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जौनपुर के शाही पुल पर रातभर बिजली से प्रकाशित होने वाली जगमगाती रौशनियां या लाइटे आपने भी जरूर देखी होंगी। लेकिन, क्या आप यह जानते हैं कि, जौनपुर की शान रहा यह पुल बिजली के आने से पहले भी रोशन हुआ करता था। दरसल, यह सब संभव हो पाता था, गैस आधारित प्रकाश प्रणालियों या गैस लाइटिंग (Gaslighting) की मदद से। गैस लाइटिंग के अंतर्गत हाइड्रोजन (Hydrogen), मीथेन (Methane), कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon Monoxide) , प्रोपेन (Propane), ब्यूटेन (Butane), एसिटिलीन (Acetylene), एथिलीन (Ethylene), कोयला गैस (टाउन गैस (Town Gas) सहित कुछ अन्य प्राकृतिक गैसीय ईंधनों (Natural Gaseous Fuels) का दहन करके कृत्रिम प्रकाश उत्पन्न किया जाता है। पूरी दुनियां में बिजली के आविष्कार से पहले गैस आधारित रौशनी प्रणालियों का ही प्रयोग किया जाता था। प्रारंभिक गैस लाइट, लैम्पलाइटर्स “Lamplighters” (वह व्यक्ति जिसे मोमबत्ती या बाद में स्ट्रीट गैस लाइट (Street Gas Light) जलाने और उसके रखरखाव के लिए नियुक्त किया जाता था) द्वारा नियमावली (Manual) रूप से प्रज्वलित की जाती थीं। हालांकि, बाद के कई नए डिजाइन स्वयं ही प्रज्वलित होने लगे थे।
गैस लाइटिंग का आविष्कार सबसे पहले 1700 के दशक के अंत में, एक स्कॉटिश इंजीनियर (Scottish Engineer) विलियम मर्डोक (William Murdoch) द्वारा किया गया था। गैस लाइटिंग की खोज से पहले मर्डोक ने विभिन्न प्रकार की गैसों के साथ खूब प्रयोग किये। यहां तक कि 1792 में, अपने एक प्रयोग के दौरान मर्डोक ने अपने ही घर को गैस से जला दिया था। 1798 में, पहली बार बर्मिंघम (Birmingham) में सोहो फाउंड्री (Soho Foundry) की मुख्य इमारत को रोशन करने के लिए गैस का उपयोग किया गया। दुनियां की पहली गैस कंपनी 1816 में संयुक्त राज्य अमेरिका के फिलाडेल्फिया (Philadelphia) में स्थापित की गई थी। अपनी उपयोगिता के कारण गैस प्रकाश व्यवस्था शीघ्र ही लोकप्रिय और व्यापक हो गई और 19वीं सदी के मध्य तक यह दुनियां के कई शहरों में कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था का मुख्य स्रोत बन गई।
लंदन में लोगों ने 14वीं शताब्दी में गैस लैंप (Gas Lamp) का उपयोग करना शुरू कर दिया था। लेकिन, वे आज के गैस लैंपों से कुछ अलग थे। पहले के गैस लैंप लकड़ी से बनाए जाते थे और हाथ से जलाए जाते थे। विश्व का पहला गैस आधारित स्ट्रीट लैंप 1808 में लंदन में ही स्थापित किया गया था। इसके बाद अन्य शहरों में भी इसी तरह के लैंप लगाए जाने लगे और 1820 के दशक तक दुनिया के कई हिस्सों में गैस स्ट्रीट लैंप आम हो गए थे।
उस समय गैस स्ट्रीट लैंप, मोमबत्तियों या तेल लैंप की तुलना में अधिक चमकीले और अधिक कुशल साबित हुए। इन्हें जलाना तथा इनका रखरखाव करना भी आसान था। जिस कारण ये लैंप, बाहरी प्रकाश व्यवस्था के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बनकर उभरे। हालांकि, 19वीं सदी के अंत में इलेक्ट्रिक स्ट्रीट लैंप (Electric Street Lamp) के विकास के साथ ही गैस लैपों की लोकप्रियता भी कम होने लगी। इलेक्ट्रिक स्ट्रीट लैंप, गैस लैंप से भी अधिक चमकीले और कुशल थे और इन्हें नियंत्रित करना तथा इनका रखरखाव करना और भी अधिक आसान था। भारत में गैस लैंप का उपयोग पहली बार 1800 के दशक के बाद कोलकाता में किया गया था। इनकी उपयोगिताओं के कारण गैस लैंप का उपयोग पूरे कोलकाता में किया जाने लगा था।
भारत के पहले इलेक्ट्रिक स्ट्रीट लैंप 1879 में कोलकाता में लगाए गए थे। 1885 तक, डे, सिल एंड कंपनी (Dey, Sill & Co.) नामक एक बंगाली कंपनी ने चितपुर में विवाह जुलूसों के लिए विद्युत रोशनी प्रदान करना शुरू कर दिया था। 1886 में दूसरी राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक में भी बिजली की रोशनी का इस्तेमाल किया गया।
आज भी दूर दराज के क्षेत्रों में कैंपिंग (Camping) के लिए गैस लाइटिंग का ही प्रयोग किया जाता है। ये कैंपिंग लाइटे, हाइड्रोकार्बन ईंधन (Hydrocarbon Fuel) के उच्च ऊर्जा घनत्व और मॉड्यूलर प्रकृति (Modular Nature) को मिलाकर बनाई जाती हैं।
बिजली के आगमन से पहले हमारे “जौनपुर के शाही पुल” पर भी रौशनी के लिए, इन्हीं गैस आधारित प्रकाश प्रणालियों का उपयोग किया जाता था। जौनपुर के इस प्रसिद्ध पुल के निर्माण का आदेश मुगल सम्राट अकबर द्वारा दिया गया था। इस भव्य पुल को पूरी तरह से तैयार होने में 4 वर्ष लगे और इसका निर्माण कार्य वर्ष 1568-69 में मुनइन खानखाना द्वारा पूरा किया गया था। इसे तत्कालीन अफगान वास्तुकार अफजल अलीक द्वारा डिजाइन किया था। आज यह शाही पुल, जौनपुर रेलवे स्टेशन के 1.7 किलोमीटर (1.1 मील) उत्तर में स्थित है। यह पूरे भारत में अपनी तरह का अनोखा पुल है। पुल के मध्य में एक चौकोर चबूतरे पर एक शेर की बड़ी मूर्ति है, जिसके अगले पंजों के नीचे एक हाथी है। आज इस ऐतिहासिक शाही पुल पर बिजली से चलने वाली 18 स्ट्रीट लाइटें लगी हैं। लेकिन, कभी गैस विद्युत प्रणाली से रौशन रहने वाले इस पुल में, “आज बिजली आने के बाद भी कभी-कभी लाइटें नहीं जलती हैं।” इस पर गुंबद की तरह की गुमटियां बनी हैं और उनमें भी लाइटें लगी हैं। लेकिन, उसमें भी कई लाइटें बंद दिखाई देती हैं। इसके अलावा उचित देखरेख के अभाव में पुल पर पीपल के पौधे भी उग आए हैं। हालांकि, अच्छी खबर ये है कि, नगर निकाय व मास्टर प्लान विभाग (Master Plan Department) द्वारा इसकी सजावट और सफाई की योजनाएं भी तैयार की जा रही हैं। योजना के अंतर्गत नदी के किनारों के सुंदरीकरण का काम किया जाएगा और शहर के मध्य से होकर गुजरने वाली गोमती नदी के दोनों किनारों को सजाकर इसे पर्यटकों के लिहाज से अधिक सुविधाजनक बनाया जायेगा। साथ ही सौंदर्यीकरण की इस योजना में शाही पुल से सद्भावना पुल के बीच नदी में बोटिंग (Boating) कराने की भी योजना है। यह अनूठा शाही पुल दोनों तरफ भूतल पर ही बना है। योजना के अनुसार नदी के एक तरफ पार्क तथा दूसरी ओर पक्का घाट बनाया जाएगा। इनमें सबसे जरूरी रोशनी की भी पर्याप्त व्यवस्था की जाएगी। यहां सीढ़ियां बनाई जाएंगी, ताकि नीचे नदी तट तक जाने में दिक्कत न हो।
संदर्भ
http://tinyurl.com/5fsswsvy
http://tinyurl.com/4etkbv99
http://tinyurl.com/yc3dy2k5
http://tinyurl.com/msdhuxxf
http://tinyurl.com/5ebk922n
http://tinyurl.com/7zz9uywe
http://tinyurl.com/yrde6zst
चित्र संदर्भ
1. रात में जौनपुर के शाही पुल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. लैंपलाइटर्स को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
3. गैस लैंप को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. गैस सिलेंडर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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