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पान या पाइपर बेटल (Piper betle), पौधों के पिपेरेसी (Piperaceae) परिवार में, फूल वाले पौधे की एक प्रजाति है। यह दक्षिण–पूर्व एशिया (Asia) का मूल पौधा है जो कि एक प्रकार की सदाबहार तथा पृथकलिंगी (Dioecious) लता है। इसमें दिल के आकार के चमकदार पत्ते और सफेद गुच्छेदार फूल (Catkin) होते हैं। इस पत्ते को हम आमतौर पर पान का पत्ता या सुपारी का पान कहते हैं। इनके पौधों की खेती उनकी पत्तियों के लिए की जाती है।
पान के पत्ते की खेती अधिकतर दक्षिण और दक्षिण–पूर्व एशिया तथा हमारे देश भारत से लेकर पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) तक की जाती है। इसकी लताओं को आधार के लिए, एक संगत पेड़ या लंबे खंभे की आवश्यकता होती है। पान के पौधे को उगाना आसान होता है और इसे कटिंग (Cutting) तकनीक या बीज से उगाया जा सकता है। ये लताएं, अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ मिट्टी में अच्छी तरह से उगती हैं। पान का पत्ता गर्म, आर्द्र जलवायु में सबसे अच्छा बढ़ता है। लेकिन, इसे घर के बगीचे में भी उगाया जा सकता है। जलयुक्त, लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त होती है। साथ ही इस फसल की सफल खेती के लिए उचित छाया और सिंचाई भी आवश्यक होती है। पान को लगातार नम मिट्टी की आवश्यकता होती है, लेकिन, ध्यान रहे कि अत्यधिक नमी भी नहीं होनी चाहिए।
सूखे पत्तों और लकड़ी की राख को हर पखवाड़े के अंतराल पर, इस खेती की मिट्टी में मिलाया जाता है। साथ ही गोबर का घोल भी मिट्टी में छिड़का जाता है। जबकि, मासिक अंतराल पर, इस खेती में विभिन्न प्रकार की पत्तियों का प्रयोग, पान की वृद्धि के लिए लाभदायक माना जाता है। तीन से छह महीनों में, ये लताएं 150 से 180 सेंटीमीटर की उंचाई तक पहुंच जाती हैं, और तब इसकी शाखाएं भी बढ़ने लगती हैं। किसान द्वारा अपने दाहिने अंगूठे से पत्ती और उसके डंठल को तोड़ने से, इसकी कटाई की शुरुआत होती है। जब इसकी पत्तियां छोटी और कोमल होती हैं, तब इनकी कटाई की जाती हैं। यह फसल 15 दिन से एक महीने तक चलती है। सुपारी का पान कुछ सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यावसायिक फसलों में से एक है और इसके उच्च लाभ लागत अनुपात (2.3) के कारण इसकी खेती एक महत्वपूर्ण नकदी फसल के रूप में की जाती है। क्या आप जानते हैं कि, हमारा उत्तर प्रदेश राज्य पान की बेहतर खेती के लिए काफ़ी अनुकूल है!
हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में कुछ क्षेत्र, पान के पत्ते उगाने के लिए प्रसिद्ध हैं; जैसे कि, बुंदेलखंड, वाराणसी और उन्नाव। राज्य में युवा किसान पान की खेती करने और इसे एक लाभकारी रोजगार के लिए नकदी फसल के रूप में बढ़ावा देने के लिए उत्साहित हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पान के पत्तों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक योजना शुरू की है।
एक किसान को 1 एकड़ जमीन पर की जाने वाली पान की खेती से, पान के पत्तों के 30,000 बंडल मिल सकते हैं। प्रत्येक बंडल में 100 पत्ते होते हैं। थोक बाजारों में, प्रत्येक बंडल को 25 रुपए के हिसाब से बेचा जाता है। हालांकि, इसकी कीमत पान की गुणवत्ता पर भी निर्भर करती है। इसलिए, 25 रुपए X 30,000 = 7,50,000 लाख रुपए, इस प्रकार से मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए, कोई किसान 1 एकड़ पान में फैले पान के पत्तों की खेती से 7.5 लाख तक की आय अर्जित कर सकता है।
आइए अब पान की खेती के लिए ध्यान में रखने योग्य जानकारी के बारे में पढ़ते हैं।
भूमि की तैयारी: सबसे पहले भूमि को जुताई करके तैयार करना चाहिए। साथ ही, भूमि को उचित जल निकासी भी प्रदान की जानी चाहिए। इसके बाद, 15 सेंटीमीटर ऊंचाई और 30 सेंटीमीटर चौड़ी आकार की क्यारियां तैयार की जाती हैं। पान की कलम लगाने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह रोगाणुरहित भी कर लेना चाहिए।
मृदा विसंक्रमण: जब मार्च से मई महीनों तक मिट्टी का तापमान बढ़ता है, तो मिट्टी से पैदा होने वाले रोगजनकों को नष्ट करने के लिए, मिट्टी को पॉलीथीन शीट (Polyethylene sheet) से ढक दिया जाता है। नए पान के बागानों में, प्रारंभिक मिट्टी में रोगजनकों की आबादी को कम करने के लिए, विभिन्न रसायनों का भी उपयोग किया जा सकता हैं।
रोपण का समय:
एक बंद खेती प्रणाली में, पान के पौधे लगाने के लिए मानसून का मौसम आदर्श है। हालांकि, पान के पत्तों की रोपाई का मौसम अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होता है। नवंबर-दिसंबर और जनवरी-फरवरी भी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम हैं।
प्रसार और खेती:
पान के पत्ते के प्रसार या प्राकृतिक प्रजनन में, 3 से 5 गांठों वाले तने की कलमों का उपयोग किया जाता है। इन्हें इस तरह से लगाया जाता है कि, 2 से 3 गांठें मिट्टी में दब जाएं। मातृ पान के पत्ते के साथ एकल नोड कटिंग (Node cutting) की भी खेती की जा सकती है। रोपण के लिए पान की बेल के शीर्ष और मध्य भाग की कलमों का उपयोग किया जाता है।
भारत और बांग्लादेश में पान की खेती 2 प्रकार से की जाती है।
1.सहायक पौधों का उपयोग करके खुली प्रणाली से खेती, तथा
2.आयताकार संरचनाओं (कृत्रिम) का उपयोग करके बंद प्रणाली से खेती करना, जिसे बोरोज भी कहा जाता है।
प्राकृतिक सहयोग और छाया के लिए सहायक पौधों को उगाना
मोरिंगा अथवा सहजन, सेसबानिया (Sesbania) या एरिथ्रिना (Erythrina) के पौधों को पान की लताओं को आधार और छाया प्रदान करने के लिए बढ़ाया जाता है। इन सहायक पौधों को पान की कलम लगाने से कम से कम 45 दिन पहले 45 से 60 सेंटीमीटर की पंक्तियों में बोया जाता है।
वैसे, पान के खराब होने की प्रकृति और इसकी कीमत में उतार-चढ़ाव के कारण, यह पान किसानों के सामने आने वाली सबसे बड़ी विपणन चुनौतियों में से एक है। कीमतों का पहले से अनुमान लगाने के लिए बाजार सूचना प्रणाली स्थापित करना और साथ ही निर्यात बाजार की खोज करना, इस खेती पर अधिक मुनाफा प्राप्त करने के लिए फायदेमंद हो सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mtpaajm5
https://tinyurl.com/z7u8pp68
https://tinyurl.com/48nuthjb
https://tinyurl.com/4tzh2v9k
https://tinyurl.com/mr2z95k9
चित्र संदर्भ
1. मसालों से भरे पान के पत्ते को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
2. पाइपर बेटल पौंधे को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. पाइपर बेटल के पत्ते को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. पेड़ पर चढ़ रही पाइपर बेटल पौंधे की लताओं को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. अपने खेत में जा रहे किसान को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
6. छोटे से पान के पत्ते को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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