नंदीनागरी: दर्शन, विज्ञान और कला को समर्पित एक बहुमूल्य दक्षिण भारतीय लिपि

ध्वनि II - भाषाएँ
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नंदीनागरी: दर्शन, विज्ञान और कला को समर्पित एक बहुमूल्य दक्षिण भारतीय लिपि

नंदीनागरी एक प्राचीन लिपि या लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग 8वीं से 19वीं शताब्दी तक दक्षिण और मध्य भारत में किया जाता था। इसका उपयोग संस्कृत भाषा में दर्शन, विज्ञान और कला से जुड़ी पांडुलिपियां और शिलालेख लिखने के लिए किया जाता था। यह लिपि देवनागरी लिपि के समान है, जिसका प्रयोग उत्तर भारत में हिन्दी तथा अन्य भाषाएँ लिखने के लिए भी किया जाता है। नंदीनागरी, नागरी लिपि से संबंधित है और इस में लिखे कई प्राचीन दस्तावेजों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है। इनमें से कुछ दस्तावेज़ प्रसिद्ध धार्मिक शिक्षक माधवाचार्य द्वारा लिखे गए थे। नंदी नागरी में “नागरी” शब्द का अर्थ 'शहर' होता है, और "नंदी" शब्द का अर्थ "पवित्र" या "शुभ" होता है। साथ ही नंदी भगवान शिव की सवारी का भी नाम है, शायद इसलिए इस लिपि का नाम नंदीनागरी है। नंदीनागरी में लिखी गई कई संस्कृत पांडुलिपियाँ दक्षिण भारत में देखी जाती हैं। हमें काकतीय राजवंश के समय से महबूबाबाद नामक स्थान पर नंदीनागरी में लेखन के उदाहरण मिले हैं। ये पांडुलिपियाँ दर्शन, पौराणिक कथाओं, विज्ञान और कला जैसे विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला में उपलब्ध हैं। कुछ नंदीनागरी ग्रंथ एक से अधिक लिपि में लिखे गए हैं, जिनमें तेलुगु, तमिल, मलयालम और कन्नड़ जैसी अन्य प्रमुख दक्षिण भारतीय भाषा की लिपियाँ भी शामिल हैं।
नंदीनागरी में लेखन के कुछ सबसे पुराने अभिलेख तमिलनाडु में खोजे गए हैं। इनमें 8वीं सदी के पत्थर के शिलालेख, 9वीं सदी के तांबे की प्लेट (copper plate) के शिलालेख और 10वीं सदी के सिक्के शामिल हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद की एक पांडुलिपि भी नंदीनागरी में लिखी गई है। इसके अलावा केरल में एक मंदिर में एक पांडुलिपि मिली जो नंदीनागरी में लिखी गई थी। विजयनगर साम्राज्य के समय में कई संस्कृत ताम्रपत्र शिलालेखों को लिखने के लिए भी इस लिपि का उपयोग किया गया था। नंदीनागरी और देवनागरी लिपियाँ, या लेखन प्रणालियाँ काफी हद तक समान हैं। हालांकि, उनमें कुछ अंतर भी हैं, जो सीधे तौर पर नजर आ जाते हैं। उदाहरण के तौर पर नंदीनागरी के स्वर देवनागरी के स्वरों से भिन्न दिखते हैं, और इसके कुछ व्यंजनों के आकार भी भिन्न होते हैं। नंदीनागरी के बारे में एक अनोखी बात यह है कि इसमें प्रत्येक अक्षर के शीर्ष पर एक रेखा होती है, लेकिन देवनागरी की भांति यह सभी अक्षरों को एक शब्द में एक लंबी पंक्ति से नहीं जोड़ती है।
नंदीनागरी एक ब्राह्मी लिपि है, जिसकी उत्पत्ति "नागरी लिपि" से हुई थी। नागरी लिपि को देवनागरी और नंदीनागरी लिपि का आधार माना जाता है। नागरी लिपि का उपयोग पहली सहस्त्राब्दी ईस्वी के आसपास प्राकृत भाषाओं और शास्त्रीय संस्कृत को लिखने के लिए किया जाता था। नागरी लिपि का उद्भव प्राचीन ब्राह्मी लिपि परिवार से है और इसलिपि का सबसे पहला साक्ष्य गुजरात में पाए गए शिलालेखों में मिलता है, जो पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी के बीच के हैं। 7वीं शताब्दी ईस्वी तक, इसका उपयोग दैनिक रूप से किया जाने लगा और पहली सहस्राब्दी के अंत तक यह देवनागरी और नंदीनागरी लिपियों में विकसित हो गई थी। "नागरी" शब्द "नागरा" शब्द से आया है, जिसका अर्थ है “शहर”। इसका तात्पर्य शहर के शिक्षित लोगों या सभ्य लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली लेखन प्रणाली से है।7वीं शताब्दी ईस्वी तक, नागरी लिपि का आमतौर पर उपयोग किया जाता था और पहली सहस्राब्दी के अंत तक यह पूरी तरह से विकसित हो गई थी। हम जानते हैं कि मध्यकालीन भारत में स्तंभों और गुफा मंदिरों में पाए गए कई संस्कृत भाषा के शिलालेख, नागरी लिपि में ही लिखे गए थे । भारत के पड़ोसी देशों में, जैसे श्रीलंका, म्यांमार और इंडोनेशिया में भी ऐसे अवशेष पाए गए हैं, जिनकी लिपि समान है(नागरी)। सभी इंडिक लिपियों में नागरी सबसे महत्वपूर्ण रही है। नागरी लिपि गुप्त लिपि के एक प्रकार के रूप में शुरू हुई, जिसका उपयोग मध्य-पूर्वी भारत में किया जाता था। इसके बाद यह देवनागरी और नंदीनागरी सहित कई लिपियों में विभाजित हो गई। कई जानकार यूनिकोड (Unicode) (कंप्यूटर में पाठ का प्रतिनिधित्व करने की एक प्रणाली) में एक अलग विकल्प के रूप में नंदीनागरी को शामिल करने का सुझाव भी देते हैं। नंदीनागरी में 0-9 तक की संख्याएँ भी हैं, तथा इसमें मानक भारतीय विराम चिह्नों का उपयोग किया गया है। साथ ही नंदीनागरी में लिखे वैदिक (प्राचीन हिंदू) ग्रंथों में उच्चारण को चिह्नित करने के लिए कुछ विशेष संकेतों का भी उपयोग किया जाता है। हालांकि अब लोग नंदीनागरी में नए ग्रंथ नहीं लिखते हैं, लेकिन फिर भी इसका उपयोग पुरानी पुस्तकों का अध्ययन और संरक्षण करने वाले शोधकर्ताओं द्वारा किया जाता है। इसका उपयोग हिंदू धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन (विशेष रूप से माधव वैष्णववाद) करने वाले छात्रों द्वारा भी किया जाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4vmdn3d4
https://tinyurl.com/5awsmz9j
https://tinyurl.com/ms5e3tvx
https://tinyurl.com/2nazap8z

चित्र संदर्भ
1.नंदीनागरी में लिखित पाण्डुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्रसिद्ध धार्मिक शिक्षक माधवाचार्य को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. तांबे की प्लेट को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
4. पहली शताब्दी की ब्राह्मी लिपि (पहली तीन पंक्तियाँ) और 9वीं शताब्दी की नागरी लिपि (अंतिम पंक्ति) में उत्कीर्ण आदमकद श्रावस्ती बोधिसत्व प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. नंदिनागरी लिपि दर्शाने वाले चार्ट को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)