City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2232 | 157 | 2389 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
दुनियां के इतिहास में भारतीयों के योगदान को हमेशा ही दबाया गया है। लेकिन भारत और यहां के निवासियों ने इस दुनियां को एक बेहतर स्थान बनाने में हमेशा से ही बहुत अहम् भूमिका निभाई है। क्या आप जानते हैं, कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटेन की ओर से बड़ी संख्या में कई भारतीय सैनिकों को, मेसोपोटामिया (Mesopotamia) यानी आधुनिक इराक और स्वेज नहर (Suez Canal) में युद्ध करने के लिए भेजा गया था।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों ने मेसोपोटामिया में ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई के माध्यम से अंग्रेजों का लक्ष्य इस क्षेत्र से निकलने वाले कच्चे तेल को हासिल करना और बगदाद शहर पर कब्ज़ा करना था। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं ने एक साथ अभियान शुरू कर दिया। शुरुआत में ही उन्होंने बसरा शहर पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, दिसंबर 1915 में इस अभियान को एक बड़ा झटका लगा। दरअसल ओटोमन सेना ने “कुट” नामक शहर में ब्रिटिश-भारतीय सेना के इस दल को घेर लिया। उस समय अनुमानित 6,000 तुर्क ओटोमन सैनिकों के सामने केवल 25,000 ब्रिटिश-भारतीय सैनिक थे। यह घेराबंदी कई महीनों तक चली, और आखिरकार अप्रैल 1916 में ब्रिटिश-भारतीय सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। यह हार मित्र देशों (Allied Forces) के युद्ध प्रयास के लिए एक बड़ा झटका थी। आत्मसमर्पण के बाद ओटोमन सेना द्वारा लगभग 10,000 भारतीय सैनिकों को पकड़ लिया गया था। पकड़े गए अधिकांश सैनिकों के लिए अब यातना के दिन शुरू हो चुके थे। इस दौरान कई सैनिकों को वर्तमान सीरिया (Syria) में 'रास अल-ऐन’ तक लगभग 500 मील पैदल चलने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन कुछ समय के बाद स्थिति बदल गई।
दरअसल कुट में हार का सामना करने के बाद, ब्रिटिश और भारतीय सेनाएं एक बार फिर से पुनर्गठित हुईं और ऑटोमन सेना पर फिर से हमला करना शुरू कर दिया। तुर्क द्वारा भारी प्रतिरोध का सामना करने के बावजूद, यह सीना धीरे-धीरे टाइग्रिस नदी (Tigris River) की ओर आगे बड़ने में कामयाब हुई। आख़िरकार, मार्च 1917 में वो पल आ ही गया जब ब्रिटिश-भारतीय सेना ने बगदाद के महत्वपूर्ण शहर पर कब्ज़ा कर लिया। सेना की यह विजय उनके अभियान में एक बड़ा मोड़ साबित हुई।
इसके बाद भी ब्रिटिश और भारतीय सेनाएँ आगे बढ़ती रहीं और ओटोमन सेना को मेसोपोटामिया से बाहर धकेल दिया। आखिरकार अक्टूबर 1918 में मुड्रोस के युद्ध विराम के साथ ही यह युद्ध अभियान भी समाप्त हो गया, और ब्रिटेन ने मेसोपोटामिया पर नियंत्रण हासिल कर लिया। अब यह क्षेत्र पूरी तरह से ब्रिटिश शासन के अधीन आ चुका था। 1932 में इराक को ब्रिटिश शासन से आजादी मिल गई।
इस पूरे घटनाक्रम में भारतीय सैनिकों के योगदान के बारे में हम सभी को पता होना चाहिए। इस युद्ध के लिए भारत से वहां पहुचे छह बलों में से चार अभियान बलों को मध्य पूर्व में तैनात किया गया था। भारत से पहुंची पैदल सेना और घुड़सवार सेना ने मिस्र में स्वेज नहर की रक्षा करने और बाद में फिलिस्तीन की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय घुड़सवार सेना ने हाइफ़ा शहर पर कब्जा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
आपको जानकर हैरानी होगी कि मेसोपोटामिया के इस अभियान में 588,717 भारतीयों ने अपना योगदान दिया। यह संख्या प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने वाले सभी भारतीयों का लगभग 40% थी, जो कि युद्ध के दौरान किसी भी अन्य एकल अभियान की तुलना में अधिक है। इस दौरान भारतीय सैनिकों को न केवल यूरोपीय सर्दियों की कड़कड़ाती ठंड बल्कि अरब रेगिस्तान की अत्यधिक गर्मी और धूल तथा कठोर सर्दी का भी सामना करना पड़ा था। इन सैनिकों की परेशानियाँ केवल यही तक सीमित नहीं थी। उस समय मेसोपोटामिया में बीमारियाँ भी बड़े पैमाने पर पनप रही थी। साथ ही इन भारतीय सैनिकों को वहां पर भोजन और पानी की भारी कमी का भी सामना करना पड़ा था।
1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने से पहले, भारतीय सेना अपेक्षाकृत छोटी थी, जिसमें 150,000 से अधिक सैनिक थे। हालाँकि, युद्ध बड़ने के साथ ही भारत से 827,000 लड़ाकों सहित 12 लाख से अधिक सैनिक ब्रिटिश सेना की ओर से लड़ने के लिए दूसरे देशों में भेजे जाने लगे। युद्ध के प्रारंभिक चरण में, ब्रिटेन ने भारत में विशिष्ट समूहों से सैनिकों की भर्ती पर ध्यान केंद्रित किया। ये समूह मुख्य रूप से भारत के उत्तर और उत्तर-पश्चिम से आए निरक्षर और युवा किसान थे।
युद्ध में शामिल भारतीय सेना, अलग-अलग जातीय, धार्मिक और भाषाई समूहों के सैनिकों से बनी थी। इन समूहों में सिख, राजपूत, गोरखा, जाट, डोगरा, पठान, हिंदुस्तानी मुस्लिम, अहीर और कई अन्य शामिल थे। ये सैनिक ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से विदेशी भूमि पर लड़ने के लिए हिंद महासागर पार कर गए।
यहां पर अंग्रेजों की एक बड़ी चालाकी आपको समझनी चाहिए। दरअसल अपने इस युद्ध अभियान के लिए अंग्रेजों ने भारतीय सेना को जिस तरह से संगठित किया, उससे भारत में सामाजिक मतभेद काफी बढ़ गए। अंग्रेजों ने सेना की कंपनियों और रेजिमेंटों में सैनिकों को उनकी जातीयता, धर्म या भाषा के आधार पर भर्ती किया। वास्तव में ऐसा विद्रोह को रोकने के लिए किया गया था, क्योंकि अंग्रेजों का मानना था कि एक ही पृष्ठभूमि के सैनिक एक साथ मिलकर अंग्रेजों से ही विद्रोह कर सकते हैं। इस पूरे युद्ध के दौरान भारतीय सेना को भारी क्षति उठानी पड़ी। इन सैनिकों ने कई अलग-अलग लड़ाइयों में बहादुरी से लड़ाई लड़ी और अपना जीवन भी बलिदान कर दिया।
मिस्र के काहिरा में हेलियोपोलिस (पोर्ट टेवफिक) मेमोरियल (Heliopolis (Port Tewfik) Memorial) नामक एक युद्ध स्मारक है जो हेलियोपोलिस कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्स कब्रिस्तान (Heliopolis Commonwealth War Graves Cemetery) के भीतर स्थित है। इसे उन 3,727 भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया है जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मिस्र और फिलिस्तीन में विभिन्न अभियानों में लड़ते हुए मारे गए थे। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी हेलियोपोलिस (पोर्ट टेवफिक) मेमोरियल की योजनाबद्ध यात्रा की थी। यह स्मारक न केवल शहीद भारतीय सैनिकों की शहादद की याद दिलाती है, बल्कि भारत और उसके सहयोगियों के बीच सौहार्द और सहयोग की स्थायी भावना का प्रमाण भी है। यह विश्व के साझा इतिहास के प्रतीक और शांति और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए किए गए सामूहिक प्रयासों की याद भी दिलाती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5fu8k7s8
https://tinyurl.com/4bwdnbph
https://tinyurl.com/y77bh2zn
https://tinyurl.com/8zmewfax
चित्र संदर्भ
1. प्रथम विश्व युद्ध में भारत की घुड़सवार सेना को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
2. मेसोपोटामिया अभियान के दौरान भारतीय तोपची बोरियों में गोला-बारूद ला रहे हैं। इस दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
3. एक दूसरे सैनिक को कंधे में ले जाते भारतीय सैनिकों को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
4. हाइफ़ा शहर को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. एक युद्ध स्मारक को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.