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“तोता” इस धरती पर मौजूद अकेला ऐसा जीव है, जो इंसान नहीं होने के बावजूद भी इंसानों की भाषा बोल सकता है। तोते की इसी विशेषता से प्रभावित होकर 14वीं सदी में "तूतीनामा" नामक एक लोकप्रिय कहानी संग्रह लिखा गया, जिसमें एक बोलने वाला तोता 52 कहानियों के प्राथमिक कथाकार के रूप में कार्य करता है। चलिए जानते हैं कि, इस कहानी संग्रह में क्या खास है?
तूतीनामा, फ़ारसी में लिखी गई 14वीं शताब्दी की कहानियों का एक संग्रह है। इसका हिंदी में अनुवाद "तोते की कहानियां" होता है। आगे चलकर इन कहानियों को बड़ी ही खूबसूरती से सचित्र पांडुलिपियों में दर्ज किया गया, जिस कारण इन्होंने खूब लोकप्रियता हासिल की। इस सचित्र पांडुलिपि के 250 लघु चित्रों से परिपूर्ण एक संस्करण को 1550 के दशक में मुगल सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया था।
बहुत कम लोग जानते हैं कि, ये कहानियां भी 12वीं शताब्दी के आसपास संस्कृत में लिखी गई “शुकसप्तति” अर्थात “तोते की सत्तर कहानियां” नामक एक प्राचीन कृति से संकलित की गई थीं। इंसानों की भाषा की नकल करने की अपनी शानदार क्षमता के कारण प्राचीन काल से ही भारत में तोते को कथा साहित्य में कहानीकार के रूप में चित्रित किया जाता रहा है।
इन कहानियों का मुख्य कथानक भी एक तोते के ही इर्द-गिर्द घूमता है, जो 52 रातों तक अपनी मालकिन “खोजास्ता” को कहानियां सुनाता है। उसका पति (मैमुनिस नाम का एक व्यापारी) व्यापार के सिलसिले में घर से दूर ही रहता है। तोते द्वारा कही जा रही ये सभी कहानियां खोजास्ता को नैतिक शिक्षा देने और दुराचार से जुड़े मामलों में पड़ने के बजाय, अपने पति के प्रति वफादार रहने के लिए प्रेरित करती हैं। अपनी मालिकन "खोजास्ता" को वह तोता हर रात, एक नई कहानी से मोहित कर लेता है और उसे अपने प्रेमी से मिलने के लिए घर छोड़ने से रोकता है।
तूतीनामा की पांडुलिपि के सबसे प्रसिद्ध संस्करण को 1556 में अकबर ने शासक बनने के बाद पांच साल की अवधि में बनाया था। इस संस्करण को मीर सैय्यद अली और अब्दुस समद नामक दो फ़ारसी कलाकारों द्वारा तैयार किया गया था। इस पांडुलिपि का अधिकांश भाग क्लीवलैंड संग्रहालय (Cleveland Museum) में आज भी मौजूद है। अकबर के लिए बनाया गया एक नया संस्करण भी विभिन्न संग्रहालयों में पाया जा सकता है, लेकिन इसका सबसे बड़ा हिस्सा डबलिन (Dublin) में चेस्टर बीटी लाइब्रेरी (Chester Beatty Library) में है।
माना जाता है कि तूतीनामा के लेखक ज़ियाल-दीन नख़शाबी, (एक फारसी चिकित्सक और सूफी संत) 14वीं शताब्दी के दौरान भारत में रहे थे। उन्होंने ही 1335 ई. के आसपास कहानियों के मूल शास्त्रीय संस्कृत संस्करण का फ़ारसी में अनुवाद और संभवतः संपादन किया। माना जाता है कि नैतिक पाठों पर केंद्रित इन कहानियों ने स्वयं मुगल सम्राट अकबर को भी उनकी युवावस्था के दौरान प्रभावित किया था। अकबर के हरम और नियंत्रण की आवश्यकता को देखते हुए कहानियों में महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया गया था।
सम्राट अकबर (1556-1605) के शासनकाल के दौरान, मीर सैय्यद अली और अब्द अल-समद जैसे कलाकारों ने चित्रकला की एक अनूठी शैली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे मुगल चित्रकला के रूप में जाना जाता है। अकबर व्यक्तिगत रूप से इन लघु चित्रों को बढ़ावा दे रहे थे, जिनमें फ़ारसी और इस्लामी कलात्मक तत्वों का मिश्रण नजर आता था। चित्रों में विभिन्न दृश्यों को दर्शाया गया है, जिनमें सम्राटों और रानियों के चित्र, दरबार और शिकार के दृश्य, समारोह, लड़ाई और प्रेम की चित्रात्मक कहानियां शामिल हैं। चित्रों की इस कलात्मक शैली ने बाद के कार्यों जैसे हमज़ानामा, अकबरनामा और जहांगीरनामा के लिए मंच तैयार किया, जिसने अतिरिक्त भारतीय, हिंदू, जैन और बौद्ध प्रभावों के साथ मुगल परंपरा को जारी रखा। इस संग्रह में एक लघु पेंटिंग (Miniature Painting) है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह सम्राट अकबर का सबसे पहला ज्ञात चित्र है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि संभल में तोता मैना के एक जोड़े की कब्र है। इस कब्र पर एक इबारत लिखी गई है, जिसे आज सैकड़ों साल बाद भी कोई समझ नहीं पाया है। देश-विदेश में तमाम भाषाओं के जानकार और पुरातत्वविद तोता मैना की कब्र पर लिखी इबारत को पढ़ने में नाकाम रहे हैं। इस रहस्यमय कब्र का इतिहास 1 हजार साल से भी अधिक पुराना बताया जाता है। कब्र के दोनों ओर उर्दू, फारसी और अरबी से मिलती-जुलती भाषा में कुछ अनबूझा सा लिखा हुआ है। हालांकि, इस कब्र को लेकर कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, एक समय में संभल का इलाका राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान की राजधानी हुआ करता था। शायद इसी दौरान पृथ्वीराज चौहान ने तोता-मैना के जोड़े के आपसी प्रेम से बेहद प्रभावित होकर उनकी मौत के बाद उनकी कब्र पर उनकी प्रेम कहानी लिखवा दी। हालांकि यह कहानी आज भी हर किसी की समझ से परे है। इन्हीं सब कारणों से भारत को पक्षी और पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग माना जाता है। हमारा देश आज भी कई देशी-विदेशी तोतों की प्रजति का घर माना जाता है। इन सभी में भारतीय रिंगनेक तोता (Indian Ringneck Parakeet) अपने जीवंत हरे शरीर, विशिष्ट लाल चोंच और काले और गुलाबी रंग के कॉलर के साथ, भारत में काफी पसंद किया जाता है।यह प्रजाति भारत के उत्तर में ऊंचे हिमालय से लेकर दक्षिण में हरे-भरे उष्णकटिबंधीय जंगलों तक फैली हुई है। ये अनोखे तोते इंसानों की भाषा की नकल कर सकते हैं और लोगों से जुड़ने की शानदार क्षमता रखते हैं, जिस कारण ये दुनिया भर में सबसे पसंदीदा पालतू पक्षी बने हुए हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/8c4cwmdu
https://tinyurl.com/2n4nepu2
https://tinyurl.com/ceweepvy
चित्र संदर्भ
1. तूतिनमा के चित्रांकनों को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
2. तूतीनामा में खोजस्ता को संबोधित करते तोते को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. तूतीनामा की पांडुलिपि के सबसे प्रसिद्ध संस्करण को 1556 में अकबर ने शासक बनने के बाद पांच साल की अवधि में बनवाया था। को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. तोते के साथ बात करती खोजस्ता को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. तूतीनामा की कहानी के एक दृश्य को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
6. भारतीय रिंगनेक तोते को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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