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हिंदू मान्यता के मुताबिक रावण पर भगवान श्रीराम की विजय के दिन को विजय दशहरा के रूप में मनाया जाता है। वहीं यह भी माना जाता है कि रावण को मारकर जिस दिन राम अयोध्या लौटे थे, उस दिन को हिंदू परिवार दिवाली के रूप में मनाते हैं। कहा जाता है कि भगवान राम को श्रीलंका से अयोध्या लौटने में 21 दिन का समय लगा।क्या आप जानते है कि जब हम गूगल मैप (Google Map)पर श्रीलंका से अयोध्या की पैदल रास्ते की दूरी देखेंगे तो जवाब काफी चौंकाने वाला आता है, गूगल मैप के मुताबिक, अगर सबसे जल्दी पहुँचने वाले रास्ते से श्रीलंका से अयोध्या आया जाए तो यह दूरी 2589 किमी है और अगर पैदल चला जाए तो 21 दिन और ग्यारह घंटे में इसे तय किया जा सकता है!
ऐसे में कहना गलत ना होगा कि त्रेतायुग से चली आ रही दीपावली मनाने की परंपरा किसी अंधविश्वास या मनगढ़ंत कहानी के आधार पर नहीं है, बल्कि तथ्यों के आधार पर यह ग्रंथ लिखे गए हैं।
परन्तु इस बात से कई लोग सहमत भी है तो कई लोग असहमत भी है। कई लोगो का कहना है कि संभव है कि श्री राम का 14 वर्ष का वनवास ठीक उसी दिन पूरा न हुआ हो, जिस दिन उन्होंने रावण का वध किया था। रामायण में कहा गया है कि वनवास के 10वें वर्ष में माता सीता का हरण रावण द्वारा कर लिया गया था और सीता की खोज में लंका जाने से लेकर, युद्ध करने और रावण को मारने में कम से कम 2.5-3 वर्ष का समय लगा होगा।जिसमें 13 साल पूरे हो गए थे, अतः पूरी संभावना है कि श्री राम जी का वनवास अभी भी लगभग एक साल और पूरा होना बाकी था, और क्योंकि राम एक आज्ञाकारी पुत्र थे इसलिए मर्यादा पुरषोत्तम राम ने अपने धर्म का पालन अवश्य ही पूर्ण किया होगा। एक वर्ष उनके लिए अपनी वापसी यात्रा पूरी करने का पर्याप्त समय था, तथा इसलिए संभावना है कि रावण को मारने के बाद श्री राम को अयोध्या पहुंचने में अधिकतम एक वर्ष और 18 दिन लगे होंगे।
परन्तु जो लोग इस बात से सहमत है कि भगवान राम को श्रीलंका से अयोध्या लौटने में 21 दिन का समय लगा उनका कहना है कि यदि श्री राम ने अपनी यात्रा रामेश्वरम से शुरू की और रास्ते में अपने घोड़ों का आदान-प्रदान किया, श्री राम की इस यात्रा में कई शुभचिंतक और मैत्रीपूर्ण राज्य शामिल थे, इसलिए यह संभव है कि रास्ते में वे अपने घोड़े बदलते रहे होंगे, और यात्रा के लिए उन्हें सबसे अच्छे और योग्य घोड़े मिलें होंगे। अब 20 दिन में 2618 किमी की यात्रा का मतलब है प्रतिदिन औसतन 130 किमी की यात्रा। और उस समय प्रतिदिन 130 किलोमीटर की यात्रा करना संभव था यदि घोड़े बदलते रहे होंगे तो। वहीं कुछ लोगो का तो यह भी कहना है कि श्री राम द्वारा तय की गई यात्रा पैदल भी संभव है लेकिन यह तभी हो सकता है जब उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान एक मिनट का भी आराम नहीं किया हो!
रामायण अक्सर असत्य पर सत्य की विजय की अमर गाथा मानी जाती रही हैं। यह न केवल राम और सीता की एक कहानी ही नहीं है,बल्कि इसके दार्शनिक और आध्यात्मिक महत्व भी हैं,जो बहुत कम लोग जानते हैं। कहानी राजा दशरथ से शुरू होती है जो “दस रथों” (5 ज्ञानेंद्रियों और 5 कर्मेन्द्रियों) का प्रतीक है, और उनकी पत्नी रानी “कौशल्या” का अर्थ है कौशल। अर्थात राजा दशरथ सभी 10 इन्द्रियों को नियंत्रित करने में सक्षम रहे थे। एक ऐसे ही राजा का राज्य “अयोध्या” कहला सकता है; अयोध्या का अर्थ है एक ऐसा स्थान जहाँ कोई युद्ध या द्वन्द नहीं हो सकता। राम का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर में हुआ था। राम आत्मा (चेतना) के शुद्ध रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी पत्नी सीता का अर्थ है पृथ्वी या व्यक्तिगत आत्मा।सरल भाषा में कहें तो सीता मन का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा हमारी सांस या जीवन-शक्ति(प्राण)हनुमान है, हमारी जागरूकता लक्ष्मण, और हमारा अहंकार है रावण।
जब श्री राम ने माता सीता से विवाह किया तो यह इस बात का प्रतीक है कि शुद्ध प्रकाश मन में विलीन हो जाता है जिससे मानव शरीर का जन्म होता है। इसके बाद माता सीता के साथ राम अयोध्या से अंधेरे जंगल में वनवास के लिए चले जाते हैं। अंधेरा जंगल उस जीवन या दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है जहां हम रहते हैं जो आकर्षण और विकर्षणों से भरा है। एक दिन माता सीता (मन) स्वर्ण मृग (सांसारिक व्याकुलता या माया) की ओर आकर्षित हो जाती है। जिसका अर्थ है कि सीता (मन) जो राम (शुद्ध चेतना) पर ध्यान कर रही थी, अब दुनिया के आकर्षण और विकर्षणों से विचलित हो गई है। राम ने सीता को लक्ष्मण की सुरक्षा में छोड़ दिया। लक्ष्मण हमारे भीतर जागरूकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए एक रेखा खींची ("लक्ष्मण रेखा") जोकि इस अंधेरी दुनिया में बुराइयों और खतरों से सुरक्षा का प्रतीक है। लेकिन सीता (मन), दुर्भाग्य से, उस सुरक्षा से बाहर निकल जाती है और रावण (अहंकार का प्रतिनिधित्व करता है) द्वारा हरण कर ली जाती है।
जब मन(सीता),अहंकार (रावण)द्वारा हरण किया जाता है, तो आत्मा(राम) को बेचैनी हो जाती है। लंका में सीता (मन), राम (चेतना) को ही याद करती है। क्योंकि वह जानती है कि उन्हें केवल राम ही बचा सकते हैं। भगवान राम वानरों की सेना को इकट्ठा करते हैं, जोकि विचारों की सेना का प्रतिनिधित्व करता है। सीता को बचाने के लिए समुन्द्र पर पत्थरों का एक पुल बनाया जाता है और प्रत्येक पत्थर पर राम का नाम लिखा होता है ताकि पत्थर समुद्र पर तैर सकें। इसका अर्थ यह है कि ईश्वरीय शक्ति का नाम लेने से हम समस्याओं और भटकाव के सागर में डूबने से बच सकते हैं। अंत में, रावण (अहंकार) का नाश हो जाता है और सीता (मन) का पुनर्मिलन राम (आत्मा)से हो जाता है।
रामायण की यह पूरी कहानी वास्तव में हमारे मन और हमारी शुद्ध आंतरिक आत्म-चेतना के पुनर्मिलन के इर्द-गिर्द घूमती है। रावण रूपी अहंकार की माया अनेक रूपों में मन और आत्मा को भ्रमित कर, कष्ट देती है किन्तु ये हम सभी को स्मरण रखना चाहिए की आत्मा की शक्ति विचलित तो हो सकती है लेकिन पराजित नहीं हो सकती। इसमें आत्मा को जागरूकता (लक्ष्मण) और प्राण (हनुमान) की मदद लेनी चहिये, और अपने भीतर सद्गुणों का निर्माण करना चाहिए, जिससे अंततः रावण (अहंकार) का नाश हो जाता है और सीता (मन) का पुनर्मिलन राम (आत्मा) से हो जाता है।मन और आत्मा के परस्पर संतुलित सामंजस्य से हमारा शरीर चलता है। वास्तव में रामायण हर समय हर मनुष्य के भीतर होने वाली एक शाश्वत घटना है का स्वरूप है, अब यह हम पर निर्भर करता है कि हमारे भीतर राम की विजय होती है या अहंकार रुपी रावण की।
संदर्भ:
http://surl.li/mkibz
http://surl.li/mkicb
https://shorturl.at/eCN49
चित्र संदर्भ
1. वन में अकेली बैठी माता सीता और रावण वध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, lookandlearn)
2. राम सेतु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पंचवटी में प्रभु श्री राम और माता सीता को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. प्रभु श्री राम का स्वागत करते भरत को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
5. प्रभु श्री राम को मृग को दिखाती माता सीता को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
6. रावण वध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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