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इस्लामिक इतिहास में रूचि रखने वाले अधिकांश लोग यह बात जानते होंगे कि “अपनी चौथी “उदासी” यानी अध्यात्मिक यात्रा के दौरान, गुरु नानक देव जी ने मक्का की तीर्थयात्रा भी की थी।” इस यात्रा में उनके साथ उनके एक मुस्लिम शिष्य भाई “मरदाना” भी थे। अन्य तीर्थयात्रियों के साथ घुलने-मिलने के लिए, गुरु नानक देव जी “इहराम” पहनकर मक्का पहुंचे थे। इहराम, तीर्थयात्रा करने वाले हाजियों या मुसलमानों द्वारा पहने जाने वाले पारंपरिक परिधान को कहा जाता है। मक्का की इस यात्रा को गुरु नानक की आखिरी और सबसे लंबी उदासी माना जाता था। गुरु नानक देव जी की यह चौथी उदासी, या आध्यात्मिक यात्रा, 1519 से 1521 तक चली। इस यात्रा में गुरु नानक के मित्र और साथी भाई मर्दाना ' रबाब ' नामक संगीत वाद्ययंत्र बजाते थे। “मरदाना ने ही गुरु नानक देव जी से अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि, उन्हें मक्का जाना है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब तक एक मुसलमान मक्का नहीं जाता तब तक वह सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है।” गुरु नानक देव जी ने जब यह बात सुनी तो वह, मरदाना को साथ लेकर मक्का के लिए निकल पड़े। एक लोकप्रिय धारणा है कि गुरु नानक देव जी और भाई मरदाना ने मक्का की यात्रा पैदल ही तय की थी, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि यह यात्रा संभवतः ऊंट से तय की गई थी, जो उस समय इस क्षेत्र में परिवहन का एक सामान्य साधन हुआ करता था।
हालांकि लोगों में एकता और सद्भावना का संदेश फैलाने के लिए उन्होंने, दक्षिण भारत, पूर्वी भारत और उत्तर भारत के अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों की यात्रा पहले ही कर ली थी। अपनी चौथी उदासी में भी गुरु नानक ने सार्वभौमिक प्रेम और समानता के संदेश को साझा करते हुए कई शहरों और कस्बों की यात्रा की।
अपनी चौथी यात्रा अर्थात उदासी में उन्होंने निम्नलिखित क्षेत्रों की यात्राएँ की”
➲ मुल्तान, लखपत, कराची (वर्तमान पाकिस्तान)
➲ अद्दन, जेद्दा, अल मक्का, मदीना (वर्तमान सऊदी अरब)
➲ बगदाद, बसरा, कर्बला (वर्तमान इराक और ईरान)
➲ बुशहर, खोर्रमशहर (वर्तमान ईरान)
➲ तेहरान, अश्गाबात, उर्गेन्च, बुखारा, समरकंद (वर्तमान तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान)
➲ कंधार, काबुल, हसन अब्दाल, जलालाबाद (वर्तमान अफगानिस्तान)
➲ तुर्की, अज़रबैजान, अफ्रीका और रोम में शिलालेख
अपनी इस यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात श्रद्धेय मुस्लिम संत बाबा शेख फरीद के ग्यारहवें उत्तराधिकारी शेख ब्रहम से भी हुई थी। गुरु नानक की मक्का यात्रा का समर्थन करने के लिए कई सिख और गैर-सिख, दोनों ऐतिहासिक दस्तावेजों के सबूत उपलब्ध हैं। ऐसा ही एक दस्तावेज़ सियाहतो बाबा, “नानक शाह फ़क़ीर” भी है, जिसे हाजी ताजुद्दीन नक्शबंधी द्वारा लिखा गया है। हाजी ताजुद्दीन नक्शबंधी, हज यात्रा के दौरान ईरान में गुरु नानक से मिले थे। ताजुद्दीन ने गुरु नानक के साथ अपनी यात्राओं को रिकॉर्ड किया, और 1512 ईस्वी के आसपास मदीना में पुस्तकालय में अपनी डायरी जमा की। इससे पता चलता है कि गुरु नानक 1511 और 1513 ईस्वी के बीच लगभग एक से दो वर्षों तक मक्का और बगदाद सहित मध्य पूर्व में रहे थे। ईरान में हज यात्रा के दौरान मुस्लिम विद्वान हाजी ताजुदीन नक्शबंधी ने गुरु नानक के साथ अपनी बातचीत का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण किया।
हाजी ताजुदीन नक्शबंधी के अलावा ख्वाजा जैन-उ-लबदीन (जो नानक के मक्का जाने पर वहां मौजूद थे।),ने भी गुरु नानक के साथ घटी एक दिलचस्प घटना के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा है, वे (गुरु नानक देव जी) बहुत थके हुए थे, इसलिए उन्होंने मस्जिद में आराम करने का फैसला किया। लेकिन आराम करते समय गुरु नानक के पैर मस्जिद की एक पवित्र इमारत “काबा” की ओर मुड़े हुए थे। यह देखकर रुकन्दिन नामक एक मुस्लिम संत गुरु नानक से बहुत अधिक नाराज़ हो गए, क्योंकि उन्हें ऐसा लगा कि गुरु नानक, मुस्लिमों के पवित्र स्थान का सम्मान नहीं कर रहे हैं। गुरु नानक को मक्का की ओर पैर किये हुए देखकर रुकन्दिन को क्रोध आ गए। वह तुरंत चिल्लाये। "क्या तुम नहीं जानते कि यह भगवान का घर है, मूर्ख? तुम काबा की ओर पैर करके क्यों लेटे हो?" यह सुनकर चैन से सोये हुए गुरु नानक देव जी जग गये। उन्होंने कहा, "हे श्रीमान, मुझे खेद है कि मुझे पता नहीं चला। मैं थका हुआ था इसलिए बस लेट गया और सो गया। क्या आप मेरे पैरों को उस तरफ कर सकते हैं जहां कोई भगवान नहीं है?"
रुकन्दिन ने तुरन्त उनकी टाँगें पकड़ लीं और दूसरी ओर खींच लिया। लेकिन रुकन्दिन ने देखा कि काबा अभी भी गुरु नानक के पैरों के सामने है। फिर उन्होंने गुरु नानक के पैरों को दूसरी ओर मोड़ा लेकिन इस बार भी काबा उनके पैरों के सामने ही था। यह दृश्य देखकर रुकन्दिन इतने भयभीत हो गए कि वह कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे।
इसके बाद गुरु नानक ने कहा, "रुकन्दिन, भगवान एक जगह नहीं रहते, बल्कि वह हर जगह रहते हैं।" इतना कहकर गुरु नानक और मरदाना भजन गाने लगे। उनके आसपास लोगों की भीड़ जमा हो गई। वे गुरु नानक को 'बाबा नानक' कहते थे। 'बाबा' का अर्थ है बूढ़ा और बुद्धिमान व्यक्ति। कुछ दिनों के बाद गुरु नानक और मरदाना, मदीना और बगदाद चले गये। बगदाद में उनकी मुलाकात एक दूसरे मुस्लिम संत बहलोल से हुई। उनके बीच लंबी बातचीत हुई और वह दोनों मित्र बन गए। बहलोल ने बाबा नानक से पूछा, "भगवान के बारे में आपका क्या विचार है?"
गुरु नानक ने उत्तर दिया, "भगवान एक है। वह सच्चा है। वह सब कुछ बनाता है। वह किसी से नहीं डरता। वह पैदा नहीं होता। वह कभी नहीं मरता। वह स्वयं निर्मित है। हमें केवल उसकी प्रार्थना करनी चाहिए।"
लंबे समय तक वहां के आसपास के क्षेत्रों की यात्रा करने के बाद गुरु नानक पेशावर से गुजरते हुए वापस पंजाब लौट आए। कुल मिलाकर गुरु नानक की यात्रा विभिन्न धर्मों के प्रति उनके खुले विचारों और मानवता की एकता में उनके विश्वास का प्रमाण थी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/275snty8
https://tinyurl.com/4766ypb5
https://tinyurl.com/mt48xa7y
https://tinyurl.com/34z92azy
चित्र संदर्भ
1. मक्का में गुरु नानक देव जी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. गुरु नानक और मरदाना को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
3. इबादद के बीच में खड़े गुरु नानक देव जी को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
4. मक्का में मरदाना और बाला के साथ गुरु नानक को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. गुरु नानक की यात्रा के दौरान मक्का की उपस्थिति को दर्शाता एक चित्रण (PICRY)
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