यह गालिब की 149 वीं बरसी है गालिब की कवितायें इतिहास के राजाओं के खंजरों की (जो की संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहें हैं) तरह उनकी कवितायें आज भी युवाओं से लेकर बुजुर्गों के शरीर में रक्त संचार की गति को तीव्र करने का कार्य करती हैं। ग़ालिब के शेर मोहब्बत से लेकर एकता को प्रदर्शित करते हैं। गालिब 19वीं शताब्दी के मात्र एक शायर ही नहीं थे अपितु वे समाज के एक अमूल्य अंग थे जिसका प्रमाण उनकी शायरियों से मिल जाता है- “हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब, नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता” “इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना, दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना” “मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का, उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले” “दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई, दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई” “हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है” “दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए, दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए” “इश्क पर ज़ोर नहीं है, ये वो आतिश गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने”
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.