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क्या आप जानते हैं कि, मछली की खाल से बना चमड़ा गाय या भेड़ की खाल से बने चमड़े के ही समान होता है। मछली के चमड़े को मजबूत एवं पहनने योग्य प्रतिरोधी बनाने के लिए, टैन(Tan) और उपचारित किया जाता है। जब मछली की खाल को टैन किया जाता है, तो उसकी ऊपरी त्वचा उतार दी जाती है।
मछली का चमड़ा अन्य चमड़े की तुलना में अधिक मोटा होता है, और परिणामस्वरूप, यह अन्य चमड़े की तुलना में अधिक मजबूत भी होता है। साथ ही, मछली का चमड़ा, इसके समान मोटाई के अन्य चमड़े से बहुत अलग होता है, जो इसे अधिक टिकाऊ बनाता है। यह कोलेजन फाइबर(Collagen fibres) से बना होता है, जो टोकरी की बुनाई की तरह अलग-अलग दिशाओं में जाते हैं। इससे इसे 90 न्यूटन(Newton) की तन्य शक्ति(वजन वहन करने की क्षमता) प्राप्त होती है। इसके समान मोटाई वाले, अन्य चमड़े की तन्य शक्ति 8 से 25 न्यूटन के बीच होती है, उदाहरण के लिए गाय का चमड़ा। मछली के चमड़े की ताकत इस बात पर निर्भर करती है कि, कितने रेशे और परतें एक-दूसरे को पार करती हैं।इसलिए,मछली का चमड़ा ठोस होता है और इसमें उच्च तन्यता ताकत होती है।
इसके अलावा, जबकि, मछली के चमड़े की तन्य शक्ति 175 से 220 किलोग्राम प्रति सेंटीमीटर वर्ग के बीच होती है, गाय, भैंस और बकरी के चमड़े की तन्य शक्ति 150 से 250 किलोग्राम प्रति सेंटीमीटर वर्ग के बीच होती है। इससे मछली का चमड़ा किसी भी अन्य चमड़े की तुलना में मजबूत होता है। साथ ही, यह काफी लागत प्रभावी भी है। पारंपरिक चमड़े की उत्पादन लागत 70 रुपये से 90 रुपये प्रति वर्ग फुट के बीच होती है, लेकिन, मछली की खाल के चमड़े की कीमत 4 रुपये प्रति मीटर वर्ग से भी कम होगी।
मछली के चमड़े का उपयोग रोजमर्रा की वस्तुएं बनाने के लिए किया जाता है,जो कम उपयोगी होती हैं और चमड़े पर बहुत अधिक तनाव नहीं डालती हैं। यही कारण है कि, हम मछलियों के चमड़े से बेल्ट(Belt), थैले या पट्टियों जैसी चीज़ें बनाने के बारे में नहीं सोचते हैं, जिनके लिए, मोटे चमड़े की आवश्यकता होती है।
वैसे तो, पूरी तरह से मछली के चमड़े से बने कुछ बटुए, इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण हैं कि,यह चमड़ा कितना टिकाऊ हो सकता है। ये बटुए साधारणतः दस साल से अधिक समय तक सही बने रहते हैं।
सैकड़ों वर्षों से मछलियों के चमड़े का हो रहा उपयोग, इसकी विश्वसनीयता को प्रमाणित करता है। नानाई लोग(Nanai people), जो अमूर नदी(Amur River) के किनारे पूर्वी साइबेरिया(Siberia) में रहते थे, और पारंपरिक रूप से मछली की खाल से बने कपड़े बनाते थे, उन्होंने मछली का चमड़ा बनाने का तरीका खोजा था।
इसके अलावा भी, बहुत से लोग लंबे समय से मछली के चमड़े का उपयोग करते आ रहे हैं। हजारों साल पहले मिस्रवासी एवं उत्तरी भारतीयों द्वारा मछली की खाल का उपयोग चमड़ा बनाने के लिए किया जाता था। वे लोग इस चमड़े का उपयोग कपड़े और जूते बनाने के लिए करते थे, जिसके निचली परत पर घास लगाई जाती थी। कुछ विशेष आइसलैंडर्स(Icelanders), स्कॉट्स(Scots) और आयरिश लोग(Irish people) भी मछली की खाल का इस्तेमाल करते थे।
1600 के दशक में, रे(Ray) एवं शार्क(Shark)मछलियों की खाल का उपयोग हथियारों और चाकुओं को ढकने के लिए किया जाता था। आर्ट डेको(Art Deco) अवधि के दौरान, 1920 से 1939 तक, मछली का चमड़ा हैंडबैग(Handbag), सिगरेट के बक्से और फर्नीचर(Furniture) बनाने के लिए प्रसिद्ध था। इसका उपयोग इत्र की बोतलें, पाउडर(Powder) के डिब्बे और छोटी डिबिया बनाने के लिए भी, किया जाता था।हालांकि, 20वीं सदी में उपनिवेशवाद और समावेशीकरण के कारण, मछली का चमड़ा बनाने की प्रथा लुप्त हो गई थी। मछली की खाल से हाथ से बने जूतों और कपड़ों की जगह तब रबर(Rubber) के जूतों और कारखानों में बने कपड़ों ने ले ली।
जबकि, आज, स्थानीय कलाकार एवं डिज़ाइनर फिर से मछलियों की त्वचा से जूते, हैंडबैग और यहां तक कि, कार के अंदर की चीज़ों को भी बना रहे हैं। यूरोपीय संघ(European Union) द्वारा वित्त पोषित, एक अनुसंधान परियोजना की मदद से मछली के चमड़े का स्थायी रूप से उत्पादन करने और इसका उपयोग करने के तरीके खोजने तथा फैशन उद्योग में इसके उपयोग को बढ़ाने हेतु, पर्यावरण के प्रति जागृत कंपनियां एवं संगठन मछली के चमड़े से संबंधित एक नया उद्योग बना रहे हैं। क्योंकि, मछली के चमड़े की उपयोगिता और सुंदरता ने लोगों को कुछ नया, अलग, पर्यावरण-अनुकूल और सुंदर खोजने के लिए प्रेरित किया है।
हमारे देश भारत में,कोलकाता के दो युवा चमड़ा तकनीशियन, संदीप दास और रिसिन डे ने मछली के चमड़े से संबंधित एक नवाचार का दावा किया है। दोनों ने अब एक भारतीय पेटेंट(Patent)के लिए आवेदन भी किया है।
दास और डे द्वारा विकसित रासायनिक उपचार प्रक्रिया में मछली की खाल को चमड़े में बदलने हेतु, इसका हानि रहित रसायनों की मदद से नमकीन बनाना, चूना लगाना एवं परिसीमन करना आदि शामिल हैं। इसके बाद,फिर खाल को टैन किया जाता हैं। और इस प्रकार, यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है।
दास और डे मछली के चमड़े से जीवनशैली संबंधी सहायक वस्तुओं के निर्माण पर प्रयोग करने की प्रक्रिया में भी हैं और एक जर्मन(German) बहुराष्ट्रीय कंपनी ब्रैडिश एनिलीन सोडा फैब्रिकिन(Bradish Anilene Soda Fabriquin) के साथ सहयोग कर रहे हैं। उनकी नई चमड़ा सामग्री की खबर फैलने के बाद, उनके पास इस अत्यधिक लाभदायक उद्यम में रुचि रखने वाली, कई चमड़ा कंपनियों के प्रश्नों की बाढ़ आ गई है।
यह लाभदायक है क्योंकि, इसके लिए कच्चा माल, अर्थात मछली की खाल स्थानीय रूप से उपलब्ध हो जाती है, जिसे आमतौर पर मछली विक्रेता फेंक देते हैं। डे के अनुसार, अकेले कोलकाता में, प्रतिदिन 80 टन से अधिक मछली की खाल का उत्पादन होता है। अतः बेरोजगार युवाओं के लिए, एक जीवंत कुटीर चमड़ा उद्योग बनाने की क्षमता का उपयोग किया जा सकता है।
मछली का यह कम प्रदूषक चमड़ा निश्चित रूप से, पारंपरिक चमड़े का एक अधिक टिकाऊ रूप है। क्योंकि, जानवरों की खाल से बालों को हटाने और स्तनपायी खाल को कम करने के लिए, रसायनों के उपयोग की तुलना में, मछली की खाल से त्वचा की परत को हटाना एक यांत्रिक प्रक्रिया है।
वर्तमान समय में, मछली के चमड़े का वैश्विक चमड़े की बिक्री में 1% से भी कम योगदान है। जिससे, इस उद्योग की काफ़ी संभावनाएं हैं।प्रत्येक 2,000 पाउंड(Pound) मछली के लिए, 88 पाउंड मछली की खाल को फेंक दिया जाता है।और चूंकि, यह जल–भोजन उद्योग का एक उप उत्पाद है, हम इसका निश्चित तौर पर उपयोग कर सकते हैं।केवल अमेरिका(America) ही दुनिया में जलीय भोजन का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, इसलिए, इसके मौजूदा उप उत्पादों का उपयोग करके, इस कचरे का पुनःचक्रणको हटाना महत्वपूर्ण है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/54m7nh4c
https://tinyurl.com/ypx9b3en
https://tinyurl.com/3n3ajyaw
https://tinyurl.com/3abtvzsr
चित्र संदर्भ
1. मछली का शिकार करते युवाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia,youtube)
2. मछली की खाल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. विभिन्न रंगों में मछली के चमड़े को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. हाथ में मछली पकड़े युवा को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. मछली के चमड़े से निर्मित गहनों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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