Post Viewership from Post Date to 26-Sep-2023
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2184 338 2522

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

जौनपुर में आलू की खेती में उपयोगी साबित हो सकते हैं पारंपरिक औजार

जौनपुर

 26-08-2023 10:17 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

क्या आप जानते हैं कि “जौनपुर को राज्य में सबसे अधिक आलू उगाने वाले क्षेत्रों में से एक माना जाता है।” यहां की जमीन आलू उगाने के लिए आदर्श मानी जाती है। साथ ही, आलू की खेती से जौनपुर के किसानों को भी काफी लाभ होता है। इसके अलावा, इससे जिले की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। यद्यपि, आलू की खुदाई विभिन्न तरीकों से की जा सकती है। लेकिन, जौनपुर में मुख्य रूप से इसे कुदाल से ही बोया और खोदा जाता है।
आलू को न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण फसल माना जाता हैं। भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश है। भारत में आलू उगाने वाले प्रमुख राज्यों में क्रमशः उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, पंजाब, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मेघालय और तमिलनाडु शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 0.432 मिलियन हेक्टेयर के क्षेत्रफल में आलू की खेती की जाती है, और इसका कुल उत्पादन लगभग 7.68 मिलियन टन होता है। उत्तर प्रदेश में आलू की उत्पादकता लगभग 17.78 टन प्रति-हेक्टेयर होती है। वहीं, यदि हम विशेषतौर पर उत्तर प्रदेश के जिलों की बात करें, तो यहां पर हमारे जौनपुर में बहुत अधिक मात्रा में आलू उगाये जाते हैं और इससे जिले की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। आलू की उपज के अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने जानबूझकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले को ही इसलिए चुना, क्योंकि यहां की जमीन में आलू का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है। जिले के 19 ब्लॉकों में से शाहगंज ब्लॉक में अन्य खंडों की तुलना में अधिक आलू होते हैं। शोधकर्ताओं ने जौनपुर के छोटे, बड़े और मध्यम वर्ग के किसानों की आलू उगाने में आने वाली लागत का भी अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि आलू उगाने में सीमांत किसान लगभग 39,041.24 रुपये, छोटे किसान 37,103.60 रुपये और मध्यम किसान 380.5334 रुपये खर्च करते हैं। औसतन, किसान अपनी आलू की फसल से लगभग 96,965.28 रुपये कमाते हैं और लागत निकालने के बाद उनके पास लगभग 60,424.02 रुपये बचते हैं। जौनपुर के किसान आमतौर पर अपने आलू जौनपुर की शाहगंज मंडी में बेचते हैं। हालांकि, कभी-कभी, किसान सीधे उपभोक्ताओं को भी बेचते हैं। लेकिन, आमतौर पर वे अपने आलू खुदरा विक्रेताओं को ही बेचते हैं जो फिर उपभोक्ताओं को बेचते हैं। हालांकि, जौनपुर जिले में आलू उत्पादन के अर्थशास्त्र पर कोई व्यवस्थित अध्ययन अभी तक नहीं हुआ है। क्या आप जानते हैं कि 700 के दशक में, आलू ने ही यूरोप में भुखमरी के कारण लोगों को मरने से बचाया था। इसके बाद ही आलू स्पेन (Spain), फ्रांस (France), जर्मनी (Germany), यूक्रेन (Ukraine) और यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) जैसे स्थानों में एक महत्वपूर्ण फसल बन गए हैं। हाल के वर्षों में, पूरी दुनिया में आलू का उत्पादन निरंतर बढ़ रहा है। हालांकि, धीरे-धीरे अधिक से अधिक लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिसके कारण बहुत कम युवा किसान बन रहे हैं। आलू की खुदाई विभिन्न तरीकों से की जा सकती है। इनमें सबसे सरल तरीका इसे कुदाल या स्पैडिंग फोर्क (Spading Fork) जैसे उपकरणों का उपयोग करके इन्हें खोदना है। लेकिन इसमें काफी समय और मेहनत लगती है। पहले के लोग खुदाई में मदद के लिए हल जैसे पारंपरिक उपकरणों का उपयोग करते थे। लेकिन, आधुनिक मशीनों के आ जाने के कारण अब यह प्रणाली उतनी आम नहीं रही है। हालांकि, इन सभी के बावजूद कुदाल की उपयोगिता कम नहीं हुई। दरअसल, कुदाल कृषि में प्रयोग होने वाला एक उपयोगी औजार है, जिसका उपयोग सदियों से खेती और बागवानी में किया जाता रहा है। यह मिट्टी को आकार देने, खरपतवारों से छुटकारा पाने और जड़ वाली फसलों को इकट्ठा करने जैसे विभिन्न कार्यों में मदद करती है। इसकी मदद से मिट्टी को आकार देना और इसे पौधों के चारों ओर जमा करना, बीजों के लिए उथली खाई बनाना और भी बहुत कुछ संभव हो पाया है। निराई-गुड़ाई में मिट्टी की ऊपरी परत को हिलाना और पौधों की पत्तियों को काटने का काम भी कुदाल से किया जा सकता है। इनका उपयोग विशेष रूप से आलू जैसी जड़ वाली फसलों को इकट्ठा करने के लिए किया जाता है। कुदालें अलग-अलग प्रकार और उपयोगिताओं के साथ आती हैं। कुदालें कई प्रकार की होती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना रूप और उद्देश्य होता है। कुछ कुदालें कई कार्य एक साथ कर सकती हैं, जबकि अन्य केवल एक विशिष्ट कार्यों के लिए बनाई जाती हैं। कुदाल को मुख्य दो प्रकारों में बांटा जा सकता है: १. ड्रा कुदाल (Draw Spade): ड्रॉ कुदाल का उपयोग मिट्टी को आकार देने के लिए किया जाता है। ड्रॉ कुदाल में एक ब्लेड (Blade) होती है, जो हैंडल के साथ समकोण बनाती है। इसका उपयोग करने के लिए, किसान इसे जमीन में घोपते हैं और फिर ब्लेड को अपनी ओर खींचते हैं। इस प्रकार की कुदाल मिट्टी में कुछ सेंटीमीटर गहराई तक खुदाई कर सकती है। एक पुराने प्रकार जिसे "आई हो (I Ho)" कहा जाता है। उसके सिर में एक छेद होता है, जहां से इसका हैंडल (Handle) लगा होता है। लोग इस डिज़ाइन का उपयोग प्राचीन रोमन काल से ही करते आ रहे हैं। २. स्कैफल कुदाल (Scuffle Hoe): स्कैफल कुदाल का उपयोग निराई और मिट्टी को हवादार बनाने के लिए किया जाता है। स्कैफल कुदाल से मिट्टी की ऊपरी परत को खुरचना, ऊपरी हिस्से को थोड़ा ढीला करना और खरपतवार की जड़ों को काटना आसान होता है। यह खरपतवार हटाने में माहिर होती है। प्राचीन सुमेरियन कहानियों में एनिल (शीर्ष देवता) के बारे में कहा गया था कि, ‘वह कुदाल लेकर ही अवतरित हुए थे।’ प्राचीन मिस्र में लोग हाथ से हल चलाते थे और हम्मूराबी की संहिता और यशायाह की पुस्तक जैसे लेखों में कुदाल के बारे में बात करते थे। हाल के वर्षों में पुरातत्ववेत्ता भी कुदाल का अधिक प्रयोग करने लगे हैं। हालांकि, ये ट्रॉवेल (Trowel) की तरह सटीक नहीं होती है। लेकिन, पुरातत्व में बड़े क्षेत्रों की सफाई के लिए कारगर साबित होती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3fbymn6a
https://tinyurl.com/yd5afeen
https://tinyurl.com/53aesssb

चित्र संदर्भ
1. खेत में खुदाई करती महिला किसानों को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
2. आलू खोदते किसानों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. रवांडा में आलू बोते किसानों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. कुदाल से खेत की गुड़ाई करती महिला किसान को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
5. ड्रा कुदाल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. स्कैफल कुदाल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. दो मुहि कुदाल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id