानव और उनके आविष्कार 802
भूगोल 264
जीव-जंतु 306
| Post Viewership from Post Date to 09- Feb-2024 (31st Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2221 | 267 | 0 | 2488 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
2,500 किमी से अधिक लंबी “गंगा नदी” को भारत की सबसे लंबी नदी माना जाता है। भारत के करोड़ों लोग अपनी दैनिक जरूरतों और आजीविका के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर हैं। हालाँकि आमतौर पर लोग एक दूसरे तथ्य को अनदेखा कर देते हैं, लेकिन इंसानों के अलावा लाखों वन्यजीवों और जल जीवों की एक विशाल श्रृंखला भी मां गंगा के अविरल प्रवाह पर ही निर्भर है। वास्तव में गंगा नदी प्रणाली (Ganges River System) को अपनी अद्वितीय पारिस्थितिकी और जैव विविधता (biodiversity) के लिए ही जाना जाता है। यह नदी डॉल्फिन (Dolphin), घड़ियाल, कछुए, ऊदबिलाव, गैर-प्रवासी पक्षियों और रोहू, कैटला और हिल्सन (Rohu, Catla And Hilson) जैसी स्वदेशी कार्प (Indigenous Carp) की प्रमुख प्रजातियों सहित कई जलीय और उप-स्थलीय जीवों को भी आश्रय प्रदान करती है। चलिए आज हम ऐसे कुछ शानदार जीवों के बारे में जानते हैं, जो अपने अस्तित्व के लिए मुख्य रूप से गंगा नदी प्रणाली पर ही निर्भर करते हैं।
1. गंगा डॉल्फिन (Ganga Dolphin): गंगा डॉल्फिन, को गंगा नदी डॉल्फ़िन के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रकार की दांतेदार व्हेल (Toothed Whale) होती है, जो खासतौर पर भारत, नेपाल और बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया की गंगा और संबंधित नदियों में पाई जाती है। यह डॉल्फिन, सिंधु नदी डॉल्फ़िन (Indus River Dolphin) से संबंधित है, जो पाकिस्तान में सिंधु नदी और उत्तर-पश्चिमी भारत की ब्यास नदी में पाई जाती है। गंगा डॉल्फिन में एक आयताकार, रिज (Ridge) जैसा पंख होता है और इस प्रजाति की मादाएं नर की तुलना में बड़ी होती हैं। यह आमतौर पर भूरे, चॉकलेटी भूरे, गहरे भूरे या हल्के नीले रंग की होती है। इसके पास नुकीले और बहुत नुकीले दांतों वाला लम्बा, पतला थूथन होता है। इसे सुसु (लोकप्रिय नाम) या "सिसु" (असमिया भाषा) और शुशुक (बंगाली) नाम से भी जाना जाता है। गंगा डॉल्फिन को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलीय जीव के रूप में मान्यता दी गई है।
2. सारस क्रेन (Sarus Crane): सारस क्रेन संरक्षण की दृष्टि से एक कमजोर, गैर-प्रवासी पक्षी है जिसे इसके विशिष्ट लाल सिर को देखकर आसानी से पहचाना जा सकता है। यह "उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी" भी है और इसे मुख्य रूप से उत्तर तथा मध्य भारत में देखा जा सकता है। भारत-गंगा बाढ़ क्षेत्र जिसे राज्य और देश के सबसे महत्वपूर्ण बाढ़ क्षेत्रों में से एक माना जाता है, इस सारस की सुरक्षा और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 161.3 हेक्टेयर में फैला हुआ और इटावा शहर के पास स्थित, सरसई नावर वेटलैंड (Sarsai Nawar Wetland), एक रामसर स्थल (Ramsar Site) है, जो सारस क्रेन सहित कई अन्य प्रवासी पक्षियों के झुंडों को भी आकर्षित करता है। इस आर्द्रभूमि की कीचड़दार और काली कपास मिट्टी, इन पक्षियों के लिए एक आदर्श आरामगाह साबित होती है और इन्हें घोंसले तथा प्रजनन भूमि प्रदान करती है। इस आर्द्रभूमि में, 400 से अधिक सारस क्रेन देखे जा सकते हैं।
3. गंगा नदी घड़ियाल: गंगा नदी घड़ियाल, जिसे आमतौर पर मछली खाने वाले मगरमच्छ (Fish Eating Crocodile) के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का मगरमच्छ है जो गेवियलिडे परिवार (Gavialidae Family) से संबंधित है। इसे सभी जीवित मगरमच्छों में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले मगरमच्छों में से एक माना जाता है। यह घड़ियाल भी भारत, नेपाल और बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया की गंगा नदी प्रणाली में पाया जाता है। 'घड़ियाल' नाम मिट्टी के बर्तन के लिए हिंदुस्तानी शब्द 'घड़ा' से लिया गया है, जो वयस्क नर के थूथन पर नाक के उभार को संदर्भित करता है। गंगा नदी, कई घड़ियालों का घर मानी जाती है। 2009 और 2012 के बीच, यहाँ से 494 घड़ियालो को हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा गया था। हिंदू पौराणिक कथाओं में, घड़ियाल को माँ गंगा, पवन देव और समुद्री देवता वरुण के वाहन के रूप में दर्शाया जाता है। घड़ियाल के सबसे पुराने ज्ञात चित्रण लगभग 4,000 वर्ष पुराने हैं और सिंधु घाटी में पाए गए थे।
4. बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage): बैक्टीरियोफेज ऐसे वायरस होते हैं, जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं और उन्हें मार देते हैं। उन्हें अक्सर "बैक्टीरिया भक्षक (Bacteria Eater)" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि ये बैक्टीरिया को ठीक उसी तरह से खा जाते हैं जैसे एक बिल्ली, चूहे का शिकार करती है और उसे खा जाती है। बैक्टीरियोफेज नामक बैक्टीरिया को मारने वाले यह वायरस गंगा नदी में भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो इसके पानी को आसानी से खराब न होने का एक अनूठा गुण प्रदान करता है। वैज्ञानिक, एक सदी से भी अधिक समय से गंगा जल के "स्वयं-सफाई और विशेष उपचार गुणों (Self-Cleaning And Special Healing Properties) " का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं और उन्होंने गंगा नदी की इन विशेषताओं के पीछे के कारण के रूप में बैक्टीरियोफेज को ही ज़िम्मेदार बताया है। गंगा में बैक्टीरियोफेज की मात्रा अन्य नदियों की तुलना में काफी अधिक है और इसके पीछे का कारण अभी भी अज्ञात है। हालाँकि, राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक कृष्णा खैरनार के अनुसार, गंगा में नदी की तलछट वायरस को एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करती है, और इसीलिए बैक्टीरिया पर काबू पाने के लिए बैक्टीरियोफेज की क्षमता गंगा के पानी में काफी अधिक है।
5. रोहू: रोहू (लैबियो रोहिता (Labeo Rohita) एक प्रकार की मछली है, जो भारतीय मछलियों की प्रमुख कार्प प्रजाति (Carp Species) से संबंधित है। यह मूल रूप से भारत में गंगा नदी नेटवर्क में पाई जाती है और दुनिया की शीर्ष दस कृषि (मछली पालन) हेतु लाभदायक मछली प्रजातियों में से एक मानी जाती है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/3ckfz2yc
http://tinyurl.com/2e2cpcas
http://tinyurl.com/yp6cd949
http://tinyurl.com/aydjc5vh
http://tinyurl.com/bdd34fv4
चित्र संदर्भ
1. बनारस में गंगा नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गंगा डॉल्फिन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सारस क्रेन को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. गंगा नदी घड़ियाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बैक्टीरियोफेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. रोहू मछली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)