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कृष्ण की लीलाओं को पढ़कर, हम निस्संदेह उनके प्रेम में मंत्रमुग्ध हो जाते हैं

जौनपुर

 06-09-2023 10:39 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

जय श्री कृष्ण! शुभ कृष्ण जन्माष्टमी, जौनपुर! आज हम सभी कृष्ण जन्माष्टमी मना रहें हैं। इस मौके पर क्या आप जानते हैं कि, श्री कृष्ण के जीवन की घटनाओं और कहानियों को आम तौर पर कृष्ण लीला कहा जाता है। कृष्ण लीलाओं का प्राथमिक उद्देश्य हमारी आत्माओं को श्री कृष्ण के प्रति प्रेमपूर्ण भक्ति में संलग्न होने के लिए, एक आधार प्रदान करना होता है। भगवान श्री कृष्ण अपने दिव्य नाम, रूप, गुणों, लीलाओं, निवास स्थान और सहयोगियों को प्रकट करते हैं, जिनका चिंतन करने से हमारी आत्माओं का कल्याण हो सकता है।
यदि हम कृष्ण के प्रति प्रेमपूर्ण भक्ति का अनुभव करना चाहते हैं, तो हमें सीखना होगा कि, कृष्ण लीलाओं के प्रति दिव्य भावनाओं को कैसे बनाए रखा जाता हैं। प्रत्येक दिव्य ‘लीला’ के पीछे अंतर्निहित मधुरता और आत्माओं के लिए, एक प्रेमपूर्ण निर्देश होता है। इस प्रकार हमें इन लीलाओं को उस प्रेम की दृष्टि से समझने की आवश्यकता है, जो कृष्ण ने एक बच्चे, चरवाहे, भाई, प्रिय और असंख्य अन्य भूमिकाओं के रूप में अपने निस्वार्थ भक्तों पर बरसाया था। भगवान श्री कृष्ण की तरह, उनकी लीलाएं भी अनंत हैं। आज हम आपको श्री कृष्ण को समर्पित इन विनम्र लीलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हमें निस्संदेह ही कृष्ण के प्रति भक्ति भावना तथा प्रेम का सार सिखाती हैं।
विद्याधर को मुक्ति मिलने की कथा: एक बार नंद महाराजा और कुछ चरवाहे शिवरात्रि मनाने के बाद, अंबिकावन में गए थे, जो सरस्वती नदी के पास स्थित था। विश्राम करने के लिए, नंद बाबा और चरवाहे सरस्वती नदी के पास सो गए थे। तब विद्याधर जिन्हें सांप के स्वरूप में शाप मिला था, अपने स्वरूप में प्रकट हुए और नंद बाबा को निगलने लगे। अतः नंद महाराज कृष्ण को पुकारने लगे! तब कृष्ण वहां आए और उनके केवल स्पर्श से ही विद्याधर को सांप के स्वरूप से मुक्ति मिल गई।
केशी और व्योमासुर कथा: केशी राक्षस ने एक भयानक घोड़े का रूप धारण कर वृंदावन में प्रवेश किया था। वह सबको भयभीत करते हुए, कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारने लगता है। तब, कृष्ण बड़ी चतुराई के साथ केशी राक्षस का वध करते है। इसके साथ ही, एक बार व्योमासुर राक्षस भी वृंदावन में प्रवेश करता है। तब कृष्ण ने व्योम से युद्ध किया और उसका भी वध कर दिया।
अघासुर वध कथा: कृष्ण एवं उनके मित्र, एक दिन जंगल के पास घूमने जाते हैं। तब अघासुर दानव एक विशाल सांप का रूप धारण करते हुए अपने मुख के साथ गुफा बना लेता है। एक वास्तविक गुफा समझकर, कृष्ण के मित्र राक्षस के मुंह में प्रवेश कर लेते हैं, तब स्थिति को समझते हुए, कृष्ण भी राक्षस के मुंह में प्रवेश करते हैं। और अपना विशाल रूप धारण करते हुए, अघासूर को दम घोंटकर मार डालते है।
कृष्ण बाल लीला कथा: अपने चरवाहे मित्रों के साथ एक बार खेल खेलते हुए, वत्सासुर राक्षस ने एक बछड़े का रूप धारण कर लिया। कृष्ण यह जानते ही थे, और अतः कृष्ण ने राक्षस को मार गिराया। फिर एक दिन, एक जलाशय के पास पानी पीते समय, कृष्ण को एक विशाल पिंड दिखा जो कि बकासुर राक्षस था। उसने तुरंत ही, कृष्ण को निगल लिया। तब बकासुर के पेट में ही कृष्ण ने आग से भी अधिक गर्म रूप धारण कर लिए, और इस प्रकार, राक्षस मारा गया।
दामोदर लीला: एक बार बाल कृष्ण ने अपनी मैया यशोदा को सताने के बारे में सोचा। यशोदा कृष्ण को दूध पिलाकर अपने काम में व्यस्त हो गई। तब क्रोधित होकर, कृष्ण दूध–दही की मटकी फोड़कर, भागने लगे एवं यशोदा को अपने पीछे भगाकर अपनी मैया को क्रोधित करने लगे। तब यशोदा कृष्ण को एक रस्सी से ऊखल को बांधने लगी परंतु, रस्सी कम पड़ने लगी और कृष्ण को वह बांध ही नहीं पाई। दरअसल, यह कृष्ण की ही एक लीला थी।
ब्रह्मांड का दर्शन: एक बार बलराम को कृष्ण मिट्टी खाते हुए दिखते है। तब बलराम यशोदा मैया को जाकर बताते है कि, कृष्ण मिट्टी खा रहे है। जब यशोदा कृष्ण को इस बारे में पूछते हुए, अपना मुख खोलने का अनुरोध करती है, तब कृष्ण अपने मुख में मां यशोदा को पूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन देते है।
पूतना वध कथा: एक बार कंस कृष्ण को मारने के लिए, पूतना राक्षसी को गोकुल भेजने का फैसला करते है। पूतना छोटे बच्चों को मारने के लिए जानी जाती थी। गोकुल में प्रवेश करने पर पूतना, एक सुंदर चरवाहा महिला का रूप लेकर बाल कृष्ण को जहरीला दूध पिलाने की कोशिश करती है। तब कृष्ण उसका प्राणवायु खींचकर उसे मार डालते है। क्या आप जानते हैं कि, भागवत पुराण के कुछ अध्यायों में कृष्ण की इन लीलाओं का वर्णन किया गया है। भागवत पुराण, जिसे श्रीमद्भागवत, श्रीमद्भागवत महापुराण या भागवत के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के अठारह महान पुराणों में से एक हैं। यह संस्कृत में रचित है और वेद व्यास द्वारा लिखित है। यह कृष्ण के प्रति हमारी भक्ति को बढ़ावा देता है। भागवत पुराण के अनुसार, कृष्ण की आंतरिक प्रकृति और बाहरी रूप वेदों के समान है और यही दुनिया को बुरी ताकतों से बचाता है।
पुराण में कुल बारह पुस्तकें या स्कंध शामिल हैं, जिनमें कुल 332 अध्याय और 18,000 छंद हैं। लगभग 4,000 छंदों वाली दसवीं पुस्तक सबसे लोकप्रिय थी तथा इसका व्यापक रूप से अध्ययन किया गया है। यह यूरोपीय भाषा में अनुवादित होने वाला पहला पुराण था। इसके तमिल संस्करण का फ्रांसीसी भाषा (French Language) में किया गया अनुवाद 1788 में प्रकाशित किया गया। इस पुराण की वजह से औपनिवेशिक युग के दौरान कई यूरोपीय लोग हिंदू धर्म और 18वीं शताब्दी की हिंदू संस्कृति से परिचित हुए थे।
भागवत पुराण में मूल संस्कृत श्लोकों की संख्या 18,000 बताई गई है। हालांकि, मत्स्य महापुराण जैसे अन्य पुराणों द्वारा, अन्य भाषाओं में अनुवादित होने पर समतुल्य छंदों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है। यहां उल्लेख की गई कथाएं मुख्य कृष्ण लीलाएं थी। हालांकि, इनके अलावा भी कई अन्य कृष्ण लीलाएं हैं, जो काफ़ी रोचक एवं मधुर हैं। आप उनके बारे में भी पढ़ सकते हैं तथा कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बढ़ा सकते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/67sycn4w
https://tinyurl.com/2p9vjx3d
https://tinyurl.com/4h6wrjf7

चित्र संदर्भ 
1. माँ यशोदा और श्री कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. कृष्ण लीलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गलियों से निकलती कृष्ण मंडली को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. रासलीला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



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