जौनपुर में आलू की खेती में उपयोगी साबित हो सकते हैं पारंपरिक औजार

वास्तुकला II - कार्यालय/कार्य उपकरण
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जौनपुर में आलू की खेती में उपयोगी साबित हो सकते हैं पारंपरिक औजार

क्या आप जानते हैं कि “जौनपुर को राज्य में सबसे अधिक आलू उगाने वाले क्षेत्रों में से एक माना जाता है।” यहां की जमीन आलू उगाने के लिए आदर्श मानी जाती है। साथ ही, आलू की खेती से जौनपुर के किसानों को भी काफी लाभ होता है। इसके अलावा, इससे जिले की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। यद्यपि, आलू की खुदाई विभिन्न तरीकों से की जा सकती है। लेकिन, जौनपुर में मुख्य रूप से इसे कुदाल से ही बोया और खोदा जाता है।
आलू को न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण फसल माना जाता हैं। भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश है। भारत में आलू उगाने वाले प्रमुख राज्यों में क्रमशः उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, पंजाब, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मेघालय और तमिलनाडु शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 0.432 मिलियन हेक्टेयर के क्षेत्रफल में आलू की खेती की जाती है, और इसका कुल उत्पादन लगभग 7.68 मिलियन टन होता है। उत्तर प्रदेश में आलू की उत्पादकता लगभग 17.78 टन प्रति-हेक्टेयर होती है। वहीं, यदि हम विशेषतौर पर उत्तर प्रदेश के जिलों की बात करें, तो यहां पर हमारे जौनपुर में बहुत अधिक मात्रा में आलू उगाये जाते हैं और इससे जिले की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। आलू की उपज के अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने जानबूझकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले को ही इसलिए चुना, क्योंकि यहां की जमीन में आलू का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है। जिले के 19 ब्लॉकों में से शाहगंज ब्लॉक में अन्य खंडों की तुलना में अधिक आलू होते हैं। शोधकर्ताओं ने जौनपुर के छोटे, बड़े और मध्यम वर्ग के किसानों की आलू उगाने में आने वाली लागत का भी अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि आलू उगाने में सीमांत किसान लगभग 39,041.24 रुपये, छोटे किसान 37,103.60 रुपये और मध्यम किसान 380.5334 रुपये खर्च करते हैं। औसतन, किसान अपनी आलू की फसल से लगभग 96,965.28 रुपये कमाते हैं और लागत निकालने के बाद उनके पास लगभग 60,424.02 रुपये बचते हैं। जौनपुर के किसान आमतौर पर अपने आलू जौनपुर की शाहगंज मंडी में बेचते हैं। हालांकि, कभी-कभी, किसान सीधे उपभोक्ताओं को भी बेचते हैं। लेकिन, आमतौर पर वे अपने आलू खुदरा विक्रेताओं को ही बेचते हैं जो फिर उपभोक्ताओं को बेचते हैं। हालांकि, जौनपुर जिले में आलू उत्पादन के अर्थशास्त्र पर कोई व्यवस्थित अध्ययन अभी तक नहीं हुआ है। क्या आप जानते हैं कि 700 के दशक में, आलू ने ही यूरोप में भुखमरी के कारण लोगों को मरने से बचाया था। इसके बाद ही आलू स्पेन (Spain), फ्रांस (France), जर्मनी (Germany), यूक्रेन (Ukraine) और यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) जैसे स्थानों में एक महत्वपूर्ण फसल बन गए हैं। हाल के वर्षों में, पूरी दुनिया में आलू का उत्पादन निरंतर बढ़ रहा है। हालांकि, धीरे-धीरे अधिक से अधिक लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिसके कारण बहुत कम युवा किसान बन रहे हैं। आलू की खुदाई विभिन्न तरीकों से की जा सकती है। इनमें सबसे सरल तरीका इसे कुदाल या स्पैडिंग फोर्क (Spading Fork) जैसे उपकरणों का उपयोग करके इन्हें खोदना है। लेकिन इसमें काफी समय और मेहनत लगती है। पहले के लोग खुदाई में मदद के लिए हल जैसे पारंपरिक उपकरणों का उपयोग करते थे। लेकिन, आधुनिक मशीनों के आ जाने के कारण अब यह प्रणाली उतनी आम नहीं रही है। हालांकि, इन सभी के बावजूद कुदाल की उपयोगिता कम नहीं हुई। दरअसल, कुदाल कृषि में प्रयोग होने वाला एक उपयोगी औजार है, जिसका उपयोग सदियों से खेती और बागवानी में किया जाता रहा है। यह मिट्टी को आकार देने, खरपतवारों से छुटकारा पाने और जड़ वाली फसलों को इकट्ठा करने जैसे विभिन्न कार्यों में मदद करती है। इसकी मदद से मिट्टी को आकार देना और इसे पौधों के चारों ओर जमा करना, बीजों के लिए उथली खाई बनाना और भी बहुत कुछ संभव हो पाया है। निराई-गुड़ाई में मिट्टी की ऊपरी परत को हिलाना और पौधों की पत्तियों को काटने का काम भी कुदाल से किया जा सकता है। इनका उपयोग विशेष रूप से आलू जैसी जड़ वाली फसलों को इकट्ठा करने के लिए किया जाता है। कुदालें अलग-अलग प्रकार और उपयोगिताओं के साथ आती हैं। कुदालें कई प्रकार की होती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना रूप और उद्देश्य होता है। कुछ कुदालें कई कार्य एक साथ कर सकती हैं, जबकि अन्य केवल एक विशिष्ट कार्यों के लिए बनाई जाती हैं। कुदाल को मुख्य दो प्रकारों में बांटा जा सकता है: १. ड्रा कुदाल (Draw Spade): ड्रॉ कुदाल का उपयोग मिट्टी को आकार देने के लिए किया जाता है। ड्रॉ कुदाल में एक ब्लेड (Blade) होती है, जो हैंडल के साथ समकोण बनाती है। इसका उपयोग करने के लिए, किसान इसे जमीन में घोपते हैं और फिर ब्लेड को अपनी ओर खींचते हैं। इस प्रकार की कुदाल मिट्टी में कुछ सेंटीमीटर गहराई तक खुदाई कर सकती है। एक पुराने प्रकार जिसे "आई हो (I Ho)" कहा जाता है। उसके सिर में एक छेद होता है, जहां से इसका हैंडल (Handle) लगा होता है। लोग इस डिज़ाइन का उपयोग प्राचीन रोमन काल से ही करते आ रहे हैं। २. स्कैफल कुदाल (Scuffle Hoe): स्कैफल कुदाल का उपयोग निराई और मिट्टी को हवादार बनाने के लिए किया जाता है। स्कैफल कुदाल से मिट्टी की ऊपरी परत को खुरचना, ऊपरी हिस्से को थोड़ा ढीला करना और खरपतवार की जड़ों को काटना आसान होता है। यह खरपतवार हटाने में माहिर होती है। प्राचीन सुमेरियन कहानियों में एनिल (शीर्ष देवता) के बारे में कहा गया था कि, ‘वह कुदाल लेकर ही अवतरित हुए थे।’ प्राचीन मिस्र में लोग हाथ से हल चलाते थे और हम्मूराबी की संहिता और यशायाह की पुस्तक जैसे लेखों में कुदाल के बारे में बात करते थे। हाल के वर्षों में पुरातत्ववेत्ता भी कुदाल का अधिक प्रयोग करने लगे हैं। हालांकि, ये ट्रॉवेल (Trowel) की तरह सटीक नहीं होती है। लेकिन, पुरातत्व में बड़े क्षेत्रों की सफाई के लिए कारगर साबित होती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3fbymn6a
https://tinyurl.com/yd5afeen
https://tinyurl.com/53aesssb

चित्र संदर्भ
1. खेत में खुदाई करती महिला किसानों को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
2. आलू खोदते किसानों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. रवांडा में आलू बोते किसानों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. कुदाल से खेत की गुड़ाई करती महिला किसान को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
5. ड्रा कुदाल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. स्कैफल कुदाल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. दो मुहि कुदाल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)