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भारत की कुल जनसंख्या में से लगभग सौ मिलियन लोग विभिन्न जनजातियों से संबंधित हैं। देश के पूर्वोत्तर राज्यों और इसके मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों के ऊंचे इलाकों और मैदानों में जनजातीय बस्तियां मुख्य रूप से पाई जाती हैं। पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में खासी और गारो के बाद पनार जनजाति राज्य का तीसरा सबसे बड़ा भाषाई समूह है। इस जनजाति को "जैन्तिया" के नाम से भी जाना जाता है। यह जनजाति खासी जनजाति का एक उप-आदिवासी समूह है। पनार जनजाति के लोग भारत के मेघालय के पश्चिमी जैंतिया हिल्स (West Jaintia Hills) और पूर्वी जैंतिया हिल्स (East Jaintia Hills) जिले के मूल निवासी हैं।
इस जनजाति के लोग ‘पनार’ भाषा बोलते हैं, जो ऑस्ट्रो-एशियाई (Austro-Asiatic) भाषा परिवार से संबंधित है और खासी भाषा के समान है। इस भाषा को "जैन्तिया" के नाम से भी जाना जाता है । जैन्तिया भाषा भारत और बांग्लादेश में 4 लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। पनार या जैन्तिया भाषा में 30 वर्ण हैं: जिनमें 7 स्वर और 23 व्यंजन हैं।
पनार जनजाति के लोग मातृसत्तात्मक होते हैं। पनार लोग खासी जनजाति की सभी उप-जनजातियों की तरह “की खु हाइनियू ट्रेप” (Ki Khun Hynniew Trep) (सात माताओं या सात परिवारों) के वशंज होने का दावा करते हैं। बेहदीनखलम (Behdeinkhlam), चाड सुकरा (Chad Sukra), चाड पास्तिह (Chad Pastieh) और लाहो नृत्य (Laho Dance) पनार जनजाति में मुख्य रूप से बनाए जाने वाले त्यौहार हैं।
खासी जनजाति की सभी उप-जनजातियों की तरह, पनार जनजाति का भी अपना कोई लिखित इतिहास नहीं है। हालाँकि, उनका उल्लेख असम के बुरांजी इतिहास और ब्रिटिश (British) अभिलेखों में किया गया है। मध्ययुगीन जैन्तिया साम्राज्य के शासक सिंतेंग समुदाय के थे। 1835 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा इस साम्राज्य पर कब्ज़ा कर इसे असम प्रांत में विलय कर दिया गया। 1972 में स्वतंत्र भारत में मेघालय राज्य की स्थापना के बाद इस क्षेत्र में जयंतिया हिल्स जिले की स्थापना की गई। बांग्लादेश के सिलहट जिले की उप-जिले जैन्तियापुर में भी पनार जनजाति के लोग रहते हैं।
"पनार" एक उपनाम है, जबकि "जैन्तिया" और "सिंतेंग" (Synteng) समानार्थक शब्द हैं। "जैन्तिया" शब्द जैन्तिया साम्राज्य के नाम से लिया गया है, जिसके शासक सिंतेंग थे। एक मान्यता के अनुसार, "जैन्तिया" शब्द हिंदू देवी दुर्गा के अवतार जयंती देवी या जैनतेश्वरी के मंदिर के नाम से लिया गया है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह नाम सिंतेंग के माध्यम से एक पूर्व बस्ती के नाम ‘सुतंगा’ से लिया गया है।
पनार के मूल जनजातीय धर्म को नियामत्रे के नाम से जाना जाता है। कई लोग अभी भी यहां अपने प्राचीन धर्म नियामत्रे का पालन करते हैं। पनार आदिवासियों का मानना है कि उनका धर्म ईश्वर प्रदत्त है और ईश्वर के आदेश से इस दुनिया में आया है। ईश्वर द्वारा निर्धारित तीन प्रमुख सिद्धांत हैं कामई येई होक (kamai yei hok), टिपब्रू टिपब्लाई (tipbru tipblai) और टिपकुर टिपखा (tipkur tipkha)। वे सही माध्यम से अर्जित आजीविका पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं, ईश्वर तक पहुंचने के लिए मानवता की सेवा पर विश्वास करते हैं, और अपने माता-पिता के कुलों के सदस्यों के प्रति सम्मान रखते हैं। इसलिए, नियामत्रे ईश्वर प्राप्ति के लिए साथी मनुष्यों को समान महत्व देने पर जोर देते हैं। प्रतिवर्ष खासी जनजातिय क्षेत्र में लुम सोहपेटबनेंग (Lum Sohpetbaneng) नामक तीर्थयात्रा आयोजित की जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में तीर्थयात्री हिस्सा लेते हैं।
धार्मिक दृष्टि से 4 लाख जैन्तियाओं में से, लगभग 2.4 लाख लोग (जातीय आबादी का 60%) विभिन्न संप्रदायों के ईसाई धर्म को मानते हैं, विशेष रूप से प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक (Protestant and Catholic)) और शेष 1.6 लाख लोग (जातीय आबादी का 40%) अपने मूल आदिवासी धर्म का पालन करते हैं जिसे "नियामत्रे" कहा जाता है। इस जनजाति के द्वारा बोली जाने वाली भाषा भारत की कई छोटी और प्रमुख भाषाओं की भांति भाषा-संसार की धरोहर को बढ़ावा देती है। इस भाषा का अपना ऐतिहासिक महत्व है और यह अपनी सभ्यता के अद्वितीय पहलु को प्रकट करती है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/mrxecszz
https://tinyurl.com/59pyduyp
https://tinyurl.com/49ynhn4p
https://tinyurl.com/3x6jxknr
चित्र संदर्भ
1. मेघालय की पारंपरिक वेशभूषा में एक युवती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. वांगला नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. प्रतिवर्ष खासी जनजातिय क्षेत्र में लुम सोहपेटबनेंग (Lum Sohpetbaneng) नामक तीर्थयात्रा आयोजित की जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में तीर्थयात्री हिस्सा लेते हैं। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. खासी युवतियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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