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किसी भी देश का विकास ऊर्जा आपूर्ति के नियमित तथा निरंतर उत्पादन के बिना संभव नहीं है। विकसित और विकासशील देशों के लिये कोयला एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत रहा है। भारत में कोयले का खनन 1774 से किया जा रहा है तथा चीन (China) के बाद भारत दुनिया में कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। ऐसा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2022 में भारत ने 777.31 मिलियन मीट्रिक टन कोयले का खनन किया था। भारत में विभिन्न प्रयोजनों के लिए कोयले की मांग को पूरा करने के लिए लगभग 30% कोयला दूसरे देशों से आयात किया जाता है। धनबाद भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक शहर है तथा इसे भारत की कोयला राजधानी के रूप में जाना जाता है।
हालांकि, कोयला खनन का इतिहास हजारों साल पुराना है, जिसकी प्रारंभिक खदानें प्राचीन चीन, रोमन साम्राज्य (Roman Empire) और अन्य प्रारंभिक ऐतिहासिक अर्थव्यवस्थाओं में मौजूद थीं। लेकिन 19वीं और 20वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के दौरान कोयला खदानें विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गई, क्योंकि औद्योगिक क्रांति के दौरान कोयले का उपयोग मुख्य रूप से भाप इंजनों में, इमारतों को गर्म करने में और बिजली उत्पन्न करने में किया जाने लगा। आज भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि के रूप में कोयला खनन जारी है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) और पर्यावरणीय मुद्दों में कोयले की मजबूत भूमिका के कारण कोयला उत्पादन में गिरावट आनी शुरू हो गई है।
लकड़ी के ईंधन की तुलना में कोयला अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करता है, तथा इसे अक्सर उन क्षेत्रों से प्राप्त किया जा सकता है जहां लकड़ी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है। यद्यपि ऐतिहासिक रूप से घरेलू ईंधन के रूप में इसका उपयोग किया जाता था किंतु अब इसका उपयोग धातुओं को गलाने, मिश्र धातु उत्पादन और बिजली उत्पादन में भी किया जाता है। औद्योगिक क्रांति के दौरान बड़े पैमाने पर कोयला खनन का विकास हुआ और 18वीं शताब्दी से 1950 के दशक तक कोयला औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योग और परिवहन के लिए प्राथमिक ऊर्जा का मुख्य स्रोत बन गया। ब्रिटेन (Britain) ने 18वीं सदी के अंत में भूमिगत कोयला खनन की मुख्य तकनीकों का विकास किया तथा 19वीं सदी और 20वीं सदी की शुरुआत के बाद से इन तकनीकों में और भी अधिक सुधार होने लगा। हालाँकि, 1860 के दशक के बाद से, तेल और गैस के विकल्प ने कोयले की लोकप्रियता को अपेक्षाकृत कम कर दिया।
प्रारंभ में कोयला निष्कर्षण या तो भूमि की सतह पर या उसके बहुत करीब छोटे पैमाने पर होता था। कोयला निष्कर्षण के लिए ड्रिफ्ट माइनिंग (Drift mining), बेल पिट (Bell pits) और शाफ्ट खनन (Shaft mining) जैसे विशिष्ट तरीकों का भी उपयोग किया जाता था। चीन में कुछ ऐसे पुरातात्विक साक्ष्य पाए गए हैं, जो 3490 ईसा पूर्व के हैं तथा कोयले के सतही खनन और घरेलू उपयोग का संकेत देते हैं। धातु गलाने के लिए कोयले के उपयोग का सबसे पहला संदर्भ यूनानी वैज्ञानिक थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) के भूवैज्ञानिक ग्रंथ ‘ऑन स्टोन्स’ (On stones) में मिलता है। अमेरिका (America) में कोयले का सबसे पहला ज्ञात उपयोग एज़्टेक (Aztecs) द्वारा किया गया था जो ईंधन के लिए कोयले और आभूषणों के लिए जेट (एक प्रकार का लिग्नाइट) का उपयोग करते थे।
भारत में कोयला खनन का अपना एक इतिहास है। प्राचीन काल से लेकर अब तक, भारतीय जनजातियों (लोहार और अगरियार) द्वारा लोहे को गलाने के लिए कोयले का उपयोग किया जाता रहा है। हालांकि, भारत में कोयले का पहली बार औपचारिक रूप से खनन ब्रिटिश राज के तहत 1770 के दशक में रानीगंज, बिहार में किया गया था। 1800 ईसवी तक खाना पकाने के लिए ऊर्जा स्रोत के रूप में कोयले का उपयोग नहीं किया जाता था, उस समय तक भारत में खाना पकाने के लिए लकड़ी एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत थी। भारत में कोयले का व्यावसायिक दोहन 1774 में दामोदर नदी के पश्चिमी तट पर बिहार के रानीगंज कोयला क्षेत्र में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के जॉन सुमनेर (John Sumner) और सुएटोनियस ग्रांट हीटली (Suetonius Grant Heatly) द्वारा किया गया। कम मांग के कारण भारतीय कोयला खनन की वृद्धि लगभग एक शताब्दी तक धीमी रही। भाप इंजनों की शुरूआत से 1853 में कोयले का उत्पादन सालाना औसतन 1 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ गया था। 1900 तक, भारत में प्रति वर्ष 6.12 मिलियन मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन किया जाने लगा, जो कि 1920 में 18 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कोयले की मांग में वृद्धि के कारण कोयला उत्पादन में भी वृद्धि हुई, लेकिन 1930 के दशक की शुरुआत में कोयला उत्पादन में फिर से गिरावट आने लगी।
ब्रिटिश भारत में बंगाल, बिहार और ओडिशा में कई भारतीयों ने 1894 से कोयला खनन में भारतीय भागीदारी की शुरुआत की। उन्होंने कोयला खनन पर ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय लोगों के एकाधिकार को खत्म करते हुए खास झरिया, जामाडोबा, बलिहारी, तिसरा, कतरासगढ़, कैलूडीह, कुसुंदा, गोविंदपुर, सिजुआ, सिझुआ, लोयाबाद, धनसार, भूली, बर्मो, मुगमा, चासनाला-बोकारो, बुगाटडीह, पुटकी, चिरकुंडा आदि स्थानों में कई कोयला खदानें स्थापित कीं गई । भारत में अधिकांश कोयले का उपयोग बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है हालांकि ऐसे ऊर्जा संयंत्र, जिनसे कोयले के जरिए बिजली उत्पन्न की जाती है, की आलोचना की जाती रही है, क्योंकि पर्यावरण पर इसका अत्यधिक दुष्प्रभाव पड़ता है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/yhctkjhe
https://tinyurl.com/4xtjtszr
https://tinyurl.com/3wcszm33
https://tinyurl.com/24d4rvrc
https://tinyurl.com/yraraaeh
चित्र संदर्भ
1. कोयले की खदान पर काम करते एक भारतीय परिवार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारत के कोयला उत्पादन ग्राफ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कोयला खोदती मशीनों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
4. कोयला खनन में लगी कई मशीनों का एक चित्रण (wikimedia)
5. कोयला खदान पर काम करते मजदूरों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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