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आप सभी को गणेश चतुर्थी के इस पावन अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएं!
जैसा कि हम जानते ही हैं, श्री गणेश हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। केवल हमारे देश में ही नहीं, बल्कि जापान (Japan) में भी श्री गणेश पूजनीय हैं। आइए, पढ़ते हैं।
जापानी बौद्ध धर्म की शिंगोन (Shingon) और तेंदई (Tendai) शैलियों में, हमारे प्रिय देवता गणेश से मिलते–जुलते एक देवता कांगिटेन (Kangiten) हैं। श्री गणेश का जापानी बौद्ध रूप, कभी-कभी बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के साथ भी पहचाना जाता है। कांगिटेन को कांकी-टेन (जहां टेन का अर्थ, भगवान या देव है), शो-टेन (‘पवित्र भगवान’ या ‘महान देवता’), दाइशो-टेन (‘महान देवता’), दाइशोकांगि-टेन, टेंसन (आदरणीय भगवान), कांगीजिज़ाई-टेन, शोडेन-सामा, विनायक-टेन या बिनायका-टेन, गणपतिए तथा ज़ोबी-टेन आदि नामों से भी जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि श्री गणेश या विनायक हमेशा तुरीय अवस्था में रहते हैं,, जो मन की चौथी और आनंदमय स्थिति है। अतः हम यह कह सकते हैं कि कांगिटेन ‘आनंद के देवता’ हैं। उपरोक्त नामों के अलावा, श्री गणेश को गणबाची या गणपति तथा गौवा (गणेश) के नाम से भी जाना जाता है। गणेश की तरह, बिनायक बाधाओं को दूर करने वाले देवता हैं। इसके साथ ही,जब वे प्रसन्न होते हैं या उनकी पूजा की जाती है, तो वे भौतिक भाग्य, समृद्धि, सफलता और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करते हैं।
कांगिटेन ,आठवीं से नौवीं शताब्दी ईस्वी के दौरान जापानी बौद्ध मान्यताओं के भीतर एक छोटे देवता के रूप में विख्यात हुए थे।संभवतः इनका उदय शिंगोन बौद्ध धर्म (Shingon Buddhism) के संस्थापक कुकाई (Kukai) (774-835) के प्रभाव में हुआ था। संभवतः हमारे प्रिय भगवान श्री गणेश जी की छवि सबसे पहले चीन (China) पहुंची, जहां इसे बौद्ध धर्म में शामिल किया गया। फिर, यह छवि कुछ दिनों बाद जापान में भी प्रचलित हो गई।
बौद्ध धर्म में शामिल अधिकांश अन्य हिंदू देवताओं की तरह, शिंगोन में कांगिटेन की प्रारंभिक भूमिका ,वैरोकाना के जुड़वां मंडलों के एक संरक्षक की थी। बाद में, कांगिटेन एक स्वतंत्र देवता, बेसन (Besson) के रूप में उभरे। कांगिटेन कई जापानी बेसन ग्रंथों में भी दिखाई देते है, जो हेन काल (Heian period) (794-1185) में संकलित किए गए थे। ।प्रारंभिक चीनी लेखन के समान इन ग्रंथों में श्री गणेश के बौद्ध पहलू को स्थापित करने के लिए अनुष्ठान, प्रतीक और मूल मिथक शामिल हैं। जापान में गणेश पूजा से संबंधित, सबसे शुरुआती ग्रंथों में से एक ‘शो कांगिटेन शिकिहो’ (ShoKangiten Shikiho) या ‘रिचुअल ऑफ शो कांगिटेन’ (Ritual of ShoKangiten)’ है, जिसकी रचना लगभग 861 ईसा पूर्व में की गई थी। इसमें भी विभिन्न तांत्रिक अनुष्ठानों का विवरण मिलता है। इन ग्रंथों में, श्री गणेश की आरंभिक छवियों में, उन्हें दो या छह भुजाओं वाला दिखाया गया है।
जापानी मूर्तिकला में, कांगिटेन को हमेशा एक मादा हाथी को गले लगाते हुए दिखाया जाता है, जो पुरुष और महिला ऊर्जा के मिलन का प्रतीक है, जो तांत्रिक बौद्ध धर्म में एक सामान्य विषय है। अपनी कामुक प्रकृति के कारण, जापानी मंदिरों में कांगिटेन की मूर्तियाँ आमतौर पर लकड़ी के बक्सों में रखी जाती हैं।भक्त इन बक्सों की पूजा करते हैं और मूर्ति को केवल औपचारिक अवसरों पर ही बाहर निकाला जाता है। तिब्बती बौद्ध धर्म के तांत्रिक प्रभाव के तहत, जहां यौन कल्पना (यब-यम (Yab-Yum)) आम थी, एक दूसरे को गले लगाते हुए, दो कांगिटेन की चित्रकारी तथा कांस्य छवियां, हेन काल के अंत में उभरीं थी। हालांकि, कन्फ्यूशियस नैतिकता (Confucian ethics) का पालन करने के लिए, दुर्लभ जापानी यौन प्रतिमा को जनता की नज़र से छिपाया गया था। परंतु, आज कांगिटेन शिंगोन शैली में एक महत्वपूर्ण देवता बन गए हैं।
कांगिटेन नाम आम तौर पर तांत्रिक प्रतीकवाद से जुड़ा हुआ है जिसमें देवताओं को गले लगाना शामिल है, जिन्हें सुख और समृद्धि प्रदान करने वाले के रूप में सम्मानित किया जाता है। युग्मित कांगिटेन(Dual Kangiten), जिसे 'सोशिंकंगी-टेन' या "दोहरे शरीर वाले आनंद के देवता" के रूप में जाना जाता है, शिंगोन बौद्ध धर्म का एक विशिष्ट तत्व है। जापानी में, इसे सोशिन बिनायका भी कहा जाता है और यह संस्कृत में नंदिकेश्वर से मेल खाता है।जापान की राजधानी टोक्यो (Tokyo) के असाकुसा (Asakusa) क्षेत्र में, जापानी बौद्ध धर्म के खूबसूरत लकड़ी के मंदिरों की एक श्रृंखला है, जो स्थानीय लोगों और आगंतुकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं।ये मंदिर जापान के सबसे पुराने मंदिरों में से हैं। माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण एक हजार साल पहले किया गया था। इन मंदिरों में से एक मंदिर, भारतीय आगंतुकों (Indian visitors) का ध्यान भीआकर्षित करता है। यह आठवीं शताब्दी का मात्सुचियामा शोडेन (Matsuchiyama Shoden) मंदिर है, जो जापानी देवता कांगिटेन को समर्पित है।
वास्तव में, जापान में 250 से अधिक मंदिर हैं, जो श्री गणेश अर्थात कांगिटेन को समर्पित हैं। वैसे, कांगिटेन की पूजा का सबसे सक्रिय केंद्र होज़ानजी मंदिर (Hozanji temple) है, जो दक्षिणी जापान में ओसाका (Osaka) के ठीक बाहर माउंट इकोमा (Mount Ikoma) के पूर्वी ढलान पर है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना 17वीं सदी के एक करिश्माई जापानी भिक्षु तन्काई (Tankai) (1629-1716 ई.) ने की थी, जिन्हें ‘होज़ान’ के नाम से भी जाना जाता है।
जापान में कांगिटेन का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में स्वागत किया जाता है। एक ओर, वह एक अत्यंत प्रभावशाली देवता के रूप में लोकप्रिय हैं, जो असंभव इच्छाओं को भी पूरा करते हैं। साथ ही, यह भी कहा जाता है कि, वह उन लोगों पर नजर रखते हैं, जिनका उसके साथ कर्म संबंधी संबंध है। दूसरी ओर, उन्हें आज भी जुनून और इच्छाओं (क्लेश) से बंधा हुआ माना जाता है। और इस प्रकार उन्हें कभी-कभी एक अस्थिर और दुष्ट देवता के रूप में जाना जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि कांगिटेन शुरुआत में एक दुष्ट देवता के रूप में उभरे थे, जो बाधाएं पैदा कर सकते थे,इसलिए, परेशानियों से बचने के लिए उसकी पूजा की जानी शुरू की गई थी। फिर समय के साथ, वह खुशी और आनंद के देवता के रूप में प्रख्यात हो गए।
आज, जापान में भक्त अच्छे भाग्य के लिए मूली और साके (Sake), जो कि चावल की शराब होती हैं, कांगिटेन को चढ़ाते हैं। यह अविश्वसनीय है कि कि विभिन्न देशों और संस्कृतियों में प्रिय हाथी के रूप में देवता की पूजा समान और विशिष्ट दोनों है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/42tnbmck
https://tinyurl.com/9xbecxjh
https://tinyurl.com/mr2crh4t
https://tinyurl.com/9d68s7v2
चित्र संदर्भ
1. श्री गणपति और कांगिटेन देवता को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel, picryl)
2. जपानी देवताओं के बीच कांगिटेन देवता को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
3. जापानी मूर्तिकला में, कांगिटेन को हमेशा एक मादा हाथी को गले लगाते हुए दिखाया जाता है, जो पुरुष और महिला ऊर्जा के मिलन का प्रतीक है, जो तांत्रिक बौद्ध धर्म में एक सामान्य विषय है। को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
4. मात्सुचियामा शोडेन (Matsuchiyama Shoden) मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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