City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2883 | 648 | 3531 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
19 दिसंबर 1798 के दिन, एक दुर्लभ ब्रह्मांडीय घटना के रूप में, हमारे शहर जौनपुर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, केराकत (क्राखुट) गांव में एक उल्कापिंड गिरा था। इसे “बनारस उल्कापिंड” के नाम से जाना जाता है। जिन लोगों ने इस उल्कापात को देखा था, उन्होंने इसे आग के एक बड़े गोले के रूप में वर्णित किया था। इस मशहूर उल्कापिंड के पत्थर, पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण खोज थी। इसके कुछ पिंडों को दुनिया भर के विभिन्न संग्रहालयों में संरक्षित किया गया है। हालांकि, इस उल्कापिंड को लेकर एक अफवाह भी है कि, आज के केराकत मंदिर में मौजूद शिवलिंगों में से एक वास्तव में उस उल्कापिंड का एक हिस्सा है। यह वास्तव में, एक गलत अफवाह है।
जिन लोगों ने कभी केराकत गांव का नाम सुना या पढ़ा नहीं है, हम उन्हें बता दें कि, केराकत (Kerakat) या किराकत (Kirakat) हमारे जौनपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह गोमती नदी के किनारे बसा हुआ एक शहर है तथा एक नगर पंचायत एवं तहसील मुख्यालय भी है।
यहां गिरा हुआ, उल्कापिंड एक साधारण कोंड्राइट(Chondrite)पत्थर था, जिसका वजन 3.7 किलोग्राम था।चमकदार उल्कापात तथा कुछ विस्फोटों के बाद, केराकत में उल्कापिंडों का वर्षाव हुआ, जिसमें 900 ग्राम का एक पत्थर भी शामिल था। यह एक घर की छत पर गिरा था। इस उल्का के गिरने से लगभग छह इंच गहराई वाला गड्ढा खेत में बन गया था। इनमें से कई पत्थर नष्ट हो गए थे, लेकिन काली परत से ढके कई गोलाकार पत्थर संरक्षित किए गए। यह बनारस उल्कापिंड कई एलएल कोंड्राइट्स(LL chondrites) में से एक हो सकता है, जो स्पष्ट रूप से लगभग 15 मिलियन वर्षों पहले एक मूल क्षुद्रग्रह अथवा उल्कापिंड के विनाशकारी व्यवधान से उत्पन्न हुआ था।
ऐतिहासिक रूप से, उल्कापिंडों को अलौकिक पिंडों(पृथ्वी या इसके वायुमंडल से बाहर के पिंड) के रूप में वैज्ञानिक स्वीकृति मिलने के सन्दर्भ में बनारस(ए) एक महत्वपूर्ण उल्कापिंड था। 1802 में एक वैज्ञानिक एडवर्ड सी. हॉवर्ड(Edward C. Howard) ने पाया था कि, बनारस(ए) और अन्य उल्कापिंडों में पाया जाने वाला अनोखा लोहा, प्राकृतिक स्थलीय लोहे के सभी ज्ञात स्रोतों से अलग था। आज, बनारस(ए) को साधारण कोंड्राइट्स के एलएल भू-रासायनिक समूह के सदस्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है।एलएल कोंड्राइट्स साधारण कोंड्राइट्स का सबसे छोटा समूह है। साथ ही, पूरी तरह से वर्गीकृत सभी उल्कापिंडों के गिरने का लगभग 10% इस समूह से बनता हैं।
एलएल 4 पेट्रोलॉजिकल(LL4 Petrologic) प्रकार के एलएल कोंड्राइट्स स्वयं अपेक्षाकृत दुर्लभ होते हैं। मौसम संबंधी डेटाबेस के अनुसार, 2016 की शुरुआत तक/में गिरे केवल 7 ही उल्कापिंडों को ‘एलएल4’ कोंड्राइट्स के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इनमें से 1877 में गिरे केवल एक ही पिंड, सोको-बांजा(Soko–banja) उल्कापिंड का वजन 80 किग्रा से अधिक था।
उल्कापिंडों की सूची 2000(Catalogue of Meteorites 2000) के अनुसार, कई छोटे और मध्यम द्रव्यमान के उल्कापिंडों के नमूने अभी भी विभिन्न संस्थानों के पास हैं।लेकिन, कुछ नमूनों के गलत नामकरण(Labelling) से पता चलता है कि, भविष्य के अध्ययनों की व्याख्या करने में अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता हो सकती है।
‘बनारस(ए)’ एक ज्ञात उल्कापात है। जबकि, ‘बनारस (बी)’ उसी क्षेत्र में कुछ समय बाद खोजे गए तथा खराब तरीके से प्रलेखित एवं कृत्रिम रूप से गर्म किए गए लौह उल्कापिंड का नाम है।
सैमुअल डेविस(Samuel Davis) जो कि, बनारस के तत्कालीन न्यायाधीश एवं मजिस्ट्रेट(Magistrate) थे, ने लिखा था कि, ‘ईसाई युग से कई हजार साल पहले की अवधि में भी, भारतीयों के पास बहुत सही खगोलीय अवलोकन और नियम रहे होंगे। खगोल विज्ञान पर संस्कृत में कई ग्रंथ भी उपलब्ध थे, और ब्राह्मण उन्हें समझने-समझाने के लिए बेहद इच्छुक थे।“
संदर्भ
https://tinyurl.com/ybjcvj6f
https://tinyurl.com/yn6k9jjn
https://tinyurl.com/2xv5n2yf
चित्र संदर्भ
1. केराकत रेलवे जंक्शन और बनारस उल्कापिंड को दर्शाता चित्रण (Youtube)
2. केराकत में गिरा हुआ, उल्कापिंड एक साधारण कोंड्राइट(Chondrite)पत्थर था, जिसको दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. एलएल 4 उल्कापिंड को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. चमकदार उल्कापिंड को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.