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आज डिजिटलीकरण के इस युग में ध्यान भटकना और एकाग्रता में कमी आना एक आम समस्या बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अल्प ध्यान अवधि जैसी गंभीर समस्याओं को दूर करने के लिए, "तत्व बोध" ज्ञान में एक पुरानी और कारगर विधि दी गई है, जो मन को प्रशिक्षित करती है। तत्त्वबोध, वेदांत और आध्यात्मिक दर्शन से जुड़ा हुआ एक मूल पाठ है। इसे 8वीं शताब्दी में भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक “आदि शंकराचार्य” के द्वारा लिखा गया था। इसे वेदांत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए एक महान प्रारंभिक बिंदु माना है, क्योंकि इसमें वेदांत के मुख्य विचारों और शर्तों को स्पष्ट रूप से समझाया गया है। परम सत्य और ज्ञान की प्राप्ति के लिए यह एक सरल और उपयोगी ग्रन्थ है,
इसमें आधुनिक समय में ध्यान भटकने और मन को एकाग्र करने की भी कई विधियाँ सुझाई गई हैं। इन विधियों को "शत संपत" और "साधना चतुष्टय" के नाम से जाना जाता है। ये वेदांत दर्शन के महत्वपूर्ण भाग हैं। “साधना चतुष्टय” को आत्म-नियंत्रण, आत्म-शुद्धि, और स्वयं को परमात्मा के साथ जुड़ाव के लिए तैयार करने की चार चरणों वाली प्रक्रिया माना जाता है। अभ्यास की इन चार विधियों या चरणों को (विवेक, वैराग्य, शत-संपत और मुमुक्षुत्व) के नाम से जाना जाता है। इन चार योग्यताओं को प्राप्त करने के बाद, व्यक्ति सत्य की खोज के लिए उपयुक्त अधिकारी बन जाता है।
तत्व बोध में वर्णित है कि, किसी भी चीज़ का अनुसरण करने से पहले हमें यह पता होना चाहिए कि वह चीज़ वास्तव में क्या है? इसी स्पष्टता अथवा हम जो चाहते हैं और जो नहीं चाहते हैं, उसके बीच अंतर कर सकने की क्षमता को “विवेक” या “सही समझ” कहा जाता है। आसान शब्दों में सत्य और असत्य के बीच अंतर बताने की क्षमता को ही “विवेक” या “सही समझ” कहा जाता है। झूठ या असत्य, संवेदी वस्तुओं की उस दुनिया को कहा जाता है, जिसे हम अपने चारों ओर देखते हैं। झूठ हमारे सामने एक नक़ाब की तरह काम करता है, जो हमें इसके पीछे की वास्तविक सच्चाई को देखने से रोकता है। इसलिए हमें अपने अनुभव के इन दो पहलुओं के बीच अंतर करने की ज़रूरत है। हम अपनी आकांक्षाओं के प्रति कुछ हद तक, भावनात्मक रूप से जागरूक होते हैं। छोटे बच्चे (विशेष रूप से धार्मिक माहौल में पले-बढ़े बच्चे) अक्सर धार्मिक जीवन जीने की आकांक्षा रखते हैं। वे निरंतर भगवान का नाम जपते हैं, भगवान से प्रार्थना करते हैं और धार्मिक जीवन जीते हैं। बच्चे इन विचारों को अक्सर अपने माता-पिता से ग्रहण करते हैं। लेकिन जब वे इन विचारों को व्यक्त करते हैं, तो वे पूरी तरह से समझ नहीं पाते हैं कि उनका वास्तव में क्या मतलब है?
इसी प्रश्न के उत्तर की तलाश में “शत-संपत” अहम् भूमिका निभाता है। दरअसल शत-संपत ज्ञान योग में छह गुणों से बना है और साधना चतुष्टय का हिस्सा है, जिसे ज्ञान के चार स्तंभों के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये गुण एक योगी को भौतिक संसार के भ्रम से उबरने में मदद करते हैं। शत-संपत को एक प्रकार के मानसिक प्रशिक्षण के रूप में देखा जाता है, जो एक योगी को अपने मन पर अनुशासन और नियंत्रण विकसित करने में मदद करता है।
जिस प्रकार आपकी बुद्धि को विवेक तथा वैराग्य के माध्यम से अनुशासित करने की आवश्यकता है, उसी प्रकार आपके हृदय को भी अनुशासित करने की आवश्यकता पड़ती है। आपका हृदय आपके मस्तिष्क या बुद्धि की तुलना में आपका अधिक सटीक प्रतिनिधित्व करता है। इस तीसरे पहलू को शत-संपत के रूप में जाना जाता है, जो छह गुणों के अधिग्रहण को संदर्भित करता है। इन गुणों को एक वास्तविक खज़ाना माना जाता है, क्योंकि ये बहुत मूल्यवान होते हैं।
इन छह मूल्यवान गुणों की सूची निम्नवत दी गई हैं:
- शम: शांत रहने और शांतिपूर्ण दिमाग बनाए रखने की क्षमता।
- दम: बाहरी इंद्रियों को नियंत्रित करने की क्षमता।
- उपरति या उपरम: ऐसी किसी भी चीज़ का त्याग करना है जो आपके धर्म, या कर्तव्य के अनुरूप नहीं है।
- तितिक्षा: यह कष्ट सहने की क्षमता है।
- श्रद्धा: यह गुरु, ग्रंथों और ज्ञान योग के मार्ग में विश्वास है ।
-समाधान: इसमें मन की पूर्ण एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
विवेक और वैराग्य, बौद्धिक तथा तर्कसंगत अवधारणाएँ होती हैं, जिनके लिए बहुत अधिक तार्किक सोच और समझ की आवश्यकता होती है। इसके अलावा मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा को मुमुक्षुत्वम् कहा जाता है। इन सभी गुणों के बारे में आदि शंकराचार्य की तत्वबोध नामक पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गई है। यह संस्करण कई अनुवादों पर आधारित है और इसे आसानी से पढ़ने के लिए सरल अंग्रेजी और हिंदी में लिखा गया है, जिसे आप निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करके पूरा पढ़ सकते हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/463x4crp
http://tinyurl.com/bmhksk4z
http://tinyurl.com/yunf552r
http://tinyurl.com/4n6amv4m
चित्र संदर्भ
1. आदि शंकराचार्य और उनके शिष्यों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. तत्व बोध के प्रथम पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. साधना चतुष्टय लेखन को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. हिन्दू साधक को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
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