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पानी अक्सर ही, पौधों की वृद्धि में, सबसे आवश्यक कारक होता है। इसलिए, पौधों ने पानी को अवशोषित करने, इसे स्थानांतरित करने, इसका भंडारण करने और उपयोग करने के लिए, एक प्रभावी प्रणाली विकसित की है। पौधों में जल परिवहन को समझने के लिए, हमें सबसे पहले पौधों की नलिका प्रणाली को समझना होगा। पौधों में नलिकाओं का एक विशाल जाल एवं संयंत्र होता है, जिसमें जाइलेम(Xylem) और फ्लोएम(Phloem)ऊतक होते हैं। पानी और कुछ पोषक तत्वों के परिवहन के इस मार्ग की तुलना, रक्त वाहिकाओं के उस संवहनी तंत्र से की जा सकती है, जो पूरे मानव शरीर में रक्त का परिवहन करता है।
जिस प्रकार, हमारे शरीर में संवहनी तंत्र फैला होता है, उसी प्रकार जाइलेम और फ्लोएम ऊतक पूरे पौधे में फैले होते हैं। ये संवाहक ऊतक पौधों में, जड़ों से शुरू होते हैं और पेड़ों के तनों से होते हुए ऊपर की ओर बढ़ते हैं, शाखाओं में बंटते हैं और फिर हर पत्ते में और भी आगे बढ़ते हैं। यहां हमें याद रखना होगा, कि जाइलेम एक सतत जल स्तंभ है, जो पत्ती से जड़ों तक फैला हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि, यह जाइलेम स्तंभ जब एक नया पेड़ अंकुरित होता है, तभी बनना शुरु होता है। जबकि, पानी को इस तंत्र में, दो क्रियाओं द्वारा संवहित किया जाता है। ये दो कारक, केशिका क्रिया (एक पतली नलिका में पानी के बढ़ने की प्रवृत्ति) और जड़ दबाव हैं।
हालांकि, पानी के अवशोषण और पौधे में इसके परिवहन की मुख्य प्रेरक शक्ति पत्तियों से पानी का ‘वाष्पोत्सर्जन’ है। वाष्पोत्सर्जन पत्तियों में विशेष छिद्रों, जिन्हें स्टोमेटा(Stomata) कहा जाता है, के माध्यम से पानी के वाष्पीकरण की प्रक्रिया है। इससे पत्ती की कोशिकाओं में नकारात्मक ‘जल वाष्प दबाव’ विकसित होता है। एक बार ऐसा होने पर, पत्ती से उत्सर्जित पानी की जगह लेने के लिए,संवहनी ऊतक–जाइलेम से पानी पत्ती में खींच लिया जाता है। अंत में, जड़ों में होने वाले नकारात्मक जल दबाव के परिणामस्वरूप मिट्टी से जल ग्रहण किया जाता है।
जाइलेम नलिकाओं के संकीर्ण व्यास के कारण, इसके माध्यम से पानी को ऊपर ले जाने हेतु, पानी के तनाव की आवश्यक डिग्री को सामान्य वाष्पोत्सर्जन दर के माध्यम से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, जो अक्सर पत्तियों में होती है।केशिका क्रिया, हालांकि, एक छोटा घटक है। जबकि, जड़ का दबाव पानी को पेड़ के अंदर संवहित करने हेतु, अधिकांश बल प्रदान करता है। जड़ का दबाव मिट्टी में, जल भंडार से, पानी के ऑस्मोसिस(Osmosis)द्वारा जड़ ऊतक में जाने से बनता है।
उच्च जल सांद्रता वाले मिट्टी क्षेत्र से अर्ध-पारगम्य अर्थात छलनी जैसे जाइलेम ऊतकों के पार, कम जलसांद्रता वाले क्षेत्र में, पानी के अणुओं की प्राकृतिक गति होती है। जब मिट्टी नम होती है, तो उसमें, जड़ के अंदर की कोशिकाओं की तुलना में पानी के अणुओं की सांद्रता अधिक होती है, इसलिए पानी मिट्टी से, जड़ की बाहरी झिल्ली के माध्यम से, जड़ कोशिकाओं में चला जाता है।अधिकतम पानी अवशोषित करने हेतु, अधिकांश पौधों में छोटी, रेशेदार जड़ें होती हैं जो हजारों छोटे रेशों से ढकी होती हैं, जिससे पानी को अवशोषित करने के लिए एक विशाल सतह क्षेत्र बनता है। महीन जड़ें जड़ प्रणाली का सबसे पारगम्य भाग होती हैं, और माना जाता है कि उनमें पानी को अवशोषित करने की सबसे बड़ी क्षमता होती है।
जैसे ही यह पानी ऑस्मोसिस द्वारा मिट्टी से जड़ की कोशिकाओं में जाता है, इन कोशिकाओं के अंदर दबाव बनता है। अंततः, पानी परासरण द्वारा आस-पास की अगली जड़ कोशिका में चला जाता है।
प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों में यह क्रिया निरंतर चलती रहती है, परंतु, मनुष्य हस्तक्षेप वाले हमारे बगीचों में, हमें कुछ चीजों का ध्यान रखना होता है, ताकि जल पौधों में अच्छी तरह से अवशोषित हो जाए। बगीचा लगाने से पहले यह जांच लें कि, आपके पास किस प्रकार की मिट्टी है। इससे, आपको यह बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है कि, यह पानी को कितनी अच्छी तरह पकड़कर रखती है।
रोपण करते समय जड़ों और मिट्टी के बीच अच्छा संपर्क सुनिश्चित करने का ध्यान रखें, क्योंकि इससे पौधों को जल्दी से स्थापित होने में मदद मिलती है। शुष्क अवधि के दौरान पौधों को नियमित रूप से और पूरी तरह से पानी दें। खाद जैसे कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके अपनी मिट्टी में सुधार करें। इससे सूखी मिट्टी में नमी बनाए रखने और बहुत गीली मिट्टी में जल निकासी में सुधार करने में मदद मिलती है।
कुछ पौधे माइकोरिज़ल कवक(Mycorrhizal fungi) के साथ सहजीवी संबंध स्थापित करके भी, पानी के अवशोषण में सुधार करते हैं, जो जड़ प्रणाली के कुल अवशोषण सतह क्षेत्र को कार्यात्मक रूप से और अधिक बढ़ाता है।
निष्कर्ष के तौर पर, हम कह सकते हैं कि, पेड़ों का यह संवहन चक्र, पानी को मिट्टी से पत्तों तक भेजता रहता है।
पौधों में पानी की कमी पोषक तत्वों के अवशोषण को भी प्रभावित कर सकती है। हालाँकि मिट्टी में पर्याप्त पोषक तत्व हो सकते हैं, लेकिन पानी की कमी का मतलब है कि पौधा उन्हें ग्रहण नहीं कर सकता है। परिणामस्वरूप, पानी की कमी वाले पौधों में धीमी गति, अवरुद्ध विकास, खराब या कम फूल और फल, समय से पहले पत्तियों का गिरना और कीट और रोग की समस्याओं में वृद्धि देखी जा सकती है।
दूसरी ओर जलयुक्त मिट्टी में भी पौधे मुरझा सकते हैं। इन स्थितियों में, पानी ने मिट्टी के छिद्रों में ऑक्सीजन को पूरी तरह से स्थानांतरित कर दिया है, जिसका अर्थ है कि अब वह ऑक्सीजन नहीं है जो उन्हें शर्करा को ऊर्जा में बदलने के लिए चाहिए। श्वसन में बाधा के साथ, अन्य महत्वपूर्ण कार्य प्रतिबंधित हो जाते हैं और पौधे में पानी का अवशोषण बाधित हो जाता है ।
संदर्भ
https://tinyurl.com/f5bpbj6f
https://tinyurl.com/39h84dvs
https://tinyurl.com/4p9j2wmw
चित्र संदर्भ
1. जाइलम और फ्लोएम आरेख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. जाइलम और फ्लोएम आरेख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. वाष्पोत्सर्जन पत्तियों में विशेष छिद्रों, जिन्हें स्टोमेटा(Stomata) कहा जाता है, के माध्यम से पानी के वाष्पीकरण की प्रक्रिया है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अंजीर के पेड़ (फ़िकस अल्बा) के अंकुर में जाइलम तत्वों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कुछ पौधे माइकोरिज़ल कवक(Mycorrhizal fungi) के साथ सहजीवी संबंध स्थापित करके भी, पानी के अवशोषण में सुधार करते हैं, जो जड़ प्रणाली के कुल अवशोषण सतह क्षेत्र को कार्यात्मक रूप से और अधिक बढ़ाता है।
को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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