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विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने चाहे कितनी भी प्रगति कर ली हो, लेकिन आज भी कुछ विश्वास एवं मान्यताएँ ऐसी है जो मनुष्य के लिए विज्ञान से परे हैं। आज भी मनुष्य किसी प्रतीक या ऐसे किसी जादुई उपकरण जैसे कि मिर्च-नींबू का धागा, पेड़ पर कपड़ा बांधना, या इसी प्रकार के अन्य प्रतीकों एवं चिन्हों में उतना ही विश्वास करता है जितना कि पहले करता था। आज भी लोगों की मान्यता हैं कि झोपड़ी की मिट्टी की दीवार पर सूर्य और चंद्रमा की आकृति, या शाही हवेली के प्रवेश द्वार के चौखट पर गणपति की प्रतिमा या तस्वीर हर दुर्भाग्य, आपदा और हर अप्रिय वस्तु से उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा करती है। प्रकृति की अदृश्य शक्तियाँ, ग्रहों की स्थिति, ब्रह्माण्ड संबंधी आरेख के अलावा देवी देवताओं की छवियां एवं मूर्तियाँ आदि, यहां तक कि एक मामूली काला धागा भी व्यक्ति की मान्यताओं एवं आस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारतीय संस्कृति में ऐसे कई प्रतीक, चिन्ह एवं वस्तुएं हैं जिन्हें मनुष्य अपनी आस्था एवं मान्यताओं से जोड़ता है। शंख, कमल, दीपक, कलश, धार्मिक पुस्तकें, हंस और मोर जैसे पक्षी, मछली और कछुआ जैसे जलीय जीव, शेर, गाय और हाथी जैसे जानवरों की प्रतिमाओं एवं चित्रों में भी पारलौकिक शक्ति का प्रभाव माना जाता है। वेद आदि धार्मिक पुस्तकों को ब्रह्मा एवं ज्ञान की देवी सरस्वती के प्रतीक के रूप में ज्ञान अर्जित करने के लिए अत्यंत आवश्यक प्रतीक माना जाता है। वैष्णव परंपरा में शंख राक्षसी शक्तियों के अंत का प्रतिनिधित्व करता है । इसके अलावा शंख को किसी घटना, युद्ध या संस्कार की शुरुआत की घोषणा का प्रतीक भी माना जाता है जो परिवर्तन लाता है। देवी सरस्वती की सवारी होने के साथ साथ हंस को पवित्रता और मूल्यों के पालन का प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके अलावा सूर्य, चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों का प्रतिनिधित्व करने वाले रूपांकन, तांत्रिक चित्र, विभिन्न यंत्र, कुंभ, या पूर्ण-कुंभ, अनुष्ठानिक रूप से सिद्ध या पवित्र, वैचारिक या ग्राफिक प्रतीक जैसे श्रीमुख या कीर्तिमुख, या पवित्र शब्दांश ‘ओम’ आदि अन्य ऐसी वस्तुएं एवं धारणाएं हैं जिनमें मनुष्य सदियों से करिश्माई शुभ-प्रदाता शक्ति देखता आया है। अभीष्ट सिद्धि के अतिरिक्त अधिकांश प्रतीक किसी न किसी अनुष्ठान के घटक भी होते हैं। आइये इनमें से कुछ के बारे में जानते हैं। नारियल: एक सामान्य खाद्य स्रोत होने के अलावा नारियल सदैव एक शुभ वस्तु के रूप में पूजनीय रहा है जो अच्छाई और कल्याण का प्रतीक माना जाता है। सूर्य चिन्ह या प्रतीक: वैदिक साहित्य में सूर्य को न केवल एक ग्रह या खगोलीय पिंड, बल्कि इसके बजाय संपूर्ण ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्रोत और सर्वोच्च देवता माना जाता है। सूर्य को ही 'हव्य' - 'यज्ञ' की अग्नि को दी गई आहुति प्रदान की जाती है। पद-चिह्न: पद-चिह्न एक अन्य महत्वपूर्ण वैदिक प्रतीक है। प्रारंभ में पद-चिह्न को सूर्य का प्रतीक माना जाता था। प्राचीन काल में यज्ञ के समय सूर्य का आह्वान करने पर यज्ञ-शाला के प्रवेश द्वार पर पद-चिह्न यह विश्वास करते हुए लगाया जाता था कि उनके आह्वान को स्वीकार करने के बाद सूर्य अंदर प्रवेश करेंगे। बाद में, विष्णु के यज्ञ के मुख्य देवता के रूप में पूजन के पश्चात, प्रवेश द्वार पर पद-चिह्न का चिह्न विष्णु के पद-चिह्न में परिवर्तित हो गया। श्री पदम: श्री पदम को समृद्धि की देवी लक्ष्मी के पैरों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीक के रूप में माना जाता है। आज भी भारत में घर के प्रवेश द्वार पर श्रीपदम लगाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि समृद्धि की देवी अपने पैरों की छाप से घर के अंदर धन और सौभाग्य लाती हैं। ॐ: पवित्र ॐ शब्द सर्वोच्च का प्रतीक है। यह ब्रह्मांडीय नाद-ध्वनि का भी प्रतीक है, और मान्यता है कि वैदिक ऋषियों ने इसे ध्यान के एक उपकरण के रूप में विकसित किया है। ॐ वह ध्वनि है जो तीनों ब्रह्मांडीय क्षेत्रों, पृथ्वी, आकाश और महासागर में गूंजती है। कीर्तिमुख: कीर्तिमुख, जिसे 'श्रीमुख' के नाम से भी जाना जाता है, एक शुभ प्रतीक के रूप में सार्वभौमिक रूप से पूजनीय है। शुरुआत में कीर्तिमुख की कल्पना एक रहस्यमय मुखौटे के रूप में की गई थी। कीर्तिमुख प्रतीक, जिसे अक्सर 'श्री’ अर्थात लक्ष्मी जी का मुख माना जाता है, मानव मुख के कुछ गुणों के साथ एक खतरनाक जानवर के रूप को मिलाकर बनाया गया है। भारत में कीर्तिमुख एक मिश्रित सिंह रूप है। इन प्रतीकों एवं चिन्हों के अलावा ‘रूट इंस्टीट्यूट’, बोधगया (Root Institute,Bodhgaya) के लामा ज़ोपा रिनपोछे द्वारा आठ ऐसे शुभ संकेत एवं प्रतीक बताए गए हैं जो शायद हममें से बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि ये आठ शुभ संकेत कितने महत्वपूर्ण हैं और ये हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर सकते हैं। इन आठ शुभ चिन्हों को हर जगह, बाहर और कमरे के अंदर भी लगाने से चीजें बहुत शुभ होती हैं। सभी आठों को एक ही स्थान पर रखने की आवश्यकता नहीं है। इन्हें अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रखा जा सकता है। ये आठ शुभ चिन्ह निम्नलिखित हैं: 1. अमुल्य छाता: अमुल्य छाता हमें जीवन की सभी बाधाओं से बचाता है - जैसे कि बीमारियाँ, संक्रामक रोग, प्रेतात्मा, आदि। इसके अलावा यह हमारे अगले जीवन की बाधाओं को भी दूर करता है। यह हमें अस्थायी और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के कष्टों से बचाता है। इसमें शांति और प्रसन्नता की शीतल छाया का विस्तारित आनंद प्रदान करने की असीम संभावना है। 2. पीली मछली: मछलियाँ समुद्र में बिना किसी डर के अपनी इच्छानुसार तैरती हैं और स्वयं के लिए और दूसरों के लिए एक निर्भर उद्भव है, जो दुख के महासागर में डूबने के डर के बिना, खुशी की ओर बिना किसी प्रतिरोध के आनंद के लिए तैरती हैं। वैसे ही पीली मछली का प्रतीक रखने से बिना डरे खुशी एवं प्रसन्नता से, बिना किसी प्रतिरोध के, हम जीवन व्यापन करने के लिये प्रेरित हो जाते हैं है। 3. फूलदान: फूलदान खज़ाने से भरे कलश का प्रतीक है, जो व्यक्ति के जीवन में निरंतर सभी वांछित वस्तुएँ, एक शानदार जीवन का सौभाग्य, आनंद और शांति लाता है। 4. कमल: कमल हमें शरीर, वाणी और मन के सभी अवगुणों से मुक्त करता है। कमल की खिली हुई पंखुड़ियां हमारे जीवन में शाश्वत खुशी, निश्चित अच्छाई और मुक्ति ले कर आती हैं। 5. सफेद शंख: दक्षिणावर्त घूमता हुआ सफेद शंख गहन और व्यापक धर्म की मधुर धुन का उद्घोष करने वाला एक आश्रित उद्भव है जो प्राणियों को अज्ञान की नींद से जगाता है और उन्हें अपने और दूसरों के लाभ और खुशी के लिए कार्य पूरा करने के लिए प्रेरित करता है।
6. गौरवशाली पेउ: धर्म और राजनीति से उत्पन्न गौरवशाली पेउ एक सतत संबंध में सहयोग और समर्थन का प्रतीक है। 7. पताका: पताका पर बाधाओं या असंगत परिस्थितियों का प्रभाव नहीं पड़ता है, बल्कि यह बुद्ध की अनमोल शिक्षाओं द्वारा जीवन रूपी युद्ध में विजयी होने के लिए प्रेरणा स्रोत का प्रतीक है। 8. स्वर्णिम धर्मचक्र: स्वर्णिम धर्मचक्र, पवित्र धर्म के अनमोल चक्र, शास्त्रों और ज्ञानी व्यक्ति के बोध से उत्पन्न पूरे ब्रह्मांड में निरंतर घूमने वाले चक्र का प्रतीक है। मान्यता है कि जहां भी ये आठ शुभ लक्षण मौजूद होते हैं, वहां शुभता के गुण की वृद्धि होना निश्चित है।
इसके अलावा कई संस्कृतियों में, हाथी को सौभाग्य, शक्ति, बुद्धि और प्रजनन क्षमता का प्रतीक माना जाता है। आपने अक्सर लोगों के घर के प्रवेश द्वार के पास या सामने के दरवाज़े के अंदर या बरामदे में हाथी की मूर्तियां लगी हुई देखी होंगी। वास्तव में बरामदे में दरवाज़े से विपरीत दिशा में लगी हाथी की मूर्ति घर की रक्षा और घर में सौभाग्य लाती है । यह आपके घर को सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है।यद्यपि हाथी की मूर्तियाँ शानदार सजावट भी करती हैं। सौभाग्य के लिए हाथी की मूर्तियाँ घर के अन्य क्षेत्रों में भी रखी जा सकती हैं:
कार्यालय में, हाथी की मूर्ति को रखने का अर्थ ज्ञान और शक्ति है। कार्यालय में, हाथी की मूर्ति कार्यक्षेत्र को ऊर्जावान बनाती है। कमरे या बच्चों के खेलने के स्थान पर हाथी की मूर्ति रखने से परिवार के सदस्यों के बीच संबंध मज़बूत होते हैं। शयनकक्ष में हाथी की मूर्ति या तस्वीर लगाने से प्रेम में बढ़ोतरी होती है और बच्चों के कमरे में हाथी का स्थान ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है । हाथी को भगवान श्री गणेश का रूप भी माना जाता है, जिनको सभी यज्ञो एवं विधानों में प्रथम पूजनीय माना जाता है। क्या आप जानते हैं कि श्रीगणेश न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में पूजनीय हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ग्वाटेमाला संग्रहालय (Guatemala Museum) मेक्सिको सिटी के डिएगो रिवेरा (Mexico City’s Diego Riviera) मेक्सिको के वेरा क्रूज़ (Vera Cruz in Mexico) राज्य और वेनेजुएला के क्विरागुआ (Venezuela’s Quiragua) में भगवान गणेश की मूर्तियां एवं तस्वीरें देखी जा सकती है। इसके अलावा मध्य अमेरिका (Central America) में हुई खुदाई में मिली पांडुलिपियों से बिना किसी संदेह के यह बात सिद्ध होती है कि एज़्टेक (Aztec) संस्कृति में भगवान गणेश की पूजा की जाती थी। अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (Alexander Von Humbolt) नामक एक यूरोपीय मानवविज्ञानी ने 150 साल से भी पहले लिखा था कि मेक्सिकोवासी एक मानव आकृति की पूजा करते थे जिसका सिर हाथी जैसा दिखता था, जो कि भगवान गणेश के साथ एक उल्लेखनीय और गैर-आकस्मिक समानता है। इसके साथ ही भगवान गणेश को प्राचीन रोम (Rome) के जैनस (Janus) नामक एक देवता से भी जोड़ा जाता है। भगवान गणेश के समान ही शुभ शुरुआत करने के लिए जैनस की प्रार्थना की जाती है। संरक्षक के रूप में जैनस की छवियाँ भी दरवाज़े पर स्थापित की जाती हैं।
अपने भक्तों के लिए, भगवान गणेश विघ्नहर्ता अर्थात बाधाओं को दूर करने वाले देव हैं। भगवान गणेश की पूजा न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में की जाती है, हालांकि प्रत्येक क्षेत्र की स्थानीय परंपराओं के अनुसार भगवान गणेश के रूप और नाम अलग अलग हो सकते हैं। यदि ईरान में भगवान गणेश को पारसी वस्त्र पहने हुए दिखाया जाता है, तो थाईलैंड में उन्हें अपने हाथों में एक पौधा पकड़े देखा जा सकता है। दक्षिण भारत और श्रीलंका में उन्हें कुलीन बालक या पिल्लैयार (Pillaiyar) कहा जाता है, जबकि तिब्बती उन्हें त्सोग्सबदाग (Ts’ogsbdag) बुलाया जाता है। कंबोडियाई लोग उन्हें प्राह केन्स (Prah Kenes) के नाम से संबोधित करते हैं तो मंगोलियाई लोग उन्हें टोटखारौर खगन (Totkharour Khagan) कहते हैं जबकि जापान में उन्हें विनायकसा या शो-टेन (Vinayaksa or Sho-ten) के नाम से जाना जाता है। अलग अलग वेशभूषा और नाम के बावजूद, भगवान गणेश शुभता, सौभाग्य और खुशी का एक सार्वभौमिक प्रतीक हैं।
संदर्भ
https://shorturl.at/efNTX
https://shorturl.at/fRZ36
https://shorturl.at/fyAKP
https://shorturl.at/IRY69
चित्र संदर्भ
1. सफ़ेद कमल को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. सूर्य देव के सात घोड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (StockVault)
3. नारियल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सूर्य चिन्ह को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
5. पद-चिह्न को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)
6. श्री पदम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. पवित्र ॐ शब्द को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. कीर्तिमुख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. अमुल्य छाता को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
10. पीली मछली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
11. फूलदानों को संदर्भित करता एक चित्रण (PickPik)
12. कमल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
13. शंख को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
14. धर्म पताकाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
15. स्वर्णिम धर्मचक्र को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
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