जौनपुर के लिए प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है, गोमती नदी, आवश्‍यक है उचित संभोग व संरक्षण

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
22-09-2023 09:26 AM
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जौनपुर के लिए प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है, गोमती नदी, आवश्‍यक है उचित संभोग व संरक्षण

सदियों से नदियाँ मानव के अस्तित्व का केंद्र रही हैं। प्राचीन समय में सभ्‍यता की शुरूआत भी नदियों के किनारे ही हुई थी, और सबसे प्रमुख प्राचीन शहर नदी संस्कृति के रूप में विकसित हुए थे। नदियाँ अपने किनारे बसे शहरों के विकास में मार्गदर्शक का कार्य करती हैं। जैसे-जैसे कोई शहर बढ़ता और विकसित होता है, यह शहर में नदियों के स्वरूप, उनके आसपास के क्षेत्रों और नदी में जीवन के प्राकृतिक संतुलन को बदल देता है । इसके अलावा, शहर विभिन्न बुनियादी ढांचागत और विकास संबंधी जरूरतों के लिए अपनी नदियों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। इस प्रक्रिया में शहरों ने शहरीकरण की ओर बढ़ने के लिए अपनी नदियों का दोहन कियाहै, लेकिन उन्होंने नदियों में जीवन के प्राकृतिक संतुलन को भी बदल दिया हैऔर नए परिदृश्य बनाए हैं। हालाँकि नदियों को दुनिया भर में मानव समुदायों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन अर्थव्यवस्थाओं और समाजों के लिए उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों का पूरी तरह से लाभ उठाना वास्तव में कठिन है।सदियों से नदियां जल का प्रमुख स्रोत रही हैं । इन्हें विकसित और प्रबंधित किया गया है, इन्‍हें यात्रा, ऊर्जा और जल आपूर्ति के लिए उपयोग किया गया है।नदियाँ अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही मनुष्यों और अर्थव्यवस्थाओं को व्यापक लाभ दे रही हैं। उदाहरण के लिए:
• नदी द्वारा बनाए गए बाँधशहरों के भीतर बाढ़ के खतरे को कम कर सकते हैं - जो आज जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती चिंता का विषय है।
• अधिकांशतः नदियों का पानी मीठा होता है जिससे मत्स्य पालन को बढ़ावा मिलता है। ये मछलियां कम लागत वाले प्रोटीन का अच्‍छा स्‍त्रोत हैं जो कमजोर ग्रामीण समुदायों की व्यावसायिक सहायता भी करती हैं, खाद्य सुरक्षा को बढ़ाती हैं और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देती हैं।
• नदियाँ डेल्टा को बनाए रखती हैं, जो दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों में से होते हैं और बड़ी संख्या में लोग यहाँ निवास करते हैं। ‘भारत के शहरी मामलों के मंत्रालय’ द्वारा शहरी नदियों के प्रबंधन हेतु कई परियोजना एं चलाई जा रही हैं, जिनमें से एक सबसे प्रमुख है ‘नमामि गंगा’ परियोजना। इस परियोजना से संबंधित कई नीति दस्तावेज़ अब इंटरनेट पर उपलब्ध हैं और गंगा-यमुना नदी के किनारे (दिल्ली, आगरा, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी आदि) बने शहरों की नगर पालिकाओं को प्रशिक्षित करने के लिए कई कार्यशालाएँ शुरू की गई हैं। गोमती के दोनों किनारों पर बना हमारा जौनपुर शहर अंतरराष्ट्रीय और भारत सरकार की नमामि गंगे परियोजना से सीधे सीख ले रहा है। गोमती नदी का उद्गम माधो टांडा, पीलीभीत के पास स्थित गोमत ताल से होता है । यह नदी उत्तर प्रदेश से होते हुए 900 किमी तक फैली हुई है और ग़ाज़ीपुर में सैदपुर कैथी के पास गंगा नदी से मिलती है। लगभग 440 किमी की यात्रा के बाद गोमती जौनपुर में प्रवेश करती है, जौनपुर में यह करीब दस किमी की यात्रा करती है। हमारा शहर जौनपुर गोमती के तट पर स्थित 15 शहरों में से सबसे प्रतिष्ठित शहर है। बारिश के मौसम में तो इसमें पानी का बहाव दर्शनीय होता है। लेकिन यह नदी बड़ी मात्रा में मानवीय और व्यावसायिक प्रदूषण भी एकत्र करती है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश के बड़ी आबादी वाले क्षेत्रों (लगभग 18 मिलियन) से होकर बहती है। नदी में उच्च प्रदूषण स्तर के कारण गोमती के आसपास के क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, और साथ ही इसके जलीय अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। जौनपुर पहुंचने से पहले, गोमती में चीनी उद्योगों का अपशिष्ट बहा दिया जाता है। नदी किनारे स्थित सभी उद्योगों का अपशिष्ट एक साथ गोमती में डाला जाता है और इसके अलावा घरेलू अपशिष्ट जल भी गोमती नदी में प्रवाहित किया जाता है। गोमती नदी जौनपुर शहर के लिए प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है, जिसका उचित संभोग और संरक्षण दोनों आवश्‍यक है।
नदियों के किनारे बसे शहरों का अस्‍तित्‍व नदियों के कारण होता है; हालाँकि, जब शहर विकसित होने लगते हैं, तो नदी उनके लिए एक बाधा में बदल जाती है, जिसे पार करना नगरपालिका के बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग मुद्दों में से एक बन जाता है। प्राकृतिक रूप से नदी शहर के स्वरूप को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। लेकिन शहर के विकास से नदी की पारिस्थितिकी पर भी असर पड़ सकता है। यह पारस्परिक निर्भरता स्थानीय विकास की योजनाओं के लिए एक प्रमुख समस्या बन जाती है। नदी के प्राकृतिक चरित्र और शहरी विकास के बीच तालमेल बिठाना अत्यंत आवश्यक होता है , जिसका शहरवासियों द्वारा स्वाभाविक रूप से उपयोग किया जा सकता है।
एक नदी एक शहर के निर्माण का मुख्य कारण होती है, साथ ही साथ इसकी संरचनाओं के भीतर एक शक्तिशाली सीमा रेखा के रूप में भी कार्य करती है। पुलों का निर्माण, विकास के लिए नदी क्षेत्रों को सुखाना, इसके मार्ग को विनियमित करना, साथ ही बाढ़ से सुरक्षा आदि के लिए स्थानीय नगर पालिका और सरकारों द्वारा अनेकों प्रयास किए जाते हैं । शहर को कार्य करने के लिए नदी की आवश्यकता होती है, लेकिन उसे इसकी उपस्थिति के सभी परिणामों से भी निपटना पड़ता है। शहर की भूमिका और आवश्यकता के आधार पर, नदी एक उपकरण बन सकती है, जो सही ढंग से आकार देने पर शहर के निवासियों को बेहतर सेवा प्रदान कर सकती है। नदियाँ शहरों में सीमा रेखाएँ बनाती हैं, रोजमर्रा की जिंदगी से उनके पूर्ण उन्मूलन के परिणामस्वरूप शहरवासियों की जीवन की गुणवत्ता खराब हो जाएगी।
जिन शहरों के केंद्र में नदियां होती हैं, वे शहर रहने के लिए बहुत आकर्षक होते हैं, साथ ही शहर में आवश्यक अन्य कार्यों में भी सहायता मिलती है। नदियों को केवल आकर्षक दृश्यों के हिस्‍से के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि नदियां शहरी संरचना का मूलभूत तत्व होती हैं, जिन्हें स्थानिक विकास परियोजनाओं को बनाते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। शहर-नदी संबंधों के आधार पर मौजूद असंगति इंगित करती है कि प्रकृति और मानव जाति की जरूरतों के बीच एक उचित संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए। यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि कोई भी नदी किसी शहर में जीवन के रोजमर्रा के कामकाज में बाधा नहीं डाल सकती। हालाँकि, नदी की प्राकृतिक गतिविधियों में अत्यधिक हस्तक्षेप से शहर को नुकसान अवश्य हो सकता है।
जल-संवेदी शहरी डिजाइन और योजना (Water Sensitive Urban Design and Planning (WSUDP), हरित बुनियादी ढांचा, सेप्टेज (Septage ) प्रबंधन (अपशिष्ट जल सहित), शहरी जल दक्षता और संरक्षण के साथ-साथ शहरों के जल-नदी संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए शहरी जल स्थिरता रणनीतियों को डिजाइन और कार्यान्वित किया जाना चाहिए । विश्व स्तर पर यह देखा गया है कि जल संसाधनों का प्रबंधन इस तरह से नहीं किया जाता है कि उनके संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यों का दोहन हो सके और उनकी सुरक्षा भी हो सके। नदी से होने वाले लाभों की एक विस्तृत श्रृंखला अभी भी अज्ञात है, या कहा जाए तो अभी तक उनको मापा भी नहीं गया है क्योंकि वास्तविकता तो यह है कि जब तक मानव जाति को किसी वस्तु की आवश्यकता ना हो वह उसके महत्व को नहीं समझता। इन छिपे हुए मूल्यों को आमतौर पर तब तक प्राथमिकता नहीं दी जाती जब तक कोई संकट की स्थिति उत्पन्न न हो जाए। उपेक्षा के इस पैटर्न के दीर्घकालिक परिणाम देखने को भी मिले हैं। उदाहरण के लिए, जल आपूर्ति का खराब प्रबंधन आज भी समुदायों, शहरों और देशों की जीवन शक्ति और व्यवहार्यता को खतरे में डाल रहा है।

संदर्भ:
https://tinyurl.com/2p8z6czt
https://tinyurl.com/ms58b85b
https://tinyurl.com/2nec7ww6
https://tinyurl.com/bde9azze

चित्र संदर्भ

1. नदी किनारे बसे जौनपुर शहर को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
2. नदी किनारे कपड़े धोती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. जौनपुर के शाही पुल की यात्रा को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. ताजमहल के सामने यमुना नदी में पूजा करती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. नदी की सफाई करते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)