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चंद्रमा पर चंद्रयान-3 की अभूतपूर्व सफलता ने भारत को अंतरिक्ष की दौड़ में सबसे बड़े दिग्गजों के साथ खड़ा कर दिया है। इस सफलता के साथ ही भारत, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला दुनियां का पहला देश बन गया है। चंद्रमा पर विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग (Soft Landing) के बाद उसमे से प्रज्ञान रोवर (Pragyan Rover) निकलेगा और पहली बार चंद्रमा के दक्षिणी छोर पर घूमते हुए वहां के वातावरण तथा पानी या जीवन से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां वापस पृथ्वी पर भेजेगा। हालांकि अभी तो यह केवल शुरुआत है। आने वाले समय में भारत को मंगल और बृहस्पति जैसे कई अन्य ग्रहों पर भी उतरना है, और वहां के वातावरण तथा उनकी उत्पत्ति की गुत्थी भी सुलझानी है।
अधिकांश लोग मानते है कि, हमारे पूरे सौर मंडल में कुल 290 चंद्रमा हैं। यहां, चंद्रमा से अभिप्राय विभिन्न ग्रहों के प्राकृतिक उपग्रहों तथा हमारे पृथ्वी के चंद्रमा दोनों से हैं। पृथ्वी के पास एक चंद्रमा है। जबकि, मंगल (Mars) ग्रह के पास दो, बृहस्पति (Jupiter) के 95, शनि (Saturn) के 146, यूरेनस (Uranus) के 27, नेप्च्यून (Neptune) के 14 तथा प्लूटो (Pluto) के पास 5 चंद्रमा हैं। जबकि, बुध (Mercury) और शुक्र (Venus) ग्रहों पर एक भी चंद्रमा नहीं हैं।
अब संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) के राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष संगठन (National Aeronautics and Space Administration) या नासा के खगोलविदों ने नेपच्यून की कक्षा से परे क्षुद्रग्रहों, अन्य छोटे ग्रहों या कुइपर बेल्ट ऑब्जेक्ट्स (Kuiper Belt Object) जैसी छोटी वस्तुओं की परिक्रमा करने वाले कुल 460 से अधिक प्राकृतिक उपग्रहों का भी दस्तावेजीकरण किया हैं। ग्रहों के अलावा, क्षुद्रग्रहों के भी अपने चंद्रमा हो सकते हैं। हमारे सौर मंडल के कुछ बड़े क्षुद्रग्रहों के पास वास्तव में चंद्रमा हैं। 1993 में, इडा (Ida) नामक एक बड़े क्षुद्रग्रह की परिक्रमा करते हुए, डैक्टाइल (Dactyl) नामक एक छोटे चंद्रमा की खोज की गई थी। तब से, क्षुद्रग्रहों की परिक्रमा करते हुए कई अन्य उपग्रहों की खोज की गई है। 2000 में 90 मील चौड़े क्षुद्रग्रह पुलकोवा (Pulcova) की खोज की गई थी, जिसका अपना चंद्रमा लगभग 9 मील चौड़ा है।
विभिन्न ग्रहों के चंद्रमा कई आकार एवं प्रकार के हो सकते हैं। कुछ चंद्रमा की सतह के नीचे वायुमंडल और यहां तक कि महासागर भी छिपे हुए हो सकते हैं। ग्रहों के अधिकांश चंद्रमा संभवतः प्रारंभिक सौर मंडल में ग्रहों के चारों ओर घूमने वाली गैस (Gas) और धूल के कणों से बने थे। हालांकि, कुछ चंद्रमा ग्रहों की कक्षाओं से कहीं दूर बने हैं, परंतु बाद में वे उनको कक्षाओं में आ गए। और क्या आप इस तथ्य से वाकिफ़ हैं कि, हमारे सौर मंडल में संभवतः और हजारों चंद्रमा की खोज हो सकती हैं।
जैसे कि हमनें देखा, हमारी पृथ्वी के पास केवल एक चंद्रमा है, लेकिन, दर्जनों प्राकृतिक उपग्रह, हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह– बृहस्पति के चारों ओर घूमते हैं। इसके साथ ही, बृहस्पति के चंद्रमा समूह में नए उपग्रहों की खोज अभी भी जारी हैं। दिसंबर 2022 में, कुछ खगोलविदों ने बृहस्पति की कक्षा में, 12 अज्ञात उपग्रहों के होने की जनकारी दी थी। फरवरी 2023 में इसकी घोषणा की गई थी। इससे बृहस्पति के चारों ओर चंद्रमाओं की वर्तमान संख्या 95 हो गई है। इसके साथ, किसी ग्रह की परिक्रमा करने वाले अधिकांश चंद्रमा के मामले में बृहस्पति शीर्ष स्थान पर आ गया है। इसके अलावा, 2019 में शनि के आसपास 20 नए उपग्रह पाए गए थे।
वर्ष 1610 में, महान खगोलशास्त्री गैलीलियो गैलीली (Galileo Galilei) ने चार खगोलीय पिंडों को देखा था, जो बृहस्पति की कक्षा में घूमते हुए प्रतीत होते थे। फिर इन्हें इसके चंद्रमा के रूप में वर्णित किया गया। आईओ (lo), यूरोपा (Europa), गेनीमेड (Ganymede) और कैलिस्टो (Callisto) नामक ये बृहस्पति के अब तक के सबसे बड़े चंद्रमा हैं। साथ ही, उनकी खोज सबसे पहले हुई थी। बाद में नए उपग्रहों की खोज होती रही।
दरअसल, किसी ग्रह के उपग्रहों की संख्या उसके गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर करती हैं। किसी वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होगा, वह उतनी ही अधिक चीज़े आकर्षित कर सकता हैं। चूंकि, शनि तथा बृहस्पति काफ़ी बड़े एवं विशाल ग्रह हैं, वे अधिक उपग्रहों को आकर्षित करने में सक्षम हैं।
बृहस्पति के चंद्रमा शायद ही अखंड हैं। आईओ सक्रिय ज्वालामुखियों से भरा हुआ है, जबकि, यूरोपा पर एक छिपा हुआ महासागर है। और गैनीमेड हमारे संपूर्ण सौरमंडल में सबसे बड़ा उपग्रह है। ये तीनों चंद्रमा एवं कैलिस्टो, संभवतः बृहस्पति के साथ मिलकर बने थे। इस बड़े ग्रह के निर्माण की शुरुआत गैसों और धूल के कणों के विशाल द्रव्यमान के रूप में हुई थी, जो अंततः गैस के एक विशालकाय ग्रह में बदल गया। जब बृहस्पति ने आकार लिया था, तो इसके चारों ओर घूम रहे कुछ पदार्थ इसके उपरोक्त चार चंद्रमाओं में एकत्रित हो गए। यह भी अनुमान लगाया गया है कि, शुरुआत में बृहस्पति के पास कई चंद्रमा थे, जिन्हें इस विशाल ग्रह ने खींचकर अवशोषित कर लिया। हालांकि, कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि, बृहस्पति के कई चंद्रमा की उत्पत्ति, अंतरिक्ष में मुक्त रूप से परिक्रमण करने वाली चट्टानों के टुकड़ों के रूप में हुई, जो बाद में इस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के कारण इसकी कक्षाओं में परिक्रमण करने लगे। चूंकि, इस ग्रह की कक्षा में इतने सारे पिंड अलग-अलग दिशाओं में घूम रहे हैं, इसलिए उनमें टकराव होता रहता है। जो चंद्रमा एक दूसरे से टकराते हैं, वे इस प्रक्रिया में नष्ट हो सकते हैं या नया रूप ले सकते हैं। साथ ही टूटकर इनकी संख्या बढ़ भी सकती है। जिस प्रकार बृहस्पति नए चंद्रमा प्राप्त करता है, उसी प्रकार यह कुछ पुराने उपग्रहों को खो भी रहा है। अब हम आपको एक दिलचस्प तथ्य बता देते है। खगोलशास्त्री नील एफ. कॉमिन्स (Neil F. Comins) के अनुसार, यदि हमारी पृथ्वी के एक के बजाय दो चंद्रमा होते, तो हमारी रातें ज्यादा प्रकाशित हो जाती। क्योंकि, वैसी स्थिति में दो चंद्रमा की सतहों से दोगुनी सूर्य की रोशनी परावर्तित होती। इसके अलावा, हमें समुद्र में, काफी ऊंचे ज्वार भी देखने को मिलते, क्योंकि, दो चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक होती। लेकिन, इससे कई समुद्र के तटीय क्षेत्र रहने लायक नहीं होते।
संदर्भ
https://tinyurl.com/22zpbjms
https://tinyurl.com/4jkjz2ja
https://tinyurl.com/4ke66sjp
https://tinyurl.com/56a2cyfe
चित्र संदर्भ
1. चंद्रमा के विकास को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. इसरो के रॉकेट को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. सौर मंडल के वास्तविक रंगों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. बृहस्पति के चंद्रमा समूह को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. बृहस्पति के चार सबसे बड़े चंद्रमाओं में से प्रत्येक के अलग-अलग स्वरूप को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. पृथ्वी और चाँद को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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