समय - सीमा 268
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1034
मानव और उनके आविष्कार 802
भूगोल 264
जीव-जंतु 304
| Post Viewership from Post Date to 08- Dec-2023 (31st Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 1245 | 222 | 0 | 1467 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
क्या आपने सूफी भक्ति शायरी– ‘मंक़बत’ के बारे में सुना हैं?दरअसल, ‘मंक़बत’ मुहम्मद के दामाद ‘अली इब्न अबी तालिबया’ या फिर किसी अन्य सूफी संत की प्रशंसा में, रचित एक सूफी भक्ति कविता है।यह शब्द उर्दू में,फ़ारसी (Persian)भाषा से लिया गया, अरबी ऋण शब्द है। वास्तव में, ‘मंक़बत’ यह शब्द, एकमूल शब्द ‘मनाक़िब’से आया है, जिसका अर्थ– गुण एवं क्षमताएं है। अर्थात मोटे तौर पर, ‘मंक़बत’ इस शब्द का अर्थ– प्रशंसा, गुण, महिमा तथा पैगंबर मोहम्मद एवं उनके साथियों की प्रशंसा में लिखी गई कविता है।
सामान्य तौर पर मंक़बत का अर्थ– वह सब कुछ है, जिसमें किसी व्यक्ति की महिमा की जाती है या जो उसे श्रेष्ठता प्रदान करता है। अतः इसमें, वैभव, योग्यता, सिद्धि, प्रशंसा आदि संकल्पनाएं मौजूद हैं।इन्हें अक्सर ही, इस्लामी हस्तियों, जैसे पैगंबर मुहम्मद या शिया इस्लाम के इमामों की प्रशंसा में पढ़ा जाता है। हालांकि, बाद के वर्षों में,इस्लाम धर्म में ईश्वर अर्थात अल्लाह के अलावा, अन्य श्रेष्ठ धार्मिक व्यक्तित्वों की कविता में प्रशंसा की शैली को, अलग-अलग उप-समूहों में अलग कर दिया गया। उदाहरण के लिए अल्लाह की प्रशंसा और महिमा में लिखी गई कविता को,‘हम्द’ कहा जाता है। जबकि पैगंबर (मुहम्मद) की प्रशंसा और महिमा में लिखी गई कविता को ‘नात’ कहा जाता है।इसी प्रकार चौथे ख़लीफ़ा– हज़रत अली इब्न ए अबी तालिब रज़ा की प्रशंसा और महिमा में लिखी गई कविता को,मंक़बत कहा जाता है।
कव्वाली में मंक़बत संगीत के साथ गाई जाती हैं।कव्वाली मंक़बत में, सबसे प्रसिद्ध कव्वाली ‘मन कुन्तो मौला’ है, जिसे अमीर खुसरो ने हज़रत अली की प्रशंसा में लिखा था। मंक़बत अक्सर संगीत पर आधारित होते हैं और आमतौर पर धार्मिक और अन्य समारोहों के दौरान प्रस्तुत किए जाते हैं
हालांकि, उर्दू शायरी की अन्य शैलियां भी हैं, जो किसी की स्तुति के रूप में लिखी गई हैं। इसका एक उदाहरण, ‘क़सीदा’ है, जो अपने स्वरूप में तो गज़ल के समान होती है, लेकिन, उससे अधिक लंबी होती है।दूसरी ओर, ‘मर्सिया’ मूलतः धार्मिक कविता होती हैं।मर्सिया शब्द का अर्थ– शोकगीत है; अर्थात यह कविता मृतकों के लिए विलाप है। उर्दू साहित्य में, मर्सिया इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की प्रशंसा में लिखी गई है, जो वर्तमान इराक(Iraq) में, वर्ष 680 ईसवी में, कर्बला की लड़ाई में मारे गए थे।
जबकि, कुछ लोग दावा करते हैं कि, मंक़बत शेर-ए-खुदा हजरत अली या उनके परिवार के सदस्यों की स्तुति है। मंक़बत सूफ़ियाना और अरफ़ाना कलाम का एक प्रमुख हिस्सा है, जो अहल-अल-बैत को एक श्रद्धांजलि है। क्योंकि, यह उनके गौरवशाली गुणों का वर्णन करता है।
यहां नीचे, हज़रत अली और अहल-अल-बैत की शान में रचित, कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण मंक़बत सूचीबद्ध की गई है:
१.अली मौला अली मौला अली दम दम
२.नाद-ए-अली
३.या अली मुश्किल कड़ा
४.अली मौला सलीमसुलेमान
५.दम अली अली दम
अब चूंकि हमनें मंक़बत के बारे में जान लिया हैं, क्या आप हमारे शहर जौनपुर में, प्रस्तुत एवं गाई गई कुछ सुप्रसिद्ध मंक़बत को सुनना चाहेंगे? अगर हां, तो नीचे उल्लिखित लिंक के माध्यम से इन मंक़बत को सुन सकते हैं।
दूसरी ओर, कसीदा एक प्राचीन अरबी शब्द तथा कविता लिखने का एक रूप है, जिसे अक्सर ही, गीति-काव्य के रूप में अनुवादित किया जाता है। यह अरब मुस्लिम विस्तार के बाद, अन्य संस्कृतियों में भी चला गया। क़सीदा शब्द मूल रूप से एक अरबी शब्द है और अभी भी, दुनिया भर में, अरबी भाषी लोग इसका उपयोग करते हैं। इसे कुछ अन्य भाषाओं, जैसे फ़ारसी एवं तुर्की(Turkey) में भी समाहित किया गया है।
कुछ सुप्रसिद्ध कसीदा में, इमाम अल-बुसिरी की सात ‘मुलाकात’ और ‘कसीदा बर्दा’ तथा इब्न अरबी का, “द इंटरप्रेटर ऑफ़ डिज़ायर्स(The Interpreter of Desires)” यह उत्कृष्ट संग्रह शामिल हैं। कसीदा का उत्कृष्ट एवं शास्त्रीय रूप पूरी कविता में, एक विस्तृत मीटर बनाए रखता है, और प्रत्येक पंक्ति एक ही ध्वनि पर तुकबंदी करती है।
यह आम तौर पर पंद्रह से अस्सी पंक्तियों तक चलता है, और कभी-कभी, ये पंक्तियां सौ से भी अधिक हो सकती हैं। इस शैली की उत्पत्ति अरबी कविता में हुई है, और इसे फ़ारसी कवियों द्वारा भी अपनाया गया था। फ़ारसी कविताओं में, यह कभी-कभी सौ पंक्तियों से अधिक लंबी हो जाती थी। उर्दू शायरी में कसीदा अक्सर व्यंग्यात्मक होता है, या फिर, कभी-कभी किसी महत्वपूर्ण घटना से संबंधित होता है। एक नियम के रूप में, यह ग़ज़ल से अधिक लंबी होती है, लेकिन, छंद की समान प्रणाली का पालन करता है।
क्या आप, मंक़बत एवं कसीदा के अलावा, उर्दू शायरी के अन्य प्रकारों के बारे में जानते हैं? आइए, हमनें यहां उन्हें सूचीबद्ध एवं स्पष्ट किया हैं:
१.“हम्द” तब होता है, जब अल्लाह की स्तुति की जाती है।
२.“नात” वह है, जब रसूल ए खुदा की प्रशंसा की जाती है।
३.“सोज़”, आमतौर पर तुकबंदी वाली 4-6 पंक्ति की कविता होती है।
४.“सलाम” एक लंबी शायरी होती है। उदाहरण के लिए, “घबराएगी ज़ैनब” एक सलाम है।
५.“क़तात”, 4 पंक्तियों वाली एक शायरी होती है। और,यह जरूरी नहीं है कि, इसमें तुकबंदी हो।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yck96f47
https://tinyurl.com/y9b5p4zu
https://tinyurl.com/yc6puu8d
https://tinyurl.com/y8e92c6t
https://tinyurl.com/y3xv7j97
https://tinyurl.com/34s73acj
https://tinyurl.com/3vx49vsu
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर में प्रस्तुत की गई ‘मंक़बत’, उर्दू शायरी को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. कव्वाली गायकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कसीदा एक प्राचीन अरबी शब्द तथा कविता लिखने का एक रूप है, जिसे अक्सर ही, गीति-काव्य के रूप में अनुवादित किया जाता है। को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)