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पूरे विश्व में, ताड़ या पाम(Palm) के पेड़ों की लगभग 2,600 प्रजातियां पाई जाती हैं। जबकि, भारत में ताड़ की लगभग 106 प्रजातियां वितरित हैं।पल्मीरा(Palmyrah), खजूर, साबूदाना, कैरियोटा(Caryota)तथा कई अन्य ताड़ के पेड़, अपने मीठे पानी अर्थात नीरा, फल, स्टार्च(Starch) और सजावटी पौधों के लिए, मूल्यवान हैं। ये अपनी सुंदरता और भव्यता से बागवानों, वनवासियों और प्रकृति प्रेमियों का ध्यान भी आकर्षित करते हैं।
ईलाइस(Elaeis)ताड़ की एक महत्त्वपूर्ण प्रजाति है, जिसमें दो उप–प्रजातियां होती हैं। इन्हें ऑयल पाम(Oil Palm) कहा जाता है। वाणिज्यिक कृषि में इनका उपयोग, पाम तेल के उत्पादन में किया जाता है। अफ़्रीकी(African) पाम ईलाइस गिनीन्सिस(Elaeis guineensis) पाम तेल का प्रमुख स्रोत है। यह पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका का मूल पेड़ है। जबकि, अमेरिकी(American) पाम ईलाइस ओलीफेरा(Elaeis oleifera) उष्णकटिबंधीय मध्य और दक्षिण अमेरिका का मूल पेड़ है, और तेल उत्पादन के लिए, स्थानीय रूप से इसका उपयोग किया जाता है।
परिपक्व पाम पेड़ एक तने वाले होते हैं, और 20 मीटर (66 फीट) से अधिक लंबाई तक बढ़ सकते हैं। इसकी पत्तियां पंखदार होती हैं, और 3-5 मीटर (10-16 फीट) लंबी हो सकती हैं। जबकि, इसके फूल घने गुच्छों में पैदा होते हैं। ताड़ का फल लाल रंग का होता है और लगभग एक बड़े बेर के आकार का होता है। फूलों की तरह यह भी, बड़े गुच्छों में उगता है। प्रत्येक फल एक तैलीय, मांसल बाहरी परत (पेरिकार्प–Pericarp) से बना होता है, जिसमें एक बीज (पाम कर्नेल–Palm kernel) भी होता है, जो तेल से भरपूर होता है।
पाम तेल का मानव उपयोग तटीय पश्चिम अफ्रीका में, लगभग 5,000 वर्ष पुराना माना जाता है। इस तेल की खोज 19वीं सदी के अंत में पुरातत्वविदों द्वारा 3000 ईसा पूर्व के एबाइडोस(Abydos) के एक मकबरे में की गई थी। माना जाता है कि, अरब(Arab) व्यापारी ताड़ का तेल मिस्र(Egypt) में लाए थे। जबकि, आज बड़े पैमाने पर, इसकी अफ्रीका के बाहर उष्णकटिबंधीय देशों, विशेष रूप से मलेशिया(Malaysia) और इंडोनेशिया(Indonesia) में खेती की जाती है, जो मिलकर इसकी अधिकांश वैश्विक आपूर्ति का उत्पादन करते हैं।
हमारे देश भारत में, पाम के पेड़ों को तीन समूहों– पहला खेती योग्य, दूसरा सजावटी और तीसरा जंगली या प्राकृतिक, में वर्गीकृत किया गया है।कृषि योग्य पाम पेड़ों में, नारियल का पेड़ (कोकोसन्यूसीफेरा–Cocos Nucifera), जिसे तमिल में थेन्नई के नाम से जाना जाता है, विभिन्न जलवायु परिस्थितियों को अपनाने की क्षमता के कारण, सबसे व्यापक रूप से वितरित प्रजाति है।
पल्मीरा पाम (बोराससफ्लेबेलिफ़र–Borassusflabellifer) को तमिल में पनेई और मलयालम में पना के नाम से जाना जाता है। भारत में 8.50 करोड़ पल्मीरा पाम के पेड़ हैं, जिनमें से 4 करोड़ अकेले तमिलनाडु राज्य में हैं।इस ताड़ की खेती और बुआई पूरे तमिलनाडु एवं केरल राज्य में की जाती है। आधुनिक समय तक, इनकी पत्तियों के मुड़े हुए खंड, जिन्हें कैडजन(Cadjans) के रूप में जाना जाता है, का उपयोग दक्षिण भारत में पत्रों, दस्तावेजों और सभी प्रकार के रिकॉर्ड लिखने के लिए किया जाता था।इसके, डंठल के कटे हुए सिरों से प्राप्त मीठा रस इसका एक अन्य मुख्य उत्पाद है। इस रस को खमीरीकृत या किण्वित(Ferment)करके, ताड़ी बनाई जाती है या गुड़ बनाया जाता है। पल्मीरा पेड़ को पवित्र माना जाता है और करपगाथारू के रूप में इसकी पूजा भी की जाती है। साथ ही, यह तमिलनाडु का राज्य वृक्ष है। हालांकि, इसके विविध उपयोगों के बावजूद, इस ताड़ की संख्या तेजी से घट रही है।
सुपारी पाम (एरेकाकैटेचू–Areca catechu) को तमिल में कामुगु या पक्कू और मलयालम में कावुंगु या अडक्का कहा जाता है। इस ऊंचे और सीधे पेड़ की खेती बड़े पैमाने पर केरल, उत्तर और दक्षिण कर्नाटक,नीलगिरी पहाड़ियों की तलहटी और दक्षिण भारत की अन्य पहाड़ी श्रृंखलाओं में की जाती है।इन ताड़ के पत्तों का उपयोग प्लेट, टोपी आदि बनाने में भी किया जाता है। सुपारी ताड़ की खेती, इसके बीजों अर्थात सुपारी के लिए की जाती है, जिन्हें पान के पत्तों के साथ चबाया जाता है और धार्मिक समारोहों का एक शुभ घटक माना जाता है।
कोडाईपनेई या कोडा पाना, जिसे तालिपोट पाम (कोरिफाअनब्राकुलिफेरा–Coryphaunbraculifera) के नाम से भी जाना जाता है, एक शानदार पेड़ है, जो अंडमान और उत्तर कर्नाटक का मूल पेड़ है। यह मालाबार तट पर आम है।इसकी पत्तियों का उपयोग पंखे, चटाई, छाते आदि बनाने में किया जाता है। इसके सींगदार गोलाकार बीज हाथीदांत की तरह कठोर होते हैं, और बाजुरबेट या बाजारुबातु नट के रूप में जाने जाते हैं। इनसे हार, बटन और मोतियों का निर्माण किया जाता है।इसके गूदे से, एक प्रकार का साबूदाना प्राप्त होता है, जिसका उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। यह पेड़ लगभग 40 वर्ष की आयु में फूलता है, अतः बड़ी संख्या में बीज पैदा करता है, और आगामी गर्म मौसम में मर जाता है।तालिपोट ताड़ की विशाल पत्ती 16 फीट व्यास का अर्धवृत्त बना सकती है, और जमीन पर लगभग 200 वर्ग फीट के क्षेत्र को ढंक सकती है। इसका मतलब है कि, इसका एक पत्ता लगभग 20 आदमियों को अपनी छाया में ढकने में सक्षम होगा, और बारिश होने पर उन्हें भीगने नहीं देगा।
जबकि, बेंटिनकियाकोंडापन्ना(Bentinckiaconddapanna), अरेंगावाइटी(Arengawightii), पिनंगाडिकसोनी(Pinangadicksoni) और कैरियोटायूरेन्स(Caryotaurens) जैसे ताड़ के पेड़ सजावटी मूल्य रखते हैं।
ताड़ के पेड़ की एक अन्य प्रजाति, आलम पनेई से अत्यधिक नशीली ताड़ी निकलती है, जिसकी पहाड़ी जनजातियों में बहुत मांग है। जबकि, कानाकामुगु की सुपारीयों को पहाड़ी लोग, सामान्य सुपारी के विकल्प के रूप में खाते हैं।
कुन्थापनेई(तमिल) या चुंडा पाना (मलयालम) दक्कन के पठार के जंगलों और पश्चिमी घाट के सदाबहार जंगलों में उगता है। इसकी लकड़ी का उपयोग कृषि उपकरणों, जल नलिकाओं, बाल्टियों, राफ्टरों(Rafters) आदि के लिए किया जाता है।जबकि, इसकी पत्तियों का उपयोग ब्रश, झाड़ू और रस्सियों के रूप में किया जाता है। साथ ही, इसके तने के भीतरी भाग से प्राप्त स्टार्च युक्त पदार्थ का आटा बनाकर भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है। स्पैडिक्स(Spadix) या मंजरी को काटने पर ताड़ी और चीनी निकलती है। इसकी पत्तियां और तने हाथियों का पसंदीदा भोजन भी हैं।
इसके अलावा, दक्षिण भारत में ताड़ के कई अन्य पेड़ प्रजाति, जंगली रूप से उगते हुए पाए जाते हैं।
आप, निम्न तालिका में, भारत में पाम तेल का राज्य-वार और वर्ष-वार विवरण तथा पिछले पांच वर्षों के दौरान, पाम तेल के कुल उत्पादन में आंध्र प्रदेश की प्रतिशत हिस्सेदारी देख सकते हैं। 20वीं सदी के मध्य तक, पल्मीरा पाम ने तमिलनाडु की ग्रामीण गरीब आबादी के एक बड़े हिस्से की आजीविका में प्रमुख भूमिका निभाई है। हालांकि, ताड़ को उपज देने में लगभग 20-25 साल लगते हैं, इसलिए आज इनकी संख्या में भारी कमी आ रही है।वर्तमान समय में, राज्य में अनुमानतः केवल 12,000 पेड़ ही शेष हैं।ताड़ की न केवल इस प्रजाति,बल्कि,एरेकेसी(Arecaceae) के पूरे वंश को भी पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता है।
केरल वन अनुसंधान संस्थान ने एक ‘पाल्मेटम(Palmetum)’ की स्थापना की है, जिसमें देशी और विदेशी ताड़ के पेड़ों का जीवंत संग्रह है। इस केंद्र का उपयोग जनता के बीच ताड़ के संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए किया जाता है।इस पाल्मेटम में ताड़ की 125 प्रजातियों का संग्रह है। लोगों को इनके संरक्षण के प्रति जागरूक करने की दृष्टि से, तमिलनाडु में भी इस प्रकार का पाल्मेटम बनाया जा सकता है।
आमतौर पर ताड़ की अधिकांश प्रजातियां वन क्षेत्रों में उगती हुई पाई जाती हैं। उनमें से कई आवास संशोधन, अतिक्रमण और विखंडन के कारण लुप्तप्राय हो रहे हैं।दुर्लभ ताड़ की प्रजातियों को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम के तहत लाया जाना चाहिए और उनके विलुप्त होने से पहले, उनकी सुरक्षा के लिए उचित उपाय शुरू किए जाने चाहिए।इस संसाधन के विविध उपयोगों के बावजूद, इसके संरक्षण पर महत्वपूर्ण ध्यान नहीं दिया गया है। अब समय आ गया है कि, केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों को इसके स्थायी प्रबंधन के लिए त्वरित कदम उठाने चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3xx6x33m
https://tinyurl.com/2sdzhvmn
https://tinyurl.com/34xmdb8z
चित्र संदर्भ
1. भारतीय ताड़ के पेड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ईलाइस(Elaeis)ताड़ की एक महत्त्वपूर्ण प्रजाति है, जिसमें दो उप–प्रजातियां होती हैं। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. तिरुवरूर, तमिलनाडु में नारियल के पेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पल्मीरा पाम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. सुपारी पाम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. बेंटिनकियाकोंडापन्ना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. पाल्मेटम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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