पोस्टकार्ड ने ऑस्ट्रिया से लेकर भारत और दुनिया भर में कैसे डाक संचार में क्रांति ला दी

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पोस्टकार्ड ने ऑस्ट्रिया से लेकर भारत और दुनिया भर में कैसे डाक संचार में क्रांति ला दी

पोस्टकार्ड (Postcard) का आविष्कार सन 1869 में हुआ था, और देखते ही देखते यह संदेश भेजने का एक लोकप्रिय और किफायती जरिया बन गया। लोग इन्हें एकत्र करना भी खूब पसंद करते थे, और इसी प्रवृत्ति के कारण 1900 के दशक की शुरुआत से लेकर प्रथम विश्व युद्ध तक, पोस्टकार्ड की लोकप्रियता आसमान छूने लगी। आजकल, पोस्टकार्ड की तुलना में ईमेल और सोशल मीडिया (Email And Social Media) जैसी, डिजिटल संचार विधियों (Digital Communication Methods) का अधिक उपयोग किया जाता है।
पोस्टकार्ड की अवधारणा, पहली बार 1869 में ऑस्ट्रिया-हंगरी (Austria-Hungary) में डॉ. इमानुएल अलेक्जेंडर हेरमैन (Emanuel Alexander Herrmann) के द्वारा पेश की गई थी। इमानुएल अलेक्जेंडर हेरमैन, का जन्म 24 जून, 1839 को ऑस्ट्रिया के क्लागेनफर्ट (Klagenfurt, Austria) में हुआ था। वह एक ऑस्ट्रियाई अर्थशास्त्री थे, लेकिन आज उन्हें पोस्टकार्ड के अंतरराष्ट्रीय विकास में अंतिम प्रमुख आविष्कारक के रूप में पहचाना जाता है। 26 जनवरी, 1869 को, उन्होंने ऑस्ट्रिया के शीर्ष समाचार पत्र, न्यू फ़्री प्रेसे (Neue Freie Presse) में एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक "डाक पत्राचार के एक नए साधन के बारे में" था। उन्होंने सुझाव दिया कि लिफाफे के आकार के सभी कार्ड, चाहे हस्तलिखित हों, कॉपी किए गए हों या मुद्रित हों, उन्हें डाक के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, यदि उनमें पते और प्रेषक के हस्ताक्षर सहित 20 से अधिक शब्द न हों, और ऑस्ट्रिया का 2-क्रूज़र डाक टिकट (2-Kreuzer Postage Stamp) प्रदर्शित हो। ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के उस युग में, ये पोस्टकार्ड दो भाषाओं (जर्मन और हंगेरियन) में उपलब्ध थे और इन्होनें जल्द ही लोकप्रियता हासिल कर ली। 1870 में, ब्रिटेन (Britain) ने भी पोस्टकार्ड के विचार को अपनाया, जिनकी बनावट हंगेरियन पोस्टकार्ड के समान ही थी और ये कार्ड दो आकारों में आते थे। ये पोस्टकार्ड एक तरफ मुद्रित होते थे और दूसरी तरफ निजी या व्यावसायिक संदेशों के लिए खाली रहते थे। इसके बाद पोस्टकार्ड के प्रचलन ने औपचारिक पत्रों के त्वरित, संक्षिप्त और किफायती विकल्प प्रदान करके डाक संचार में क्रांति ला दी थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि 1871 में अकेले ब्रिटेन में लगभग, 75 मिलियन पोस्टकार्ड भेजे गये थे। 1910 में किंग एडवर्ड सप्तम (King Edward VII) के शासनकाल के अंत तक यह संख्या बढ़कर प्रति वर्ष 800 मिलियन से अधिक हो गई।
भारत में पोस्टकार्ड शुरू करने का श्रेय, कर्नल फ्रेडरिक ब्राइन (Colonel Frederick Brine) को दिया जाता है। उन्होंने अपने स्वयं के कार्ड छपवाकर सरकार को पोस्ट-कार्ड को वैध बनाने के लिए मजबूर कर दिया। प्रारंभ में, इन कार्डों पर टिकटों की आवश्यकता होती थी। हालाँकि, 1879 में पोस्ट ऑफिस कार्ड (Post Office Card) की शुरुआत के बाद यह दर कम कर दी गई थी। 1905 से पहले, निजी कार्ड आमतौर पर 121 X 74 मिमी के होते थे, जो पोस्ट ऑफिस कार्ड के आकार के समान थे। इन कार्डों में एक तरफ संदेश और दूसरी तरफ पते के लिए जगह होती थी। पते की तरफ अक्सर एक डिज़ाइन या चित्र होता है, साथ ही कार्ड का ऑर्डर देने वाली कंपनी का नाम और पता और प्रिंटर का नाम भी होता है। ये कार्ड आम तौर पर बाद के बाज़ार कार्डों की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाले होते थे। आज के समय में पोस्टकार्ड एकत्रित करना टिकटों (Stamps) और मुद्रा (currency) इकट्ठा करने के बाद, सबसे आम शौक बन गया है। पोस्टकार्ड के अध्ययन और संग्रह को डैलटीओलॉजी (Deltiology) के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में दुर्लभ पोस्टकार्डों की कीमत लाखों रुपयों में होती है। परंतु पुराने पोस्टकार्डों की कीमत उनकी स्थिति, दुर्लभता, आयु और विषय वस्तु सहित कई कारकों पर निर्भर करती है। यदि पोस्टकार्ड पर किसी प्रकार की खराबी अर्थात उसमें दाग धब्बे हो या कहीं से फटा हो तो इसकी कीमत पर असर पड़ता है। यदि आप भी पोस्टकार्ड संग्रह में रूचि रखते हैं तो आप हमारे ही देश के रत्नेश माथुर और संगीता माथुर द्वारा लिखित और नियोगी बुक्स (Niyogi Books) द्वारा प्रकाशित की गई “पिक्चरेस्क इंडिया: अ जर्नी इन अर्ली पिक्चर पोस्टकार्डस” (Picturesque India: A Journey In Early Picture Postcards (1896-1947) नामक पुस्तक के ज़रिये भारत के दुर्लभ और कीमती पोस्टकार्डों का संग्रह भी देख सकते हैं। ये पोस्टकार्ड औपनिवेशिक भारत से यूरोपीय लोगों द्वारा भेजे गये थें। इस किताब में कुल 500 पोस्टकार्ड्स की तस्वीरें दी गई हैं, जो भारत के हर राज्य के इतिहास और समय के साथ उनके शहरों के विकास को दर्शाती हैं। हालांकि आज हमारे पास सीधे तौर पर हमारे जौनपुर को दर्शाता कोई पोस्टकार्ड नहीं है, लेकिन ऊपर दिए गए पोस्टकार्ड में आप जौनपुर के निकट बसे आध्यात्मिक शहर वाराणसी को देख सकते हैं। यह 1900 का एक पुराना पोस्टकार्ड है, जिसमें बनारस, जिसे वाराणसी भी कहा जाता है, का विहंगम दृश्य दिखाया गया है । वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। यह शहर 3000 वर्षों से धार्मिक शिक्षा और सभ्यता का केंद्र रहा है। जैसा कि अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन (Mark Twain) ने एक बार कहा था, "बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपरा से भी पुराना है, यहां तक कि किंवदंतियों से भी पुराना है, और उन सभी को मिलाकर देखने पर यह उससे भी दोगुना पुराना दिखता है।"
यह पवित्र गंगा नदी के तट पर, गंगा घाटी में स्थित है। हमारे इस पवित्र शहर की हमारी संस्कृति में महत्वपूर्णता को देखते हुए, कई देशी व् विदेशी कंपनियों ने वाराणसी के अनेकों पोस्टकार्ड छापे। उक्त पोस्टकार्ड में बनारस के प्रसिद्ध घाटों को दर्शाया गया है।

संदर्भ
Http://Tinyurl.Com/55janeba
Http://Tinyurl.Com/4zabj52e
Http://Tinyurl.Com/5edzamde
Http://Tinyurl.Com/Mpk8ast8
Http://Tinyurl.Com/Bdhzr5mv
Http://Tinyurl.Com/48jtrtw9

चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के शाही पुल को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. डॉ. इमानुएल अलेक्जेंडर हेरमैन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत की ओर से शुभकामनाएँ - लैरी फुल्टन पोस्टकार्ड को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. 1906 के पोस्टकार्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. पिक्चरेस्क इंडिया: अ जर्नी इन अर्ली पिक्चर पोस्टकार्डस” नामक पुस्तक के मुख्य पृष्ठ को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
6. वाराणसी को दर्शाते एक पोस्टकार्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (ebay)
7. इस पोस्टकार्ड में भी आप जौनपुर के निकट बसे आध्यात्मिक शहर वाराणसी को देख सकते हैं। यह 1900 का एक पुराना पोस्टकार्ड है। को संदर्भित करता एक चित्रण (past-india)