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भारत में संकेतों और प्रतीकों का प्रयोग करने की परंपरा, वैदिक युग से चली आ रही है! यह परंपरा आज भी भारत के धार्मिक अनुष्ठानों, कला, साहित्य और रोजमर्रा की जिंदगी में जीवंत नजर आती है। अंग्रेजी शब्द “आइकोनोग्राफी" (Iconography) का उपयोग अक्सर कला के ऐतिहासिक कार्यों के इसी अध्ययन को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। आजकल, संकेतों के सन्दर्भ में एक अन्य अंग्रेजी शब्द "सेमियोटिक्स (Semiotics)" या सांकेतिकता भी प्रचलित है, जिसके अंतर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि, “दृश्य और भाषाई संकेतों या प्रतीकों के माध्यम से अर्थ कैसे बनाया और संप्रेषित किया जाता है।” सेमियोटिक्स की बदौलत हम सभी अपने आस-पास मौजूद अधिकांश संकेतों की व्याख्या बिना अधिक सोचे-समझे ही कर लेते हैं। मोटे तौर पर, "सेमियोटिक्स" या सांकेतिकता और “आइकोनोग्राफी” यानी प्रतिमा विज्ञान का अर्थ एक ही होता है, लेकिन इन दोनों का प्रयोग आम तौर पर अलग-अलग संदर्भों में किया जाता है। "सेमियोटिक्स" का उपयोग मुख्य रूप से आधुनिक संकेतों या दृश्य संस्कृति (Visual Culture) का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।
आइकोनोग्राफी के तहत छवियों, प्रतिमाओं और उसमें निहित गहरे अर्थों का अध्ययन किया जाता है। आइकोनोग्राफी, के माध्यम से यह समझने का प्रयास किया जाता है कि कलाकार आखिर क्या कहना चाहता है। आइकोनोग्राफी का उपयोग विषयों के विशिष्ट चित्रणों की पहचान करने और उनकी व्याख्या करने के लिए भी किया जाता है। उदाहरण के लिए, भगवान बुद्ध की मूर्ति में हाथों की स्थिति या मुद्राएं भी कई गहरे प्रतीकात्मक अर्थ रखती है। इसके अलावा जान वैन आइक (Jan Van Eyck) की पेंटिंग अर्नाल्फिनी पोर्ट्रेट (Arnolfini Portrait) में, एक महिला को एक पुरुष की हथेली में अपने हाथ रखते हुए दिखाया गया है, जिसे शादी के लिए एक समझौता माना जाता है।
भारत का वैदिक साहित्य, जैसे रामायण, महाभारत और भागवतम में ऐसे प्रतीकों और आइकोनोग्राफी को बड़ी संख्या में देखा जा सकता है, जिनका अपने आप में गहरा अर्थ होता है। इन प्रतीकों और संहिताओं का उपयोग, वैदिक काल के आध्यात्मिक विचारों, मूल्यों, परंपराओं और अनुष्ठानों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
गेरो (Gero), पियाटिगॉर्स्की (Piatigorsky) और ज़िल्बरमैन (Zilberman) जैसे कुछ पश्चिमी विद्वानों ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों में भारतीय लाक्षणिकता (Semiotics) का अध्ययन जरूर किया है, लेकिन इनके अध्ययन भी उनकी संस्कृत ज्ञान की कमी के कारण सीमित और अधूरे माने जाते हैं।
हिंदू धर्म ने अपने समृद्ध इतिहास में, विभिन्न प्रकार के प्रतिष्ठित प्रतीकों को अपनाया है, जो आध्यात्मिक अर्थ से ओत-प्रोत नजर आते हैं। ये प्रतीक या तो धर्मग्रंथों या फिर हमारी सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित हैं। क्षेत्र, अवधि और अनुयायियों के संप्रदाय के आधार पर प्रत्येक प्रतीक का सटीक महत्व भिन्न-भिन्न हो सकता है। हिन्दू प्रतिमा विज्ञान या आइकोनोग्राफी के अन्य पहलुओं में मूर्ति (चिह्न) और मुद्रा (हाथों और शरीर के हावभाव और स्थिति) भी शामिल हैं।
प्रतिमा विज्ञान का उल्लेख कई प्राचीन हिंदू ग्रंथों में किया गया है, जिनमें वास्तु शास्त्र, भुवनदेव द्वारा रचित अपराजिता पृच्छ, समरांगना सतधारा, मायामाता और मनसा आदि शामिल हैं। ये ग्रंथ, सुवाह्यता (Portability), पूर्णता और चेहरे के आधार पर छवियों को विभिन्न रूपों में वर्गीकृत करते हैं।
मुद्राओं या हाथ के इशारों का उपयोग भी भारतीय प्रतिमा विज्ञान का एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। मुद्राओं का उपयोग विशिष्ट अर्थ (जैसे आशीर्वाद मुद्रा या ध्यान मुद्रा) बताने के लिए किया जाता है।
हिंदू संस्कृति और अनुष्ठानों में कई संकेतों और चिन्हों को अत्यंत पवित्र माना जाता, जिनका उपयोग हिंदुओं द्वारा भक्ति के संकेत के रूप में किया जाता है। इनमें शामिल हैं:
१. मूर्तियां: मूर्तियां कला की पवित्र कृतियाँ होती हैं, जो मुख्य रूप से देवत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं।
२. तिलक: तिलक आध्यात्मिक भक्ति के संकेत के रूप में माथे या शरीर के अन्य हिस्सों पर लगाए जाने वाले निशान होते हैं। हिंदू जन नियमित रूप से या विशेष रूप से धार्मिक अवसरों पर तिलक लगाते हैं। तिलक का आकार अक्सर किसी खास देवता के प्रति समर्पण का सूचक होता है।
३. विभूति: विभूति अग्नि से जुड़े पवित्र पूजा अनुष्ठानों (यज्ञों) के बाद शेष बची, पवित्र राख को कहा जाता है। इसे माथे पर लगाया जाता है।
४. रुद्राक्ष: यह रुद्राक्ष के पेड़ के बीज होते हैं जो भगवान शिव के आंसुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें अक्सर एक माला में पिरोया जाता है, जिसका उपयोग प्रार्थना और ध्यान के दौरान किया जाता है। इनके अलावा ओम, स्वस्तिक और श्री चक्र यंत्र, हिंदू धर्म में तीन सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक माने जाते हैं।
चलिए अब हिंदू देवताओं से जुड़े प्रतीको पर एक नजर डालते हैं:
➲ भगवान शिव: लिंगम, त्रिशूल, डमरू (ढोल), नंदी बैल
➲ भगवान विष्णु: शंख, चक्र, गदा, कमल का फूल, गरूड़
➲ देवी लक्ष्मी: कमल का फूल, गाय, सोना, उल्लू
➲ देवी सरस्वती: वीणा, हंस, सफेद कमल
➲ श्री गणेश: हाथी का सिर, चूहा, कुल्हाड़ी, कमल का फूल
➲ हनुमान: बंदर, गदा
➲ माँ दुर्गा: सिंह, बाघ, त्रिशूल, तलवार, ढाल
➲ श्री राम: धनुष और बाण, नीला कमल
➲ श्री कृष्ण: बांसुरी, मोर पंख, पीला कमल
संदर्भ
https://tinyurl.com/nxtmtryw
https://tinyurl.com/yc535z6k
https://tinyurl.com/4a3x3zj6
https://tinyurl.com/uehcs44u
चित्र संदर्भ
1. आइकोनोग्राफी और सेमियोटिक्स को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL, Flickr)
2. जापानी संस्कृति के प्रतीकों को दर्शाता एक चित्रण (publicdomainpictures)
3. आइकोनोग्राफी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जान वैन आइक की पेंटिंग अर्नाल्फिनी पोर्ट्रेट में, एक महिला को एक पुरुष की हथेली में अपने हाथ रखते हुए दिखाया गया है, जिसे शादी के लिए एक समझौता माना जाता है। को दर्शाता एक चित्रण (PxHere)
5. प्रतिमा विज्ञान की पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
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