जौनपुर की विरासत की जब बात की जाती है तो यह पता चलता है कि यहां की विरासत आदिकालीन है। जौनपुर में तुगलकों के काल के बाद शर्कियों का काल आया और यह वह समय था जब जौनपुर के तमाम बड़े भवनों का निर्माण हुआ। शर्कियों के काल में यहां अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया गया। यह शहर मुस्लिम संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां की अनेक खूबसूरत इमारतें अपने अतीत की कहानियां कहती प्रतीत होती हैं।
जौनपुर का इतिहास यदि पुरातात्विक ढंग से देखा जाये तो 1500 ई.पू. तक जाता है। वर्तमान में यह शहर चमेली के तेल, तम्बाकू की पत्तियों, इमरती और स्वीटमीट के लिए लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के पुरातात्विक भवनों व धरोहरों का रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, प्रादेशिक पुरातत्व विभाग, जिला पुरातत्व विभाग आदि करते हैं। धरोहर किसी भी देश के उत्थान के लिये अत्यन्त महत्वूर्ण हैं। ये सिर्फ इतिहास ही नहीं प्रदर्शित करती अपितु विज्ञान, समाज व समझ को भी प्रदर्शित करने का कार्य करती हैं। धरोहरों का संरक्षण तथा उनके प्रति समझ व सोच रखना मात्र तंत्रों का ही कार्य नहीं है अपितु इसका संरक्षण करना वहाँ पर रहने वालों की भी ज़िम्मेदारी है। भारत के पुरातत्व व यहाँ के धरोहरों के संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व विभाग का है जिसके अन्तर्गत पूरे भारत में कुल 3,650 पुरातात्विक धरोहर तथा 46 संग्रहालय हैं।
भारत भर के सम्पूर्ण धरोहरों के संरक्षण और रख-रखाव के लिये सरकार द्वारा बजट निर्धारित किया जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आता है तथा यहीं से बजट का निर्धारण किया जाता है। पूरे भारत का बजट 7 लाख करोड़ है तथा संस्कृति मंत्रालय का बजट है 2,500 करोड़ जो कि पूरे बजट का 1 प्रतिशत भी नहीं है। अब पुरातत्व के लिये आवांटित बजट है 924.37 करोड़ रूपया तथा संग्रहालयों के लिये आवंटित बजट है 400 करोड़। दिये गये पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के 924.37 करोड़ के बजट में देशभर के 3,650 धरोहरों व 46 संग्रहालयों का संरक्षण, रख-रखाव, कर्मचारियों का वेतन, खुदाईयाँ, अन्वेशण, साहित्य छपाई, प्रचार, पुरातन वस्तुओं आदि का संरक्षण किया जाता है। यह बजट इतना कम है कि भारत के अमूल्य धरोहरों का संरक्षण हो पाना असम्भव-सा प्रतीत हो रहा है। यही कारण है कि भारत भर के कितने ही पुरातात्विक धरोहर आज वर्तमान काल में काल के गाल में समा गये हैं। यदि वैश्विक स्तर पर देखा जाये तो जर्मनी द्वारा बनाया जाने वाला हमबोल्ट संग्रहालय बनाने के लिये पूरे 600 मिलियन यूरो अर्थात 24 हजार करोड़ का खर्च किया जा रहा है जो कि भारत के सम्पूर्ण संस्कृति मंत्रालय के बजट से 20 गुना ज्यादा है। पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत जौनपुर जिले में कुल 15 धरोहरें आती हैं जिनका रख-रखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करती है इसके अलावां 4 धरोहरें उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आती हैं। जौनपुर के कई अन्य धरोहर वफ्फ बोर्ड के अंतर्गत आती हैं जिनकी संख्या 30 के ऊपर है। बजट के अभाव के कारण ही जौनपुर की कई धरोहरें मरणासन्न हैं और यही आलम रहा तो कुछ ही समय में ये जमींदोज़ हो जायेंगी। चित्र में कुलीच खान के मकबरे को दिखाया गया है।
1. बजट 2017-18
2. http://asi.nic.in/asi_monu_alphalist_uttarpradesh_patna.asp
3. http://archaeology.up.nic.in/protected_monuments.html
4. http://www.upshiacwb.org/ViewPropertyOnMap.aspx
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