आइए जानें, भारत की रॉक-कट वास्तुकला के बारें में

धर्म का युग : 600 ई.पू. से 300 ई.
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आइए जानें, भारत की रॉक-कट वास्तुकला के बारें में

भारत की रॉक-कट वास्तुकला (Rock-cut architecture), एक ऐसी कला है, जिसमें प्राकृतिक चट्टानों को काटकर विभिन्न संरचनाएं तैयार की जाती हैं। भारत में रॉक-कट वास्तुकला के 1,500 से अधिक ज्ञात उदाहरण विद्यमान हैं, जिनमें जटिल नक्काशियां और महत्वपूर्ण कलाकृतियां शामिल हैं। ये प्राचीन और मध्ययुगीन उल्लेखनीय रचनाएँ असाधारण अभियांत्रिकी और शिल्प कौशल को दर्शाती हैं। यदि एक पहलू से देखा जाए तो, रॉक-कट वास्तुकला द्वारा उत्खनित चट्टान को काटकर प्रभावी ढंग से सजावटी संरचनाएं बनाई गई हैं, हालाँकि इनमें से अधिकांश को आर्थिक लाभ या अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया था। तो आइए, इस लेख के जरिए हम भारत के रॉक-कट स्मारकों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। भारतीय रॉक-कट वास्तुकला अत्यधिक विविध है। पूरी दुनिया में भारत एक ऐसा स्थान हैं, जहां रॉक-कट वास्तुकला के बहुत उदाहरण पाए जाते हैं। रॉक-कट वास्तुकला में एक ठोस प्राकृतिक चट्टान को तराश कर उससे एक नई संरचना बनाई जाती है। जब पूरी संरचना बन जाती है, तब चट्टान के उस हिस्से को अलग कर दिया जाता है, जिसे उपयोग नहीं किया गया है। भारतीय रॉक-कट वास्तुकला की प्रकृति अधिकतर धार्मिक है। भारत में लगभग 1,500 से अधिक ज्ञात रॉक-कट संरचनाएँ हैं, जिनमें से कई संरचनाओं में वैश्विक महत्व की कलाकृतियाँ शामिल हैं, और अधिकांश उत्कृष्ट पत्थर की नक्काशी से सुसज्जित हैं। ये प्राचीन और मध्ययुगीन संरचनाएँ संरचनात्मक अभियांत्रिकी और शिल्प कौशल की महत्वपूर्ण उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
भारत में सबसे पुरानी रॉक-कट गुफाओं को बनाने का श्रेय सम्राट अशोक और उनके पोते दशरथ को दिया जाता है। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईसवी तक की अवधि प्रारंभिक बौद्ध वास्तुकला की अवधि मानी जाती है। आज भी कार्ला, कन्हेरी, नासिक, भाजा और बेडसा और अजंता में प्रारंभिक बौद्ध वास्तुकला के उदाहरण देखे जा सकते हैं।
रॉक कट संरचनाओं को बनाने की शुरूआत सबसे पहले दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी में हुई। माना जाता है, कि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म के लोगों का उत्पीड़न किया, जिसके कारण कई बौद्ध आंध्र राजवंश के संरक्षण में दक्कन में स्थानांतरित हो गए। इस प्रकार गुफा निर्माण के कार्य को भी पश्चिमी भारत में स्थानांतरित कर दिया गया। इस समय अनेकों धार्मिक गुफाएँ (आमतौर पर बौद्ध या जैन) बनाई गई, जिनमें कार्ला गुफाएं और पांडवलेनी गुफाएं शामिल हैं। इसके बाद रॉक कट संरचनाओं का सबसे अधिक निर्माण पांचवीं शताब्दी ईसवी से लेकर छठीं शताब्दी ईसवी तक की अवधि में हुआ। इस समय बनी सबसे प्रसिद्ध गुफाएँ महाराष्ट्र में स्थित अजंता की गुफाएँ हैं, जिन्हें एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। अजंता की गुफाएँ, चट्टानों को काटकर 30 बौद्ध गुफा स्मारक बनाए गए , जो कि सह्याद्रि पर्वत की पहाड़ियों में स्थित हैं।
इस काल में दक्षिणी भारत के कई हिंदू राजाओं ने हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित कई गुफा मंदिरों का निर्माण किया। गुफा मंदिर वास्तुकला का एक ऐसा ही प्रमुख उदाहरण प्रारंभिक चालुक्य राजधानी बादामी में स्थित बादामी गुफा मंदिर हैं, जिसे छ्ठीं शताब्दी में बनाया गया था। यहां चार गुफा मंदिर हैं, जिनमें से तीन गुफा मंदिर हिंदू धर्म और एक गुफा मंदिर जैन धर्म से संबंधित है। इस काल की विशेष बात यह थी कि इस समय वास्तुशिल्प कला में भगवान बुद्ध की छवि को प्रदर्शित किया जाने लगा। इस समय के दौरान विहारों में थोड़ा बदलाव आया, जहां आंतरिक कक्षों में पहले केवल भिक्षुओं का निवास हुआ करता था, वहीं अब भगवान बुद्ध की छवि भी आंतरिक कक्षों में रखी जाने लगी। रॉक कट या गुफा निर्माण का अंतिम चरण छठीं शताब्दी से लेकर पंद्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है। इस दौरान बनाए गए गुफा मंदिर का एक उत्कृष्ट उदाहरण भगवान पार्श्वनाथ की चट्टान पर उकेरी गई छवि है, जो की एलोरा का एक जैन मंदिर है। गुफा निर्माण की अंतिम लहर ग्वालियर में देखी गई, जहाँ ग्वालियर किले के चारों ओर चट्टानों को काटकर पाँच स्मारक बनाए गए थे। इन गुफाओं में जैन प्रतिमाएँ मौजूद हैं। रॉक-कट परंपरा का सबसे प्रभावशाली चरण द्रविड़ियन रॉक-कट शैली है। इस शैली की प्राथमिक विशेषताएं मंडप और रथ हैं। मंडप एक चट्टान को खोदकर बनाया गयी एक खुली संरचना होती है, जो कि एक स्तंभ वाले हॉल के समान होती है, जिसके अंदर दो या दो से अधिक कक्ष होते हैं।
वहीं रथ एक ही चट्टान पर बना हुआ अखंड मंदिर है। रॉक-कट वास्तुकला को समृद्ध करने और प्रोत्साहित करने में पल्लवों का योगदान सबसे ज्यादा सराहनीय है। पल्लवों द्वारा अपने शासन के दौरान चट्टानों की खुदाई के माध्यम से बनाए गए कुछ स्मारकों ने अपनी सुंदरता और कलाकारों द्वारा प्रदर्शित कौशल के लिए दुनिया भर में प्रशंसा अर्जित की है। पल्लवों द्वारा बनाए गए प्रमुख स्मारकों में महाबलीपुरम में वराह मंडप, महिषमर्दिनी मंडप, कृष्ण मंडप और त्रिमूर्ति मंडप आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। भारत में चट्टानों को काटकर बनाये गये कुछ महत्वपूर्ण स्मारकों में एहोल (Aihole) में 3 जैन मंदिर, औरंगाबाद की गुफाएँ, बादामी गुफा मंदिर, बाघ गुफाएँ, एलिफेंटा गुफाएँ (Elephanta Caves), एलोरा गुफाएं (Ellora Caves) जहां 12 बौद्ध, 17 हिंदू और 5 जैन मंदिर हैं, ग्वालियर में गोपाचल रॉक कट जैन स्मारक, कन्हेरी गुफाएँ, लेन्याद्रि गुफाएँ, महाबलीपुरम, पंच रथ, कझुकु मलाई, पांडवलेनी गुफाएँ, पीतलखोरा, आंध्र प्रदेश में उंदावल्ली गुफाएँ, मामल्लापुरम में वराह गुफा मंदिर, कांगड़ा में मसरूर मंदिर, आंध्र प्रदेश में बोजन्नाकोंडा बौद्ध स्थल, आंध्र प्रदेश में गुंटुपल्ले बौद्ध स्थल, आंध्र प्रदेश में रामतीर्थम, श्रवणबेलगोला, कर्नाटक में भगवान गोम्मतेश्वर प्रतिमा (बाहुबली) शामिल हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि महाबलीपुरम और एलोरा कैलाश मंदिर के स्मारक एक ही विशालकाय चट्टान को काटकर बनाए गए हैं।

संदर्भ:
https://tinyurl.com/34fm4xa7
https://tinyurl.com/3hy24utc
https://tinyurl.com/2s48a62r

चित्र संदर्भ 
1. त्रिकोशीय रॉक-कट मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. नागर मंदिर, चंदवासा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. धर्मनाथ चट्टानों को काटकर बनाए गए नागर मंदिरों के समूह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मसरूर रॉक कट मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. कैलाश मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)